Saturday, November 2, 2013

बस्तर संभाग में नरेंद्र मोदी को कोई नहीं जानता,यहाँ रमन सिंह बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं


शेष नारायण सिंह 

जगदलपुर, २७ अक्टूबर . छत्तीसगढ़ विधान सभा के चुनावो के बाद रायपुर में बनने वाली सरकार के गठन में बस्तर संभाग की १२ सीटों का महत्व सबसे ज़्यादा है . बाकी इलाके में तो कांग्रेस और बीजेपी की स्थिति लगभग बराबर ही रहती है . पिछली विधान सभा में बस्तर संभाग की बीजेपी की ११ सीटों के कारण ही रमन सिंह दुबारा मुख्यमंत्री बन सके थे  . लेकिन  बस्तर क्षेत्र में रहने वाला हर इंसान जानता है कि इस बार बीजेपी की ११ सीटें नहीं आ रही है . यहाँ तक कि बीजेपी के कार्यकर्ता भी जानते हैं कि उनकी पार्टी की हालत इस बार उतनी अच्छी नहीं है जितनी पिछली बार थी. पिछली बार बस्तर में लखमा कवासी इकलौते कांग्रेसी उम्मीदवार थे जो कोंटा से विजयी रहे थे. कांग्रेसी उम्मीद कर रहे थे कि जीरम घाटी में मारे गए महेंद्र कर्मा के परिवार के किसी उम्मीदवार को टिकट दे देने से उसे सहानुभूति का लाभ मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं है .उसी तरह दिल्ली में बैठे बीजेपी के नेता समझ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की आक्रामक हिंदू नेता की छवि का लाभ पार्टी को मिलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं है .कई इलाकों में तो लोगों ने नरेंद्र मोदी का नाम भी नहीं सुन रखा है .इस इलाके में बीजेपी का एक ही नेता है और उसका नाम है रमन सिंह .

बस्तर संभाग में २००८ के चुनाव में  ११ सीटें जीतकर रमन सिंह ने सरकार बना ली थी. यहाँ के हर जानकार ने बताया कि इस इलाके में आदिवासियों और सतनामियों के बीच कांग्रेस नेता अजीत जोगी की पहचान  है और  बीजेपी की ११ सीटों  की जीत में अजीत जोगी की खासी भूमिका थी क्योंकि उन्होंने अपने आपको बड़ा नेता साबित करने के लिए अपने विरोधी गुट के कांग्रेसी उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया था . लेकिन इस बार ऐसा नहीं है . इस बार अजीत जोगी कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ काम नहीं कर रहे हैं . बस्तर संभाग की ११ सीटें रिज़र्व हैं जबकि जगदलपुर की सीट सामान्य है . यहाँ से कांग्रेस ने शामू कश्यप को उम्मीदवार बनाया है . कांग्रेस के एक बहुत ही ज़िम्मेदार नेता ने बताया कि यह कांग्रेस आलाकमान की चूक है . शामू कश्यप महरा जाति के हैं .उनकी जाति के लोगों की बहुत वर्षों से मांग है कि उनको अनुसूचित जनजाति का दरजा दिया जाए लेकिन अनुसूचित जनजाति के लोग इस मांग का विरोध कर रहे हैं . उनको डर है कि अगर महरा जाति को  अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा मिल गया तो वे सारे लाभ हथिया लेगें क्योंकि महरा जाति के लोग अपेक्षाकृत चालाक बताए जाते हैं . गाँवों में जो भी छोटे मोटे कारोबार हैं सब इनके पास ही हैं . कांग्रेस को उम्मीद है कि महरा जाति के करीब दो लाख वोट उनको एकतरफा मिल जायेगें लेकिन इस गणित से बीस लाख के करीब मुरिया,गोंड,राउत और घसिया आदिवासी नाराज़ भी हो सकते हैं .बताते हैं कि  कांग्रेस की इस राजनीतिक अनुभवहीनता का लाभ उठाने के लिए बीजेपी ने अपने वनवासी कल्याण परिषद वालों के ज़रिये बहुसंख्यक आदिवासियों को सचेत करना शुरू कर दिया है . ऐसी हालत में जगदलपुर के मौजूदा विधायक संतोष बाफना को लाभ मिलने की स्थति पैदा हो गयी है .यहाँ कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही बागियों का सामना करना पड़  रहा है . बीजेपी के राजाराम तोडेम स्वाभिमान मंच से लड़ रहे हैं तो सेठिया समाज के राम केसरी कांग्रेस से नाराज़ होकर बागी हो गए हैं इस इलाके में सेठिया समाज के वोटों की खासी संख्या है .ज़ाहिर है कि यह बीजेपी को फायदा पंहुचा सकते हैं .

इस बार बस्तर सम्भाग की दो सीटों पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार मजबूती से लड़ रहे हैं . कोंटा में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष ,मनीष  कुंजाम मज़बूत हैं जबकि उनकी पुरानी सीट दंतेवाड़ा में उनकी पार्टी के उम्मीदवार बोमड़ा राम कवासी की हालत बहुत अच्छी है . दंतेवाडा सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहाँ से कांग्रेस ने महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा को टिकट दिया है . कांग्रेस ने उम्मीद की थी कि महेंद्र कर्मा की जिस तरह से माओवादियों ने जीरम घाटी में ह्त्या की थी उससे सहानुभूति  मिलेगी लेकिन दंतेवाड़ा में ऐसा कुछ नहीं दिखता.  देवती कर्मा से किसी को सहानुभूति नहीं है . उनके दो बेटे इलाके में ऐसी ख्याति अर्जित कर चुके  हैं जिसके बाद किसी को भी सहानुभूति नहीं मिलती. उनका एक बेटा अभी भी नगर पंचायत का अध्यक्ष है जबकि दूसरा जिला पंचायत का भूतपूर्व अध्यक्ष है. दोनों ने ही इलाके के लोगों को बहुत परेशान कर रखा है . सलवा जुडूम के हीरो के रूप में भी महेंद्र कर्मा की  पहचान थी जिसके कारण आदिवासी इलाकों  में उन्हें बीजेपी के एजेंट के रूप में पहचाना जाता है . आम आदिवासी महेंद्र कर्मा को नापसंद करता है  हालांकि केन्द्र सरकार और उनेक सहयोगी उन्हें बस्तर का शेर बनाकर पेश करने की कोशिश करते हैं . दंतेवाड़ा से महेंद्र कर्मा २००८ में खुद कांग्रेस उम्मीदवार थे और तीसरे नंबर पर रहे थे . यहाँ कम्युनिस्ट पार्टी दूसरे नंबर पर थी . उस बार यहाँ के उम्मीदवार मनीष कुंजाम थे . कम्युनिट पार्टी के प्रचार में दिन रात एक कर रहे पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य सी आर बख्शी ने बताया कि उनका उम्मीदवार गैर आर एस एस समुदाय में बहुत लोकप्रिय है .यहाँ की लड़ाई अभी शुद्ध रूप से सी पी आई और बीजेपी के बीच है . दिल्ली में कांग्रेस के एक बड़े नेता ने भी बताया कि दंतेवाड़ा में सी पी आई का उम्मीदवार बहुत मजबूत है .

कोंटा सीट पर  सी पी आई के मनीष कुंजाम खुद उम्मीदवार हैं . उनकी इज्ज़त सभी वर्गों में है . जब माओवादियों ने सुकमा के कलेक्टर अलेक्स पाल मेनन का अपहरण कर लिया था  तो उनकी रिहाई के लिए जो कोशिशें हुई थीं उनमें मनीष कुंजाम ने जो भूमिका निभाई थी उसकी सभी सराहना करते हैं . माओवादियों के बीच भी उनकी इज्ज़त है . आदिवासी समुदाय उनके साथ है लेकिन एक शंका यह जतायी जा रही है कि रमन सिंह की सरकार कम्युनिस्ट उम्मीदवारों को नहीं जीतने देगी चाहे उसे कांग्रेस के पक्ष में ही बीजेपी के अपने वोट ट्रांसफर करना पड़े. बस्तर सम्भाग से इकलौते कांग्रेसी एम एल ए , कवासी लखमा भी कोंटा में उम्मीदवार हैं . लेकिन उनकी हालत खस्ता बतायी जा रही है . यह सीट सी पी आई को मिल सकती है .

बीजेपी के बस्तर क्षेत्र के विधायकों के खिलाफ जनरल माहौल है .चित्रकोट के बीजेपी उम्मीदवार बैदूराम कश्यप हैं जो विधायक भी हैं . यह कभी भी अपने क्षेत्र में नहीं गए. इनके क्षेत्र की सबसे बड़ी पंचायत कूकानार है , इसमें करीब आठ हज़ार वोट हैं . बस्तर के हिसाब से यह बहुत बड़ा वोट बैंक है .बीजेपी की जीत में इस इलाके का भारी योगदान रहता  है  लेकिन चुनाव जीतने के बार बैदूराम यहाँ एक बार भी नहीं गए. कूकानार में उनके खिलाफ सभी लोग हैं और उनको हराने के लिए वोट करने वाले हैं . उनका विरोध उनकी ही पार्टी के लच्छूराम कश्यप कर रहे हैं . लच्छूराम अभी जिला पंचायत के अध्यक्ष है और बीजेपी के टिकट के मज़बूत दावेद्दार थे . उन्होने बताया कि अगर इस बार भी बैदूराम जीत गए तो वह जड़ पकड़ लेगें और जिले में उनकी जो राजनीतिक हैसियत है वह खत्म हो जायेगी . हालांकि कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ भी बागी उम्मीदवार हैं लेकिन कांग्रेस का उम्मीदवार दीपक बैज नया खिलाड़ी है और बैदूराम पर भारी पड़ रहा है.

कांकेर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी ने अपनी विधायक सुमित्रा मारकोले की जगह पर संजय कोडोपी को टिकट दिया है। बीजेपी  कार्यकर्ताओं में नाराज़गी है. संजय कोडोपी बहुत ही अलोकप्रिय है  और पार्टी में  बगावत के कारण उनके पाँव नहीं जम पा रहे हैं।  कांग्रेस के शंकर धुर्वा उम्मीदवार हैं और उनके परिवार की इज़ज़त है।  बीजेपी के कार्यकर्ता भी कहते देखे गए कि श्यामा धुर्वा की जो गुडविल है शंकर को उसका लाभ मिल सकता है। 

अंतागढ़ में बीजेपी के उम्मीदवार विक्रम उसेंडी हैं।  इंकमबेंसी की असली मार झेल  रहे हैं।  पिछले पांच साल के उनके काम से नाराज़ लोगों की बड़ी संख्या है। उनसे नाराज़ होकर उनकी पार्टी के ही प्रभावशाली नेता , भोजराज नाग निर्दलीय लड़ रहे हैं। लेकिन  विक्रम उसेंडी के पास भी साधनों की कोई कमी नहीं है।  उन्होंने भोजराज नाग नाम के एक और उम्मीदवार को खड़ा कर दिया है।  पिछले बार विक्रम उसेंडी १०९ वोट से जीते थे।  ज़ाहिर है कि उनका मुक़ाबला मुश्किल है।  कांग्रेस के उम्मीदवार मंतूराम पवार इलाक़े में सम्मानित व्यक्ति है और उसको मंत्री जी की दुर्दशा का लाभ मिल रहा है। इसी क्षेत्र में ढाका से १९५० के दशक में आये हुए शरणार्थियों की बस्ती भी है।  नामशूद्र जाति के यह लोग अविभाजित बंगाल में दलित वर्ग के माने जाते थे ।  लेकिन यहाँ उनको दलित नहीं माना जा रहा है। उनकी बहुत दिनों से मांग है कि उन्हें अनुसूचित वर्ग में रखा जाए।  लेकिन केंद्र की सरकार इस बात को हमेशा से टाल रही है।  इस बार विक्रम उसेंडी ने उनको भरोसा दिला दिया है कि उनको अनुसूचित जाति की श्रेणी में वे करवा देगें। उनकी बात पर पंखाजोर के इस इलाक़े में सही माना जा रहा है।  इस बात की सम्भावना है कि विक्रम उसेंडी को यह सारे  वोट मिल जायेगें।  अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस उम्मीदवार की सारी अच्छाई का बावजूद भी यह सीट बीजेपी के हाथ लगेगी क्योंकि नामशूद्रों के यहाँ क़रीब आठ हज़ार वोट हैं।  और जहां १०९ वोट से हारजीत का फैसला हो रहा हो वहाँ आठ हज़ार वोटों का बहुत अधिक महत्व है।  

केशकाल बस्तर सम्भाग की एक अन्य महत्वपूर्ण सीट है।  जहां बीजेपी के विधायक सेवक राम नेताम फिर मैदान में हैं।  पांच साल का उनका कार्यकाल आलोचना का विषय है ।  उनके खिलाफ अजीत जोगी का बन्दा संतराम नेताम कांग्रेस की तरफ से उमीदवार है।  संतराम को बाहरी माना जा रहा है लेकिन सेवकराम निष्क्रिय रहे हैं इसलिए संतराम की स्थिति मज़बूत है।  यहाँ कांग्रेस की अगर हार हुयी तो उसमें स्वाभिमान मंच के उम्मीदवार  का भारी योगदान होगा क्योंकि वह यहाँ बीजेपी की मदद कर रहा है और कांग्रेस के वोट काट रहा है।  

बीजापुर में कांग्रेस ने विक्रम मंडावी को उतारा है लेकिन उनको टिकट मिलने से बहुत सारे कांग्रेसी नाराज़ हैं।  ज़िला पंचायत की अध्यक्ष और कांग्रेस की नेता , नीना रावतिया भी टिकटार्थी थीं और अब कांग्रेसी उम्मीदवार का विरोध कर रही हैं। इस टिकट से नाराज़ कुछ लोगों ने बीजेपी भी ज्वाइन कर लिया है। यहाँ बीजेपी के उमीदवार महेश गागड़ा हैं। ।  राजाराम तोड़ेम भी यहाँ से बीजेपी का टिकर मांग रहे थे।  लेकिन अब नाराज़ हैं और स्वाभिमान मंच में शामिल हो गए हैं।  वे जगदल पुर से पर्चा भर चुके हैं और वहाँ बीजेपी के संतोष बाफना की लड़ाई को कठिन बना रहे हैं। 

भानु प्रतापपुर में बीजेपी विधायक ब्रह्मानंद नेताम को टिकट काट दिया गया है।  उनकी जगह पर नौजवान सतीश लाठिया लड़ रहे हैं।  बीजेपी के कई नेता उनके खिलाफ हैं।  ब्रह्मानंद भी विरोध में काम कर रहे हैं लेकिन बीजेपी के रायपुर के नेताओं को उम्मीद है कि बात बन जायेगी  .  बीजेपी नेता रुक्मिणी ठाकुर तो लाठिया को हारने का मन बना चुकी हैं।  कांग्रेस के उम्मीदवार मनोज मंडावी हैं।  यहाँ कांग्रेस बहुत मज़बूत नहीं है इसलिए उनके खिलाफ भितरघात का ख़तरा नहीं है. बस्तर सम्भाग के जितने बीजेपी नेताओं से बात हुयी सबी इस  सीट पर कांग्रेस की जीत की बात करते पाये गए। 

कोंडागांव बीजेपी की मज़बूत सीट है।  वहाँ से पूर्व सांसद मनकूराम सोढ़ी के बेटे शंकर सोढ़ी  निर्दलीय उम्मीदवार हैं और कांग्रेसी उम्मीदवार मोहन मरकाम की लड़ाई को बहुत कठिन बना रहे हैं।  पिछली बार भी मोहन मरकाम अच्छा लड़े थे और बहुत मामूली अंतर से हारे थे।  लेकिन इस बार शंकर सोढ़ी के कारण वर्त्तमान विधायक लता उसेंडी की स्थिति मज़बूत है।  आज की हालत अगर  चुनाव के दिन तक बनी रही तो यह सीट बीजेपी की हो जायेगी लेकिन अगर शंकर सोढ़ी मान गए तो कांग्रेस के खाते में जा सकती है।  केंद्रीय कांग्रेस नेताओं ने बताया कि शंकर सोढ़ी  को लोकसभा लड़ने के लिए कहा जा रहा है।  अगर यह सम्भव हुआ तो यहाँ से कांग्रेस की जीत की सम्भावना बहुत अधिक हो जायेगी।  

नारायणपुर में मंत्री केदार कश्यप बहुत मज़बूत हैं।  रमन सिंह सरकार में मंत्री हैं।  आदिवासी विभाग के मंत्री हैं , बहुत संपन्न हैं और कांग्रेसी उम्मीदवार , चन्दन कश्यप पर बहुत भारी पड़ रहे हैं। जबकि बस्तर विधानसभा क्षेत्र दोनों पार्टियों में भितरघात है।  बीजेपी विधायक सुभाऊ कश्यप के खिलाफ कांग्रेस ने डॉ लखेश्वर  बघेल को टिकट दिया है  जो मज़बूत माने जा रहे हैं।  
बस्तर सम्भाग में राहुल गांधी या नरेन्द्र मोदी का कहीं भी कोई ज़िक्र नहीं है। सारा चुनाव आदिवासियों  के मुक़ामी मुद्दों पर लड़ा जा रहा है।  पूरे क्षेत्र में नरेद्र मोदी का कोई पोस्टर नहीं दिखा  जबकि कांग्रेसियों ने जगह राहुल गांधी, सोनिया गांधी और डॉ मनमोहन सिंह के पोस्टर लगा ऱखे हैं।  यहाँ रमन सिंह नरेंद्र मोदी से बड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं।