Saturday, September 3, 2011

अन्ना की टीम के किसी बन्दे को भ्रष्ट कहने वाले अच्छे लोग नहीं हैं .

शेष नारायण सिंह नई दिल्ली,२ सितम्बर.अन्ना हजारे की टीम के ख़ास सदस्यों को घेरने की केंद्र सरकार की नीति को आज अरविंद केजरीवाल ने आड़े हाथों लिया .उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे के आन्दोलन की धार को कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस पार्टी के हुकुम के बाद उनके पुराने विभाग़ ने सक्रियता दिखाई है . उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अन्ना हजारे की कोर टीम को दौंदियाने की कोशिश कर रही है . उनका दावा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मैदान ले चुकी इस देश की जनता सरकार की इस कोस्शिश को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी. अरविंद केजरीवाल आज प्रेस से मुखातिब थे . उनके साथ उनके ख़ास साथी प्रशांत भूषण और किरण बेदी भी मौजूद थे. उधर सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि उनकी टीम के दिल्ली के सदस्यों के दागदार साबित होने के बाद अन्ना हजारे इन लोगों को अपने साथ नहीं रखेगें. सरकार को भरोसा है कि अन्ना की छवि बिलकुल साफ़ है और वे जब भी उनके साथी दागदार पाए जाते हैं , वे उन्हें अपनी टीम से ड्राप कर देते हैं . ऐसा वे महाराष्ट्र में चलाए गए अपने हर आन्दोलन के बाद कर चुके हैं . केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल को घेरने की कवायद शुरू कर दी है . जब वे इनकम टैक्स विभाग में अफसर थे ,उस समय की कुछ गड़बड़ियों को कल सरकार की तरफ से मीडिया के फोकस में लाया गया था. केजरीवाल ने आज केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि जिस नोटिस को आज हर अखबार ने प्रमुखता से छापा है वह सरकार की उस योजना का नमूना है जिसके तहत वह अन्ना हजारे की टीम के ख़ास लोगों शक़ के दायरे में लेने की कोशिश कर रही है . उन्होंने कहा कि उनके ऊपर जो ९ लाख रूपये की गड़बड़ी का आरोप लगाया गया है वह बेबुनियाद है . अरविंद केजरीवाल की बात पर कोई भी सरकारी अधिकारी बयान देने को तैयार नहीं है लेकिन खुसुर पुसुर अभियान पूरी तरह से चल रहा है . इसके पहले प्रशांत भूषण के पिता शान्ति भूषण की सी डी के मामले को भी प्रेस को लीक कर दिया गया था . उस सी डी को अमर सिंह ने प्रशांत भूषण और शान्ति भूषण को भ्रष्ट साबित करने के लिए अदालत में पेश किया था . दिल्ली पुलिस अन्ना हजारे के अनशन के ख़त्म होने के बाद उस सी डी के बारे में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दिया .. यानी पुलिस मानती है कि उस मामले को साबित करने के बारे वह गंभीर नहीं है लेकिन उस सी डी के असली होने की बात को पब्लिक कर दी गयी . सच्चाई यह है कि सी डी को जिसने सुना है उसके मन में शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण के बारे में शक़ होना स्वाभाविक है क्योंकि मुलायम सिंह यादव से जो बातचीत उसमें सुनायी पड़ रही है वह पूरी तरह से स्पष्ट है और शान्ति भूषण प्रशांत की उस क्षमता का ज़िक्र कर रहे हैं जिसके अनुसार वे जजों को मैनेज कर सकते हैं . . इस सी डी का मकसद भी अन्ना की टीम के दो ताक़तवर लोगों को धूमिल करने की कोशिश ही नज़र आती है . आज दिल्ली विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी से बात करने पर पता लगा कि सरकार अन्ना की टीम की एक अन्य सदस्य किरण बेदी की एन जी ओ जुडी कुछ बातों को पब्लिक डोमेन में डालने की बात कर रही है . डी डी ए में चर्चा है कि किरण बेदी ने अपने एन जी ओ के लिए कुछ मकान अनाधिकृत तरीके से लेने की कोशिश की थी. इसका मतलब यह हुआ कि किरण बेदी को भी शक़ के दायरे में लाने की कोशिश शुरू हो गयी है . किरण बेदी की ख्याति बहुत ही ईमानदार अफसर की रही है लेकिन सरकार उनको भी घेरने की कोशिश कर रही है . जब सरकार की हताशा के ज़िक्र सत्तापक्ष के एक बड़े नेता से किया गया तो उनका कहना था कि इन आरोपों के बाद अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण की छवि निश्चित रूप से धूमिल होगी और जो लोग अन्ना हजारे को जानते हैं उनका दावा है कि अपने साथ किसी भी दागदार आदमी को कभी न रखने वाले अन्ना हजारे अपनी टीम में फेरबदल भी कर सकते हैं .

अन्ना हजारे को सबसे बड़ा ब्रैंड बनाने वाले पत्रकार थे या कोई और ?



शेष नारायण सिंह


अपना अनशन समाप्त करने के बाद गुडगाँव के एक अस्पताल में २-३ दिन तक स्वास्थ्य लाभ करके अन्ना हजारे वापस अपने गाँव चले गए. यह खबर आज देश के हिन्दी के सबसे बड़े अखबार में पहले पेज पर छपी है .खबर गुडगाँव के संवाददाता की है और ,एक कालम की यह खबर करीब १०० शब्दों में निपटा दी गयी है . देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार में भी यह खबर पहले पेज पर संक्षिप्त छापी गयी है .यानी अब प्रिंट मीडिया को अन्ना हजारे और उनकी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं बची है . लेकिन टेलिविज़न मीडिया ने कल शाम को जब अन्ना हजारे अस्पताल से निकले तो उस विदाई को मीडिया इवेंट बनाने की पूरी कोशिश की . कुछ चैनलों पर अन्ना हजारे की अस्पताल से विदाई की खबरों को देखने का मौका मुझे भी मिला. हेडलाइन थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . एक कार में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ कर अन्ना हजारे को जाते हुए दिखाया गया था. वही सफ़ेद गांधी टोपी, वही सफ़ेद कुरता और वही सौम्य मुस्कान . . करीब ३ सेकण्ड का यह शाट बार बार दिखाया गया . साथ में न्यूज़ रीडर की आवाज़ भी कानों में पंहुच रही थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . उसी शाट को करीब २५ मिनट तक लगातार दिखाया गया और एक ही वाक्य को न्यूज़रीडर तरह तरह से बोलता रहा. कभी कहता कि अन्ना हजारे को असपताल से छुट्टी दे दी गयी है . और वे कहीं जा रहे हैं . . फिर कहता कि हम आपको इस बारे में पल पल की जानकारी दे रहे हैं . अब हम गुडगाँव से चलते हैं जहां हमारे संवाद दाता मिस्टर अमुक लाइव जुड़ रहे हैं . और अब वे पल पल की जानकारी देंगें . लाइव संवाददाता भी वही वाक्य कुछ फेर बदल करके सुनाते और कहते कि अभी पता नहीं है कि अन्ना को कहाँ ले जाया जा रहा है . यह भी नहीं पता कि उनके साथ कौन कौन हैं . यह भी नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे हैं . यानी करीब ७ वाक्य ऐसे होते थे कि लाइव संवाद दाता को पता ही नहीं कि खबर क्या है लेकिन टेलिविज़न पर हैं तो कुछ न कुछ तो बोलते ही रहना है लिहाजा कुछ ऐसे वाक्य बोलते रहे जिन वाक्यों को न्यूज़ रीडर और लाइव संवाददाता ने मिलकर २५ मिनटों में सैकड़ों बार बोला होगा. बार बार लगता था कि बीच में यह न्यूज़ रीडर थोडा समय निकाल कर उन खबरों के बारे में भी बता देगा जिससे देश को पता चलता कि उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों में भारी बाढ़ आई हुई है . कुछ इलाकों में लोग पेड़ों पर रह रहे हैं , कुछ इलाकों में लोग बाढ़ की वजह से पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए हैं और भूख से तड़प रहे हैं . लेकिन ऐसा कहीं होता नहीं दिखा . शाम को भी कुछ चैनलों को देखने का मौक़ा मिला . वहां भी कुछ ऐसी बहसें चल रही थीं जिनको देख कर लगता ही नहीं था कि असली भारत किन मुसीबतों से जूझ रहा है. राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी और अफज़ल गुरु की फांसी की राजनीतिक विवेचना भी कुछ चैनलों पर नज़र आई. लेकिन इन खबरों को आज अखबारों ने वह इज्ज़त नहीं दी है जो रुतबा इन का कल के टी वी चैनलों पर देखने को मिला .


ज़ाहिर है कि भारतीय मीडिया की प्राथमिकताएं खबर की औकात से नहीं किसी अन्य कारण से तय होती हैं . कुछ कठोर आलोचक टी वी न्यूज़ की प्राथमिकता को तय करने का पैमाना टी आर पी को बता कर टी वी चैनलों को बहुत ही स्वार्थी संगठन के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं . उस तर्क से तो टी वी चैनल इंसान की कमजोरी का बौद्धिक शोषण करने वाले संगठन के रूप में मान लिए जायेगें . आम तौर पर इंसान की यह कमजोरी होती है कि वह अपने बारे में खबर देख कर बहुत खुश होता है .हालांकि कई ज्ञानी टी वी संपादक इस बात को सेमिनारों आदि में इस बात को खुद स्वीकार करते पाए जाते हैं लेकिन उन्हें शायद मालूम ही नहीं है कि वे क्या स्वीकार कर रहे हैं . टी आर पी के दबाव में खबरों को प्रस्तुत करने की बात को कुछ हद तक तो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है .भारत में टेलिविज़न की बहुत सारी खबरों ने इतिहास रचा है . उन सबको यहाँ दुहराना समीचीन नहीं होगा लेकिन समकालीन भारत के राजनीतिक इतिहास में कुछ ऐसी खबरें ज़रूर हैं जिनके कारण बहुत बड़े बड़े घोटाले पब्लिक डोमेन में आये. कामनवेल्थ खेलों के घोटाले, २ जी स्पेट्रम के घोटाले आदि ऐसे उदाहरण हैं जिनको फोकस में लाने में टेलिविज़न चैनलों का भारी योगदान है . बंगारू लक्ष्मण नाम के नेता को नोटों के बण्डल संभालते दिखाकर टेलिविज़न ने भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में एक संगमील स्थापित किया था . लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है इस तरह की खबरें उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं . कामनवेल्थ खेल और २ जी वाला घोटाला तो देश के राजनीतिक विकास में भारी योगदान कर रहा है . कांग्रेस को एक भ्रष्ट पार्टी के रूप में चिन्हित करने में इन खबरों का बहुत बड़ा योगदान है . लेकिन जब टेलिविज़न एक व्यक्ति के अनशन को राष्ट्रीय एजेंडा पर लाने की कोशिश करता है तो बात अजीब लगती है . टेलिविज़न की कृपा से ही ब्रैंड अन्ना अगस्त के दूसरे पखवाड़े के समय काल में १० दिनों का विज्ञापन की दुनिया का सबसे बड़ा भारतीय ब्रैंड बन सका . विज्ञापन की दुनिया से जुड़े लोगों का कहना है किसी एक आदमी को १५ दिन के अंदर देश का टाप ब्रैंड बनाना कोई मामूली सफलता नहीं है . उसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर प्लानिंग की ज़रूरत होती है . देश के आम आदमी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि किसी को ब्रैंड बनाने के लिए कितनी प्लानिंग की गयी और कितनी नहीं की गयी. लेकिन उसे इस बात से ज़रूर मतलब है कि वह टेलिविज़न पर ऐसी ख़बरों को देखे जिस से उसकी जानकारी बढे. यहाँ कम्युनिकेशन थियरी के महान विद्वानों मार्शल मैक्लुहान और रेमंड विलियम्स के विचारों का हवाला देकर कोई प्वाइंट स्कोर करने की मंशा नहीं है लेकिन आम आदमी की उस जिज्ञासा को ज़रूर रेखांकित किया जाना चाहिए कि वह उन खबरों को ही देखे जो उसकी जानकारी में वृद्धि करें. अगर जानकारी में वृद्धि करने के बाद कोई खबर बार बार श्रोता के सर पर हथौड़े की तरह काम कर रही है तो उसे विज्ञापन कहा जायेगा. यहाँ इस बहस में भी जाने की ज़रुरत नहीं है कि पंद्रह दिनों तक टेलिविज़न पर अन्ना हजारे की जो ब्रैंड बिल्डिंग की गयी उसका उद्देश्य क्या था और उस उद्देश्य को हासिल करने के लिए टेलिविज़न टाइम कौन मुहैया करवा रहा था लेकिन यह बात सच है कि समाचार की जितनी भी परिभाषाएं अब तक जानकारी में आई हैं उनके अनुसार १५ दिन तक टेलिविज़न पर चला अन्ना हजारे का अभियान किसी भी सूरत में खबर की श्रेणी में नहीं आता . हाँ अगर यह मान लिया जाय कि वह ब्रैंड बिल्डिंग का एक आयोजन था तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. आज के अखबारों में छपी अन्ना हजारे से सम्बंधित ख़बरों को जो मामूली ट्रीटमेंट हुआ है उसे देख कर समझ में आ जाता है कि पत्रकार बिरादरी तो अन्ना हजारे वाली ख़बरों को सही समझ रही थी लेकिन जो नज़र आ रहा था वह पत्रकारों के कारण नहीं नज़र आ रहा था. बार बार सवाल उठता है कि कहीं वह ब्रैंड मैनेजरों का काम तो नहीं था.