शेष नारायण सिंह
रिज़र्व बैंक ने एक बार फिर ब्याज दरें बढ़ा दीं हैं। उनकी सोच है कि बाज़ार में रुपये की कमी से खर्च पर लगाम लगेगी और उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद कम होगी। रिज़र्व बैंक के प्रबंधन में देश के चोटी के विद्वान लगे हैं। अर्थशास्त्र के एक प्रकांड पंडित इस देश के प्रधानमंत्री हैं इसलिए यह कहना कि ब्याज़ दर बढ़ा कर मंहगाई पर काबू पाना नामुमकिन है, शायद छोटे मुंह बड़ी बात होगी लेकिन सच्चाई यह है कि बैंकों से पैसा लेकर फालतू की चीज़ें नहीं खरीदी जातीं।
आम तौर पर कर्ज का इस्तेमाल औद्योगिक विकास में योगदान करने के लिए होता है। मध्य वर्ग के लोग घरेलू उपयोग की चीज़ें खरीदने के लिए भी कभी कभी कर्ज लेते है। वैसे पिछले पंद्रह वर्षों का इतिहास देखा जाए तो समझ में आ जाएगा कि मध्यवर्ग के लोगों ने सबसे ज्यादा कर्ज मकान और कार खरीदने के लिए ही लिया है इस कर्ज ने आर्थिक विकास को गति दी है। इसलिए कर्ज पर ब्याज़ दर बढ़ाकर मंहगाई पर काबू करने की सोच को बहुत ही परिपक्व नहीं माना जा सकता। सरकार और रिज़र्व बैंक को इस मामले पर फिर से विचार करना चाहिए। तो सवाल उठता है कि मंहगाई बढऩे के कारण क्या है?
अर्थव्यवस्था की मामूली समझ रखने वाला इंसान भी जानता है कि मंहगाई के लिए सबसे ज्य़ादा नंबर दो का पैसा है काले धन की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो गई है कि उसे खत्म कर पाना अब मुश्किल है। इसका कारण यह है कि देश का प्रशासन चलाने वाले सभी वर्गों में ऐसे लोगों की बहुतायत है जो काली कमाई के सहारे ही अपना काम चला रहे हैं। काले धन की हैसियत का अंदाज़ इस देश में लोगों को समय समय पर लगता रहा है लेकिन मौजूदा वक्त ऐसा है जब पूरे देश को अंदाज लग गया है कि काला धन देश की अर्थव्यवस्था में क्या रुतबा हासिल कर चुका है। आई पी एल क्रिकेट और उससे जुड़े हेराफेरी के सौदों की जानकारी जबसे सार्वजनिक क्षेत्र में आई है तबसे रोज़ ही कोई न कोई नया मसाला सामने आ जाता है। अब लगभग तय हो गया है कि ललित मोदी ने आईपील में बड़े नेताओं और उद्योगपतियों के पैसे को ठिकाने लगाने का काम किया था। उसने आज जो खुलासा किया है उससे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के बड़े बड़े कर्ता धर्ता शक के दायरे में आ गए हैं। मोदी ने अपने खास लोगों को बतया है कि उसने इन्हीं राजनीतिक आकाओं के लिए हेराफेरी की थी। उस प्रक्रिया में उसने अपने लिए भी कुछ रख लिया। ज़ाहिर है कि अगर मोदी के कारनामों की जांच होगी तो वह राजनीतिक नेताओं की पोल भी खोल देगा और अपनी काली कमाई को बेपर्दा होने से बचाने के लिए यह नेता लोग उसे भी बचाएंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के खास माने जाने वाले शशि थरूर को नंगा करके ललित मोदी के यूपीए और विपक्ष में मौजूद संरक्षकों ने कांग्रेस डराने की कोशिश की थी। उन्हें अंदाज़ नहीं था कि सोनिया गांधी उनके ब्लफ को ताड़ जाएंगी और शशि थरूर को रास्ते से हटाकर ललित मोदी के इन आकाओं पर हमला बोल देंगी लेकिन सोनिया गांधी ने वही किया। नतीजा यह हुआ कि अब शशि थरूर तो अखबारों की रद्दी में कही दब गए, लेकिन ललित मोदी के आकाओं की गर्दन पर तलवार लटक गई है। घबड़ाकर इन राजनीतिक सूरमाओं ने ललित मोदी को छोड़ दिया है लेकिन वह भी डटा हुआ है और सभी राजनीतिक नेताओं को औकात बताने पर आमादा है जिन्होंने उसे शिखंडी बनाकर अपनी सियासत चमकाने की कोशिश की थी। ललित मोदी का यह खेल देश हित में है क्योंकि अगर इतने बड़े पैमाने पर हेराफेरी पकड़ी जाएगी जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के बड़े बड़े लोगों की बेईमानी से पर्दा उठेगा तो देश का बड़ा फायदा होगा।
आईपीएल में हज़ारों करोड़ के काले धन की कहानी तो नंबर दो की अर्थव्यवस्था का एक बहुत ही मामूली पहलू है। इसी तरह के हजारों हजार मामले देश की राजधानी और हर प्रदेश की राजधानी में देखे जा सकते हैं। मधु कौड़ा, शिबू सोरेन, प्रमोद महाजन, रंजन भट्टाचार्य आदि ने नंबर दो की अर्थव्यवस्था के जो खेल किए थे उसे दुनिया जानती है। इसके आलावा उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की आर्थिक अराजकता की कहानियां दुनिया जानती हैं। यही लोग मकानों की कीमतें बढ़ाते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ऐसे लाखों मकान है जो खाली पड़े है जिसे किसी घूसखोर ने खरीद कर छोड़ दिया है। अर्थशास्त्र का साधारण सा नियम है कि मकानों की कीमत बढऩे से बाकी चीज़ों की कीमत भी बढ़ती है। और इसी वजह से मंहगाई बढ़ती है।
इसलिए अगर सरकार चाहती है कि मंहगाई पर काबू पाया जाय तो उसे फौरन ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे जिससे काले धन की समांतर अर्थव्यवस्था पर लगाम लगे। अगर काले धन की अर्थव्यवस्था पर लगाम लग गई तो कीमतें अपने आप कम होगी। यह काम मुश्किल है लेकिन मनमोहन सिंह के लिए असंभव नहीं है। निजी तौर पर उन्होंने कोई भी बेईमानी नहीं की है। इसलिए अगर वे कमर कस ले तो घूसखोरों पर काबू किया जा सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो मंहगाई अपने आप कम हो जाएगी। हां यह भी सच है कि उनके मंत्रिमंडल के ज्य़ादातर सहयोगी उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश ज़रूर करेंगे।
Wednesday, April 21, 2010
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