Wednesday, December 2, 2009

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, इशरत जहां को न्याय की उम्मीद

शेष नारायण सिंह

गुजरात में मोदी की सरकार अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ भी करने में कोई संकोच नहीं कर रही है . मुंबई की एक लडकी, इशरत जहां को ,कुछ तथाकथित आतंकियों के साथ अहमदाबाद में जून २००५ में कथित मुठभेड़ में मार डाला गया था. . इशरत जहां के घर वाले पुलिस की इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी लड़की आतंकवादी है . मामला अदालतों में गया और सिविल सोसाइटी के कुछ लोगों ने उनकी मदद की और अब मामले के हर पहलू पर सुप्रीम कोर्ट की नज़र है.. न्याय के उनके युद्ध के दौरान इशरत जहां की मां , शमीमा कौसर को कुछ राहत मिली जब गुजरात सरकार के न्यायिक अधिकारी, एस पी तमांग की रिपोर्ट आई जिसमें उन्होंने साफ़ कह दिया कि इशरत जहां को फर्र्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया था और उसमें उसी पुलिस अधिकारी, वंजारा का हाथ था जो कि इसी तरह के अन्य मामलों में शामिल पाया गया था. एस पी तमांग की रिपोर्ट ने कोई नयी जांच नहीं की थी, उन्होंने तो बस उपलब्ध सामग्री और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के आधार पर सच्चाई को सामने ला दिया था . एस पी तमांग के एरेपोर्ट के बाद ,सार्वजनिक जीवन के कई क्षेत्रो में साम्प्रदायिकता के जमे होने की ख़बरें आयीं थीं. जहां तक गुजरात सरकार और उसकी पुलिस का सवाल है , पिछले कई वर्षों के मोदी राज में वहां तो साम्प्रदायिकता पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है . इशरत जहां के मामले में मीडिया के एक वर्ग की गैर जिम्मेदाराना सोच भी सामने आ गयी थी. ज़्यादातर टी वी चैनलों ने , इशरत के हत्यारे पुलिस वालों की बाईट लेकर दिन दिन भर खबर चलाई थी कि गुजरात पुलिस ने एक खूंखार महिला आतंकवादी और उसके साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया था .. बहरहाल इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ के बारे में जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आई तो कुछ गंभीर किस्म के पत्रकारोंने अपनी गलती मानी और खेद प्रकट किया लेकिन जो गुरु लोग साम्प्रदायिकता के चश्मे से ही सच्चाई देखते हैं वे चुप रहे , सांस नहीं ली.. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. और इशरत की याद को बेदाग़ बनाने की उसकी मां की मुहिम को फिर भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था में विश्वास हो गया. इशरत की मां का आरोप है कि गुजरात हाई कोर्ट भी राज्य की पुलिस के संघ प्रेमी रुख को ही आगे बढाता है .हालांकि किसी कोर्ट के बारे में उनके इस आरोप को सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी है . हुआ यह था कि जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आई तो गुजरात हाई कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी और कह दिया कि उस रिपोर्ट पर कोईभी कार्रवाई नहीं हो सकती थी. शमीमा कौसर ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार की और अब देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला आ गया है कि गुजरात हाई कोर्ट में इशरत जहां केस के फर्जी मुठभेड़ से सम्बंधित सारे मामले रोक दिए जाएँ...इस स्टे के साथ ही मामले को जल्दी निपटाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है . . जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस दीपक वर्मा की अदालत ने ७ दिसंबर को मामले की सुनवाई का हुक्म भी सुना दिया है .. शमीमा कौसर को इस बात से सख्त एतराज़ है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद, गुजरात हाई कोर्ट मामले को रफा दफा करने के चक्कर में है..नरेन्द्र मोदी सरकार ने गुजरात हाई कोर्ट में प्रार्थना की थी कि एस पी तमांग की रिपोर्ट गैर कानूनी है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए क्योंकि एस पी तमांग ने जो जांच की है वह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है . गुजरात हाई कोर्ट ने ९ सितम्बर के दिन इस रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ शमीमा कौसर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जिस पर अब फैसला आया है . एस पी तमांग की रिपोर्ट में तार्किक तरीके से उसी सामग्री की जांच की गयी है जिसके आधार पर इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ मामले को पुलिस अफसरों की बहादुरी के तौर पर पेश किया जा रहा था. तमांग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जिन अधिकारियों ने इशरत जहां को मार गिराया था उनको उम्मीद थी कि उनके उस कारनामे से मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी बहुत खुश हो जायेंगें और उन्हें कुछ इनाम -अकराम देंगें . अफसरों की यह सोच ही देश की लोकशाही पर सबसे बड़ा खतरा है . जिस राज में अधिकारी यह सोचने लगे कि किसी बेक़सूर को मार डालने से मुख्य मंत्री खुश होगा , वहां आदिम राज्य की व्यवस्था कायम मानी जायेगी. यह ऐसी हालत है जिस पर सभ्य समाज के हर वर्ग को गौर करना पड़ेगा वरना देश की आज़ादी पर मंडरा रहा खतरा बहुत ही बढ़ जाएगा और एक मुकाम ऐसा भी आ सकता है जब सही और न्यायप्रिय लोग कमज़ोर पड़ जायेंगें और मोदी टाईप लोग समाज के हर क्षेत्र में भारी पड़ जायेंगें.. ज़ाहिर है ऐसी किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए सभी जनवादी लोगों को तैयार रहना पड़ेगा. वरना मोदी के साथी कभी भी, किसी भी वक़्त महात्मा गाँधी की अगुवाई में हासिल की गयी आज़ादी को वोट के ज़रिये तानाशाही में बदल देंगें . ऐसा न हो सके इसके लिए जनमत को तो चौकन्ना रहना ही पड़ेगा , लोकत्रंत्र के चारों स्तंभों , न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया को भी हमेशा सतर्क रहना पड़ेगा