शेष नारायण सिंह
मुंबई की कैम्पा कोला सोसाइटी के विवाद के सन्दर्भ से देश में हर बड़े शहर में पैदा होने वाले उस माफिया के बारे में चर्चा शुरू हो जानी चाहिए जो हमारे राजनीतिक और सामाजिक जीवन को बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं . हर बड़े शहर में ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या देखी जा सकती है जो सरकार की मान्यताप्राप्त योजनाओं के दायरे से बाहर लोगों को मकान दिलवाने के सपने दिखाते हैं। इनकी कोशिश यह होती है कि मध्य वर्ग को मान्यताप्राप्त इलाक़ों के बाहर अपेक्षाकृत कम दाम वाले मकान दिलाने के नाम पर अपने जाल में फंसा लें। देश के बड़े शहरों में इस तरह के लालच का शिकार हुए लोगों की बहुत बड़ी आबादी है। दिल्ली में तो योजनाबद्ध तरीके से बसी हुयी कालोनियों के बाहर रहने वालों की संख्या बहुत अधिक है। होता यह है कि सरकार द्वारा अधिग्रहीत ज़मीनों पर कालोनी काटकर गरीब आदमियों को घर का सपना दिखाया जाता है। कोशिश होती है कि जल्दी से जल्दी लोगों को वहां बसा दिया जाए और उनका नाम वोटर लिस्ट में डलवा दिया जाये. यह कालोनियां ऐसी होती हैं जहां कोई सुविधा नहीं होती. शुरू में जनरेटर से बिजली दी जाती है। सीवेज की लाइन नहीं होती। घर के आसपास ही सोक पिट बनवा दिए जाते हैं। पीने के पानी का इंतज़ाम नहीं होता इसलिए कच्ची बोरिंग करवा दी जाती है। ज़मीन का हर वर्ग फुट एक निश्चित कीमत दे रहा होता है इसलिए सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए कोई भी जगह नहीं छोड़ी जाती। नतीजा यह होता है एक अनधिकृत स्लम बस्ती तैयार हो जाती है। यहां की आबादी अन्य इलाक़ों से बहुत ज़्यादा होती है इसलिए यहां वोट भी बहुत ज़्यादा होते हैं। नतीजा यह होता है कि इतनी बड़ी संख्या में वोट लेने के लिए सभी पार्टियों के नेता इन बस्तियों को नियमित कराने के वायदे करते रहते हैं। अक्सर देखा गया है कि चुनाव के दौरान इस तरह की बस्तियों को अधिकृत करने के वायदे किये जाते हैं और जब चुनाव ख़त्म होता है तो इन बस्तियों को नियमित कर दिया जाता है। यह बहुत ही ज़हरीला सर्किल है और इस तरह की बस्तियों के चलते ही बहुत से काम होते हैं जो सभ्य समाजों में नहीं होने चाहिए।
ऐसी कालोनियों से समाज और मानवता का बहुत नुक्सान होता है। सबसे बड़ा नुक्सान तो स्वास्थय सेवाओं के क्षेत्र में होता है। इन बस्तियों में स्वास्थय की कोई सुविधा नहीं होती. उलटे बीमारी बढ़ाने की सारे इंतज़ाम मौजूद रहते हैं. अनधिकृत होने के कारण यहां सीवर लाइन नहीं होती और खुली नालियां बजबजाती रहती हैं। पीने का पानी भी साफ़ नहीं होता। शौच आदि की कोई सुविधा नहीं होती. शुरू में यह कालोनियां किसी भी म्युनिसिपल रिकार्ड आदि में नहीं होती इसलिए यहां रहने वाले लोगों के बारे में कोई भी सांख्यिकीय जानकारी नहीं उपलब्ध की जा सकती। इसके अलावा यहां रियल एस्टेट माफिया के लोग नेताओं के एजेंट के रूप में काम करते हैं। आजकल तो एक नया हो गया है। प्रॉपर्टी के काम में लगे हुए बहुत सारे लोग बड़े शहरों में चुनाव जीत रहे हैं। प्रॉपर्टी के धंधे में अपनाई गयी बहुत सारी तरकीबों राजनीति में भी अपनाते हैं।
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