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Sunday, July 3, 2011

हर भ्रष्ट नेता मज़बूत लोकपाल के खिलाफ है

शेष नारायण सिंह

लोकपाल के मुद्दे पर सभी पार्टियां घिरती नज़र आ रही हैं. यह दुनिया जानती है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म कर देने के पक्ष में नहीं है . भ्रष्टाचार की कमाई से ही तो पार्टियों का खर्चा चलता है ,उसी से नेताओं की दाल रोटी का बंदोबस्त होता है . यह अलग बात है कि भ्रष्टाचार के नाम पर अन्य पार्टियों को घेरने की बात सभी करते रहते हैं .कांग्रेस ने साफ़ ऐलान कर ही दिया है कि वह प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच के दायरे में नहीं लाना चाहती. बीजेपी की कोशिश थी कि वह इसी मुद्दे पर प्रधानमंत्री को भ्रष्ट साबित करने की अपनी योजना को आगे बढाती लेकिन बीजेपी का दुर्भाग्य है कि उसकी पार्टी में मौजूद गुणी जनों की तरह कांग्रेस में भी कुछ उस्ताद मौजूद हैं जो बीजेपी को घेरने की योजना पर ही दिन रात काम करते हैं . लोकपाल के मामले में ताज़ा खेल बीजेपी की पोल खोलता नज़र आता है .कांग्रेस ने सर्भी पार्टियों की बैठक बुलाकर लोकपाल के मसौदे पर चर्चा करने की योजना बना दी जिसमें प्रधानमंत्री समेत सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल की जांच के दायरे में लाने पर चर्चा की बात है. ज़ाहिर है कि बीजेपी सभी मुख्यमंत्रियों को लोकपाल के दायरे में नहीं ला सकती. अगर कहीं बीजेपी ने तय किया कि वह रणनीतिक कारणों से ही कुछ वक़्त के लिए मुख्यमंत्री को लोकपाल में लाने के बारे में सोच सकती है तो उनके मुख्यमंत्री नाराज़ हो जायेगें . इसका सीधा भावार्थ यह हुआ कि उनकी पार्टी टूट जायेगी. बी एस येदुरप्पा कभी नहीं मानेगें कि उनके भ्रष्टाचार की जांच किसी ऐसी एजेंसी से कराई जाय जो उनके अधीन न हो .बीजेपी के दिल्ली में रहने वाले सभी नेता जानते हैं कि बी एस येदुरप्पा की नज़र में दिल्ले में केवल अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह बड़े नेता हैं .बाकी राष्ट्रीय नेताओं को वे बहुत मामूली नेता मानते हैं . उन्हें यह भी मालूम है कि कर्नाटक में बीजेपी की ताक़त बी एस येदुरप्पा की निजी ताक़त है . अगर वे पार्टी से अलग हो जाएँ तो राज्य में बीजेपी शून्य हो जायेगी. इसीलिये बीजेपी वाले पिछले कई दिनों से अपने प्रवक्ताओं के मुंह से कहलवा रहे हैं कि पहले सरकार यह बताये कि वह क्या चाहती है . पार्टी की मंशा यह लगती है कि अगर कांग्रेस ने कोई पोजीशन ले ली तो उसी की धज्ज़ियां उड़ाकर सर्वदलीय बैठक के संकट से बच जायेगें लेकिन कांग्रेस उनको यह अवसर नहीं दे रही है. बीजेपी ने इस संकट से बचने के लिए ही तय किया था कि वह सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार करेगी लेकिन नीतीश कुमार और प्रकाश सिंह बादल ने दबाव डालकर ऐसा नहीं करने दिया . पता नहीं क्यों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकविहीन नेता, प्रकाश करात बीजेपी के सुर में सुर मिला रहे हैं .वे भी कह रहे हैं कि उन्हें भी सरकारी ड्राफ्ट चाहिए . खैर उनकी तो कोई औकात नहीं है लेकिन बीजेपी बुरी तरह से फंस गयी है . मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को बाहर रखने की उनकी नीति जब बहस के दायरे में आयेगी तो देश को पता लग जाएगा कि बीजेपी वाले भी कांग्रेस की तरह की भ्रष्ट हैं . इसलिए लोकपाल की संस्था को बहुत ही कमज़ोर कर देने के बारे में देश की दोनों की बड़ी पार्टियों में लगभग एक राय है लेकिन एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए दोनों की पार्टियों के वे प्रवक्ता , जो टी वी की कृपा से नेता बने हुए हैं,कुछ ऐसी बातें करते रहते हैं जिसका उनकी पार्टी को राजनीतिक फायदा होता है . उनका दुर्भाग्य यह है कि जिस टी वी ने उन्हें नेता बनाया है ,वही टी वी और मीडिया देश की जनता को भी सही खबर देता रहता है . अभी पंद्रह साल पहले एक ऐसा मामला आया था जिसमें सभी पार्टियों के नेता फंसे थे .जैन हवाला काण्ड के नाम से कुख्यात इस केस में कांग्रेस, बीजेपी , लोकदल, जनता दल सभी पार्टियों के बड़े नेता एक कश्मीरी संदिग्ध संगठन से रिश्वत लेने के आरोप में जांच के घेरे में आये थे लेकिन सब ने मिलजुल कर मामले को दफना दिया था . लगता है कि लोकपाल बिल के साथ भी वही करने की योजना इन नेताओं की है . लेकिन इस बार यह काम इतना आसान नहीं होगा . यह संभव है कि समाचार देने वाले बड़े संगठनों के कुछ मालिकों को यह नेता लोग अरदब में लेने में सफल हो जाएँ लेकिन वैकल्पिक मीडिया सबकी पोल खोलने की ताक़त रखता है और वह खोल भी देगा. देश की जनता को उम्मीद है कि एक ऐसा लोकपाल कानून बने जिसके बाद भ्रष्टाचार को लगाम देने का काम शुरू किया जा सके.

Friday, December 10, 2010

सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए शासक वर्ग ने टाटा को मैदान में उतारा

शेष नारायण सिंह

टेलीकाम घोटाले ने सुखराम युग की याद ताज़ा कर दी .उस बार भी करीब ३७ दिन तक बीजेपी ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दिया था. पी वी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे और सुखराम ने हिमाचल फ्यूचरिस्टिक नाम की किसी कंपनी को नाजायज़ लाभ पंहुचा कर हेराफेरी की थी. बाद में वही सुखराम बीजेपी के आदरणीय सदस्य बन गए थे . आज भी जब बीजेपी के नेताओं की पत्रकार वार्ताओं में सुखराम शब्द का ज़िक्र आता है ,वे खिसिया जाते हैं . लगता है कि मौजूदा टेलीकाम घोटाले के बाद भी बीजीपी का वही हाल होने वाला है . क्योंकि १९९९ से लेकर २००४ तक बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की आँखों के तारे रहे रतन टाटा ने बीजेपी की पोल खोलने का काम शुरू कर दिया है . अपने मुल्क में टाटा को बहुत ही पवित्र पूंजीपति मानने का फैशन है . बीजेपी वालों ने भी अब तक टाटा को बहुत ही पवित्र आत्मा बताने की बार बार कोशिश की है . आज भी आरोप लगाया जाता है कि कि बीजेपी की सरकार ने विदेश सचार निगम जैसी संपन्न कंपनी को टाटा के हाथों कौड़ियों के मोल बेच दिया था. बताते हैं कि विदेश संचार निगम के पास जितनी ज़मीन दिल्ली में है ,उसके १ प्रतिशत से ही १२०० करोड़ निकाला जा सकता है . आरोप है कि बीजेपी के राज में जो भी भाई संचार मंत्री था, उसने खेल कर दिया था और सरकारी कंपनी को सस्ते दाम पर बेच कर नंबर दो में रक़म अपनी अंटी में डाल लिया था . उन्हीं टाटा महोदय ने बीजेपी की कृपा से एम पी बने एक उद्योगपति की चिट्ठी के जवाब में साफ़ लिख दिया है कि संचार के क्षेत्र में हेराफेरी बीजेपी के राज में भी हुई थी. टाटा की इस चिट्ठी के बाद काकटेल सर्किट में हडकंप मच गया है. इस चिट्ठी के पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी सुझाव दिया था कि २००१ से शुरू कर के संचार और २ जी स्पेक्ट्रम घोटालों की जांच की जानी चाहिए . बीजेपी वाले फ़ौरन रक्षात्मक मुद्रा में आ गए और कहने लगे कि हम तो तैयार हैं . अब उन्हें कौन बताये कि भाई आपके तैयार होने का कोई मतलब नहीं है . अब तो सुप्रीम कोर्ट का संकेत आ गया है और अब तो जांच शुरू हो जायेगी. आप लोगों को चाहिए कि अब अपने आप को बचाने की कोशिश शुरू कर दें .टाटा के मैदान ले लेने के बाद लगता है कि अब संचार घोटाले की जांच सही तरीके से नहीं होगी और फिल्म 'जाने भी दो यारों 'की तर्ज़ पर लीपा पोती कर दी जायेगी . यह काम दिल्ली की काकटेल सर्किट के नेता जैन हवाला काण्ड के दौरान कर चुके हैं . जैन हवाला काण्ड में भी बीजेपी के लाल कृष्ण आडवाणी, जे डी यू के शरद यादव , कांग्रेस के अरुण नेहरू और सतीश शर्मा पर जे के एल एफ के हवाले से पैसा लेने का आरोप लगा था ,जांच भी बैठाई गयी थी लेकिन उस जांच का नतीजा पता नहीं इतिहास के किस डस्टबिन में दफ़न हो गया .कामनवेल्थ खेलों में भी हज़ारों करोड़ की लूट मचाई गयी थी लेकिन जब दोनों की मुख्य पार्टियों के सूरमाओं के नाम आने लगे तो उसके भी दफ़न की तैयारी कर दी गयी. अब जब टाटा ने बीजेपी की पोल भी खोलना शुरू कर दिया है तो लगता है कि २जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच का भी वही हस्र होगा जो जैन हवाला काण्ड की जांच का हुआ था. पूंजीपतियों के सबसे प्रिय चैनल ने जिस जोशो खरोश से टाटा की चिट्ठी के हवाले से मामले को तूल देना शुरू किया है ,उस से तो साफ़ ज़ाहिर है कि टाटा की चिट्ठी सोची समझी नीति के तहत लिखी गयी है जिस से संचार के अरबों रूपये के घोटालों पर पूरी तरह से पर्दा डाला जा सके. ऐसा लगता है कि टाटा ने यह चिट्ठी ऐसे लोगों से सलाह करके लिखा है जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ धंधा करते हैं .दुनिया जानती है कि टाटा ग्रुप के लोग कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही बहुत क़रीबी हैं . आखिर अभी कल की बात है जब यू पी ए की रेल मंत्री ममता बनर्जी ने टाटा को सिंगुर से खदेड़ा था ,तो बीजेपी के सबसे ताक़तवर नेता , नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने राज्य में सम्मान सहित स्थापित किया था और रतन टाटा ने भी नरेंद्र मोदी की तारीफ़ में गीत गाये थे. इसलिए टाटा को बीजेपी का दुश्मन बताने की कोशिश तो बिलकुल नहीं की जानी चाहिए , वे दोनों ही पूंजीवादी पार्टियों के अपने बन्दे हैं . जानकार बता रहे हैं कि टाटा के हस्तक्षेप को सोच समझ कर करवाया गया है जिस से जनता की जो संपत्ति लूटी गयी है उसको जांच के दायरे से बाहर लाया जा सके. दुर्भाग्य यह है कि इस देश में लगभग सभी बड़े मीडिया हाउस पूंजीवादी व्यवस्था के सेवक हैं और सब चाहते हैं कि शासक वर्गों की पार्टियां मौज करती रहें और गरीब आदमी जिसके विकास के लिए सरकारी नीतियाँ बनायी जानी चाहिए वह परेशानी के कुचक्र में डूबता उतराता रहे.

जो भी हो टाटा के नए बयान से कम से कम पवित्रता की चादर ओढ़ कर बाकी दुनिया को भ्रष्ट कह रहे हर टी वी चैनल पर प्रकट होने वाले बीजेपी के नेताओं की वाणी में थोड़ी विनम्रता की झलक देखने को मिलेगी. अब बात समझ में आने लगी है कि कि क्यों बीजेपी वाले आपराधिक जांच का विरोध करते रहे हैं .आपराधिक जांच का काम पुलिस का पावर रखने वाली एजेंसियों की तरफ से होने की वजह से जांच का काम पूरा होते ही अपने आप मुक़दमा चल जाता है यानी अगर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कोई जांच होती है तो अगर अपराध साबित हुआ तो अपने आप आपराधिक मुक़दमा चल पडेगा . अन्य किसी जांच के बाद सी बी आई या किसी अन्य पुलिस एजेंसी को एफ आई आर लिख कर जांच करके तब मुक़दमा चलाने की बात होती है .मसलन अब अगर २००१ से लेकर अब तक के दूरसंचार के घोटालों की जांच करवाई जायेगी तो जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ आपराधिक मुक़दमा चल पड़ेगा. ऐसी हालत बीजेपी को सूट नहीं करती और कांग्रेस को मज़ा आ रहा है क्योंकि अगर ए राजा पकड़ा भी जाता है तो वह कांग्रेस का सदस्य तो है नहीं जबकि बीजेपी के राज में जो भी मंत्री थे सब बीजेपी वालों के सदस्य थे . जिन लोगों ने उस दौर में रिपोर्ट किया है उन्हें याद होगा कि स्व प्रमोद महाजन इस बात का बहुत बुरा मानते थे जब दूरसंचार जैसा मलाईदार विभाग किसी सहयोगी पार्टी के पास जाने की बाद की जाती थी. बहरहाल अब जनता की ओर से पत्रकारिता कर रहे लोगों को चाहिए कि ए राजा और २००१ की हेराफेरी की जांच के लिए दबाव बनाये रखें वरना जो एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ राजा ने डकारे हैं और २५ जनवरी की एक रात को एन डी ए के राज में जो मुफ्त स्पेक्ट्रम देकर लाखों करोड़ डकारे गए थे सब की जांच अधूरी रह जायेगी