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Thursday, October 21, 2010

कामनवेल्थ की हेराफेरी की जांच में फिल्म 'जाने भी दो यारो 'की झलक

शेष नारायण सिंह

कामनवेल्थ खेलों के भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गयी है . कांग्रेस सरकार और उसके कुछ नेता कामनवेल्थ खेलों के सभी फैसलों के लिए ज़िम्मेदार हैं लेकिन जांच में पहला हमला बी जे पी के एक बड़े नेता के घर और दफ्तर में छापा डालकर किया गया है . इस छापे का एक मकसद तो शायद यह बताना था कि कामनवेल्थ की लूट में बी जे पी के नेता भी शामिल हैं लेकिन इसका एक मतलब और भी हो सकता है कि भाई जब सभी शामिल हैं तो सुरेश कलमाड़ी को ही बलि का बकरा क्यों बनाया जाय . जब सबने लूटा है तो मिलजुल कर मामले को रफा दफा करना ही ठीक रहेगा. यानी कामनवेल्थ खेलों की जांच में भी करीब २७ साल पुरानी फिल्म "जाने भी दो यारो" को एक बार फिर जीवंत किया जायेगा .जहाना तक कांग्रेस का सवाल है उसने अध्यक्ष के गुट के बड़े सिपहसालार को घेर कर यह सन्देश दे दिया है कि अगर जांच की बार बार बात की गयी तो बी जे पी की अंदरूनी कलह की पिच पर ही कामनवेल्थ के भ्रष्टाचार के जांच की क्रिकेट खेली जायेगी. मैं आम तौर पर अपने पुराने लेखों के शब्दों को कापी नहीं करता लेकिन १६ अक्टूबर को लिखी गयी अपनी टिप्पणी के कुछ वाक्यों को आज के लेख में इस्तेमाल करना चाहता हूँ .

मैंने लिखा था " अपने कामनवेल्थ खेलों के समापन के अगले दिन ही खेलों की तैयारियों में हुई हेराफेरी की जांच का आदेश देकर केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर संभावित राजनीतिक पैंतरेबाजी पर लगाम लगा दिया है लेकिन इस जांच की गंभीरता पर सवाल किये जाने लगे हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में सक्रिय ज़्यादातर लोग इस खेल में शामिल थे. पूना वाले बुड्ढे नौजवान ने मामला इस तरह से डिजाइन किया था कि दिल्ली के सभी अमीर उमरा ७० हज़ार करोड़ रूपये की लूट में थोडा बहुत हिस्सा पा जाएँ . दिल्ली की काकटेल सर्किट में पिछले ३० वर्षों से सक्रिय इस राजनेता के लिए यह कोई असंभव बात नहीं थी. देश के कोने कोने से आये और दिल्ली में धंधा करने वाले सत्ता के ब्रोकरों के एक बड़े वर्ग के आराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित , सुरेश कलमाडी को नुकसान पंहुचा पाना आसान नहीं माना जाता . पिछले एक वर्ष में देखा गया है कि दिल्ली में जिसके कंधे पर भी सुरेश कलमाडी ने हाथ रख दिया ,वह करोडपति हो गया. ऐसी स्थिति में यह मुश्किल लगता है कि इस लूट के लिए उनको ज़िम्मेदार ठहराया जा सकेगा . दिल्ली में सक्रिय सभी पार्टियों के सत्ता के दलालों के रिश्तेदारों को कोई न कोई ठेका दे चुके कलमाडी के चेहरे पर जो प्रसन्नता नज़र आ रही है ,उसे देख कर तो लगता है कि वे आश्वस्त हैं कि उनका कोई नुकसान नहीं होगा. जिन लोगों ने इसी दिल्ली में जैन हवाला काण्ड की जांच होते देखी है , उनका कहना है कि मौजूदा जांच का भी वही हश्र होने वाला है."

यह मेरी १६ अक्टूबर वाली टिप्पणी है. मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि कामनवेल्थ के घोटालों की जांच को इतनी जल्दी राजनीति की बलि बेदी पर कुरबान करने की तैयारियां शुरू हो जायेगीं . लेकिन जांच को जैन हवाला काण्ड बनाने का काम शुरू हो चुका है . जांच के पहले ही दिन बी जे पी के नेता और स्व प्रमोद महाजन के करीबी रहे व्यापारी सुधांशु मित्तल को घेरे में लेकर सरकार ने साफ़ संकेत दे दिया है कि वह तक़ल्लुफ़ में विश्वास नहीं करती. इस बात में दो राय नहीं है कि खेलों के घोटाले में कांग्रेसी नेताओं के मित्र और रिश्तेदार भी शामिल होंगें . लेकिन सबसे पहले बी जे पी के एक हाई प्रोफाइल नेता को पकड़ कर केंद्र सरकार ने साफ़ कर दिया है कि अगर इस मुद्दे पर राजनीति खेली तो सबसे पहले विपक्षियों के घरों में ही आग लगाई जायेगी. लेकिन बी जे पी को निशाने में लेने की सरकार की तरकीब के शिकार कई और भी हैं . सुधांशु मित्तल बी जे पी की आन्तरिक राजनीति में नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं . आडवानी गुट के डी-4 वाले नेता गडकरी को ठिकाने लगाना ही चाहते हैं वे सुधांशु मित्तल को गडकरी के विनाश की सीढ़ी बनाना चाहते हैं . गडकरी गुट में इस बात की भी चर्चा है कि डी-4 वालों ने अपने दिल्ली दरबार के संपर्कों का इस्तेमाल करके जांच की मुसीबत को सबसे पहले गडकरी के ख़ास बन्दे दरवाज़े पर पंहुचा दी. घबड़ाकर गडकरी ने विशेष प्रेस कान्फरेन्स बुला दी और प्रधान मंत्री पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी . बी जे पी के अक़लमंद तबके को मालूम है कि प्रधानमंत्री के ऊपर व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगाए जा सकते , कोई फायदा नहीं होगा . कांग्रेस वाले गडकरी को गंभीरता से नहीं लेते . उनके प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यह बयान कि खोदा पहाड़ निकला गडकरी ,निश्चित रूप से सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष का अपमान है लेकिन बी जे पी का डी-4 खुश है .

सुधांशु मित्तल के यहाँ जांच की शुरुआत करके सरकार ने बी जे पी के गडकरी गुट को बैकफुट पर लाने में सफलता पायी है लेकिन अभी तो यह शुरुआत है . अभी तो बी जे पी में गडकरी के विरोधी भी फंसेगें क्योंकि उनके बहुत सारे रिश्तेदारों को भी ठेका दिया गया है और हर ठेके में हेराफेरी हुई है . इसका मतलब यह कतई नहीं कि कांग्रेस वाले बहुत ही पवित्र हैं . जांच का दायरा उन तक पंहुचेगा ज़रूर लेकिन केंद्र सरकार के मौजूदा रुख को देख कर लगता है कि सबसे पहले कामनवेल्थ घोटालों के जांच की डुगडुगी बी जे पी के दर पर ही बजेगी. गडकरी गुट के एक मज़बूत नेता के यहाँ शुरुआती छापा डालकर यह सन्देश तो दे ही दिया गया है कि भ्रष्टाचार के जांच की मशाल लिए हुए कांग्रेस दिल्ली में राजनीति करने वाले किसी भी नेता को हड़का सकती है . बी जे पी के नेताओं को जांच के डंडे से धमकाकर कांग्रेसी अपने आप को बचा सकते हैं क्योंकि अगर बी जे पी के नेता डर गए तो भ्रष्टाचार पर से पर्दा नहीं उठ पायेगा . अंत में वही होगा जो जैन हवाला काण्ड में हुआ था . और ठेकेदारी और बे-ईमानी पर आधारित फिल्म " जाने भी दो यारो " को एक बार फिर से दोहराया जाएगा.

Monday, September 13, 2010

एक बार फिर पीपली लाइव बन गया दिल्ली का मीडिया

शेष नारायण सिंह

दिल्ली में बाढ़ का पानी कम होना शुरू हो गया है . यमुना नदी में इस साल अपेक्षाकृत ज्यादा पानी आ गया था . और उस ज्यादा पानी के चलते तरह तरह की चर्चाएँ शुरू हो गयी थी. इस सीज़न में ज़्यादातर नदियों में बाढ़ आती है लेकिन इस बार दिल्ली में यमुना नदी में आई बाढ़ को बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा. उसके कई कारण हैं . सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि मानसून सीज़न के ख़त्म होते ही दिल्ली में कामनवेल्थ खेल आयोजित किये गए हैं . कुछ आलसी और गैरजिम्मेदार कांग्रेसी नेताओं की वजह से इन खेलों की तैयारी अपने समय से नहीं हो पायी है . अब तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही हैं और घूसजीवी अफसरों और कांग्रेसियों की चांदी है . खेलों की तैयारी से सम्बंधित सब कुछ अब जिस रफ़्तार से हांका जा रहा है, उसमें धन की कोई कीमत नहीं रह गयी है . भाई लोग जम कर लूट रहे हैं . डेंगू, स्वाइन फ़्लू, और वाइरल बुखार का ख़तरा बना हुआ है .ज़्यादातर अफसरों और नेताओं की ईमानदारी सवालों के घेरे में है और उनकी विश्वसनीयता पर तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं . लेकिन इस सारी प्रक्रिया में सबसे ज़्यादा सवाल मीडिया पर उठ रहा है . एक बड़े मीडिया घराने पर तो यह भी आरोप लग चुका है कि उस के अखबार ने कामनवेल्थ खेलों की पब्लिसिटी के ठेके के लिए कोशिश की थी लेकिन जब नहीं मिला तो आयोजन समिति के प्रमुख को औकात बताने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया.और कामनवेल्थ खेलों पर आरोपों की झड़ी लगा दी. मीडिया कंपनी पर आरोप इतने गंभीर पत्रकार ने अपने लेख में लगाया है कि उस मीडिया कंपनी सहित किसी के इभी हिम्मत उसका खंडन करने की नहीं है . बहर हाल आजकल टेलीविज़न के खबर देने वाले चैनलों ने बाढ़ को अपनी कवरेज के रेंज में ले लिया है . और बाढ़ का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया कि दूर दूर से लोग घबडा कर दिल्ली में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को फोन करने लगे और पूरी दुनिया में प्रचार हो गया कि दिल्ली बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ गई है . लेकिन यह सच नहीं था . दिल्ली के कुछ निचले इलाकों में पानी आ गया था . वहां रहने वालों की ज़िंदगी दूभर हो गयी थी लेकिन पूरी दिल्ली बाढ़ की चपेट में हो , ऐसा कभी नहीं था . लेकिन टी वी न्यूज़ वालों ने कुछ इस तरह का माहौल बनाया कि दुनिया की समझ में आ गया कि दिल्ली बाढ़ के लिहाज़ से एक खतरनाक शहर है . . इस सारे गडबडझाले में आंशिक सत्य , अर्ध सत्य और असत्य का भी सहारा लिया गया. सबसे अजीब बात तो यह थी कि दिन रात टी वी चैनलों में खबर आती रही कि हरियाणा के हथिनी कुंड बैराज से पता नहीं कितने लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाने वाला है जिसके बाद दिल्ली में हालात बहुत बिगड़ जायेगें . इस में आंशिक सत्य , अर्ध सत्य और असत्य सब कुछ है . सचाई यह है कि इन खबरों के पैदा होने के लिए जो लोग भी जिम्मेवार थे , उन्होंने होम वर्क नहीं किया था . उन्हें पता होना चाहिए था कि किसी भी बैराज से पानी छोड़ा या रोका नहीं जा सकता .बैराज बाँध की तरह ऊंचे नहीं होते .इसलिए पानी को बांधों की तरह रोका नहीं जा सकता .सकता अगर बैराज के गेट न खोले जाएँ तो पाने एअपने आप छलक कर बहने लगता है .बैराज नदी की तलहटी से नदी में बह रहे पानी की सतह पानी रोकने का इंतज़ाम है . इसलिए जब नदी में ज़रुरत से ज्यादा पानी आ जाता है तो वह अपने आप बैराज की दीवार के ऊपर बह जाता है . बैराज कोई बाँध नहीं है जिसमें पानी को रोका जा सके . जबकि बाँध में पानी को रोका भी जाता है और बाकायदा कंट्रोल किया जाता है . हथिनी कुंड के पानी की रिपोर्टिंग में यह बुनियादी गलती है . टेलिविज़न के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से जब इस विषय पर चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आजकल रिपोर्टर बिना तैयारी के ही आ जाते हैं और अपने ज्ञान को अपडेट नहीं करते . जब उन्हें बताया गया कि यह तो आपका ही ज़िम्मा है तो बगलें झांकने लगे. अपनी टी वी पत्रकारिता के वे दिन याद आ गये जब एक अतिग्यानी और मालिक की कृपापात्र पत्रकार ने मेरे ऊपर दबाव डाल कर यह कहलवाने की कोशिश की थी कि पी एल ओ एक आतंकवादी संगठन है .किसी तरह जान बचाई थी . एक बार मुझे लगभग स्वीकार करना पड़ गया था कि चीन की राजधानी शंघाई है , बीजिंग नहीं क्योंकि इसी पत्रकार ने तर्क दिया कि उसने दोनों ही शहरों को देखा है और शंघाई बड़ा और अच्छा शहर है . . उस संकट की घड़ी में आज के एक नामी चैनल के मुखिया भी उसी न्यूज़ रूम में आला अफसर थे, और उन्होंने मेरी जान बचाई थी और कहा था कि चलो अगर शेष जी इतनी जिद कर रहे हैं तो बीजिंग को ही राजधानी मान लेते हैं . बाद में उन्होंने ही ऊपर तक बात करके मुसीबत से छुटकारा दिलवाया था .जब मैंने पीपली लाइव देखा तो मुझे यह घटना बरबस याद हो गयी क्योंकि उस फिल्म की निदेशक, भी उसी दौर में उसी न्यूज़ रूम में इस तरह के ज्ञानी पत्रकारों से मुखातिब होती रहती थी. मुराद यह है कि टी वी पत्रकारिता एक गंभीर काम है और न्यूज़ रूम में काम करने वाले सभी लोगों की जानकारी और क्षमता को मिलाकर टी वी न्यूज़ प्रस्तुत की जानी चाहिए . अगर ऐसा हो सके तो देश और समाज का बहुत भला होगा लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बार बार की गलतियों के बाद भी ऐसा नहीं हो रहा है. और एक बार फिर मीडिया गाफिल पाया गया है .कोशिश की जानी चाहिए कि टी वी के पत्रकार पीपली लाइव को हमेशा नज़र में रखें और अपने आपको मजाक का विषय न बनने दें .