शेष नारायण सिंह
कल दोपहर बाद जोस्टाइन से मुलाक़ात हुई .उससे मिलकर
बहुत अच्छा लगा . ओस्लो विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में शोध छात्र
जोस्टाइन की इच्छा है कि वे भारत की राजनीति के विशेषज्ञ बनें. अमरीका की तरह ही रिसर्च को इन विश्वविद्यालयों
में बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है .यूरोप के इन हिस्सों में रिसर्च कोई टाइम
पास नहीं होता . अपनी जे एन यू में रिसर्च कर रहे लोगों का काम देख कर थोडा बहुत
अंदाज़ तो लग जाता है कि उच्च शोध की दिशा कैसे होती है. लेकिन जिन लोगों ने मेरे
पुराने विश्वविद्यालयों में शोध छात्रों की दिनचर्या देखी है और प्रोफ़ेसर के परिवार के लोगों, उनकी गाय
भैंसों में रिसर्च स्कालर को ध्यानमग्न होते देखा है , उनको रिसर्च की गंभीरता समझ
में आनी थोड़ी मुश्किल है . यह रिसर्च स्कालर मेरे मुख्य सम्पादाक श्री ललित सुरजन
के संपर्क में है और उनकी सलाह पर ही इसने मुझसे मुलाकात की . मिलने
के पहले जोस्टाइन ने मेरे लिखे के तत्व को समझ रखा था , टेलिविज़न में जो कुछ मैंने
अंग्रेज़ी में कहा है, उसके बारे में उसे मालूम था . मैं थोडा सकते में आ गया कि
भाई यह और क्या क्या जानता है . बहरहाल मुझसे प्रभावित नज़र आया इसलिए लगा कि अच्छी
बातें ही जानता है . अपने प्रोफ़ेसर से भी मिलाएगा और दक्षिण भारतीय राजनीति के
छात्रों से भी . मैंने जब बताया कि मैं तो एक मामूली रिपोर्टर हूँ , बुद्धिजीवी नहीं हूँ . तो उसने भरोसा दिलाया कि
चिंता न करें , आप जो बातें मुझसे इम्पिरिकल अनुभव के आधार पर कर रहे हैं , वह यहाँ
दूर देश में बैठे हुए छात्रों के लिए बहुत
उपयोगी होंगी. अब हाँ तो कर दिया है आगे जो होगा देखा जाएगा.
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