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Monday, August 1, 2011

पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी ज़रूरी

शेष नारायण सिंह

अमरीका में संसद की मदद के लिए एक थिंक टैंक है जिसका काम दुनिया भर के मामलों से अमरीकी संसद के सदस्यों को आगाह रखना है . समय समय पर यह संगठन अपनी रिपोर्ट देता रहता है जिसका इस्तेमाल अमरीकी सरकार की नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है . कंग्रेशनल रिसर्च सर्विस नाम के इस थिंक टैंक की ताज़ा रिपोर्ट अमरीकी विदेश नीति के नियामकों के लिए भारी उलझन का विषय बना हुआ है . भारत में भी विदेश और रक्षा मंत्रालयों के आला अधिकारी चिंतित हैं . इतनी खतरनाक खबर से भरी हुई इस रिपोर्ट के आने के बाद चिंता होना स्वाभाविक है. रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में इस बात पर चर्चा चल रही है कि वह उन हालात की फिर से समीक्षा करेगा जिनमें वह अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है . आशंका यह है कि वह मामूली झगड़े की हालात में भी परमाणु बम चला चला सकता है . अगर ऐसा हुआ तो यह मानवता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा होगा . रिपोर्ट में साफ़ लिखा है कि पाकिस्तान कम क्षमता वाले अपने परमाणु हथियारों को भारत की पारंपरिक युद्ध क्षमता को नाकाम करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है . यह बहुत बड़ा ख़तरा है क्योंकि अमरीकी अनुमान के अनुसार पाकिस्तान के पास के पास ९० और ११० के बीच परमाणु हथियार हैं जबकि भारत के पास परमाणु हथियारों की संख्या ६० और १०० के बीच हो सकती है.बताया गया है कि पाकिस्तान अपने हाथियारों की क्षमता में सुधार भी कर रहा है और उनकी संख्या भी बढ़ा रहा है . यह भी आशंका है कि पाकिस्तान के पास अमरीकी अनुमान से ज्यादा परमाणु हथियार हों .पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह बाकी दुनिया की नज़र से दूर, चोरी छुपे चलाया जाता है.

जिन देशों के पास भी परमाणु हथियार हैं उन्होंने यह ऐलान कर रखा है कि वे किन हालात में अपने हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं . आम तौर पर सभी परमाणु देशों ने यह घोषणा कर रखी है कि जब कभी ऐसी हालत पैदा होगी कि उनके देश के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा तभी उनके परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा . लेकिन पाकिस्तान ने ऐसी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं बनायी है . उसके बारे में आम तौर पर माना जाता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम भारत को केंद्र में रख कर चलाया जा रहा है . रक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए कर रखा है जिस से भारत और दुनिया के बाकी देश गाफिल बने रहे और पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर ब्लैकमेल के खेल में कामयाब होता रहे. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तान परमाणु असलहों का ज़खीरा कब इस्तेमाल होगा . कोई कहता है कि जब पाकिस्तानी राष्ट्र के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो जायेगें तब इस्तेमाल किया जाएगा. यह एक पेचीदा बात है . पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कई बार यह कहा है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट है . क्या यह माना जाए कि पाकिस्तानी अपने उन बयानों के ज़रिये परमाणु हथियारों की धमकी दे रहे थे . सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सामने अस्तित्व के जो भी खतरे पैदा हुए हैं वे उसके अंदर के आतंकवाद से हैं . क्या पाकिस्तानी प्रधान मंत्री अपने ही लोगों के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं . ज़ाहिर है कि ऐसा करना संभव नहीं है .पाकिस्तानी सत्ता में ऐसे भी बहुत लोग है जो संकेत देते रहते हैं कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर ज़बरदस्त हमला कर दिया तो पाकिस्तान परमाणु ज़खीरा खोल देगा. दुनिया के सभ्य समाजों में पाकिस्तानी फौज के इस संभावित दुस्साहस को खतरे की घंटी माना जा रहा है . पाकिस्तान में इस तरह की मानसिकता वाले लोगों पर काबू करने की ज़रुरत है . यह पाकिस्तान के दुर्भाग्य की बात है कि वहां इस तरह की मानसिकता वालों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है .लेकिन इस मानसिकता वालों की वजह से परमाणु तबाही का ख़तरा भी बढ़ गया है . भारत समेत दुनिय भर के लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी मानसिकता के लोग काबू में लाये जाएँ. हालांकि यह काम बहुत आसान नहीं होगा क्योंकि भारत के खिलाफ आतंक को हथियार बनाने की पाकिस्तानी नीति के बाद वहां का सत्ता के बहुत सारे केन्द्रों पर उन लोगों का क़ब्ज़ा है जो भारत को कभी भी ख़त्म करने के चक्कर में रहते हैं . पाकिस्तानी फौज के मौजूदा प्रमुख भी उसी वर्ग में आते हैं . जब १९७१ में भारत की सैनिक क्षमता के सामने पाकिस्तानी फौज ने घुटने टेके थे ,उसी साल जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने लेफ्टीनेंट के रूप में नौकरी शुरू की थी. उन्होंने बार बार यह स्वीकार किया है कि वे १९७१ का बदला लेना चाहते हैं लेकिन उनकी इस जिद का नतीजा दुनिया के लिए जो भी हो, उनके अपने देश को भी तबाह कर सकता है . क्योंकि अगर उन्होंने परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की गलती कर दी तो अगले कुछ घंटों में भारत उनकी सारी सैनिक क्षमता को तबाह कर सकता है . अगर ऐसा हुआ तो वह विश्व शान्ति के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत होगा .


पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की सुरक्षा हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है . जिस तरह से पाकिस्तानी फौज ने आई एस आई के नेतृव में आतंक का तामझाम खड़ा किया है उस से तो लगता है कि एक दिन पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के सरगना उसके परमाणु ज़खीरे की चौकीदारी करने लगेगें. अगर ऐसा न हुआ तो वहां के सामान में जिस तरह से अपनी कौम को सबसे ताक़तवर बताने और भारतीयों को बहुत कमज़ोर बताने का माहौल है ,उसके चलते कोई भी फौजी जनरल बेवकूफी कर सकता है .इस तरह की गलती १९६५ में जनरल अयूब कर चुके हैं . उन्होंने भारतीयों को कमज़ोर समझकर हमला कर दिया था और जब अमरीका से मिले भारी असलहे की मालिक पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से हार गयी तब अयूब की समझ में आया कि वे कितनी बड़ी गलती कर बैठे थे . बाद में लाल बहादुर शास्त्री से हाथ पाँव जोड़कर उन्हें कुछ ज़मीन वापस मिली .पाकिस्तान को महान मानने वालों की आज भी वहां कमी नहीं है .ज़ाहिर है जनरल अयूब वाला दुस्साहस कोई भी पाकिस्तानी जनरल कर सकता है .अमरीकी संसद में जमा किया गया कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस का दस्तावेज़ ऐसे लोगों लो लगाम लगाने के काम में इस्तेमाल किया जाना चाहिये और पाकिस्तानी परमाणु ज़खीरों पर अंतर राष्ट्रीय निगरानी रखने का माकूल बंदोबस्त किया जाना चाहिए

Sunday, July 11, 2010

अमरीकी-पाकिस्तानी-जिहादी आतंक और राष्ट्रों की सुरक्षा

शेष नारायण सिंह

शुक्रवार को पाकिस्तान में फिर आतंकवादी हमला हुआ , जिसमें करीब ६० लोग मारे गए. इंसानी ज़िन्दगी को इस तरह से आतंकवादी हिंसा का शिकार बनाना किसी तरह से सही नहीं है . लेकिन पाकिस्तान की फौज और सरकार के साथ किसी तरह की सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए . पाकिस्तान में जो आतंक आजकल फल फूल रहा है , उसकी शुरुआत पाकिस्तानी हुक्मरान ने ही की थी. हाँ यह अलग बात है कि उस वक़्त पाकिस्तानी फौज के सुपर जनरल और तानाशाह, जिया उल हक को मुगालता था कि जिन आतंकवादियों को वे भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं , वे पाकिस्तान के प्रति वफादार रहेगें. लेकिन ऐसा नहीं हुआ . भारत एक मज़बूत मुल्क है और जब भारतीय सुरक्षा बलों ने पाकितानी आतंकवादियों को सख्ती से खदेड़ना शुरू किया तो वे भाग कर पाकिस्तान की अपनी बिलों में ही छुप गए . लेकिन ज़्यादा दिन तक नहीं . अब वे पाकिस्तान सरकार और राष्ट्र को ही आतंकवादी हमलों के ज़रिये कमज़ोर कर रहे हैं . भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने के जिया उल हक के खेल में अमरीका ने उनकी खूब मदद की थी. कोल्ड वार का ज़माना था, भारत और सोवियत रूस की दोस्ती अमरीका को फूटी आँखों नहीं सुहाती थी . शायद इसी लिए अमरीका ने पाकिस्तानी ज़मीन पर आतंकवादी पैदा करने की पाकिस्तानी फौज और जनरलों की योजना को खूब पैसा दिया . अब जाकर अमरीका को लग रहा है कि गलती हो गयी. जिस आतंकवाद को पाकिस्तानी फौज ने भारत के खिलाफ तैयार किया था, वही आज अमरीका की सबसे बड़ी दुश्मन है . वही आतंकवाद अब पाकिस्तान के अस्तित्व के सामने संकट बन कर खडा हो गया है.और पाकिस्तानी अस्तित्व पर आये संकट के बाद अमरीकी सरकार बहुत दुखी है . अमरीकी विदेश विभाग के प्रवक्ता, मार्क टोनर का बयान आया है कि पाकिस्तान, आतंकवादी ताक़तों के मुकाबले अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है .इस लड़ाई में अमरीका उसको पूरा समर्थन देगा. मार्क टोनर का बयान पाकिस्तान में शुक्रवार को हुए आतंकवादी हमले के बाद आया है जिसमें करीब साठ लोग मारे गए थे. प्रवक्ता ने कहा कि अमरीका हमेशा से ही पाकिस्तान को समर्थन देता रहा है और इस संकट की घड़ी में भी वह समर्थन जारी रहेगा.

अब अमरीका को कौन बताये कि मेरे भाई , आपके समर्थन की वजह से ही पाकिस्तान में आज आतंकवाद की खेती लहलहा रही है . यानी आपने ही दर्द दिया है और अब आप ही दवा देने चले हैं . अस्सी के दशक में जब अमरीकी पैसे और पाकिस्तानी फौज की कृपा से भारत के राज्य, पंजाब में चारों तरफ आतंक का तूफ़ान था तो अमरीकी हुकूमत को खूब मज़ा आ रहा था . अफगानिस्तान से सोवियत रूस की सेना को भगाने की जो कोशिश की जा रही थी, उसके लिए पाकिस्तान को खुलकर अमरीकी धन मिल रहा था. उसी धन में से कुछ भारत के पंजाब में भी झोंक दिया जाता था . अमरीका को उम्मीद थी कि भारत को पाकिस्तानी आतंक के सामने मजबूर किया जा सकता था . शायद उन्होंने सोचा होगा कि बाद में जब भारत, अमरीका की शरण आना स्वीकार कर लेगा तो आतंकवाद को ख़त्म कर दिया जाएगा. कितनी गलत थी यह सोच . वास्तव में अमरीका के अन्दर भी जो आतंकवादी हमला हुआ, उसके पीछे पाकिस्तान में पैदा हुए आतंक का हाथ था. सोवियत रूस के दौर में तो आज के अमरीका के दुश्मन नंबर एक कहलाने वाले ओसामा बिन लादेन भी अमरीकी पैसे पर चलते थे और अमरीका के ख़ास रिसोर्स हुआ करते थे. करीब २० साल पहले , जब सोवियत रूस टूट गया और बहुत कमज़ोर हो गया तो अमरीका को उसके खिलाफ किसी आतंकवादी संगठन की ज़रूरत नहीं रह गयी और उसने ओसामा बिन लादेन समेत सारे पाकिस्तानी आतंकी ताम-झाम को बाय बाय कह दिया . यहीं अमरीका से गलती हो गयी. अमरीकी नीति निर्धारकों को मालूम होना चाहिए था कि अगर किसी पाप को जन्म दे रहे हो तो उसको आखिर तक दाना-पानी देते रहने में ही भलाई रहती है. अगर उसका खर्चा-पानी बंद कर दिया तो वह अपने पैदा करने वाले पर ही हमला कर देगा. भारत में ऐसी ही एक कथा भस्मासुर की है . जो भी भस्मासुर को जन्म देने की सोच रहा हो उसे पता होना चाहिए कि भस्मासुर अपने पैदा करने वाले को भी भस्म करने की कोशिश करता है . बाद में वही ओसामा बिन लादेन और पाकिस्तानी मूल के आतंकवादियों ने अमरीका की आतंरिक सुरक्षा के परखचे उड़ा दिए. और अब पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में ख़त्म करने पर आमादा हैं .

लेकिन अमरीकी और पाकिस्तानी हुक्मरान अभी तक सच्चाई को समझने से परहेज़ कर रहे हैं .पाकिस्तान में आतंकवाद का सबसे बड़ा सरगना , हाफ़िज़ मुहम्मद सईद है . वह कभी जिया उल हक का धार्मिक सलाहकार हुआ करता था . मुंबई हमलों की साज़िश उसी ने रची थी. लेकिन वह पाकिस्तान में छुट्टा घूम रहा है. दरअसल पाकिस्तान में तथाकथित सिविलियन सरकार में किसी की हिम्मत नहीं है कि उसे पकड़ सके . वह पाकिस्तानी फौज का ख़ास बन्दा है . लेकिन उसे पकड़ना अमरीका के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है . पाकिस्तान में हो रहे रोज़ के आतंकवादी हमलों पर सहानुभूति प्रकट करने के साथ साथ, अगर अमरीकी हुक्मरान यह समझ लें कि आतंकवादी किसी का दोस्त नहीं होता तो बात संभल जायेगी. क्योंकि अगर उनकी समझ में यह आ गया तो वे पाकिस्तानी आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने की योजना पर काम कर सकेगें . सब को मालूम है कि पाकिस्तानी आतंकवाद की मुख्य धारा हाफ़िज़ मुहम्मद सईद और उसके संगठनों , जमात उद दावा और लश्कर-ए-तय्यबा से होकर गुज़रती है. इसलिए अगर उसे ख़त्म कर दिया जाए तो पाकिस्तान में भी आतंकवाद कम हो जाएगा . अमरीका को भी बड़ी राहत मिलेगी और भारत में भी आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लग जायेगी,.हाफ़िज़ सईद को पकड़ पाना पाकिस्तानी सरकार के लिए तो नामुमकिन है लेकिन वहां की फौज़ उसको काबू में कर सकती है . दुनिया जानती है कि पाकिस्तानी फौज में बहुत बड़ी संख्या में आला अफसर ऐसे हैं जो अमरीकी सरकार से पैसा-कौड़ी लेते हैं और उनके सामने खीस निकालते रहते हैं . पूर्व राष्ट्रपति, परवेज़ मुशर्रफ ऐसे ही अमरीकी कारिंदे थे. इन्हीं अफसरों पर दबाव डाल कर अमरीका , हाफ़िज़ सईद को ठीक कर सकता है और आतंकवाद पर काबू कर सकता है. घडियाली आंसू से कुछ नहीं होगा और अमरीकी विदेश नीति हमेशा ही पाकिस्तानी आतंकवाद के दबाव में रहेगी.