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Saturday, December 10, 2011

संसद की स्थायी समिति ने लोकपाल बिल की सिफारिशें संसद के हवाले किया

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,९ दिसंबर. कार्मिक लोक शिकायत,कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने आज संसद के दोनों सदनों में लोक पाल विधेयक २०११ के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें पेश कर दीं. यह स्थायी समिति राज्यसभा के प्रशासनिंक कंट्रोल में है इसलिए इसके अध्यक्ष भी राज्यसभा के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी हैं. अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन से पैदा हुए राजनीतिक हालात के बाद लोकसभा में हुई बहस और लोकसभा की मंशा वाले प्रस्ताव के पारित होने के बाद लोकपाल बिल का ड्राफ्ट संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा गया था . संसद की स्थायी समिति एक ताक़तवर समिति होती है . उसके पास सरकार के पास से आये बिल को पूरी तरह से खारिज करने समेत उसे पूरी तरह से संशोधित करने का अधिकार तक होता है . कई बार ऐसा भी हुआ है कि स्थाई समिति ने सरकार की तरफ से पेश किये गए कानूनों के कुछ मसौदों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है .लोकपाल और राज्यों में नियुक्त होने वाले लोकायुक्तों को संवैधानिक दर्ज़ा दिया गया है जिससे उनेक काम काज में सरकारी या किसी अन्य किस्म का दबाव न पड़ सके.
लोकपाल बिल लोक सभा में ४ अगस्त २०११ को पेश किया गया था और इसे संसद की स्थायी समिति को ८ अगस्त को भेजा गया था . इस बिल का उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना है जो सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के बारे में जांच करेगा. इस कमेटी के सामने विचार के लिए दस हज़ार सुझाव आये . अन्ना हजारे की टीम ने भी समिति के सामने कई बार हाज़िर होकर अपनी बात रखी २३ सितम्बर २०११ के दिन पहली बैठक हुई और अंतिम बैठक ७ दिसंबर को हुई. इस बीच कमेटी के सामने कई न्यायविद, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश , गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनधि , टीम अन्ना के प्रतिनिधि , अन्ना हजारे खुद ,धार्मिक संगठन ,सी बी आई, सी वी सी आदि बहुत सारे लोग पेश हुए.
रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद समिति के अध्यक्ष , अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्राकारों से बात की और बताया कि सरकार के बहुत सारे सुझाव खारिज कर दिए गए हैं . जो ड्राफ्ट कमेटी के पास आया था उसको पूरी तरह से स्वीकार करने का कोई कारण नहीं था. करीब ढाई महीने की बैठकों के बाद जो सिफारिशें सरकार को दी गयी हैं उनमें टीम अन्ना समेत बहुत सारे लोगों के सुझाव हैं . किसी भी संगठन की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है.
अगर स्थायी समिति की सिफारिशों को मान लिया गया तो देश में भ्रष्टाचार की जांच की प्रक्रिया में बुनियादी बदलाव आ जायेगें . मसलन सी बी आई को अब केवल जांच करने का अधिकार रहेगा. मुक़दमा चलाने का अधिकार प्रस्तावित लोक पाल विधेयक के अभियोजन विभाग को सौंप दिया जाएगा .. सिफारिशों में प्रावधान है कि लोकपाक के अधीन एक अभियोजन विभाग बनाया जाए. और इस तरह से देश में पिछले साठ वर्षों से चल रही उस मांग को पूरा किया जा सकेगा जिसके तहत एक अभियोजन सर्विस शुरू करने की मांग होती रही है . अन्ना हजारे वालों को स्थायी समिति से निराशा इसलिए हुई है क्योंकि वे चाहते थे कि लोकपाल के अधीन ही देश के सभी सरकारी कर्मचारी आ जाएँ .लेकिन स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सभी अधिकारी लोकपाल के दायरे में आ जाएँ जबकि तीसरी श्रेणी के कर्मचारी मुख्य सतर्कता आयोग के जांच के दायरे में डाल दिए जाएँ . आने वाले समय में चतुर्थ श्रेणी का कोई कर्मचारी नहीं रह जाएगा क्योंकि ताज़ा वेतन आयोग की सिफारिशों में प्रावधान है कि चौथी श्रेणी को तीसरी श्रेणी में ही मिला दिया जाएगा.
अन्ना हजारे की टीम वालों को प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में न लाने पर भी परेशानी होगी क्योंकि समिति ने प्रधान मंत्री को लोक पाल में लाने के मामले को पूरी संसद के विवेक पर छोड़ दिया है . सी बी आई के कलेवर में भी पूरा बदलाव कर दिया गया है . सी बी आई अब प्रिलिमिनरी जाँच नहीं करेगी . वह कम लोकपाल का होगा . जिन मामलों में लोकपाल को लगेगा कि गंभीर जांच की ज़रुरत है, उन्हें सी बी आई के हवाले किया जाएगा. जांच के दौरान न तो लोकपाल और न ही सरकार सी बी आई के काम में दखल दे सकेंगें. जांच पूरी होने पर लोकपाल के अभियोजन विभाग का ज़िम्मा होगा कि वह विशेष अदालत में मुक़दमा चलाये और दोषी व्यक्ति को सज़ा दिलवाए. .समिति की सबसे अहम सिफारिश यह है कि अब किसी भी कर्मचारी के भ्रष्टाचार या किसी अन्य आपराधिक जांच करने के लिए जांच एजेंसी को किसी से परमिशन नहीं लेना पडेगा. अब तक होता यह था कि सम्बंधित उच्च अधिकारी मिलीभगत करके जांच की अनुमति ही नहीं देते थे . नतीजा यह होता था कि भ्रष्टाचारी कर्मचारी खुले आम घूमता रहता था.
. संसद सदस्यों के बारे में कमेटी ने साफ़ कहा है कि संविधान के अनुच्छेद १०५ में दिए गए अधिकार उनको मिलते रहेगें . संसद के अंदर के किसी भी काम पर उन्हें पहले की तरह के अधिकार हैं . लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनको अपराध करने के छूट है. संसद के ऐसे सदस्यों को दंड देने का अधिकार है जो संसद की मर्यादा को लांघते हैं .सरकारी कंपनियों , एन जी ओ और मीडिया को भी लोकपाल के दायरे में लिया गया है . जो बात अन्ना हजारे की टीम को बहुत बुरी लगेगी , वह यह है कि दस लाख से ज्यादा धन दान में लेने वाले एन जी ओ को भी लोक पाल के घेरे में ले लिया गया है . अन्ना हजारे की टीम कई सदस्यों के पास जो कई एन जी ओ हैं वे सभी लोकपाल के दायरे में अपने आप आ जायेगे,. विदेशों से धन लेने वालों को भी लोकपाल की जांच सीमा में डाल दिया गया है . अन्ना की टीम के सभी सदस्य और उनेक एन जी ओ इस प्रावधान के लपेटे इमं आ जायेगें .
गलत शिकायत करने वालों को अब तक पांच साल की सजा और कई लाख रूपये के दंड का प्रावधान था. अब कानून में ज़रूरी सुधार करके आर्थिक जुर्माना २५ हज़ार कर दिया जाएगा जबकि जेल की सजा घटा कर छः महीने कर दी जायेगी. लोकपाल की नियुक्ति के लिए भी बहुत ऊंचे आदर्श रखे गए हैं . प्रधान मंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष , लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति को चयन समिति में रखा जाएगा. इस सम्मानित व्यक्ति का चुनाव सी ए जी, सी वी सी और संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष करेगें . इस चयन समिति के विचार के लिए जो नाम भेजे जायेगें उनके लिए कम से कम सात सदस्यों की एक खोजबीन समिति बनायी जायेगी. इस खोजबीन समिति में कम से कम ५० प्रतिशत ऐसे लोग होंगें जो अनुसूचित जाति , महिला ,अल्पसंख्यक और ओ बी सी समुदाय से होंगें .सरकारी बिल में लिखा गया था कि भारत के वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश को या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को ही लोक पाल बनाया जाए .स्थायी समिति ने इस बात को खारिज कर दिया है . चयन समिति के सामने अब ऐसा कोई न बंधन नहीं होगा . किसी को भी लोकपाल बनाया जा सकता है.
लोक पाल के दायरे में न्याय पालिका को शामिल नहीं किया गया है . लेकिन उनके लिए एक विस्तृत न्यायिक मानक और जवाब देही विधेयक के सिफारिश की गयी है जिसका काम यह होगा कि जजों की शुरुआती भर्ती के स्टेज से सक्रिय रहकर न्याय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की सीमा से बाहर रखने का काम करे.

लोक पाल के साथ ही नागरिक चार्टर और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करने वाले कानून को भी बनाने की सिफारिश इस समिति ने किया है. जिसका उद्देश्य उन सरकारी अफसरों पर लगाम कसना है जो अपना काम नियम के अनुसार और सही वक़्त पर नहीं करते.

Thursday, September 29, 2011

कांग्रेस ने बीजेपी की खिल्ली उडाई

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली,२८ सितम्बर .बीजेपी ने आज दोपहर कांग्रेस और प्रधानमंत्री पर राजनीतिक हमला किया था. शाम को कांग्रेस ने उसका तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे दिया. आज यहाँ कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के प्रवक्ता, अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के नेता यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इनके इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद २००४ में उनके हाथ से सत्ता खिसक गयी थी. उसके बाद से हे वे समय समय पर कांग्रेस के सरकार के पतन के बारे में भविष्यवाणी करते रहते हैं . कांग्रेस ने आज २ जी मामले में भे बीजेपी के उस आरोप का ज़बरदस्त जवाब दिया जिसमें कहा जाता है कि कैश फार वोट के मामले में अमर सिंह के काम से फायदा यू पी ए की सरकार को हुआ था . इसलिए कांग्रेस के ऊपर भी जांच बैठाई जानी चाहिए . कांग्रेस ने कहा कि यह आरोप बिलकुल गलत है .कांग्रेस ने पलटवार किया और कहा कि सच्चाई यह है कि बीजेपी को मालूम था कि कांग्रेस ने परमाणु नीति के बारे में एक सही स्टैंड लिया है . जिसमें लोक सभा में उसकी जीत निश्चित है .सत्ता की लालच में बैठे हुए बीजेपी के बड़े नेता को इससे बहुत निराशा हुई और पार्टी ने उस जीत को शक़ के घेरे में फंसाने के उद्देश्य से कैश फार वोट का खेल कर दिया . कांग्रेस का दावा है कि कैश फार वोट का फायदा बीजेपी को ही होने वाला था लेकिन पकडे जाने की वजह से उनका खेल बिगड़ गया. २ जी घोटाले के बारे में कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्रालय के जिस नोट की बात करके बीजेपी पी चिदंबरम को कटघरे में खड़ा करना चाहती है उसमें नया कुछ भी नहीं है . वह केवल जो कुछ हुआ था उसका ब्योरेवार वर्णन है . उसमें एक अफसर ने जजमेंटल होने की कोशिश की है . क्या किसी अफसर के दोषी करार देने से कोई दोषी हो जाएगा.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बीजेपी की खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा कि बीजेपी के सारे आरोप झूठे हैं .जब उनके बारे में कोई सही बात की जाती है तो वे बौखला जाते हैं और बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाने लगते हैं . उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी से सौदा करने को तैयार है . उन्होंने कहा कि सौदा यह है कि अगर बीजेपी कांग्रेस के बारे में झूठ बोलना बंद कर दे तो कांग्रेस बीजेपी ke बारे में सच बोलना बंद कर देगी.जब उनको याद दिलाया गया कि बीजेपी का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी ने तो कैश फार वोट के मामले में कांग्रेस को एक्सपोज करने का काम किया था तो उन्होंने कहा कि यह बातें बीजेपी को शोभा नहीं देतीं. उन्होंने सवाल किया कि १९९८ से २००४ तक जब तक बीजेपी सत्ता में थी उन्होंने न तो कभी काले धन का ज़िक्र किया और न ही कभी किसी अपराध का भंडाफोड़ किया . कैश फार वोट शुद्ध रूप से बीजेपी की राजनीतिक डिजाइन का कार्यक्रम था जब उन्हें बताया गया कि अमर सिंह तो आपके लिए काम कर रहे थे तो सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की पार्टी लोकसभा में यू पी ए के सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी.कैश फार वोट केस में कांग्रेस को शामिल बताकर बीजेपी राष्ट्र को गुमराह करने के कोशिश कर रही है .कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आज जो विज्ञप्ति बीजेपी की तरफ से बांटी गयी है वह डॉ सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों का सारांश मात्र है . अभी उस केस में पर सुनवाई चल रही है . अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया है लेकिन तकलीफ की बात है कि बीजेपी ने उसको अपनी तरफ से प्रेस कानफरेंस में बाँट दिया है .और आदेश सुना दिया है कि कांग्रेस दोषी है . यह ठीक नहीं है . कांग्रेस ने इस बात का भी बुरा माना है कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हों तो उनपर राजनीतिक हमला न करने की परम्परा को बीजेपी बार बार तोड़ रही है . यही उन्होंने बंगलादेश की यात्रा के समय भी किया था और अब अमरीका के यात्रा के समय भी यही किया.