Tuesday, September 10, 2013

महान कलाकार मुंक के शहर में उनकी कला का मेला


शेष नारायण सिंह
ओस्लो, १ सितम्बर. नार्वे में अपने महान नायकों की बहुत इज्ज़त की जाती है . यहाँ साहित्यकार हेनरिक इब्सेन के नाम पर शहर का सबसे प्रमुख इलाका  है और महान पेंटर एडवर्ड मुंक के १५० साल पूरा होने पर उनकी याद में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शनी लगी हुई है जिसमें मुंक का काम प्रदर्शित किया गया है जो पूरे शहर में फैला हुआ  है .यह मुंक म्यूज़ियम में है नार्वेजी भाषा में म्यूज़ियम को मुसीत कहते हैं .मेट्रो ट्रेन के प्रमुख स्टेशन तोइयन के पास यह प्रदर्शनी है और स्टेशन पर जहां स्टेशन के नाम का निशान है उसके साथ ही यह भी सूचना है कि  यह मुंक मुसीत भी साथ ही है.  साथ साथ में कैफे हैं जहां दर्शकों के अलावा कुछ नामी कलाकार भी कभी कभी मिल जाते हैं . इसके ओस्लो विश्विद्यालय के हाल में मुंक ने जो म्यूराल पेंट किया था वह भी खूब शान से दिखाया जा रहा है . समकालीन कला के राष्ट्रीय म्यूज़ियम में भी मुंक का काम बहुत ही प्रमुखता से दिखाया गया है .. दरअसल करीब एक हज़ार रूपये का  जो टिकट मुंक मुसीत के अंदर जाने के लिए के लिए लिया जाता है वही टिकट राष्ट्रीय म्यूज़ियम के लिए भी चल जाता है .नार्वे में अपने महान लोगों की कितनी इज्ज़त की जाती है इस बात का दाज़ इसी से लगाया  जा सकता है कि ओस्लो हवाई अड्डे पर उतरते ही उनके काम के रिप्रिंट नज़र आने लगते हैं .पूरे रास्ते यही लगता है कि आप मुंक की सरज़मीं पर आ गए हैं .
उनके १५० साल पूरा होने पर मुंक की याद में जो  प्रदर्शनी लगी हुई है ,उसमें उनके काम को एक जगह पर जितनी बड़ी संख्या में लगाया गया है इसके पहले कभी भी इतना बड़ा रेट्रोस्पेकटिव एक जगह पर नहीं लगा .मुंक ने जीवन भर काम किया उनके काम की सभी शैलियों को इस प्रदर्शनी में देखा जा सकता है . इस प्रदर्शनी का मकसद साफ़ तौर पर लगता है कि कि यूरोप में ललित कला की दुनिया में  एडवर्ड मुंक का वह स्थान मुकम्मल तौर पर  सुनिश्चित किया जा सके  जिसके कि वे वास्ताव में हक़दार हैं .मुंक ने १८८० के दशक में कला की दुनिया में प्रवेश किया था और करीब साठ साल तक काम करते रहे .ओस्लो पर नाजी कब्ज़े एक दौरान उनकी मृत्यु हुई.  मुंक १५० प्रदर्शनी में उनकी २५० से ज्यादा पेंटिंग लगी हुई हैं .उनकी सबसे चर्चित कलाकृतियाँ भी इस प्रदर्शनी में हैं . इस प्रदर्शनी में वे काम भी शामिल किये गए हैं जो न तो मुंक म्यूज़ियम की संपत्ति हैं और  न ही नार्वे में हैं . दुनिया भर से इन कला कृतियों को लाया गया है . १८९२ से १९०३ तक का काम नैशनल गैलरी में है जबकि मुंक मुसीत में १९०४ से १९४४ तक का काम है .
 कला के जानकारों की बात अलग है वरना कला के बारे में मामूली रूचि रखने वालों के लिए मुंक का नाम लेते ही उनकी अति प्रसिद्ध कृति चीख (स्क्रीम ) का नाम दिमाग में आ जाता है. उनकी यह कला समकालीन इतिहास में बहुत चर्चित भी है इसको कला के जानकारों के बाहर दुनिया में वही हैसियत हासिल है जो पिकासो की गुएर्निका को दी जाती है .,लेकिन मुंक की १५० साल वाली प्रदर्शनी देखने के बाद ही एक साधारण आदमी को अंदाज़ लगता है कि मुंक की कला की दुनिया कितनी विस्तृत है . मुंक ने अपनी स्क्रीम के कई संस्करण बनाए ,पहला तो शायद १८९३ में बनाया था और आखिरी १९१० में.  जिन लोगों क नहीं मालूम  है उनके लिए यह जानना ज़रूरी है कि उनकी स्क्रीम को पिछले साल न्यूयार्क में कला की एक नीलामी में १२ करोड डालर में बेचा गया था . आज के हिसाब से अगर देखा जाये तो उसकी कीमत करीब ७०० करोड  रूपये की होगी. स्क्रीम के बारे में कला की दुनिया में तरह तरह की व्याख्याएं हैं . पता नहीं क्यों कुछ हलकों में माना जाता  है कि यह एक पागल की चीख का विजुअल रिकार्ड है जबकि मुंक ने खुद ही अपनी डायरी में लिखा है कि जब वे एक दिन ओस्लो में किसी पहाड़ी के ऊपर से गुजर रहे थे तो उनको लगा था कि प्रकृति पता नहीं क्यों चीख रही है और उसी अनुभव को मुंक ने एक पेंटिंग की शक्ल दे दिया था.
मुंक ने अपनी ज़िंदगी में बहुत तकलीफ देखा था . उन्होंने लिखा है कि बीमारी,पागलपन और मौत को मैंने बहुत करीब से देखा है .जब वे पांच साल के थे तो माँ मर गयी , जब १४ साल के हुए तो उस बहन का देहांत हो गया जो इनकी देखभाल कर रही थी,उनके पिता जी की भी कुछ वर्षों बाद मृत्यु हो गयी . वैसे भी उनके ऊपर  इतने बड़े परिवार का पालन कारने का जिम्मा था कि वे मुंक का कोई ध्यान नहीं रख पा रहे थे .मुंक खुद बार बार अस्पताल जाते रहे और कई बार नशे की आदत के शिकार हुए . कहते हैं कि  उनकी प्रेमिका ने भी उन्हें बहुत निराश किया था . और उनकी पेंटिंग ‘ वेम्पायर ‘ उसी मनोदशा में पेंट की गयी थी . उनके काम के दायरे में उनका अपना जीवन बार बार आता  है .उनका मुसीबत से भरा बचपन, समाज से उनकी परेशानी  और निजी संबंधों में निराशा , सब उनके काम में  दिखता है . उनका अपना दर्द और उससे पैदा हो रहे बिम्ब सारे जहां का दर्द बनकर मुंक के  काम में नज़र आते रहते हैं .उनकी पेंटिंग “ डेथ इन अ सिक रूम “ उनकी बहन की  मौत के बाद हुए दर्द की जो अमिट छाप  मुंक के दिमाग में रिकार्ड हो गयी थी ,उसी का प्रतिनिधि काम है .  किस ( चुम्बन ) न्यूड मडोना, और वेम्पायर, सभी कृतियाँ ,महिलाओं के साथ मुंक के अनुभवों के प्रतिनधि हैं . लेकिन यह निजी होते हुए भी ऐसी बन गयी हैं कि सभी के दर्द को अनुभव कराने की क्षमता रखते  हैं .
मुंक ने लिखा है कि मेरी सारी कला  दर्द का एक इतिहास है , अगर दर्द न होता अतो शायद मेरा काम कुछ अलग तरह का रहा होता . अपने समकालीन इब्सेन की वे बाहुत इज्ज़त करते थे और उनकी पेंटिंग ‘ ग्रैंड कैफे में इब्सेन” को भी बहुत हे एम्ह्त्वपूर्ण माना जाता अहै . अपनी यूनिवर्सिटी में जो  उनका काम है उसमें भी इब्सेन हैं , उसमें नीत्शे भी हैं , वहाँ उनका सेल्फ़ पोर्ट्रेट भी है  क्योंकि बताते हैं कि जब १९४४ में न्यूमोनिया से उनकी मौत हुई तो उनकी जो मनोदशा थी वह ‘ बिटवीन द क्लाक एंड द बेड ‘ में नज़र आता है .

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