Friday, September 16, 2011

केंद्रीय कार्यक्रमों के रास्ते अपनों को फिट करने की कांग्रेसी कोशिश

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,१५ सितम्बर . ग्राम विकास मंत्रालय के ज़रिये केंद्र सरकार हर गाँव में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति पर काम कर रही है . केंद्र सरकार की तरफ से चलाई जा रही योजनाओं के ज़रिये इस हस्तक्षेप की योजना बन रही है .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं--प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना और मनरेगा की मौजूदगी देश के लगभग हर गाँव में है. इसके अलावा भी छः और योजनायें चल रही हैं लेकिन अभी वे अपेक्षाकृत कम चर्चा में है . देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की नई दिल्ली में न आयोजित कार्यशाला में सरकार की मंशा सामने आई. कार्यशाला के बाद जो कागज़ तैयार किये गए हैं उनमें लिखा है कि नक्सल प्रभावित हर जिले में ५०० लोगों को कार्यकर्ता के रूप में भर्ती किया जाएगा जिनका काम प्रशासन और जनता के बीच कड़ी के रूप में काम करना होगा. केंद्र सरकार की ओर से चल रही गाँव के विकास योजनाओं पर इनकी नज़र रहेगी . इनको केंद्र सरकार की ओर से पैसा दिया जाएगा . इनकी न्यूनतम योग्यता के बारे में कुछ ख़ास नहीं बताया गया. है .यह काम अभी ६० नक्सल प्रभावित जिलों में किया जाएगा . बाद में इसको बाकी जिलों में भी लागू किया जा सकता है . इसके अलावा हर जिले में कलेक्टर की मदद के लिए केंद्र सरकार की ओर से २५-३० साल के ३ नौजवानों को फेलो के रूप में नियुक्त किया जाएगा . इनको २-३ साल तक के लिए कपार्ट के लिए निरधारित फंड से पैसा दिया जाएगा. सिविल सोसाइटी के लोगों को भी ग्राम विकास की योजनाओं को लागू करने के काम में शामिल करने की योजना पर भी काम कर रहा है . ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस योजना को विपक्षी पार्टियां शक़ की निगाह से देखती हैं .भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा कि कांग्रेस पार्टी मौजूदा राजनीतिक हालत से घबडा गयी है और उसी घबडाहट में इस तरह के काम कर रही है . इस तरह के कदम से कोई सामाजिक परिवर्तन नहीं आयेगा और न ही कांग्रेस को कोई तात्कालिक लाभ होगा. एक संशयात्मा सरकारी अफसर ने कहा कि यह योजना कहने को तो बड़ी आदर्शवादी बतायी जा रही है लेकिन इसका असली मकसद हर जिले में ५०० कांग्रेसियों को काम पर लगाना है . कमज़ोर पड़ रही कांग्रेस अब सरकारी योजनाओं के कन्धों पर बैठ कर राजनीतिक सफलता हासिल करना चाहती है.

६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक दिन की कार्यशाला के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनके बारे में एक पर्चा तैयार किया गया है . यह पर्चा सार्वजनिक रूप तो से जारी नहीं किया गया है लेकिन यह जानकार लोगों के ज़रिये मीडिया तक पंहुच गया है . इसमें ही कुछ लोगों को काम देकर उनको अपने साथ की लेने की बात की गयी है . इस पर्चे में और भे एबहुत सारी योजनाओं का ज़िक्र है .प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सड़क बनाने का प्रावधान तो है लेकिन छोटी पुलिया बनाने की मंजूरी उसके तहत नहीं दी जाती . प्रस्ताव है कि साठ नक्सल प्रभावित जिलों में अब पुलिया के निर्माण को भी प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना में शामिल कर लिया जाए. इस काम को शुरू करने के लिए ५०० करोड़ रूपये की ज़रूरत होगी. बाद में अगले तीन साल के अंदर करीब ३५ हज़ार करोड़ रूपये लगेंगें . ग्रामीण विकास मंत्रालय इस दिशा में आगे क़दम बढ़ाएगा और विस्तृत प्रस्ताव प्रधान मंत्री के पास भेजेगा. . इन जिलों में अब तारकोल की जगह कांक्रीट की सड़कें बनायी जायेगीं . केंद्र सरकार का मुख्य हस्तक्षेप मनरेगा को दुरुस्त करने की दिशा में होगा . नक्सल प्रभावित ६० जिलों में हर ग्राम पंचायत में एक पंचायत विकास अधिकारी तैनात किया जायेगा . इसके अलावा एक जूनियर इंजीनियर भी भर्ती किया जायेगा. . यह स्टाफ बाहर से नहीं लाया जाएगा. यह सब मुकामी लोग होंगें और इनका वेतन भी केंद्र सरकार देगी.बैंकों और डाकखानों में खाली पड़ी जगहों को भी मुकामी लोगों से भरा जाएगा. मनरेगा के अन्तार्गत अब खेल के मैदान भी बनाए जा सकेगें . अभी तक इसकी मनाही थी . अभी तो यह मंजूरी केवल साठ जिलों के लिए है लेकिन बाद में इसे पूरे देश में भी लागू किया जा सकता है . अभी तक खेल के मैदान मनरेगा की योजना में शामिल नहीं थे इनकी मनाही थी . नक्सल प्रभावित ६० ज़िलों में अगले पांच वर्षों के अंदर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के तहत तीन लाख युवकों को नौकरी दी जायेगी. . ज़ाहिर है जयराम रमेश की अगुवायी में ग्रामीण विकास मंत्रालय सत्ताधारी पार्टी का एक दयालु चेहरा पेश करने की कोशिश करेगा.

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