शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, २१ जनवरी .लगता है कि कांग्रेस ने ममता बनर्जी को औकात बनाने का मन बना लिया है . पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के काम करने के तरीके से कांग्रेस में सर्वोच्च स्तर पर बहुत ही असुविधा होती बतायी जा रही है. वैसे भी जिस तरह से लगभग हर हफ्ते पश्चिम बंगाल सरकार की नकारात्मक पब्लिसिटी हो रही है उसके चलते कांग्रेस ममता बनर्जी के खराब काम में अपने आप को शामिल नहीं दिखाना चाहती . अस्पतालों के खस्ता प्रबंध की जो खबरें आजकल मीडिया में छाई हुई हैं उसके चलते कांग्रेस आलाकमान में ममता से राजनीतिक दोस्ती रखने के खिलाफ माहौल बन रहा है .
सोमवार को ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश कोलकाता जा रहे हैं और वहां जाकर वे २४ परगना, बांकुरा और पुरुलिया जिलों में अपने मंत्रालय के सौजन्य से चल रही स्कीमों की समीक्षा करेगें .इसके पहले ममता बनर्जी ने कई बार कांग्रेस के नेताओं को अहसास करवाया है केंद्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार अपने अस्तित्व के लिए ममता बनर्जी की कृपा पर बहुत ज्यादा निर्भर है .पिछले दिनों उन्होंने कांग्रेस के पश्चिम बंगाल के कार्यकर्ताओं और राज्य स्तर के नेताओं को भी धमकाने की योजना पर काम शुरू कर दिया . पश्चिम बंगाल में उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाया है लेकिन अपनी ही सरकार में काम कर रहे कांग्रेसी मंत्रियों को बिलकुल जीरो पर बैठा दिया है . एक मंत्री को तो इतना परेशान कर दिया कि उसने इस्तीफ़ा देने में ही भलाई समझी. . नई दिल्ली में राजनीतिक मौसम के जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में चुनावों के बाद यू पी ए में मुलायम सिंह यादव की पार्टी के शामिल होने की बिसात बिछ चुकी है. जिसके बाद सोनिया गाँधी ममता बनर्जी को यू पी ए छोड़ने का विकल्प दे देगीं. इसका मतलब यह हुआ कि वे ममता को साफ़ बता देगीं कि अगर सरकार में रहना है तो कांग्रेस के साथ शिष्टाचार की सीमा में ही रहना पडेगा. उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को घेरने के पहले भी वहां जयराम रमेश ने जांच का काम शुरू किया था और कई जिलों में मनरेगा में हो रही घूसखोरी को राजनीतिक बहस के दायरे में ला दिया था . इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस जयराम रमेश के निरीक्षण के ज़रिये ममता से दूरी बनाने के अपने प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर चुकी है .
जयराम रमेश का पश्चिम बंगाल का दौरा बिलकुल सरकारी है. २३ जनवरी को वे कोलकाता में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होंगें.उसके बाद वे २४ परगना जिले के डोंगरिया कस्बे के लिए रवाना हो जायेगें जहां अफसरों से वे बातचीत करेगें और ग्रामीण विकास की केंद्रीय स्कीमों की समीक्षा करेगें .२४ जनवरी को जयराम रमेश बांकुरा जायेगें जहां वे पुरंदरपुर ब्लाक में पानी की जांच की प्रयोगशाला, सैनिटरी मार्ट और वाटर हार्वेस्टिंग स्कीमों के बारे में जानकारी लेगें .अगले दिन बुधवार को वे पुरुलिया जिले के रघुनाथपुर ब्लाक में प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना और वाटर ट्रीटमेंट प्लान का निरीक्षण करेगें . बुधवार को वे नई दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाक़ात करेगें . जयराम रमेश के सरकारी कार्यक्रम से बिलकुल साफ़ नज़र आ रहा है कि ममता बनर्जी को भी कांग्रेस वही सम्मान और रुतबा देने वाली है जो विधान सभा चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने के पहले उसने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, मायावती को दिया था .
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Monday, January 23, 2012
Tuesday, September 13, 2011
अब गाँव से दूर रहने वालों के लिए अलग होगा सीलिंग एक्ट
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,१२ सितम्बर .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, जयराम रमेश एक नया धमाका कर रहे हैं . इस नए काम की धमक दूर तलक महसूस की जायेगी . पर्यावरण मंत्रालय में उन्होंने कुछ बहुत बड़ी कंपनियों को इतना टाईट कर दिया था कि सरकार के लिए उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाए रखना असंभव हो गया. अपने नए मंत्रालय में भी वे कुछ बड़ा करने की योजना बना चुके हैं. जयराम रमेश ने एक योजना बनायी है जिसके बाद भूमि सुधार कानूनों में भारी फेरबदल कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार की योजना है कि राज्यों के भूमि हदबंदी कानून को बदल दिया जाए. हालांकि भूमि सुधार राज्य का विषय है लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के माडल भूमि हदबंदी कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके अनुसार अपने गाँव से दूर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग भूमि हदबंदी कानून बनाया जाएगा . सरकार का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर भूस्वामी को गाँव में रहने वाले भूस्वामी से आधी ज़मीन रखने का अधिकार होगा . यानी अगर यह कानून उत्तर प्रदेश में लागू हो गया तो गाँव से बाहर शहरों में रहने वाले खातेदारों को सवा तीन एकड़ सिंचित भूमि ही रखने का अधिकार रह जाएगा. असिंचित के केस में भी यही फार्मूला लागू होगा .
जयराम रमेश का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर खातेदारों की सूची अब बहुत ही आसानी ने बन जायेगी .केंद्र सरकार की यू आई डी स्कीम वाले कार्ड के बन जाने के बाद देश के हर नागरिक का केवल एक परिचय पत्र रहेगा. वही कार्ड हर सरकारी स्कीम के लिए लागू होगा .जो लोग गाँव से दूर शहरों में रहते हैं ,उनको अपनी नौकरी के स्थान का ही कार्ड बनवाना पड़ेगा . इस तरह अभी तक दो या तीन जगह की मतदाता सूचियों में नाम लिखा कर काम चलाने वालों को एक जगह चुनना पड़ेगा जहां से वे कार्ड बनवाएं . ऐसी हालत में शहर में रह कर काम करने वालों के लिए गाँव का कार्ड नहीं बन पायेगा.
इस योजना की पूरी तैयारी हो चुकी है .ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में २००८ में ही भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् ( एन सी एल आर ) का गठन कर दिया था जो सक्रिय नहीं थी. अब वह सक्रिय कर दी गयी है . भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् की पहली बैठक अक्टूबर में बुलाई जा रही है .इस परिषद् का उद्देश्य भूमि सुधार के बारे में दिशा निर्देश और नीतियाँ तय करना बताया गया है . भूमि सुधार के अधूरे काम को पूरा करने के लिए इस परिषद् के अंदर ही एक कमेटी बनायी गयी है जिसके अध्यक्ष ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं.सरकार की कोशिश है कि भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक माडल भूमि सुधार कानून की आवश्यकता है . हालांकि राज्यों के सामने कोई बाध्यता नहीं होगी लेकिन केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इंसाफ़ का निजाम स्थापित करने के एजेंडे के साथ राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टिया इस माडल भूमि हदबंदी कानून को लागू करेगीं.
नई दिल्ली,१२ सितम्बर .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, जयराम रमेश एक नया धमाका कर रहे हैं . इस नए काम की धमक दूर तलक महसूस की जायेगी . पर्यावरण मंत्रालय में उन्होंने कुछ बहुत बड़ी कंपनियों को इतना टाईट कर दिया था कि सरकार के लिए उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाए रखना असंभव हो गया. अपने नए मंत्रालय में भी वे कुछ बड़ा करने की योजना बना चुके हैं. जयराम रमेश ने एक योजना बनायी है जिसके बाद भूमि सुधार कानूनों में भारी फेरबदल कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार की योजना है कि राज्यों के भूमि हदबंदी कानून को बदल दिया जाए. हालांकि भूमि सुधार राज्य का विषय है लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के माडल भूमि हदबंदी कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके अनुसार अपने गाँव से दूर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग भूमि हदबंदी कानून बनाया जाएगा . सरकार का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर भूस्वामी को गाँव में रहने वाले भूस्वामी से आधी ज़मीन रखने का अधिकार होगा . यानी अगर यह कानून उत्तर प्रदेश में लागू हो गया तो गाँव से बाहर शहरों में रहने वाले खातेदारों को सवा तीन एकड़ सिंचित भूमि ही रखने का अधिकार रह जाएगा. असिंचित के केस में भी यही फार्मूला लागू होगा .
जयराम रमेश का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर खातेदारों की सूची अब बहुत ही आसानी ने बन जायेगी .केंद्र सरकार की यू आई डी स्कीम वाले कार्ड के बन जाने के बाद देश के हर नागरिक का केवल एक परिचय पत्र रहेगा. वही कार्ड हर सरकारी स्कीम के लिए लागू होगा .जो लोग गाँव से दूर शहरों में रहते हैं ,उनको अपनी नौकरी के स्थान का ही कार्ड बनवाना पड़ेगा . इस तरह अभी तक दो या तीन जगह की मतदाता सूचियों में नाम लिखा कर काम चलाने वालों को एक जगह चुनना पड़ेगा जहां से वे कार्ड बनवाएं . ऐसी हालत में शहर में रह कर काम करने वालों के लिए गाँव का कार्ड नहीं बन पायेगा.
इस योजना की पूरी तैयारी हो चुकी है .ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में २००८ में ही भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् ( एन सी एल आर ) का गठन कर दिया था जो सक्रिय नहीं थी. अब वह सक्रिय कर दी गयी है . भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् की पहली बैठक अक्टूबर में बुलाई जा रही है .इस परिषद् का उद्देश्य भूमि सुधार के बारे में दिशा निर्देश और नीतियाँ तय करना बताया गया है . भूमि सुधार के अधूरे काम को पूरा करने के लिए इस परिषद् के अंदर ही एक कमेटी बनायी गयी है जिसके अध्यक्ष ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं.सरकार की कोशिश है कि भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक माडल भूमि सुधार कानून की आवश्यकता है . हालांकि राज्यों के सामने कोई बाध्यता नहीं होगी लेकिन केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इंसाफ़ का निजाम स्थापित करने के एजेंडे के साथ राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टिया इस माडल भूमि हदबंदी कानून को लागू करेगीं.
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शेष नारायण सिंह
Thursday, August 26, 2010
अगर एक मंत्री भी ईमानदार हो तो बदल सकते हैं हालात
शेष नारायण सिंह
अगर दिल्ली दरबार में एक मंत्री भी अपना काम इमानदारी से करने का फैसला कर ले तो बहुत कुछ बदल सकता है . आज के ६३ साल पहले व्यवस्था बदल देने के लिए सत्ता में आई कांग्रेस के शुरुआती मंत्री तो बहुत ही इमानदार थे ,शायद इसीलिये बहुत सारी चीज़ें ऐसी हुईं जिनकी उम्मीद आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले वीरों ने देखी थी . लेकिन वक़्त के साथ बेईमानों की संख्या बढ़ने लगी और बहुत सारे फैसले पैसे के बल पर होने लगे. पिछले २० वर्षों से तो दिल्ली दरबार में ऐसा माहौल है कि पूंजीपति वर्ग जो चाहे करवा सकता है . सरकार के मंत्रियों की हालत यह है कि किसी भी फैसले को बदल देने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता . घूस पात देकर खरबपति बनने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि इसी वजह से हो रही है . ऐसा ही मामला उस आदमी का है जो मुंबई में कबाड़े का काम करता था लेकिन आज देश के सबसे समृद्ध भारतीयों में उसकी गिनती होने लगी है . इस तरह के उद्यमियों की खास बात यह है कि ये लोग सभी पार्टियों में बराबर की पैठ रखते हैं . ताज़ा मामला स्टरलाईट और वेदान्त अल्युमिनियम का है जिनकी अपने आपको को छः गुना करने की योजनाओं को इमानदारी का झटका लग गया है क्योंकि केंद्र सरकार के एक मंत्री ने तय कर लिया कि नियम कानून में हेराफेरी करके किसी को लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती. वेदान्त अल्युमिनियम के मालिक अनिल अग्रवाल की कंपनी में कभी गृहमंत्री पी चिदंबरम निदेशक रह चुके हैं और एन डी ए की सरकार के एक मंत्री या कई मंत्रियों ने उन्हें माटी के मोल भारत की सबसे पुरानी सरकारी अल्युमिनियम कंपनी बेच दी थी. दरअसल उसी बालको( भारत अल्युमिनियम कंपनी ) को सस्ते खरीद कर ही उन्होंने सम्पन्नता की अपनी दौड़ को ताक़त दी थी. उस दौर में कांग्रेस ने उनके काम का कोई विरोध नहीं किया था क्योंकि उनकी कंपनी में कांग्रेस के ताक़तवर नेता, पी चिदंबरम एक निदेशक के रूप में काम कर रहे थे. उडीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक से भी उनके बहुत अच्छे रिश्ते थे . ज़ाहिर है उनकी मनमानी की गाड़ी अपनी मर्जी से बेख़ौफ़ चल रही थी . लेकिन अब सब कुछ गड़बड़ हो चुका है . पर्यावरण मंत्री ने वेदान्त कंपनी और उसके मालिक को कानून की इज्ज़त करने का ककहरा पढ़ा दिया है . उडीसा में औने पौने दामों में मिले बाक्साईट की खुदाई के लाइसेंसों को सरकार ने गैरकानूनी करार दे दिया है और अब उनकी रफ़्तार लगभग शून्य पर आ गयी है . अजीब बात यह है कि उनकी लक्ष्मी की साधना में सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन ने भी कारिन्दा बनने का फैसला कर लिया था . यह भी माना जाता है कि दिल्ली दरबार से उन्हें बिना किसी रोक टोक के चलते रहने का आशीर्वाद मिला हुआ था . लेकिन अब बात बिगड़ चुकी है . पर्यावरण मंत्री, जयराम रमेश ने ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन का वह लाइसेंस रद्द कर दिया है जो नियमगिरि पहाड़ियों से बाक्साईट की खुदाई करके अनिल अग्रवाल की वेदान्त अल्युमिनियम की लान्जीगढ़ रिफाइनरी को बाक्साईट सप्लाई करने के लिए दिया गया था. मंत्री ने नए लाइसेंस को तो रद्द कर ही दिया है एक लाख टन की क्षमता वाले प्लांट को मिले पुराने लाइसेंस को रद्द करने के लिए भी कार्रवाई शुरू कर दिया है .तीन जिलों में फ़ैली बाक्साईट की इन खदानों में डोंगरिया और खूँटिया जाति के आदिवासी रहते हैं और उनकी जीविका इन्हीं जंगलों की वजह से चलती है . वैसे भी पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि कि अंधाधुंध खुदाई से इस इलाके के वातावरण को जो नुकसान होगा उका कोई हिसाब ही नहीं लगाया जा सकता.
इस सारे मामले में मीडिया के एक हिस्से का रोल बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण रहा है , खासकर टेलिविज़न न्यूज़ के एक वर्ग के लोग इस तरह बात कर रहे हैं मानों अगर वेदान्त का आर्थिक नुकसान हो गया तो सर्व नाश हो जाएगा. उनकी तरफ से अनिल अग्रवाल की कंपनियों के शेयर में हो रही गिरावट को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे दुनिया पर कोई भारी संकट आ गया है . ज़ाहिर है कि सरकार ,राजनीतिक दल और मीडिया सब की मदद से आम आदमी, खासकर आदिवासी भारतीयों की संपत्ति को हड़प कर यह कम्पनियां सम्पन्नता के इस मुकाम तक पंहुची हैं . ज़रुरत इस बात की है कि जयराम रमेश की तरह के कुछ और लोग सार्वजनिक जीवन में आयें और न्याय पर आधारित राज काज के निजाम की स्थापना को .
अगर दिल्ली दरबार में एक मंत्री भी अपना काम इमानदारी से करने का फैसला कर ले तो बहुत कुछ बदल सकता है . आज के ६३ साल पहले व्यवस्था बदल देने के लिए सत्ता में आई कांग्रेस के शुरुआती मंत्री तो बहुत ही इमानदार थे ,शायद इसीलिये बहुत सारी चीज़ें ऐसी हुईं जिनकी उम्मीद आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले वीरों ने देखी थी . लेकिन वक़्त के साथ बेईमानों की संख्या बढ़ने लगी और बहुत सारे फैसले पैसे के बल पर होने लगे. पिछले २० वर्षों से तो दिल्ली दरबार में ऐसा माहौल है कि पूंजीपति वर्ग जो चाहे करवा सकता है . सरकार के मंत्रियों की हालत यह है कि किसी भी फैसले को बदल देने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता . घूस पात देकर खरबपति बनने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि इसी वजह से हो रही है . ऐसा ही मामला उस आदमी का है जो मुंबई में कबाड़े का काम करता था लेकिन आज देश के सबसे समृद्ध भारतीयों में उसकी गिनती होने लगी है . इस तरह के उद्यमियों की खास बात यह है कि ये लोग सभी पार्टियों में बराबर की पैठ रखते हैं . ताज़ा मामला स्टरलाईट और वेदान्त अल्युमिनियम का है जिनकी अपने आपको को छः गुना करने की योजनाओं को इमानदारी का झटका लग गया है क्योंकि केंद्र सरकार के एक मंत्री ने तय कर लिया कि नियम कानून में हेराफेरी करके किसी को लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती. वेदान्त अल्युमिनियम के मालिक अनिल अग्रवाल की कंपनी में कभी गृहमंत्री पी चिदंबरम निदेशक रह चुके हैं और एन डी ए की सरकार के एक मंत्री या कई मंत्रियों ने उन्हें माटी के मोल भारत की सबसे पुरानी सरकारी अल्युमिनियम कंपनी बेच दी थी. दरअसल उसी बालको( भारत अल्युमिनियम कंपनी ) को सस्ते खरीद कर ही उन्होंने सम्पन्नता की अपनी दौड़ को ताक़त दी थी. उस दौर में कांग्रेस ने उनके काम का कोई विरोध नहीं किया था क्योंकि उनकी कंपनी में कांग्रेस के ताक़तवर नेता, पी चिदंबरम एक निदेशक के रूप में काम कर रहे थे. उडीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक से भी उनके बहुत अच्छे रिश्ते थे . ज़ाहिर है उनकी मनमानी की गाड़ी अपनी मर्जी से बेख़ौफ़ चल रही थी . लेकिन अब सब कुछ गड़बड़ हो चुका है . पर्यावरण मंत्री ने वेदान्त कंपनी और उसके मालिक को कानून की इज्ज़त करने का ककहरा पढ़ा दिया है . उडीसा में औने पौने दामों में मिले बाक्साईट की खुदाई के लाइसेंसों को सरकार ने गैरकानूनी करार दे दिया है और अब उनकी रफ़्तार लगभग शून्य पर आ गयी है . अजीब बात यह है कि उनकी लक्ष्मी की साधना में सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन ने भी कारिन्दा बनने का फैसला कर लिया था . यह भी माना जाता है कि दिल्ली दरबार से उन्हें बिना किसी रोक टोक के चलते रहने का आशीर्वाद मिला हुआ था . लेकिन अब बात बिगड़ चुकी है . पर्यावरण मंत्री, जयराम रमेश ने ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन का वह लाइसेंस रद्द कर दिया है जो नियमगिरि पहाड़ियों से बाक्साईट की खुदाई करके अनिल अग्रवाल की वेदान्त अल्युमिनियम की लान्जीगढ़ रिफाइनरी को बाक्साईट सप्लाई करने के लिए दिया गया था. मंत्री ने नए लाइसेंस को तो रद्द कर ही दिया है एक लाख टन की क्षमता वाले प्लांट को मिले पुराने लाइसेंस को रद्द करने के लिए भी कार्रवाई शुरू कर दिया है .तीन जिलों में फ़ैली बाक्साईट की इन खदानों में डोंगरिया और खूँटिया जाति के आदिवासी रहते हैं और उनकी जीविका इन्हीं जंगलों की वजह से चलती है . वैसे भी पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि कि अंधाधुंध खुदाई से इस इलाके के वातावरण को जो नुकसान होगा उका कोई हिसाब ही नहीं लगाया जा सकता.
इस सारे मामले में मीडिया के एक हिस्से का रोल बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण रहा है , खासकर टेलिविज़न न्यूज़ के एक वर्ग के लोग इस तरह बात कर रहे हैं मानों अगर वेदान्त का आर्थिक नुकसान हो गया तो सर्व नाश हो जाएगा. उनकी तरफ से अनिल अग्रवाल की कंपनियों के शेयर में हो रही गिरावट को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे दुनिया पर कोई भारी संकट आ गया है . ज़ाहिर है कि सरकार ,राजनीतिक दल और मीडिया सब की मदद से आम आदमी, खासकर आदिवासी भारतीयों की संपत्ति को हड़प कर यह कम्पनियां सम्पन्नता के इस मुकाम तक पंहुची हैं . ज़रुरत इस बात की है कि जयराम रमेश की तरह के कुछ और लोग सार्वजनिक जीवन में आयें और न्याय पर आधारित राज काज के निजाम की स्थापना को .
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Monday, November 30, 2009
राष्ट्रहित के लिए चीन की अगुवाई भी मंज़ूर
शेष नारायण सिंह
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आजकल सबसे अहम् मुद्दा जलवायु परिवर्तन का है. विकसित देशों क्व सघन औद्योगिक तंत्र की वजह से वहां प्रदूषण करने वाली गैसें बहुत ज्यादा निकलती हैं उनकी वजह से पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक्सान को झेलना पड़ता है .. अमरीका सहित विकसित देशों की कोशिश है कि भारत और चीन सहित अन्य विकास शील देशों को इस बात पर राजी कर लिया जाए कि वे अपनी औद्योगीकरण की गति धीमी कर दें जिस से वातावरण पर पड़ने वाला उल्टा असर कम हो जाए.. लेकिन जिन विकासशील देशों में विकास की गति ऐसे मुकाम पर है जहां औद्योगीकारण की प्रक्रिया का तेज़ होना लाजिमी है, वे विकसित देशों की इस राजनीति से परेशान हैं . पिछले कई वर्षों से जलवायु परिवर्तन की कूटनीति दुनिया के देशों के आपसी संबंधों का प्रमुख मुद्दा बन चुकी है . लेकिन इस बार कोपेनहेगन में दिसंबर में होने वाले शिखर सम्मलेन में कुछ ऐसे प्रस्ताव आने की उम्मीद है जो आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन की राजनीति को प्रभावित करेंगें. . त्रिनिदाद में आयोजित राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की सभा में भी जलवायु परिवर्तन का मुद्दा छाया रहा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और रानी एलिज़ाबेथ तो थे ही, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून भी जलवायु परिवर्तन के बुखार की ज़द में थे. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी भी त्रिनिदाद की राजधानी पोर्ट ऑफ़ स्पेन पंहुचे हुए थे, हालांकि उनके वहां होने का कोई तुक नहीं था. . पश्चिमी यूरोप के देशों और अमरीका की कोशिश है कि भारत और चीन समेत उन विकासशील देशों को घेर कर औद्योगिक गैसों के उत्सर्जन के मामले में अपनी सुविधा के हिसाब से राजी कर लिए जाय . पोर्ट ऑफ़ स्पेन में इकठ्ठा हुए ज़्यादातर देश विकासशील माने जाते हैं , कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के अलावा सभी राष्ट्रमंडल देश औद्योगीकरण की दौड़ में पिछड़े हुए हैं . इसलिए उनको राजी करना ज्यादा आसान होगा. बाकी अन्य मंचों पर भी यह अभियान चल रहा है. कम विकसित देशों और अविकसित देशों को वातावरण की शुद्धता के महत्व के पाठ लगातार पढाये जा रहे हैं . विकसित देशों के इस अभियान का नेतृत्व , अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा कर रहे हैं.. उनकी कोशिश है कि भारत सहित उन देशों को अर्दब में लिया जाय जो कोपेनहेगन में औद्योगिक देशों की मर्जी के हिसाब से फैसले में अड़चन डाल सकते हैं . ओबामा की चीन यात्रा को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए. . वहां जाकर उन्होंने जो ऊंची ऊंची बातें की हैं , उनको पूरा कर पाना बहुत ही मुश्किल है लेकिन चीनी नेताओं को खुश करने की गरज से ओबामा महोदय थोडा बहुत हांकने से भी नहीं सकुचाये.
बहरहाल चीज़ें बहुत आसान नहीं हैं . राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की सभा में भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने साफ़ कह दिया कि ऐसी कोई भी बात वे मानने को तैयार नहीं होंगें जो न्यायसंगत न हो . उन्होंने साफ़ कहा कि भारत प्रदूषण करने वाली गैसों में कमी करने के ऐसे किसी भी दस्तावेज़ पर दस्तख़त करने को तैयार है जिसके लक्ष्य महत्वाकांक्षी हों लेकिन शर्त यह है कि उसकी बुनियाद में सबके प्रति न्याय की भावना हो., जो संतुलित हो और जो हर बात को विस्तार से स्पष्ट करता हो. . भारत की कोशिश है कि एक ऐसा समझौता हो जाए जो वैधानिक रूप से सभी पक्षों को बाध्य करता हो. डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि आजकल विकसित देश यह कोशिश कर रहे हैं कि कोपेनहेगन में अगर कानूनी दस्तावेज़ पर दस्तखत नहीं हो सके तो एक राजनीतिक प्रस्ताव से काम चला लिया जाएगा. भारत ने कहा कि अभी बहुत समय है और इस समय का इस्तेमाल एक सही और न्यायपूर्ण प्रस्ताव पर सहमति बनाने के लिए किया जाना चाहिए.. उन्होंने कहा कि कोपेनहेगन में जो कुछ भी हासिल किया जाए उसको बाली एक्शन प्लान के मापदंड के अनुसार ही होना चाहिए.. डा. सिंह ने कहा कि बहुपक्षीय समझौते के लिए निर्धारित एजेंडा बहुत ही स्पष्ट है और उसको घुमाफिरा कर कुछ ख़ास वर्गों के हित में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
पश्चिमी देशों की कोशिश है कि वे एक ऐसा ड्राफ्ट जारी कर दें जो कोपेनहेगन में चर्चा का आधार बन जाए और सारी बहस उसी के इर्द गिर्द घूमती रहे. खबर है कि इस ड्राफ्ट में वह सब कुछ है जो विकसित देश चाहते हैं . यह ड्राफ्ट १ दिसंबर को डेनमार्क की तरफ से जारी किया जाएगा. लेकिन इसकी भनक चीन को लग गयी है और उसने एक ऐसा डाक्यूमेंट तैयार कर लिया है जिसमें उन बातों का उल्लेख किया जा रहा है, जिसके नीचे आकर भारत,चीन , दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील कोई समझौता नहीं करेंगें. . वे चार मुद्दे इस ड्राफ्ट में बहुत ही प्रमुखता से बताये गए हैं .वे चार मुद्दे हैं. पहला - यह चारों देश कभी भी गैसों के उत्सर्जन के बारे में ऐसे किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगें जो कानूनी तौर पर बाध्यकारी हो ., उत्सर्जन के ऐसे किसी प्रस्ताव को नहीं मानेगें जिसके लिए माकूल मुआवज़े का प्रावाधन न हो , अपने देश के औद्योगिक उत्सर्जन पर किसी तरह की जांच या निरीक्षण नहीं मंज़ूर होगा और जलवायु परिवर्तन को किसी तरह के व्यापारिक अवरोध के हथियार के रूप के रूप में इस्तेमाल होने देंगें. , भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी इस चर्चा में शामिल हैं . उन्होंने बताया कि जब चीन के प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ ने शुक्रवार को उन्हें बताया तो उन्होंने उनसे सहमति ज़ाहिर की और कहा कि यह ड्राफ्ट बातचीत शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है . उन्होंने कहा कि चीन ने इस दिशा में एक सक्रिय, सकारात्मक अगुवाई शुरू कर दी है और भारत उस का समर्थन करेगा. .
अमरीका की यात्रा पर गए भारत के प्रधान मंत्री को सामरिक साझेदार के रूप में राजी करने में ओबामा का शायद यह भी उद्देश्य रहा हो कि भारत को कोपेनहेगन में भी अपनी तरफ मोड़ लेंगें तो चीन को दबाना आसान हो जाएगा. लेकिन लगता है कि ऐसा होने नहीं जा रहा है . क्योंकि भारत अपने राष्ट्रीय हित को अमरीका की खुशी के लिए बलिदान नहीं करने वाला है. यह अलग बात है कि सामरिक साझेदारी के आलाप के शुरू होते ही भारत ने परमाणु मसले पर इरान के खिलाफ वोट देकर अपनी वफादारी और मंशा का सबूत दे दिया है .लेकिन जलवायु वाले मुद्दे पर ऐसा नहीं लगता कि भारत अपनी आने वाली पीढ़ियों से दगा करेगा और अमरीका की जी हुजूरी करेगा भारत ने तो एक तरह से ऐलान कर दिया है कि अपने परमपरागत दुश्मन, चीन के साथ मिलकर भी वह राष्ट्रहित के मुद्दों को उठाएगा.
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आजकल सबसे अहम् मुद्दा जलवायु परिवर्तन का है. विकसित देशों क्व सघन औद्योगिक तंत्र की वजह से वहां प्रदूषण करने वाली गैसें बहुत ज्यादा निकलती हैं उनकी वजह से पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुक्सान को झेलना पड़ता है .. अमरीका सहित विकसित देशों की कोशिश है कि भारत और चीन सहित अन्य विकास शील देशों को इस बात पर राजी कर लिया जाए कि वे अपनी औद्योगीकरण की गति धीमी कर दें जिस से वातावरण पर पड़ने वाला उल्टा असर कम हो जाए.. लेकिन जिन विकासशील देशों में विकास की गति ऐसे मुकाम पर है जहां औद्योगीकारण की प्रक्रिया का तेज़ होना लाजिमी है, वे विकसित देशों की इस राजनीति से परेशान हैं . पिछले कई वर्षों से जलवायु परिवर्तन की कूटनीति दुनिया के देशों के आपसी संबंधों का प्रमुख मुद्दा बन चुकी है . लेकिन इस बार कोपेनहेगन में दिसंबर में होने वाले शिखर सम्मलेन में कुछ ऐसे प्रस्ताव आने की उम्मीद है जो आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन की राजनीति को प्रभावित करेंगें. . त्रिनिदाद में आयोजित राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की सभा में भी जलवायु परिवर्तन का मुद्दा छाया रहा. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और रानी एलिज़ाबेथ तो थे ही, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून भी जलवायु परिवर्तन के बुखार की ज़द में थे. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी भी त्रिनिदाद की राजधानी पोर्ट ऑफ़ स्पेन पंहुचे हुए थे, हालांकि उनके वहां होने का कोई तुक नहीं था. . पश्चिमी यूरोप के देशों और अमरीका की कोशिश है कि भारत और चीन समेत उन विकासशील देशों को घेर कर औद्योगिक गैसों के उत्सर्जन के मामले में अपनी सुविधा के हिसाब से राजी कर लिए जाय . पोर्ट ऑफ़ स्पेन में इकठ्ठा हुए ज़्यादातर देश विकासशील माने जाते हैं , कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के अलावा सभी राष्ट्रमंडल देश औद्योगीकरण की दौड़ में पिछड़े हुए हैं . इसलिए उनको राजी करना ज्यादा आसान होगा. बाकी अन्य मंचों पर भी यह अभियान चल रहा है. कम विकसित देशों और अविकसित देशों को वातावरण की शुद्धता के महत्व के पाठ लगातार पढाये जा रहे हैं . विकसित देशों के इस अभियान का नेतृत्व , अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा कर रहे हैं.. उनकी कोशिश है कि भारत सहित उन देशों को अर्दब में लिया जाय जो कोपेनहेगन में औद्योगिक देशों की मर्जी के हिसाब से फैसले में अड़चन डाल सकते हैं . ओबामा की चीन यात्रा को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए. . वहां जाकर उन्होंने जो ऊंची ऊंची बातें की हैं , उनको पूरा कर पाना बहुत ही मुश्किल है लेकिन चीनी नेताओं को खुश करने की गरज से ओबामा महोदय थोडा बहुत हांकने से भी नहीं सकुचाये.
बहरहाल चीज़ें बहुत आसान नहीं हैं . राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की सभा में भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने साफ़ कह दिया कि ऐसी कोई भी बात वे मानने को तैयार नहीं होंगें जो न्यायसंगत न हो . उन्होंने साफ़ कहा कि भारत प्रदूषण करने वाली गैसों में कमी करने के ऐसे किसी भी दस्तावेज़ पर दस्तख़त करने को तैयार है जिसके लक्ष्य महत्वाकांक्षी हों लेकिन शर्त यह है कि उसकी बुनियाद में सबके प्रति न्याय की भावना हो., जो संतुलित हो और जो हर बात को विस्तार से स्पष्ट करता हो. . भारत की कोशिश है कि एक ऐसा समझौता हो जाए जो वैधानिक रूप से सभी पक्षों को बाध्य करता हो. डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि आजकल विकसित देश यह कोशिश कर रहे हैं कि कोपेनहेगन में अगर कानूनी दस्तावेज़ पर दस्तखत नहीं हो सके तो एक राजनीतिक प्रस्ताव से काम चला लिया जाएगा. भारत ने कहा कि अभी बहुत समय है और इस समय का इस्तेमाल एक सही और न्यायपूर्ण प्रस्ताव पर सहमति बनाने के लिए किया जाना चाहिए.. उन्होंने कहा कि कोपेनहेगन में जो कुछ भी हासिल किया जाए उसको बाली एक्शन प्लान के मापदंड के अनुसार ही होना चाहिए.. डा. सिंह ने कहा कि बहुपक्षीय समझौते के लिए निर्धारित एजेंडा बहुत ही स्पष्ट है और उसको घुमाफिरा कर कुछ ख़ास वर्गों के हित में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
पश्चिमी देशों की कोशिश है कि वे एक ऐसा ड्राफ्ट जारी कर दें जो कोपेनहेगन में चर्चा का आधार बन जाए और सारी बहस उसी के इर्द गिर्द घूमती रहे. खबर है कि इस ड्राफ्ट में वह सब कुछ है जो विकसित देश चाहते हैं . यह ड्राफ्ट १ दिसंबर को डेनमार्क की तरफ से जारी किया जाएगा. लेकिन इसकी भनक चीन को लग गयी है और उसने एक ऐसा डाक्यूमेंट तैयार कर लिया है जिसमें उन बातों का उल्लेख किया जा रहा है, जिसके नीचे आकर भारत,चीन , दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील कोई समझौता नहीं करेंगें. . वे चार मुद्दे इस ड्राफ्ट में बहुत ही प्रमुखता से बताये गए हैं .वे चार मुद्दे हैं. पहला - यह चारों देश कभी भी गैसों के उत्सर्जन के बारे में ऐसे किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगें जो कानूनी तौर पर बाध्यकारी हो ., उत्सर्जन के ऐसे किसी प्रस्ताव को नहीं मानेगें जिसके लिए माकूल मुआवज़े का प्रावाधन न हो , अपने देश के औद्योगिक उत्सर्जन पर किसी तरह की जांच या निरीक्षण नहीं मंज़ूर होगा और जलवायु परिवर्तन को किसी तरह के व्यापारिक अवरोध के हथियार के रूप के रूप में इस्तेमाल होने देंगें. , भारत के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी इस चर्चा में शामिल हैं . उन्होंने बताया कि जब चीन के प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ ने शुक्रवार को उन्हें बताया तो उन्होंने उनसे सहमति ज़ाहिर की और कहा कि यह ड्राफ्ट बातचीत शुरू करने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है . उन्होंने कहा कि चीन ने इस दिशा में एक सक्रिय, सकारात्मक अगुवाई शुरू कर दी है और भारत उस का समर्थन करेगा. .
अमरीका की यात्रा पर गए भारत के प्रधान मंत्री को सामरिक साझेदार के रूप में राजी करने में ओबामा का शायद यह भी उद्देश्य रहा हो कि भारत को कोपेनहेगन में भी अपनी तरफ मोड़ लेंगें तो चीन को दबाना आसान हो जाएगा. लेकिन लगता है कि ऐसा होने नहीं जा रहा है . क्योंकि भारत अपने राष्ट्रीय हित को अमरीका की खुशी के लिए बलिदान नहीं करने वाला है. यह अलग बात है कि सामरिक साझेदारी के आलाप के शुरू होते ही भारत ने परमाणु मसले पर इरान के खिलाफ वोट देकर अपनी वफादारी और मंशा का सबूत दे दिया है .लेकिन जलवायु वाले मुद्दे पर ऐसा नहीं लगता कि भारत अपनी आने वाली पीढ़ियों से दगा करेगा और अमरीका की जी हुजूरी करेगा भारत ने तो एक तरह से ऐलान कर दिया है कि अपने परमपरागत दुश्मन, चीन के साथ मिलकर भी वह राष्ट्रहित के मुद्दों को उठाएगा.
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