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Sunday, May 6, 2012

आतंकवाद रोधी संगठन बनाने की गृह मंत्री की कोशिश को लगा राजनीतिक ब्रेक




शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली,५ मई.. केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रिय प्रोजेक्ट, एन सी टी सी पर राजनीतिक ब्रेक लग गया है .सम्मलेन के बाद  गृह मंत्री ने घोषणा के एकी ३ मुख्य मंत्रियों ने एन सी टी सी का विरोध किया जबकि कुछ ने शर्तों के साथ समर्थन किया . उन्होंने यह भी कहा कि  कई मुख्य मंत्रियों ने उसका  समर्थन किया  .एक सवाल के जवाब में उन्होंने साफ़ किया कि एन सी  टी सी को आई बी के अधीन रखने का प्रस्ताव २००१ में गठित ग्रुप आफ मिनिस्टर्स ने  तय किया था. उन दिनों अटल बिहारी  वाजपेयी की सरकार थी.  यह दिलचस्प है कि  आज जिन तीन मुख्यमंत्रियों ने एन सी टी सी का सबसे ज्यादा विरोध किया वे ताल बिहारी वाजपेये एकी सरकार का हिस्सा रह चुके हैं.
 बैठक के बाद पत्रकारों को गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जानकारी दी. उन्होंने कहा कि  आज की बैठक में हुई चर्चा के बाद सरकार विचार करेगी और फैसला  लेगी. उन्होंने कहा कि  एन सी टी सी के गठन के लिए उन्हें संसद की मंजूरी मिली हुई है. आज एन सी टी सी के बारे में हुए मुख्यमंत्रियों एक सम्मलेन के बाद यह तय माना जा रहा  है कि ३  फरवरी  को जिस तरह का नोटिफिकेशन गृह मंत्रलय ने एन सी टी सी की स्थापना के लिए जारी किया था उसमें बड़े पैमाने पर परिवर्तन होगा . हालांकि यह भी सच है कि  केंद्र सरकार एन सी टी  सी के अपने एजेंडे  को आगे बढाने में सफल हो जायेगी क्योंकि प्रधान मंत्री ने अपन भाषण में साफ़ कहा कि  यह बैठक एन सी टी सी को आपरेशनलाइज़ करने के लिए ही बुलाई गयी है.जानकार बताते है कि आज की बैठक के बाद जो बात सबसे ज्यादा बार चर्चा में आई वह एन सी टी सी  को इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधीन रखने को लेकर थी. लगता है कि एन सी टी सी को केंद्र सरकार को इंटेलिजेंस ब्यूरो से अलग करना ही पडेगा एकाध को छोड़कर सभी मुख्य मंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि आतंकवाद से लड़ना बहुत ज़रूरी है और मौजूदा तैयारी के आगे जाकर उस के बारे में कुछ किया जाना चाहिए .पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया और कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह ३ फरवारी वाला अपने वह नोटिफिकेशन वापस ले ले और एन सी टी सी की स्थापना ही न करे. प्रधान मंत्री को चाहिए कि वे राज्यों के मुख्य मंत्रियों से समय समय पर सलाह लेते  रहें और आतंकवाद से मुकाबला राज्यों को ही करने दें.
सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद को रोकने के लिए सामान्य पुलिस की ज़रूरत नहीं होती . उसके लिए बहुत की  कुशल संगठन की ज़रुरत होती है और एन सी टी सी वही संगठन है 
आज की बैठक  में केंद्र सरकार के रुख से लगा कि  वह एन से टी सी में कुछ परिवर्तन कर सकती है .उसकी  कंट्रोल की व्यवस्था में तो कुछ ढील देने  को तैयार है लेकिन ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी की योजना  को वह पूरी तरह से रोकने की कोशिश करेगी  .काले रंग के कवर में तैयार किये गए अपने लिखित भाषण में गुजरात के मुख्य मंत्री  नरेंद्र मोदी ने आज की बैठक में केंद्र सरकार को हर तरह से घेरा .उन्होंने सवाल  उठाया कि क्या एक राष्ट्र के रूप में हम संवैधानिक व्यवस्थाओं  और केंद्र राज्य संबंधो की ज़रुरत  पर अब विश्वास नहीं करते . उन्होंने एन सी टी सी   सम्मलेन के बहाने पूरी तरह से राजनीतिक माहौल बनाया  और  मुद्दों को कांग्रेस बनाम बीजेपी  बनाने की कोशिश की. आतंकवाद के शिकार  हुए राज्य छत्तीसगढ़ एक मुख्य मंत्री रमन सिंह ने कहा  कि राष्ट्रीय स्तर पर सूचनाओं के  संकलन, आंकड़ों के रखरखाव ,इनके विश्लेषण सभी राज्यों के बीच इनके आदान प्रदान तथा सभी के सम्मिलित प्रयास से की जाने वाली कार्यवाही और मानिटरिंग के लिए एक  एजेंसी आवश्यक है .लेकिन उन्होंने ३ फरवरी के आदेश का विरोध किया और कहा कि  ऐसी महत्वपूर्ण संस्था संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित की जाए तो ज्यादा  प्रभावी और स्थायी होगी तथा उत्तरदायी भी.
 
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव बैठक में खुद नहीं आये थे .  उन्होंने एक मंत्री को भेज दिया था. राज्य के मुख्य सचिव भी नहीं आये थे . लेकिन उनका भाषण सम्मलेन में बांटा  गया जिसमें उन्होंने  कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एन सी टी सी के लिए वर्तमान में जो व्यवस्था प्रस्तावित की गयी है वह सही नहीं है . एन सी टी सी को इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधीन कर दिया गया है और उसकी  राज्यों की इकाइयों को स्वतंत्र काम करने की व्यवस्था है . यह राज्य की पुलिस के काम में अतिक्रमण है . उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि एन सी टी सी मूलतः इंटेलिजेंस इकठ्ठा  करने और उसके विश्लेषण आदि पर ही ध्यान दे  . कार्रवाई का   काम अधिकार राज्य सरकार  ही करे. जहां ज़रूरी हो राज्य सरकार के अधिकारी  एन सी टी सी से सहयोग हासिल करे.
 
 दिन भर यही माहौल नज़र आया कि सभी मुख्य मंत्री  एन सी टी सी के सवाल पर सहमत हैं . ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के   विरोध के कारणों की तरह तरह की व्याख्याएं होती रहीं.  . कई सरकारी अफसरों ने यह संकेत दिया कि मुख्य मंत्री लोग अपने तैयारशुदा भाषणों में  जो विरोध कर भी रहे हैं वह मुकामी नौकरशाही की चिंताएं हैं क्योंकि एन सी टी सी के आ जाने के बाद पुलिसिंग की उनकी क्षमता  पर भी सबकी नज़र रहा करेगी जहां अब तक उनका एकछत्र साम्राज्य  बना हुआ है..
प्रधान मंत्री ने अपने  भाषण में कहा कि केंद्र सरकार  राज्यों के साथ मिलकर काम करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है .राज्यों को पुलिस और इंटेलिजेंस व्यवस्था  को दुरुस्त करने  के लिए आर्थिक सहायता भी दी जाती रही है ,उन्होंने  कहा कि  एन सी टी सी की स्थापना ग्रुप आफ मिनिस्टर्स की सिफारिशों के बाद और उसी के आधार  पर की गयी है . हालांकि उन्होंने  आज इस बात का उल्लेख नहीं किया लेकिन यह ग्रुप आफ मिनिस्टर्स संसद पर आतंकवादी  हमलों के बाद वाजपेयी सरकार के दौरान बनाया गया था. कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ के बाद भी इंटेलिजेंस की सफलता के बाद वाजपेयी सरकार ने इस तरह की संस्था की बात शुरू की थी.
गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि आतंकवाद कोई सीमा नहीं मानता इसलिए  उसको किसी एक राज्य की सीमा में बांधने का  कोई मतलब नहीं है .आतंकवाद अब कई रास्तों से आता है . समुद्र , आसमान, ज़मीन और आर्थिक आतंकवाद के बारे में तो सबको मालूम है लेकिन अब साइबर स्पेस में भी आतंकवाद है . उसको रोकना  किसी भी देश की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए . . इसलिए  अब तो हर तरह की  टेक्नालोजी का इस्तेमाल करके हमें अपने सरकारी  दस्तावेजों, और बैंकिंग क्षेत्र की सुरक्षा का  बंदोबस्त करना चाहिये . उन्होंने कहा कि हमारे देश की समुद्री  सीमा साढ़े सात हज़ार  किलोमीटर है जबकि १५ हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा अन्तर राष्ट्रीय बार्डर  है . आतंक का मुख्य श्रोत वही है .. उसको कंट्रोल करने में केंद्र सरकार की ही सबसे कारगर भूमिका हो सकती है उन्होंने कहा कि  इस बात की चिंता करने के ज़रुरत नहीं  कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकार छीन लेगी. बल्कि ज्यों ज्यों राज्यों के  आतंक से लड़ने का तंत्र मज़बूत होता  जायेगा . केंद्र सरकार अपने आपको  धीरे धीरे उस से अलग कर लेगी.

Saturday, September 24, 2011

पी चिदंबरम को बचाने की डगर पर बार बार फिसल रही है कांग्रेस

शेष नारायण सिंह


नई दिल्ली,२३ सितम्बर.पी चिदंबरम के बचाव के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है .प्रणब मुखर्जी के उस नोट ने ज़रूरी तूफान मचा दिया है . बीजेपी ने पी चिदंबरम के २ जी मामले में कथित रूप से शामिल होने की बात को राजनीति और मीडिया के एजेंडे पर लाने में कोई कसर नहीं छोडी है . हर संभावित मंच पर आज बीजेपी ने पी चिदंबरम के माले को परवान चढाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास मामले में तकनीकी तौर पर बचाव करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. कांग्रेस प्रवक्ता लगभग गिडगिडाते हुए बोले कि बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की मुसीबत में उसे परेशान करने का अभियान शुरू कर दिया है जो ठीक नहीं है .
बीजेपी ने आज पी चिदंबरम के मामले में पूरी तरह से हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि २ जी मामले में प्रधान मंत्री की हर बात को नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने पहले तो ए राजा को भी निर्दोष बताया था लकिन बाद में उनकी सरकार की एजेंसियों ने जांच में उन्हें घोटाले में लिप्त पाया और आजकल वे जेल में हैं .बीजेपी का दावा है कि २ जी घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है औत्र उसकी पारदर्शी जांच ज़रूरी है . बीजेपी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी मुख्यालय की अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा कि पी चिदंबरम को क्या इस लिए बचाया जा रहा है कि कहीं २ जी घोटाले की जांच की लपटें प्रधान मंत्री कार्यालय तक न पंहुच जाएँ . इस ब्रीफिंग में बीजेपी प्रवक्ता ने सी बी आई की भूमिका को भी विवाद के दायरे में लेने की कोशिश की. बीजेपी ने प्रधान मंत्री से मांग की कि पी चिदंबरम को क्लीन चिट देने से बात ख़त्म नहीं हो जायेगी. उन्हें चाहिए वे चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई करे. मामले को कोर्ट में बता कर बचने की सरकार की कोशिश अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता के पास बीजेपी के आरोपों का कोई जवाब नहीं था . आज कांग्रेस के तरफ से मोर्चा संभाल रहे मनीष तिवारी ने बीजेपी के राज के दौरान हुए दूरसंचार घोटालों का बार बार उल्लेख किया और दावा किया कि मौजूदा २ जी घोटाले के बीज अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री रहते हुए लाई गयी दूरसंचार पालिसी १९९९ में मौजूद थे. उन्होंने ने साफ़ कहा कि एन दी ए सरकार के दौरान भी दूरसंचार पालिसी का बार उल्लंघन हुआ . उन्होंने कहा कि बीजेपी को चाहिए कि अपने गिरेबान में झाँक कर देखे और उसके बाद कांग्रेस की आलोचना करे . जब उनको बताया गया कि जब ए राजा की अगुवाई में २ जी घोटाला हो रहा था उसी दौर में वित्त मंत्रालय के ने आपत्ति की थी .क्या कारण है कि उस waqt के वित्त मंत्री ने नौअक्र्शाही के आदेश को ओवर रूल l करके ए राजा को घोटाला करने दिया, तो कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर वही संयुक्त संसदीय समिति के अंदर विचार होने की बात करके मामले को टालने की कोशिश की. जब पूछा गया कि तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जब तक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के नतीजे न आ जाएँ तब तक इस मामले में कोई खबर न लिखी जाए तो वे मामले को और भी बहुत लम्बे दायरे में घेरकर पेश करने की कोशिश करते नज़र आये .

Friday, March 25, 2011

पी चिदंबरम को बर्खास्त करने की मांग ,दोनों सदनों में हंगामा

शेष नारायण सिंह

भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने २००९ में नई दिल्ली में तैनात अमरीकी राजदूत को बताया कि अगर पूर्व और उत्तर भारत के लोग भारत का हिस्सा न होते तो भारत एक बहुत ज्यादा विकसित देश होता. भारत के गृहमंत्री का यह बयान हर तरह से निंदा करने लायक है . वैसे भी वे बहुत वर्षों से दिल्ली की काकटेल सर्किट के सदस्य हैं जिसमें अभी तक बिहारी शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है . वे दक्षिण से चुनकर ज़रूर आते हैं लेकिन उन्हें दक्षिण भारतीय नहीं कहा जा सकता . वे दरअसल दिल्ली में रहने वाली उस जाति के सदस्य हैं जिनके पूर्वज या तो अंग्रेजों के चाकर थे, उनके जी हुज़ूर थे या अंग्रेजों के राज में दिल्ली में दलाली वगैरह किया करते थे. पिछले साठ वर्षों में बाकी भारत से जो लोग भी दिल्ली आये उनकी एक बड़ी संख्या के लोग इसी बिरादरी की सदस्यता लेने के लिए व्याकुल रहते रहे हैं . इस वर्ग के लोगों को किसी भी प्रदेश या किसी भी वर्ग का कहना उस वर्ग का अपमान होगा. इनकी बिरादरी बहुत ही छोटी है . इसमें आम तौर पर नई भर्ती नहीं होती. कुछ ऐसे लड़के जो बिहार ,ओडिशा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मूल निवासी होते हैं और आई ए एस या इनकम टैक्स जैसी नौकरियों में सिविल सर्विस परीक्षा पास करके चुन लिए जाते हैं , उनको शादी व्याह के चक्कर में फंसाकर इस काकटेल सर्किट वाले अपने साथ मिला अलेते हैं . बाद में उनके बाल बच्चे भी इसी तरह की ज़िंदगी के आदी हो जाते हैं और वे भी बिहारी शंब्द को बतौर गाली इस्तेमाल करने लगते हैं . दिल्ली शहर में आई ए एस या और नौकरियों में बहुत सारे ऐसे अफसर मिल जायेगें जिनकी शादी बचपन में ही हो गयी थी लेकिन बाद में बड़ी नौकरी में चुन लिए जाने के बाद काकटेल सर्किट वालों ने उन्हें फंसाया और दुबारा शादी करवा दी. उत्तर प्रदेश और बिहार का होने के बावजूद भी इन लोगों की जो औलादें है वे भी इसी दिल्ली की काकटेलजीवी बिरादरी के तरह बात करते पाए जाती हैं .. करीब तीस साल पहले तो यह बीमारी बहुत ही भयानक थी . उस दौर में चिदंबरम की उम्र के लोग यही कोई तीस पैंतीस साल के थे . चिदंबरम का अमरीकी आका को दिया गया बयान उनकी उसी मानसिकता की खुरचन है . इस तरह की बात करने वाले लोग आम तौर पर बिना किसी सोच समझ के ही यह बयान दे देते हैं .उन्हें मालूम नहीं रहता कि दुनिया कितनी बदल गयी है . ऐसे लोग जब पकडे जाते हैं तो कहते हैं कि वह बात तो मैंने निश्चिन्त भाव से की गई किसी बातचीत के दौरान कही थी. इनसे सवाल पूछा जाना चाहिए कि आप जब औपचारिक नहीं होते तो क्या गाली गलौज की भाषा में बात करते हैं . बहरहाल जो बात सबसे ज्यादा संभव लगती है वह यह है कि इस तरह की बातचीत करने वाले किसी बीमारी का शिकार होते हैं और उन्हें मानसिक रोगी मानकर उनकी बात का विश्लेषण किया जाना चाहिए . चिदंबरम के इस गैरज़िम्मेदार बयान पर उन्हें आज संसद के दोनों ही सदनों में लथेरा गया और सरकार को उनकी वजह से खिसियाहट झेलना पड़ा.
उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को घटिया बताने के पहले इन लोगों को सोचना चाहिए कि इन दो राज्यों का योगदान भारत के राजनीतिक विकास में सबसे ज्यादा है . महात्मा गाँधी भी अंतर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वमान्य नेता बनने के पहले चंपारण गए थे .वे राष्ट्रीय स्तर के नेता तभी बने जब उन्हें इस इलाके ने स्वीकार किया . जवाहलाल नेहरू का योगदान भारत की राजनीति में किसी से कम नहीं है. आज देश की सभी बड़ी संस्थाओं में इस इलाके से आये लोगों की भूमिका कम नहीं है. पी चिदंबरम को यह भी याद रखना चाहिए कि वे जिस सामंती मानसिकता में रहते हैं वह कब की ख़त्म हो चुकी है आज जिन लोगों के समर्थन से कांग्रेस सत्ता में हैं उनके पूर्वज दलाल नहीं थे.अंग्रेजों के जी हुजूर नहीं थे और किसी की दी हुई रोटी को तिरस्कार की नज़र से देखते थे , जिन लालू प्रसाद , मायावती, मुलायम सिंह यादव की पार्टियों के कृपा से आज पी चिदंबरम गृह मंत्री हैं , उन लोगों के पूर्वज अपनी मेहनत की कमाई खाते थे और दिल्ली के दलालों के पूर्वज उनके पूर्वजों का शोषण करते थे . इसलिए किसी तरह की गैरजिम्मेदार बात करने के पहले उन्हें अपने इन नए अन्न दाताओं के गुस्से का ध्यान कर लेना चाहिए . अगर चिदंबरम जैसे लोगों को यह औकात बोध रहे तो आने वाले वक़्त में कांग्रेस भी आराम से रहेगी और पी चिदंबरम की बर्खास्तगी की मांग भी नहीं होगी.

Thursday, August 26, 2010

अगर एक मंत्री भी ईमानदार हो तो बदल सकते हैं हालात

शेष नारायण सिंह

अगर दिल्ली दरबार में एक मंत्री भी अपना काम इमानदारी से करने का फैसला कर ले तो बहुत कुछ बदल सकता है . आज के ६३ साल पहले व्यवस्था बदल देने के लिए सत्ता में आई कांग्रेस के शुरुआती मंत्री तो बहुत ही इमानदार थे ,शायद इसीलिये बहुत सारी चीज़ें ऐसी हुईं जिनकी उम्मीद आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले वीरों ने देखी थी . लेकिन वक़्त के साथ बेईमानों की संख्या बढ़ने लगी और बहुत सारे फैसले पैसे के बल पर होने लगे. पिछले २० वर्षों से तो दिल्ली दरबार में ऐसा माहौल है कि पूंजीपति वर्ग जो चाहे करवा सकता है . सरकार के मंत्रियों की हालत यह है कि किसी भी फैसले को बदल देने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता . घूस पात देकर खरबपति बनने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि इसी वजह से हो रही है . ऐसा ही मामला उस आदमी का है जो मुंबई में कबाड़े का काम करता था लेकिन आज देश के सबसे समृद्ध भारतीयों में उसकी गिनती होने लगी है . इस तरह के उद्यमियों की खास बात यह है कि ये लोग सभी पार्टियों में बराबर की पैठ रखते हैं . ताज़ा मामला स्टरलाईट और वेदान्त अल्युमिनियम का है जिनकी अपने आपको को छः गुना करने की योजनाओं को इमानदारी का झटका लग गया है क्योंकि केंद्र सरकार के एक मंत्री ने तय कर लिया कि नियम कानून में हेराफेरी करके किसी को लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती. वेदान्त अल्युमिनियम के मालिक अनिल अग्रवाल की कंपनी में कभी गृहमंत्री पी चिदंबरम निदेशक रह चुके हैं और एन डी ए की सरकार के एक मंत्री या कई मंत्रियों ने उन्हें माटी के मोल भारत की सबसे पुरानी सरकारी अल्युमिनियम कंपनी बेच दी थी. दरअसल उसी बालको( भारत अल्युमिनियम कंपनी ) को सस्ते खरीद कर ही उन्होंने सम्पन्नता की अपनी दौड़ को ताक़त दी थी. उस दौर में कांग्रेस ने उनके काम का कोई विरोध नहीं किया था क्योंकि उनकी कंपनी में कांग्रेस के ताक़तवर नेता, पी चिदंबरम एक निदेशक के रूप में काम कर रहे थे. उडीसा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक से भी उनके बहुत अच्छे रिश्ते थे . ज़ाहिर है उनकी मनमानी की गाड़ी अपनी मर्जी से बेख़ौफ़ चल रही थी . लेकिन अब सब कुछ गड़बड़ हो चुका है . पर्यावरण मंत्री ने वेदान्त कंपनी और उसके मालिक को कानून की इज्ज़त करने का ककहरा पढ़ा दिया है . उडीसा में औने पौने दामों में मिले बाक्साईट की खुदाई के लाइसेंसों को सरकार ने गैरकानूनी करार दे दिया है और अब उनकी रफ़्तार लगभग शून्य पर आ गयी है . अजीब बात यह है कि उनकी लक्ष्मी की साधना में सरकारी क्षेत्र की कंपनी ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन ने भी कारिन्दा बनने का फैसला कर लिया था . यह भी माना जाता है कि दिल्ली दरबार से उन्हें बिना किसी रोक टोक के चलते रहने का आशीर्वाद मिला हुआ था . लेकिन अब बात बिगड़ चुकी है . पर्यावरण मंत्री, जयराम रमेश ने ओडीसा माइनिंग कारपोरेशन का वह लाइसेंस रद्द कर दिया है जो नियमगिरि पहाड़ियों से बाक्साईट की खुदाई करके अनिल अग्रवाल की वेदान्त अल्युमिनियम की लान्जीगढ़ रिफाइनरी को बाक्साईट सप्लाई करने के लिए दिया गया था. मंत्री ने नए लाइसेंस को तो रद्द कर ही दिया है एक लाख टन की क्षमता वाले प्लांट को मिले पुराने लाइसेंस को रद्द करने के लिए भी कार्रवाई शुरू कर दिया है .तीन जिलों में फ़ैली बाक्साईट की इन खदानों में डोंगरिया और खूँटिया जाति के आदिवासी रहते हैं और उनकी जीविका इन्हीं जंगलों की वजह से चलती है . वैसे भी पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि कि अंधाधुंध खुदाई से इस इलाके के वातावरण को जो नुकसान होगा उका कोई हिसाब ही नहीं लगाया जा सकता.
इस सारे मामले में मीडिया के एक हिस्से का रोल बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण रहा है , खासकर टेलिविज़न न्यूज़ के एक वर्ग के लोग इस तरह बात कर रहे हैं मानों अगर वेदान्त का आर्थिक नुकसान हो गया तो सर्व नाश हो जाएगा. उनकी तरफ से अनिल अग्रवाल की कंपनियों के शेयर में हो रही गिरावट को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे दुनिया पर कोई भारी संकट आ गया है . ज़ाहिर है कि सरकार ,राजनीतिक दल और मीडिया सब की मदद से आम आदमी, खासकर आदिवासी भारतीयों की संपत्ति को हड़प कर यह कम्पनियां सम्पन्नता के इस मुकाम तक पंहुची हैं . ज़रुरत इस बात की है कि जयराम रमेश की तरह के कुछ और लोग सार्वजनिक जीवन में आयें और न्याय पर आधारित राज काज के निजाम की स्थापना को .