Wednesday, September 14, 2011

चिदंबरम बोले --नक्सलवादी हिंसा से लड़ने का काम राज्य सरकारों का है .

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली,१३ सितम्बर. गृह मंत्री पी चिदंबरम का दावा है कि देश की शान्ति और कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा ख़तरा नक्सलवाद से है . कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में चल रहे आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग मारे जाते हैं , नक्सलवादी आतंकी उस से दस गुना ज्यादा लोगों की जान ले लेते हैं . नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक सभा में गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के अन्य कारनामों के अंजाम देने वालों का सीमित लक्ष्य है . वे सरकार से कुछ सुविधाएं चाहते हैं . शासन की मौजूदा व्यवस्था में अपनी भागीदारी चाहते हैं लेकिन नक्सल आन्दोलन में लगे हुए लोग पूरी सरकार को ही हटा कर अपनी तानाशाही कायम करना चाहते हैं . उनके पास गुरिल्ला फौज है और वे एक विचार धारा को लागू करने के लिए आतंक का रास्ता अपना रहे हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस समस्या से जूझने में राज्य सरकारों की मदद कर सकती है लेकिन असली प्रयास तो राज्य सरकार की तरफ से ही किया जाना चाहिए . ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने गृह मंत्री से अनुरोध किया था कि नक्सल प्रभावित इलाकों में चाल रहे विकास कार्यों , खासकर प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए सी आर पी एफ की और अधिक सक्रिय भागी दारी को सुनिश्चित करें. गृह मंत्री ने कहा कि यह काम इतना आसान नहीं है .सी आर पी एफ को संतरी ड्यूटी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता , वह एक फाइटिंग फ़ोर्स है . लेकिन गृहमंत्री ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सी आर पी एफ की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सी आर पी एफ में एक ऐसी शाखा बनाई जा रही है जिसका मुख्य काम इंजीनियरिंग से सम्बंधित होगा.और उसका इस्तेमाल ग्राम सड़क परियोजना में किया जा सकता है लेकिन इस शाक्षा को काम लायक बनाने में कम स कम दो साल लगेया.

नक्सलवादी हिंसा को रोकने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि उन लोगों से बात ही नहीं की जा सकती. वे संविधान को नहीं मानते . लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को जनविरोधी मानते हैं . इसलिए नक्सल हिंसा को काबू में करने के लिए वे तरीके कारगर नहीं होंगें जो आम तौर पर कानून व्यवस्था की समस्या को हल करने के लिए अपनाए जाते हैं .लेकिन सरकार को शान्ति तो कायम करनी ही है इसलिए ज़रूरी है कि नक्सलवादी हिंसा को रोकने के लिए उन इलाकों के लोगों को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए जहां पर नक्सल वादी आतंकियों का प्रभाव है .
गृह मंत्री आज नई दिल्ली में आयोजित नक्सल आतंकवाद से प्रभावित ६० जिलों के कलेक्टरों की एक वर्कशाप में बोल रहे थे. उन्होंने आंकड़े देकर बताया कि इस साल के आठ महीनों में कश्मीर में २७ सिविलियन और पूर्वोत्तर भारत में ४६ सिविलियन मारे गए हैं जबकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में १९७ सिविलियन मारे गए हैं.इसी तरह पूर्वोत्तर भारत में २७ सुरक्षा कर्मी मारे गए जबकि नक्सलियों ने १०९ सुरक्षा कर्मियों की ह्त्या की . लेकिन गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा कि हर तरह की हिंसा का मुकाबला करना राज्य सरकारों का ज़िम्मा है . उन्होंने कलेक्टरों से कहा कि आप लोग अपनी सरकारों से उतनी बात नहीं करते जितनी कि केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं. राज्य में शान्ति और कानून व्यवस्था के काममें गृह मंत्रालय केवल मदद कर सकता है . लेकिन असली काम तो राज्य सरकारों को ही करना चाहिए

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