Showing posts with label रथयात्रा. Show all posts
Showing posts with label रथयात्रा. Show all posts

Saturday, September 10, 2011

आडवाणी की नई रथयात्रा के निशाने पर अन्ना हजारे भी हैं और गडकरी भी

शेष नारायण सिंह

बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के पूर्व प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवाणी ने एक और रथयात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है .इसके पहले आडवाणी जी राम जन्मभूमि रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके हैं. आजकल खाली हैं क्योंकि लोकसभा में सारा फोकस विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पर रहता है . हद तो तब हो गयी जब अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें ८ सितमबर को भाषण देने से रोक दिया . जब आडवाणी जी नहीं माने तो अध्यक्ष ने आदेश दिया कि इनका बोला हुआ कुछ भी रिकार्ड नहीं किया जाएगा. उनके सामने लगा हुआ माइक भी लोकसभा के कर्मचारियों ने बंद करवा दिया . आडवाणी जी की वरिष्ठता का कोई भी नेता अभी तक के इतिहास में इस तरह के आचरण का दोषी नहीं पाया गया है . उनकी पार्टी के लोगों ने अध्यक्ष के आदेश का बुरा माना और संसद से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए. वहीं संसद के परिसर में स्थापित की गयी महात्मा गाँधी की प्रतिमा के सामने खड़े होकरनारे लगाने लगे. लेकिन आडवाणी जी के ४० साल के संसदीय जीवन के इतिहास में एक अप्रिय प्रकरण तो बाकायदा जुड़ चुका था. . यह बात बीजेपी वालों को खल गयी . दोपहर बाद बीजेपी ने पलट वार किया और आडवाणी जी की प्रेस कानफरेंस बुला दी जहां आडवाणी जी ने ऐलान किया कि वे अब रथयात्रा निकालेगें .श्री आडवाणी जब भी रथयात्रा की घोषणा करते हैं ,आमतौर पर सरकारें दहल जाती हैं उनकी बहुचर्चित राम जन्म भूमि रथ यात्रा को बीते बीस साल हो गए है लेकिन उस यात्रा के रूट पर उसके बाद हुए दंगे आज भी लोगों को डरा देते हैं . देश हिल उठता . हालांकि उसके बाद भी आडवानी जी ने कई यात्राएं कीं लेकिन उन यात्राओं का वह प्रोफाइल नहीं बन सकता जो सोमनाथ से अयोध्या वाया मुंबई और कर्नाटक वाली यात्रा का बना था .राम जन्मभूमि रथ यात्रा के बाद आडवाणी जी ने जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा नाम की रथ यात्राएं कीं लेकिन वे यात्राएं कोई राजनीतिक असर डालने में नाकामयाब रहीं

लाल कृष्ण आडवाणी की इस यात्रा ने बहुत सारे राजनीतिक सवालों को सामने ला दिया . संसद भवन के एक कमरे में जब श्री आडवाणी अपनी रथ यात्रा की घोषणा की घोषणा कर रहे थे तो उनकी पार्टी के अध्यक्ष वहां मौजूद नहीं थे. आडवाणी जी ने बार बार इस बात का उल्लेख किया कि उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष जी से पूछ कर ही इस यात्रा की घोषणा की है . उनकी बार बार की यह उक्ति पत्रकारों के दिमाग में तरह तरह के सवाल पैदा कर रही थी.उनके साथ मौजूद नेताओं पर नज़र डालें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ़ हो जाती है . आडवाणी जी के दोनों तरफ सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अनंत कुमार नज़र आ रहे थे . पार्टी के कुछ छोटे नेता भी थे . लेकिन आडवानी विरोधी गुटों का कोई भी नेता वहां नहीं था. राजनाथ सिंह नहीं थे , मुरली मनोहर जोशी नहीं थे या आडवाणी विरोधी किसी गुट का कोई नेता वहां नहीं था. ज़ाहिर है कि इस यात्रा से वे खतरे नहीं हैं जो उनकी १९९१ वाली यात्रा से थे .उस यात्रा में तो पूरी बीजेपी और पूरा आर एस एस साथ था .इसलिए संभावना है कि उनकी बाद वाली यात्राओं की तरह ही यह यात्रा भी रस्म अदायगी ही साबित होगी . लेकिन उनकी इस यात्रा से बीजेपी के अंदर चल रहे घमासान का अंदाज़ लग जाता है . आर एस एस ने इस बार साफ़ कर दिया है कि वह २०१४ के लोकसभा चुनावों के पहले किसी भी व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगा. नागपुर के फरमाबरदार बीजेपी अध्यक्ष ने भी बार बार कहा है कि इस बार उनकी पार्टी किसी को भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनायेगी. इस फैसले का मतलब यह तो है कि अभी पार्टी और आर एस एस के आलाकमान ने यह तय नहीं किया है कि अगर २०१४ में सरकार बनाने का मौक़ा मिला तो सोचा जाएगा कि किसे प्रधानमंत्री बनाया जाय . यह तो सीधा अर्थ है . इस के अलावा भी इस घोषणा के कई अर्थ हैं . उन बहुत सारे अर्थों में एक यह भी है कि आर एस एस और बीजेपी लाल कृष्ण आडवाणी को १०१४ में प्रधानमंत्री पद के लिए विचार नहीं करेगें . यह बात खलने वाली है . सही बात यह है कि यह बात लोकसभा में आडवानी को बोलने देने वाले अपमान से जादा तकलीफ देह है . लेकिन आडवाणी भी हार मानने वाले नहीं हैं . उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर अपने आप को बीजेपी सबे महत्वपूर्ण चेहरा सिद्ध करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया . प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने बताया कि अभी कोई कोई तैयारी नहीं हुई है . यानी अभी यात्रा का नाम नहीं तय किया गया है .अभी उसका रूट नहीं तय किया गया है , अभी उसकी कोई शुरुआती रूपरेखा भी नहीं बनायी गयी है. बस केवल ऐलान किया जा रहा है . लगता है कि इस विषय पर किसी और यात्रा की घोषणा कहीं और से होने वाली थी . अपनी तरफ से यात्रा की घोषणा करके लाल कृष्ण आडवाणी ने अन्य किसी की पहल की संभावना को रोक दिया है .

दिलचस्प बात यह है कि आडवाणी ने यह यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ निकालने की घोषणा की है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या यह यात्रा रेड्डी बंधुओं के प्रभाव क्षेत्र बेल्लारी और नरेंद्र मोदी शासित गुजरात के अहमदाबाद से भी निकलेंगी तो आडवाणी जी ने कहा कि इस पर फैसला अभी नहीं किया गया है. इस बात को वे केवल सुझाव के रूप में लेने को तैयार थे. इसका भावार्थ यह हुआ कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व में चल रहे घमासान के नतीजे को तो अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी, और बेल्लारी वाले रेड्डी बंधुओं को नाराज़ करने की अभी उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही है . इस यात्रा से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए अन्ना हजारे के आयोजनों के स्वाभाविक नेता बनने की जो इच्छा आडवाणी जी मन में जागी है , वे उसे तुरंत भुना लेना चाहते हैं . ऐसा करने के कई फायदे हैं .. अन्ना हजारे ने जो माहौल बनाया है और भ्रष्टाचार विर्रोधियों की जो बड़ी जमात देश में खडी हो गयी है अब आडवाणी उसके स्वाभाविक नेता बन जायेगें . दूसरी बात बीजेपी में वे नितिन गडकरी को हमेशा के लिए हाशिये के सिपाही के रूप में फिक्स करने में सफल हो जायेगें . इस तरह से वह परम्परा भी बनी रहेगी कि आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ कोई भी बीजेपी नेता पार्टी का अध्यक्ष बन कर अपना अधिकार नहीं स्थापित कर सकता . राजनाथ सिंह .और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को आडवाणी जी ने नहीं जमने दिया था . नितिन गडकरी तो इन लोगों की तुलना में मामूली नेता है .