शेष नारायण सिंह और विजय पाण्डेय
आम तौर पर बसपा का गढ़ माने जाने वाले सुलतान पुर की राजनीति में डॉ मोहम्मद अयूब की पीस पार्टी ने एक नया आयाम जोड़ दिया है . इस जिले की पांच सीटों में से अब तक चार सीटें बसपा के पास हैं .इस बार भी आम तौर पर माना जा रहा था कि ज़्यादातर सीटों पर मुकाबला बसपा और सपा के बीच होगा लेकिन पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने लम्भुआ विधान सभा सीट से अपने ठाकुर उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके मुक़म्मल तरीके से लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है .लोकसभा चुनाव २००९ में बहुत दिन बाद कांग्रेसी उम्मीदवार की जीत के बाद माना जा रहा था कि इस इलाके में कांग्रेस की भी थोड़ी बहुत मौजूदगी लेकिन ऐसा कहीं होता कहीं नहीं दिख रहा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है, उसने राम जन्मभूमि के आन्दोलन के बाद हुए दो चुनावों में सफलता पायी थी लेकिन अब वह बहुत दूर कहीं हाशिये पर चली गयी . लेकिन ऐसा लगता है कि पीस पार्टी की नई पहल के बाद समीकरण बिलकुल बदल जायेगें.
सुलतान पुर जिले में पिछले कई वर्षों से लोक सभा सीट बीजेपी और बी एस पी के कमज़ोर उम्मीदवारों के बीच बंटती रही है .बीजेपी ने कभी किसी बाबा को टिकट दे दिया तो कभी किसी पुलिस वाले को लेकिन जनसमर्थन का सैलाब ऐसा था कि पार्टी जीत जाती थी. जब राम जन्मभूमि वाला राजनीतिक मुद्दा कमज़ोर पड़ा तो बी एस पी के ऐसे उम्मीदवार जीतने लगे जिनका कहीं किसी ने नाम तक न सुना था. बी एस पी के पक्के वोटों की ताक़त पर ऐसे लोग जीत गए जिनका राजनीतिक मजबूती के बारे में ज्ञान लगभग शून्य था. ऐसे ही एक बी एस पी सांसद को हराने के लिए २००९ में लगभग पूरा जिला एकजुट हो गया और कांग्रेस के एक मज़बूत नेता को चुनाव जिता दिया और संजय गांधी और राजीव गाँधी युग के ताक़तवर कांग्रेस नेता , संजय सिंह एम पी बन गए.लेकिन उनकी जीत के बाद भी पार्टी को कोई मजबूती नहीं मिल सकी क्योंकि उनके आलाकमान ने उन्हें दिल्ली में कोई हैसियत नहीं दी.आज कांग्रेस की हालात खस्ता है . हालांकि पार्टी के बहुत बड़े नेता आस्कर फर्नांडीज़ के सहयोगी बी पी सिंह दिल्ली में माहौल बनाए हुए हैं कि वे जयसिंह पुर विधान सभा क्षेत्र से चुनाव जीत सकते हैं लेकिन क्षेत्र में उनकी ज़मीनी पहचान कुछ नहीं हैं . लोग उनको गंम्भीरता से नहीं ले रहे हैं .जयसिंह पुर विधान सभा क्षेत्र में एक अजीब बात देखने में आई . कांगेस के लिए टिकट की दौड़ में मुंबई के एक व्यापारी भी हैं.कहते हैं कि वे सीधे राहुल गाँधी के दरबार से टिकट पा जायेगें . इलाके के लोग उसको गंभीरता से ले रहे हैं . उसका एक भाई जिला पंचायत का सदस्य बनने में सफल रहा था . पूरे जिले में कांग्रेस के उम्मीदवारों में इनका नाम ही मुकाबले में मौजूद रह सकने लायक उम्मीद्वारों में लिया जा रहा है. हालांकि आई आई टी से बी टेक पास करने वाला एक नौजवान भी लम्भुआ से कांग्रेस के टिकट की कोशिश कर रहा है लेकिन जब कांग्रेस की ही हालत खस्ता है तो उसके उम्मीदवारों की क्या बिसात .
जिले में चर्चा है कि बी एस पी के मौजूदा विधायक चन्द्रभद्र सिंह बीजेपी के साथ भी जा सकते हैं . आकलन यह है कि अगर वे बीजेपी में जाते हैं तो बीजेपी को मजबूती मिलेगी . लेकिन यह बात चर्चा के स्तर पर ही है . इस बात को गंभीरता से लेने वालों की भारी कमी है . सुलतान पुर शहर से बीजेपी के कुछ ऐसे उम्मीदवार सुनायी पड़ रहे हैं जो जिले में बीजेपी की मौजूदगी का माहौल बना सकते हैं . हाँ ,अगर और पार्टियों ने उलटे सीधे टिकट दे दिए तो शहर की सीट पर बीजेपी की जीत की थोड़ी बहुत संभावना बन सकती है .लेकिन अगर चन्द्रभद्र सिंह बीजेपी के साथ न गए तो पार्टी का कोई नामलेवा नहीं है .
राष्ट्रीय स्तर की दोनों पार्टियों, बीजेपी और कांग्रेस की हालत एक जैसी ही है . जिले के जिन बड़े पत्रकारों से बातचीत हुई सब का मानना है कि लड़ाई बसपा और सपा के बीच ही है . कादीपुर सुरक्षित विधानसभा सीट पर बसपा के वर्तमान विधायक के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं लेकिन उनके खिलाफ सपा का जो उम्मीदवार है उसकी छवि एक बेदाग़ इंसान की है . १९७४ में वह तत्कालीन जनसंघ की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार जयराज गौतम ने उन्हें हरा दिया था . ३७ साल की अपनी चुनावी राजनीति में वे इस मुकाम पर हैं जहां उनके साथ लोगों की सहानुभूति है . क्षेत्र में मुसलमानों और पिछड़ी जातियों का प्रतिशत अच्छा है इसलिए वे मज़बूत माने जा रहे हैं .अगर कहीं कांग्रेसी उम्मीदवार ठीक से लड़ गया तो बसपा विधायक के लिए मुश्किल पेश आ सकती है . जिले की एक अन्य प्रतिष्ठित सीट लम्भुआ है. इस सीट पर भी सपा का उम्मीदवार मज़बूत है . हालांकि पार्टी ने वहां भी दुविधा दिखाई है . एक बार टिकट देकर बदल दिया गया है . चर्चा है कि फिर बदल दिया जाएगा . ऊपर से उसका मुकाबला राज्य के पर्यटन मंत्री , विनोद सिंह से है . लम्भुआ में आम तौर पर ठाकुर और ब्रह्मण एक दूसरे के खिलाफ रहते हैं . सपा का ब्राह्मण उम्मीदवार पहले भी विधायक रह चुका है और ब्राह्मणों में लोकप्रिय है .बसपा के विनोद सिंह का दावा है कि उनके खिलाफ कोई नहीं जीत सकता. उन्होंने बहुत काम किया है . गोमती नदी पर तीन पुल उनके सौजन्य से ही बन रहे हैं. वैसे भी वे क्षेत्र के लोगों से संपर्क में रहते हैं लेकिन उनके खिलाफ दो बातें हो सकती हैं . एक तो वे इलाके में एक ख़ास वर्ग के ठाकुरों को साथ लेकर चल रहे हैं . इसके अलावा पीस पार्टी के लम्भुआ से ताज़ा घोषित हुए उमीदवार उनकी मुसीबत बढ़ा सकते हैं . के डी सिंह नाम के यह व्यक्ति ठाकुर नौजवानों में आज से ही चर्चा में आ गए हैं .जो ठाकुर लड़के उनका गुणगान कर रहे हैं अगर वे साथ चले गए तो विनोद सिंह को फ़ौरन किसी नई रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर होना पडेगा.कुल मिलाकर सुल्तानपुर जिले की राजनीति ऐसी है जहां बहुत कुछ बदलने वाला नहीं है.
Thursday, October 6, 2011
Sunday, October 2, 2011
गलत आर्थिक नीतियों के कारण भारत बड़े शहरों,मलिन बस्तियों और उजड़े गाँवों का देश बन गया
शेष नारायण सिंह
२ अक्टूबर महात्मा गाँधी का जन्मदिन तो है ही, लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन भी है . इसी दिन १९५२ में भारत में कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम भी शुरू किया गया था. आज़ादी के बाद देश में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शुरू किये गए कार्यक्रमों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम था . लेकिन यह असफल रहा ,अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर सका.इस कार्यक्रम के असफल होने के कारणों की पडताल शायद महात्मा जी के प्रति सच्ची श्रध्हांजलि होगी क्योंकि इस कार्यक्रम को शुरू करते वक़्त लगभग हर मंच से सरकार ने यह दावा किया था कि कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के ज़रिये महात्मा गान्धी के सपनों के भारत को एक वाताविकता में बदला जा सकता है.
सामुदायिक विकास वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिस से एक समुदाय के विकास के लिए लोग अपने आपको औपचारिक या अनौपचारिक रूप से संगठित करते हैं.यह विकास की एक सतत प्रक्रिया है.इसकी पहली शर्त ही यही थी कि अपने यहाँ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके समुदाय का विकास किया जाना था जहां ज़रूरी होता वहां बाहरी संसाधनों के प्रबंध का प्रावधान भी था. कम्युनिटी डेवलपमेंट की परिभाषा में ही यह लिखा है कि सामुदायिक विकास वह तरीका है जिसके ज़रिये गांव के लोग अपनी आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार लाने के लिए संगठित होते हैं . बाद में यही संगठन राष्ट्र के विकास में भी प्रभावी योगदान करते हैं . सामुदायिक विकास की बुनियादी धारणा ही यह है कि अगर लोगों को अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने के अवसर मुहैया कराये जाएँ तो वे किसी भी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चला सकते हैं .
भारत में २ अक्टूबर १९५२ के दिन जब कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की गयी तो सोचा गया था कि इसके रास्ते ही ग्रामीण भारत का समग्र विकास किया जाएगा.इस योजना में खेती,पशुपालन,लघु सिंचाई,सहकारिता,शिक्षा,ग्रामीण उद्योग अदि शामिल था जिसमें सुधार के बाद भारत में ग्रामीण जीवन की हालात में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता था.कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को लागू करने के लिए बाकायदा एक अमलातंत्र बनाया गया . जिला और ब्लाक स्तर पर सरकारी अधिकारी तैनात किये गए लेकिन कार्यक्रम से वह नहीं हासिल हो सका जो तय किया गया था. इस तरह महात्मा गांधी के सपनों के भारत के निर्माण के लिए सरकारी तौर पर जो पहली कोशिश की गयी थी वह भी बेकार साबित हुई . ठीक उसी तरह जिस तरह गांधीवादी दर्शन की हर कड़ी को अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण और पूंजी के केंद्रीकरण के सहारे तबाह किया गया . कांग्रेस ने कभी भी गांधीवाद को इस देश में राजकाज का दर्शनशास्त्र नहीं बनने दिया . ग्रामीण भारत में नगरीकरण के तरह तरह के प्रयोग हुए और आज भारत तबाह गाँवों का एक देश है .
यह देखना दिलचस्प होगा कि इतनी बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना को इस देश के हर दौर के हुक्मरानों ने कैसे बर्बाद किया .यहाँ यह ध्यान में रखना होगा कि उस योजना को तबाह करने वालों में जवाहरलाल नेहरू भी एक थे. उनके दिमाग में भी यह बात समा गयी थी कि भारत का ऐसा विकास होना चाहिये जिसके बाद भारत के गाँव भी शहर जैसे दिखने लगें . वे गाँवों में शहरों जैसी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के चक्कर में थे .उन्होंने उसके लिए सोवियत रूस में चुने गए माडल को विकास का पैमाना बनाया और हम एक राष्ट्र के रूप में बड़े शहरों , मलिन बस्तियों और उजड़े गाँवों का देश बन गए . कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को शुरू करने वालों ने सोचा था कि इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद खेतों, घरों और सामूहिक रूप से गाँव में बदलाव आयेगा . कृषि उत्पादन और रहन सहन के सत्र में बदलाव् आयेगा . गाँव में रहने वाले पुरुष ,स्त्री और नौजवानों की सोच में बदलाव लाना भी कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम का एक उद्देश्य था लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. सरकारी स्तर पर ग्रामीण विकास के लिए जो लोग तैनात किये गए उनके मन में सरकारी नौकरी का भाव ज्यादा था , इलाके या गांव के विकास को उन्होंने कभी प्राथमिकता नहीं दिया . ब्रिटिश ज़माने की नज़राने और रिश्वत की परम्परा को इन सरकारी कर्मचारियों ने खूब विकसित किया. पंचायत स्तर पर कोई भी ग्रामीण लीडरशिप डेवलप नहीं हो पायी. अगर विकास हुआ तो सिर्फ ऐसे लोगों का जो इन सरकारी कर्मचारियों के दलाल के रूप में काम करते रहे. इसी बुनियादी गलती के कारण ही आज जो भी स्कीमें ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत गाँवों में भेजी जाती हैं उनका लगभग सारा पैसा इन्हीं दलालों के रास्ते सरकारी अफसरों और नेताओं के पास पंहुच जाता है .
२ अक्टूबर १९५२ को शुरू किया गया यह कार्यक्रम आज पूरी तरह से नाकाम साबित हो चुका है . इसके कारण बहुत से हैं . सामुदायिक विकास कार्यक्रम के नाम पर पूरे देश में नौकरशाही का एक बहुत बड़ा वर्ग तैयार हो गया है लेकिन उस नौकरशाही ने सरकारी नौकरी को ही विकास का सबसे बड़ा साधन मान लिया .शायद ऐसा इसलिए हुआ कि विकास के काम में लगे हुए लोग रिज़ल्ट दिखाने के चक्कर में ज्यादा रहने लगे. सच्चाई यह है कि ग्रामीण विकास का काम ऐसा है जिसमें नतीजे हासिल करने के लिए किया जाने वाला प्रयास ही सबसे अहम प्रक्रिया है . सरकारी बाबुओं ने उस प्रक्रिया को मार दिया .उसी प्रक्रिया के दौरान तो गाँव के स्तर पर सही अर्थों में लीडरशिप का विकास होता लेकिन सरकारी कर्मचारियों ने ग्रामीण लीडरशिप को मुखबिर या दलाल से ज्यादा रुतबा कभी नहीं हासिल करने दिया .सामुदायिक विकास के बुनियादी सिद्धांत में ही लिखा है कि समुदाय के लोग अपने विकास के लिए खुद ही प्रयास करेगें .उस काम में लगे हुए सरकारी कर्मचारियों का रोल केवल ग्रामीण विकास के लिए माहौल बनाना भर था लेकिन वास्तव में ऐसा कहीं नहीं हुआ . कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के बुनियादी कार्यक्रम के लिए बनायी गयी सुविधाओं और नौकरशाही के जिम्मे अब लगभग सभी विकास कार्यक्रम लाद दिए गए गए हैं लेकिन विकास नज़र नहीं आता.सबसे ताज़ा उदाहरण महात्मा गाँधी के नाम पर शुरू किये गए मनरेगा कार्यक्रम की कहानी है . बड़े ऊंचे उद्देश्य के साथ शुरू किया गया यह कार्यक्र आज ग्राम प्रधान से लेकर कलेक्टर तक को रिश्वत की एक गिज़ा उपलब्ध कराने से ज्यादा कुछ नहीं बन पाया है . इसलिए आज महात्मा गाँधी के जन्म दिवस के अवसर पर उनके सपनों का भारत बनाने के लिए शुरू किये गए जवाहर लाल नेहरू के प्रिय कार्यक्रम की दुर्दशा का ज़िक्र कर लेना उचित जान पड़ता है
२ अक्टूबर महात्मा गाँधी का जन्मदिन तो है ही, लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन भी है . इसी दिन १९५२ में भारत में कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम भी शुरू किया गया था. आज़ादी के बाद देश में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शुरू किये गए कार्यक्रमों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम था . लेकिन यह असफल रहा ,अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर सका.इस कार्यक्रम के असफल होने के कारणों की पडताल शायद महात्मा जी के प्रति सच्ची श्रध्हांजलि होगी क्योंकि इस कार्यक्रम को शुरू करते वक़्त लगभग हर मंच से सरकार ने यह दावा किया था कि कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के ज़रिये महात्मा गान्धी के सपनों के भारत को एक वाताविकता में बदला जा सकता है.
सामुदायिक विकास वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिस से एक समुदाय के विकास के लिए लोग अपने आपको औपचारिक या अनौपचारिक रूप से संगठित करते हैं.यह विकास की एक सतत प्रक्रिया है.इसकी पहली शर्त ही यही थी कि अपने यहाँ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके समुदाय का विकास किया जाना था जहां ज़रूरी होता वहां बाहरी संसाधनों के प्रबंध का प्रावधान भी था. कम्युनिटी डेवलपमेंट की परिभाषा में ही यह लिखा है कि सामुदायिक विकास वह तरीका है जिसके ज़रिये गांव के लोग अपनी आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार लाने के लिए संगठित होते हैं . बाद में यही संगठन राष्ट्र के विकास में भी प्रभावी योगदान करते हैं . सामुदायिक विकास की बुनियादी धारणा ही यह है कि अगर लोगों को अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने के अवसर मुहैया कराये जाएँ तो वे किसी भी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चला सकते हैं .
भारत में २ अक्टूबर १९५२ के दिन जब कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की गयी तो सोचा गया था कि इसके रास्ते ही ग्रामीण भारत का समग्र विकास किया जाएगा.इस योजना में खेती,पशुपालन,लघु सिंचाई,सहकारिता,शिक्षा,ग्रामीण उद्योग अदि शामिल था जिसमें सुधार के बाद भारत में ग्रामीण जीवन की हालात में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता था.कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को लागू करने के लिए बाकायदा एक अमलातंत्र बनाया गया . जिला और ब्लाक स्तर पर सरकारी अधिकारी तैनात किये गए लेकिन कार्यक्रम से वह नहीं हासिल हो सका जो तय किया गया था. इस तरह महात्मा गांधी के सपनों के भारत के निर्माण के लिए सरकारी तौर पर जो पहली कोशिश की गयी थी वह भी बेकार साबित हुई . ठीक उसी तरह जिस तरह गांधीवादी दर्शन की हर कड़ी को अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण और पूंजी के केंद्रीकरण के सहारे तबाह किया गया . कांग्रेस ने कभी भी गांधीवाद को इस देश में राजकाज का दर्शनशास्त्र नहीं बनने दिया . ग्रामीण भारत में नगरीकरण के तरह तरह के प्रयोग हुए और आज भारत तबाह गाँवों का एक देश है .
यह देखना दिलचस्प होगा कि इतनी बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना को इस देश के हर दौर के हुक्मरानों ने कैसे बर्बाद किया .यहाँ यह ध्यान में रखना होगा कि उस योजना को तबाह करने वालों में जवाहरलाल नेहरू भी एक थे. उनके दिमाग में भी यह बात समा गयी थी कि भारत का ऐसा विकास होना चाहिये जिसके बाद भारत के गाँव भी शहर जैसे दिखने लगें . वे गाँवों में शहरों जैसी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के चक्कर में थे .उन्होंने उसके लिए सोवियत रूस में चुने गए माडल को विकास का पैमाना बनाया और हम एक राष्ट्र के रूप में बड़े शहरों , मलिन बस्तियों और उजड़े गाँवों का देश बन गए . कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम को शुरू करने वालों ने सोचा था कि इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद खेतों, घरों और सामूहिक रूप से गाँव में बदलाव आयेगा . कृषि उत्पादन और रहन सहन के सत्र में बदलाव् आयेगा . गाँव में रहने वाले पुरुष ,स्त्री और नौजवानों की सोच में बदलाव लाना भी कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम का एक उद्देश्य था लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. सरकारी स्तर पर ग्रामीण विकास के लिए जो लोग तैनात किये गए उनके मन में सरकारी नौकरी का भाव ज्यादा था , इलाके या गांव के विकास को उन्होंने कभी प्राथमिकता नहीं दिया . ब्रिटिश ज़माने की नज़राने और रिश्वत की परम्परा को इन सरकारी कर्मचारियों ने खूब विकसित किया. पंचायत स्तर पर कोई भी ग्रामीण लीडरशिप डेवलप नहीं हो पायी. अगर विकास हुआ तो सिर्फ ऐसे लोगों का जो इन सरकारी कर्मचारियों के दलाल के रूप में काम करते रहे. इसी बुनियादी गलती के कारण ही आज जो भी स्कीमें ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत गाँवों में भेजी जाती हैं उनका लगभग सारा पैसा इन्हीं दलालों के रास्ते सरकारी अफसरों और नेताओं के पास पंहुच जाता है .
२ अक्टूबर १९५२ को शुरू किया गया यह कार्यक्रम आज पूरी तरह से नाकाम साबित हो चुका है . इसके कारण बहुत से हैं . सामुदायिक विकास कार्यक्रम के नाम पर पूरे देश में नौकरशाही का एक बहुत बड़ा वर्ग तैयार हो गया है लेकिन उस नौकरशाही ने सरकारी नौकरी को ही विकास का सबसे बड़ा साधन मान लिया .शायद ऐसा इसलिए हुआ कि विकास के काम में लगे हुए लोग रिज़ल्ट दिखाने के चक्कर में ज्यादा रहने लगे. सच्चाई यह है कि ग्रामीण विकास का काम ऐसा है जिसमें नतीजे हासिल करने के लिए किया जाने वाला प्रयास ही सबसे अहम प्रक्रिया है . सरकारी बाबुओं ने उस प्रक्रिया को मार दिया .उसी प्रक्रिया के दौरान तो गाँव के स्तर पर सही अर्थों में लीडरशिप का विकास होता लेकिन सरकारी कर्मचारियों ने ग्रामीण लीडरशिप को मुखबिर या दलाल से ज्यादा रुतबा कभी नहीं हासिल करने दिया .सामुदायिक विकास के बुनियादी सिद्धांत में ही लिखा है कि समुदाय के लोग अपने विकास के लिए खुद ही प्रयास करेगें .उस काम में लगे हुए सरकारी कर्मचारियों का रोल केवल ग्रामीण विकास के लिए माहौल बनाना भर था लेकिन वास्तव में ऐसा कहीं नहीं हुआ . कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के बुनियादी कार्यक्रम के लिए बनायी गयी सुविधाओं और नौकरशाही के जिम्मे अब लगभग सभी विकास कार्यक्रम लाद दिए गए गए हैं लेकिन विकास नज़र नहीं आता.सबसे ताज़ा उदाहरण महात्मा गाँधी के नाम पर शुरू किये गए मनरेगा कार्यक्रम की कहानी है . बड़े ऊंचे उद्देश्य के साथ शुरू किया गया यह कार्यक्र आज ग्राम प्रधान से लेकर कलेक्टर तक को रिश्वत की एक गिज़ा उपलब्ध कराने से ज्यादा कुछ नहीं बन पाया है . इसलिए आज महात्मा गाँधी के जन्म दिवस के अवसर पर उनके सपनों का भारत बनाने के लिए शुरू किये गए जवाहर लाल नेहरू के प्रिय कार्यक्रम की दुर्दशा का ज़िक्र कर लेना उचित जान पड़ता है
Friday, September 30, 2011
अमरीका से दोस्ती पाकिस्तान के लिए बहुत भारी पड़ सकती है
शेष नारायण सिंह
क्या अमरीका पाकिस्तान पर जल्द ही हमला करने वाला है ? यह सवाल पाकिस्तान के गली- कूचों और टेलिविज़न चैनलों के दफ्तरों में बहुत जोर शोर से पूछा जा रहा है . यही नहीं पाकिस्तानी हुक्मरान भी डरे हुए हैं कि कहीं अमरीका ने और सख्ती कर दी तो पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल हो जायेगी. हक्कानी ग्रुप नाम के अफगान संगठन के पाकिस्तानी फौज और आई एस आई से रिश्तों के बारे में जब से अमरीकी फौज के आला अफसरों ने खुले आम बात करना शुरू कर दिया है ,तब से ही पाकिस्तान में अफरा तफरी का माहौल है . पूरे देश में जनमत का दबाव इतना ज़्यादा है कि प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुला ली है . इस बैठक में पाकिस्तानी फौज के मुखिया जनरल कयानी और आई एस आई की मुखिया जनरल शुजा पाशा भी शामिल हो रहे हैं . अमरीका ने साफ़ कह दिया है कि हक्कानी ग्रुप ने अफगानिस्तान में अमरीकी हितों को नुकसान पंहुचाने का अभियान चला रखा है , अमरीकी ठिकानों पर लगातार हमले कर रहा है इसलिए उसको ख़त्म करना ज़रूरी है .अमरीका ने इस काम में पाकिस्तान की मदद भी माँगी है . अमरीका का यह भी आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई और हक्कानी ग्रुप में गहरे ताल्लुकात हैं . अमरीका की मांग है कि आई एस आई अब हक्कानी से दोस्ती ख़त्म करे और उसे दुश्मन मानना शुरू कर दे. अमरीका के इस रवैय्ये के बाद पाकिस्तान में बहुत गुस्सा है .देश के ज़्यादातर राजनेता और ताक़तवर फौजी लाबी मानती है कि पाकिस्तान को तिल तिल कर ख़त्म करने की अमरीकी कोशिश के चलते ही हक्कानी ग्रुप से उसके रिश्तों को मुद्दा बनाया जा रहा है . यह सच है कि हक्कानी ग्रुप से पाकिस्तान के बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि अमरीका ने ही हक्क़ानी ग्रूप को पैदा किया , उसे समर्थन दिया और आर्थिक मदद भी की. अब जब हक्कानी उनके खिलाफ हो गया है तो उसको ख़त्म करने के अभियान में पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है . पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने तो पिछले हफ्ते अमरीका में ही बार बार बयान दिया कि हक्कानी ग्रुप अमरीका का दोस्त संगठन है ,इसलिए उसको पाकिस्तान के मत्थे मढना ठीक नहीं है. पाकिस्तान के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि अब तक का अमरीका का रिकार्ड रहा है कि जब दोस्त की ज़रुरत नहीं रहती तो वह उसे ख़त्म कर देता है .. आखिर तालिबान और अल कायदा भी तो अमरीका की कृपा और उसके पैसे से ही पैदा हुए थे लेकिन बाद में अल कायदा अमरीका का दुश्मन नंबर एक बन गया . अल कायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन को जिंदा या मुर्दा पकड़ना अमरीकी विदेश नीति का मुख्य एजेंडा बन गया और अंत में पाकिस्तान जैसे दोस्त के देश में ख़ुफ़िया तरीके से घुस कर अमरीका ने ओसमा को क़त्ल किया. उसी तरह से हक्कानी ग्रुप भी अमरीका की देन है लेकिन आजकल वह उसके लिए मुसीबत बना हुआ है . अमरीकी फौज का दावा है कि अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीका के दुश्मनों में हक्कानी ग्रुप से सबसे ज्यादा ताक़तवर है .
हक्कानी ग्रुप के मौजूदा मुखिया मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी को अमरीका ने अफगानिस्तान से सोवियत सेना को भगाने के अभियान में इस्तेमाल किया था. जलालुद्दीन हक्क़ानी का इतना दबदबा था कि अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने उन्हें व्हाईट हाउस में बतौर मेहमान आमंत्रित किया था. हक्कानी को अमरीकी खुफिया संगठन सी आई ए का पूरा और खुला समर्थन रहता था. इसके अलावा हक्कानी ने पाकिस्तानी आई एस आई से भी बिरादराना ताल्लुकात कायम कर लिया . उसे सउदी अरब के बहुत सारे धनवानों से आर्थिक मदद मिलती रही . अब भी मिलती है . आजकल उसे अमरीका से मिलने वाला पैसा बंद हो गया है तो उस कमी को हक्कानी ग्रुप फिरौती वगैरह के गैरकानूनी धंधों के ज़रिये पूरा कर लेता है .जब १९९६ में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया तो सीनियर हक्कानी को मंत्री भी बनाया गया था .अभी पिछले दिनों अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति, हामिद करज़ई ने भी हक्कानी ग्रुप के संस्थापक मौलाना जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी को प्रधानमंत्री पद देने की पेश कश की थी. उनको उम्मीद थी कि इस से तालिबान का आतंक कम हो जाएगा. लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने मना कर दिया . मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी तो अब बूढ़े हो चले हैं लेकिन उनके बेटे सिराजुद्दीन ने काम संभाल लिया है . उन्हीं की अगुवाई में करीब पंद्रह हज़ार लड़ाके काम कर रहे हैं और अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीकी सेना के दुश्मन बने हुए हैं . हक्कानी ग्रुप आजकल अफगान और अमरीकी फौज के निशाने पर है . शायद इसीलिये उसने अपना ठिकाना पाकिस्तान सीमा के अंदर ,पाक-अफगान बार्डर पर कहीं बना रखा है .इसी हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने में अमरीका को पाकिस्तानी मदद की ज़रुरत है लेकिन पाकिस्तान के लिए हक्कानी ग्रुप के खिलाफ युद्ध का ऐलान करना बहुत ही मुसीबत का कारण बन सकता है . सच्ची बात यह है कि हक्कानी ग्रुप आजकल पाकिस्तानी फौज और आई एस आई का गहरा दोस्त है . जहां पाकिस्तानी सेना खुले आम कुछ नहीं कर पाती वहां हक्कानी ग्रुप का इस्तेमाल किया जाता है . ऐसी हालत में हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने का मतलब यह भी होगा कि पाकिस्तानी फौज अपनी ही एक शाखा को नेस्तनाबूद करने जा रही होगी.
इस स्थिति में पाकिस्तान सरकार में हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई करने से बचने के उपायों पर चर्चा हो रही है . पाकिस्तानी राजनीति को समझने वालों का कहना है कि अगर आज हक्कानी ग्रुप के खिलाफ काम करने के लिए पाकिस्तानी फौज़ को मजबूर कर दिया गया तो कल अमरीका यह भी कह सकता है कि आई एस आई ने बहुत सारे आतंकी काम किये हैं इसलिए उसे भी ख़त्म कर दिया जाना चाहिए . इतने ज़बरदस्त दबाव के चलते ही प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है . उधर इस्लामबाद में अमरीका से रिश्ते ख़त्म होने के बाद के रिश्तों पर चर्चा के लिए बैठकें शुरू हो गयी हैं . पाकिस्तानी राजधानी में सउदी अरब और चीन के राजनयिकों से मुलाकातों का सिलसिला जारी है . राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और विदेश सचिव सलमान बशीर ने अमरीकी राजदूत से मुलाक़ात करके कुछ रास्ता निकालने की बात शुरू कर दिया है . प्रधान मंत्री गीलानी ने चीनी उपप्रधान मंत्री मेंग जियानझू से मुलाक़ात के बाद दावा किया कि चीन ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वह पाकिस्तान की स्वतंत्रता , अखंडता और सार्व भौमिकता का समर्थन करता है . पाकिस्तान की सरकार और फौज को डर है कि अमरीका अफगानिस्तान की तरफ से उत्तरी पाकिस्तान के उन ठिकानों पर हमला कर सकता है जहां हक्क़ानी ग्रुप का मुख्यालय है . हक्कानी ग्रुप ने अपने सारे महत्वपूर्ण ठिकाने पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में बना रखे हैं . पाकिस्तान को मालूम है कि अगर उसने हक्कानी के खिलाफ अमरीका की मदद करने में आनकानी की तो अमरीका हमला भी कर सकता है . पाकिस्तान में इस संभावित हमले को पाकिस्तानी ज़मीन पर किया गया हमला माना जायेया. पाकिस्तानी हुक्मरान की घबडाहट इसी संदर्भ में समझी जानी चाहिए . समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बातचीत में पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने साफ़ कहा कि उनका देश एक सार्वभौम देश है उनके ऊपर कोई अन्य मित्र देश हमला कैसे कर सकता है . पाकिस्तान में अब अमरीका के बाद की योजना पर काम होना शुरू हो गया है लेकिन क्या यह संभव है . सोमवार को आई एस आई के मुखिया जनरल शुजा पाशा सउदी अरब गए थे .उनकी कोशिश है सउदी अरब से मदद ली जाए .लेकिन क्या सउदी अरब की हिम्मत है कि वह अमरीका को नाराज़ कर सकता है . जहां तक चीन का सवाल है वह अमरीका के दबाव में नहीं है लेकिन क्या वह पाकिस्तान जैसे गरीब देश के लिए अमरीका से अपने व्यापारिक रिश्तों को तबाह करके उसकी सेना को रोकने की किसी पाकिस्तानी कोशिश में उसकी मदद करेगा. ऐसी हालत में अब पाकिस्तान के लिए सबसे सही और सुरक्षित रास्ता यही लगता है कि वह स्वीकार कर ले कि उसके लिए अमरीका को नाराज़ कर पाना बिलकुल संभव नहीं है और उसे अब अमरीका की प्रभुता स्वीकार कर लेनी चाहिए. पिछले साठ साल की अमरीकापरस्त विदेशनीति की यही तार्किक परिणति है .
क्या अमरीका पाकिस्तान पर जल्द ही हमला करने वाला है ? यह सवाल पाकिस्तान के गली- कूचों और टेलिविज़न चैनलों के दफ्तरों में बहुत जोर शोर से पूछा जा रहा है . यही नहीं पाकिस्तानी हुक्मरान भी डरे हुए हैं कि कहीं अमरीका ने और सख्ती कर दी तो पाकिस्तान के लिए बहुत मुश्किल हो जायेगी. हक्कानी ग्रुप नाम के अफगान संगठन के पाकिस्तानी फौज और आई एस आई से रिश्तों के बारे में जब से अमरीकी फौज के आला अफसरों ने खुले आम बात करना शुरू कर दिया है ,तब से ही पाकिस्तान में अफरा तफरी का माहौल है . पूरे देश में जनमत का दबाव इतना ज़्यादा है कि प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुला ली है . इस बैठक में पाकिस्तानी फौज के मुखिया जनरल कयानी और आई एस आई की मुखिया जनरल शुजा पाशा भी शामिल हो रहे हैं . अमरीका ने साफ़ कह दिया है कि हक्कानी ग्रुप ने अफगानिस्तान में अमरीकी हितों को नुकसान पंहुचाने का अभियान चला रखा है , अमरीकी ठिकानों पर लगातार हमले कर रहा है इसलिए उसको ख़त्म करना ज़रूरी है .अमरीका ने इस काम में पाकिस्तान की मदद भी माँगी है . अमरीका का यह भी आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई और हक्कानी ग्रुप में गहरे ताल्लुकात हैं . अमरीका की मांग है कि आई एस आई अब हक्कानी से दोस्ती ख़त्म करे और उसे दुश्मन मानना शुरू कर दे. अमरीका के इस रवैय्ये के बाद पाकिस्तान में बहुत गुस्सा है .देश के ज़्यादातर राजनेता और ताक़तवर फौजी लाबी मानती है कि पाकिस्तान को तिल तिल कर ख़त्म करने की अमरीकी कोशिश के चलते ही हक्कानी ग्रुप से उसके रिश्तों को मुद्दा बनाया जा रहा है . यह सच है कि हक्कानी ग्रुप से पाकिस्तान के बहुत अच्छे रिश्ते हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि अमरीका ने ही हक्क़ानी ग्रूप को पैदा किया , उसे समर्थन दिया और आर्थिक मदद भी की. अब जब हक्कानी उनके खिलाफ हो गया है तो उसको ख़त्म करने के अभियान में पाकिस्तान को इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है . पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने तो पिछले हफ्ते अमरीका में ही बार बार बयान दिया कि हक्कानी ग्रुप अमरीका का दोस्त संगठन है ,इसलिए उसको पाकिस्तान के मत्थे मढना ठीक नहीं है. पाकिस्तान के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि अब तक का अमरीका का रिकार्ड रहा है कि जब दोस्त की ज़रुरत नहीं रहती तो वह उसे ख़त्म कर देता है .. आखिर तालिबान और अल कायदा भी तो अमरीका की कृपा और उसके पैसे से ही पैदा हुए थे लेकिन बाद में अल कायदा अमरीका का दुश्मन नंबर एक बन गया . अल कायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन को जिंदा या मुर्दा पकड़ना अमरीकी विदेश नीति का मुख्य एजेंडा बन गया और अंत में पाकिस्तान जैसे दोस्त के देश में ख़ुफ़िया तरीके से घुस कर अमरीका ने ओसमा को क़त्ल किया. उसी तरह से हक्कानी ग्रुप भी अमरीका की देन है लेकिन आजकल वह उसके लिए मुसीबत बना हुआ है . अमरीकी फौज का दावा है कि अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीका के दुश्मनों में हक्कानी ग्रुप से सबसे ज्यादा ताक़तवर है .
हक्कानी ग्रुप के मौजूदा मुखिया मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी को अमरीका ने अफगानिस्तान से सोवियत सेना को भगाने के अभियान में इस्तेमाल किया था. जलालुद्दीन हक्क़ानी का इतना दबदबा था कि अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने उन्हें व्हाईट हाउस में बतौर मेहमान आमंत्रित किया था. हक्कानी को अमरीकी खुफिया संगठन सी आई ए का पूरा और खुला समर्थन रहता था. इसके अलावा हक्कानी ने पाकिस्तानी आई एस आई से भी बिरादराना ताल्लुकात कायम कर लिया . उसे सउदी अरब के बहुत सारे धनवानों से आर्थिक मदद मिलती रही . अब भी मिलती है . आजकल उसे अमरीका से मिलने वाला पैसा बंद हो गया है तो उस कमी को हक्कानी ग्रुप फिरौती वगैरह के गैरकानूनी धंधों के ज़रिये पूरा कर लेता है .जब १९९६ में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया तो सीनियर हक्कानी को मंत्री भी बनाया गया था .अभी पिछले दिनों अफगानिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति, हामिद करज़ई ने भी हक्कानी ग्रुप के संस्थापक मौलाना जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी को प्रधानमंत्री पद देने की पेश कश की थी. उनको उम्मीद थी कि इस से तालिबान का आतंक कम हो जाएगा. लेकिन सिराजुद्दीन हक्कानी ने मना कर दिया . मौलाना जलालुद्दीन हक्कानी तो अब बूढ़े हो चले हैं लेकिन उनके बेटे सिराजुद्दीन ने काम संभाल लिया है . उन्हीं की अगुवाई में करीब पंद्रह हज़ार लड़ाके काम कर रहे हैं और अफगानिस्तान में सक्रिय अमरीकी सेना के दुश्मन बने हुए हैं . हक्कानी ग्रुप आजकल अफगान और अमरीकी फौज के निशाने पर है . शायद इसीलिये उसने अपना ठिकाना पाकिस्तान सीमा के अंदर ,पाक-अफगान बार्डर पर कहीं बना रखा है .इसी हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने में अमरीका को पाकिस्तानी मदद की ज़रुरत है लेकिन पाकिस्तान के लिए हक्कानी ग्रुप के खिलाफ युद्ध का ऐलान करना बहुत ही मुसीबत का कारण बन सकता है . सच्ची बात यह है कि हक्कानी ग्रुप आजकल पाकिस्तानी फौज और आई एस आई का गहरा दोस्त है . जहां पाकिस्तानी सेना खुले आम कुछ नहीं कर पाती वहां हक्कानी ग्रुप का इस्तेमाल किया जाता है . ऐसी हालत में हक्कानी ग्रुप को ख़त्म करने का मतलब यह भी होगा कि पाकिस्तानी फौज अपनी ही एक शाखा को नेस्तनाबूद करने जा रही होगी.
इस स्थिति में पाकिस्तान सरकार में हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई करने से बचने के उपायों पर चर्चा हो रही है . पाकिस्तानी राजनीति को समझने वालों का कहना है कि अगर आज हक्कानी ग्रुप के खिलाफ काम करने के लिए पाकिस्तानी फौज़ को मजबूर कर दिया गया तो कल अमरीका यह भी कह सकता है कि आई एस आई ने बहुत सारे आतंकी काम किये हैं इसलिए उसे भी ख़त्म कर दिया जाना चाहिए . इतने ज़बरदस्त दबाव के चलते ही प्रधान मंत्री युसूफ रजा गीलानी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है . उधर इस्लामबाद में अमरीका से रिश्ते ख़त्म होने के बाद के रिश्तों पर चर्चा के लिए बैठकें शुरू हो गयी हैं . पाकिस्तानी राजधानी में सउदी अरब और चीन के राजनयिकों से मुलाकातों का सिलसिला जारी है . राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और विदेश सचिव सलमान बशीर ने अमरीकी राजदूत से मुलाक़ात करके कुछ रास्ता निकालने की बात शुरू कर दिया है . प्रधान मंत्री गीलानी ने चीनी उपप्रधान मंत्री मेंग जियानझू से मुलाक़ात के बाद दावा किया कि चीन ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वह पाकिस्तान की स्वतंत्रता , अखंडता और सार्व भौमिकता का समर्थन करता है . पाकिस्तान की सरकार और फौज को डर है कि अमरीका अफगानिस्तान की तरफ से उत्तरी पाकिस्तान के उन ठिकानों पर हमला कर सकता है जहां हक्क़ानी ग्रुप का मुख्यालय है . हक्कानी ग्रुप ने अपने सारे महत्वपूर्ण ठिकाने पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान इलाके में बना रखे हैं . पाकिस्तान को मालूम है कि अगर उसने हक्कानी के खिलाफ अमरीका की मदद करने में आनकानी की तो अमरीका हमला भी कर सकता है . पाकिस्तान में इस संभावित हमले को पाकिस्तानी ज़मीन पर किया गया हमला माना जायेया. पाकिस्तानी हुक्मरान की घबडाहट इसी संदर्भ में समझी जानी चाहिए . समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बातचीत में पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने साफ़ कहा कि उनका देश एक सार्वभौम देश है उनके ऊपर कोई अन्य मित्र देश हमला कैसे कर सकता है . पाकिस्तान में अब अमरीका के बाद की योजना पर काम होना शुरू हो गया है लेकिन क्या यह संभव है . सोमवार को आई एस आई के मुखिया जनरल शुजा पाशा सउदी अरब गए थे .उनकी कोशिश है सउदी अरब से मदद ली जाए .लेकिन क्या सउदी अरब की हिम्मत है कि वह अमरीका को नाराज़ कर सकता है . जहां तक चीन का सवाल है वह अमरीका के दबाव में नहीं है लेकिन क्या वह पाकिस्तान जैसे गरीब देश के लिए अमरीका से अपने व्यापारिक रिश्तों को तबाह करके उसकी सेना को रोकने की किसी पाकिस्तानी कोशिश में उसकी मदद करेगा. ऐसी हालत में अब पाकिस्तान के लिए सबसे सही और सुरक्षित रास्ता यही लगता है कि वह स्वीकार कर ले कि उसके लिए अमरीका को नाराज़ कर पाना बिलकुल संभव नहीं है और उसे अब अमरीका की प्रभुता स्वीकार कर लेनी चाहिए. पिछले साठ साल की अमरीकापरस्त विदेशनीति की यही तार्किक परिणति है .
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Thursday, September 29, 2011
कांग्रेस ने बीजेपी की खिल्ली उडाई
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ सितम्बर .बीजेपी ने आज दोपहर कांग्रेस और प्रधानमंत्री पर राजनीतिक हमला किया था. शाम को कांग्रेस ने उसका तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे दिया. आज यहाँ कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के प्रवक्ता, अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के नेता यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इनके इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद २००४ में उनके हाथ से सत्ता खिसक गयी थी. उसके बाद से हे वे समय समय पर कांग्रेस के सरकार के पतन के बारे में भविष्यवाणी करते रहते हैं . कांग्रेस ने आज २ जी मामले में भे बीजेपी के उस आरोप का ज़बरदस्त जवाब दिया जिसमें कहा जाता है कि कैश फार वोट के मामले में अमर सिंह के काम से फायदा यू पी ए की सरकार को हुआ था . इसलिए कांग्रेस के ऊपर भी जांच बैठाई जानी चाहिए . कांग्रेस ने कहा कि यह आरोप बिलकुल गलत है .कांग्रेस ने पलटवार किया और कहा कि सच्चाई यह है कि बीजेपी को मालूम था कि कांग्रेस ने परमाणु नीति के बारे में एक सही स्टैंड लिया है . जिसमें लोक सभा में उसकी जीत निश्चित है .सत्ता की लालच में बैठे हुए बीजेपी के बड़े नेता को इससे बहुत निराशा हुई और पार्टी ने उस जीत को शक़ के घेरे में फंसाने के उद्देश्य से कैश फार वोट का खेल कर दिया . कांग्रेस का दावा है कि कैश फार वोट का फायदा बीजेपी को ही होने वाला था लेकिन पकडे जाने की वजह से उनका खेल बिगड़ गया. २ जी घोटाले के बारे में कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्रालय के जिस नोट की बात करके बीजेपी पी चिदंबरम को कटघरे में खड़ा करना चाहती है उसमें नया कुछ भी नहीं है . वह केवल जो कुछ हुआ था उसका ब्योरेवार वर्णन है . उसमें एक अफसर ने जजमेंटल होने की कोशिश की है . क्या किसी अफसर के दोषी करार देने से कोई दोषी हो जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बीजेपी की खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा कि बीजेपी के सारे आरोप झूठे हैं .जब उनके बारे में कोई सही बात की जाती है तो वे बौखला जाते हैं और बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाने लगते हैं . उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी से सौदा करने को तैयार है . उन्होंने कहा कि सौदा यह है कि अगर बीजेपी कांग्रेस के बारे में झूठ बोलना बंद कर दे तो कांग्रेस बीजेपी ke बारे में सच बोलना बंद कर देगी.जब उनको याद दिलाया गया कि बीजेपी का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी ने तो कैश फार वोट के मामले में कांग्रेस को एक्सपोज करने का काम किया था तो उन्होंने कहा कि यह बातें बीजेपी को शोभा नहीं देतीं. उन्होंने सवाल किया कि १९९८ से २००४ तक जब तक बीजेपी सत्ता में थी उन्होंने न तो कभी काले धन का ज़िक्र किया और न ही कभी किसी अपराध का भंडाफोड़ किया . कैश फार वोट शुद्ध रूप से बीजेपी की राजनीतिक डिजाइन का कार्यक्रम था जब उन्हें बताया गया कि अमर सिंह तो आपके लिए काम कर रहे थे तो सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की पार्टी लोकसभा में यू पी ए के सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी.कैश फार वोट केस में कांग्रेस को शामिल बताकर बीजेपी राष्ट्र को गुमराह करने के कोशिश कर रही है .कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आज जो विज्ञप्ति बीजेपी की तरफ से बांटी गयी है वह डॉ सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों का सारांश मात्र है . अभी उस केस में पर सुनवाई चल रही है . अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया है लेकिन तकलीफ की बात है कि बीजेपी ने उसको अपनी तरफ से प्रेस कानफरेंस में बाँट दिया है .और आदेश सुना दिया है कि कांग्रेस दोषी है . यह ठीक नहीं है . कांग्रेस ने इस बात का भी बुरा माना है कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हों तो उनपर राजनीतिक हमला न करने की परम्परा को बीजेपी बार बार तोड़ रही है . यही उन्होंने बंगलादेश की यात्रा के समय भी किया था और अब अमरीका के यात्रा के समय भी यही किया.
नई दिल्ली,२८ सितम्बर .बीजेपी ने आज दोपहर कांग्रेस और प्रधानमंत्री पर राजनीतिक हमला किया था. शाम को कांग्रेस ने उसका तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे दिया. आज यहाँ कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के प्रवक्ता, अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बीजेपी के नेता यह स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इनके इंडिया शाइनिंग नारे के बावजूद २००४ में उनके हाथ से सत्ता खिसक गयी थी. उसके बाद से हे वे समय समय पर कांग्रेस के सरकार के पतन के बारे में भविष्यवाणी करते रहते हैं . कांग्रेस ने आज २ जी मामले में भे बीजेपी के उस आरोप का ज़बरदस्त जवाब दिया जिसमें कहा जाता है कि कैश फार वोट के मामले में अमर सिंह के काम से फायदा यू पी ए की सरकार को हुआ था . इसलिए कांग्रेस के ऊपर भी जांच बैठाई जानी चाहिए . कांग्रेस ने कहा कि यह आरोप बिलकुल गलत है .कांग्रेस ने पलटवार किया और कहा कि सच्चाई यह है कि बीजेपी को मालूम था कि कांग्रेस ने परमाणु नीति के बारे में एक सही स्टैंड लिया है . जिसमें लोक सभा में उसकी जीत निश्चित है .सत्ता की लालच में बैठे हुए बीजेपी के बड़े नेता को इससे बहुत निराशा हुई और पार्टी ने उस जीत को शक़ के घेरे में फंसाने के उद्देश्य से कैश फार वोट का खेल कर दिया . कांग्रेस का दावा है कि कैश फार वोट का फायदा बीजेपी को ही होने वाला था लेकिन पकडे जाने की वजह से उनका खेल बिगड़ गया. २ जी घोटाले के बारे में कांग्रेस ने कहा कि वित्त मंत्रालय के जिस नोट की बात करके बीजेपी पी चिदंबरम को कटघरे में खड़ा करना चाहती है उसमें नया कुछ भी नहीं है . वह केवल जो कुछ हुआ था उसका ब्योरेवार वर्णन है . उसमें एक अफसर ने जजमेंटल होने की कोशिश की है . क्या किसी अफसर के दोषी करार देने से कोई दोषी हो जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बीजेपी की खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा कि बीजेपी के सारे आरोप झूठे हैं .जब उनके बारे में कोई सही बात की जाती है तो वे बौखला जाते हैं और बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाने लगते हैं . उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी से सौदा करने को तैयार है . उन्होंने कहा कि सौदा यह है कि अगर बीजेपी कांग्रेस के बारे में झूठ बोलना बंद कर दे तो कांग्रेस बीजेपी ke बारे में सच बोलना बंद कर देगी.जब उनको याद दिलाया गया कि बीजेपी का कहना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सहायक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी ने तो कैश फार वोट के मामले में कांग्रेस को एक्सपोज करने का काम किया था तो उन्होंने कहा कि यह बातें बीजेपी को शोभा नहीं देतीं. उन्होंने सवाल किया कि १९९८ से २००४ तक जब तक बीजेपी सत्ता में थी उन्होंने न तो कभी काले धन का ज़िक्र किया और न ही कभी किसी अपराध का भंडाफोड़ किया . कैश फार वोट शुद्ध रूप से बीजेपी की राजनीतिक डिजाइन का कार्यक्रम था जब उन्हें बताया गया कि अमर सिंह तो आपके लिए काम कर रहे थे तो सिंघवी ने कहा कि अमर सिंह की पार्टी लोकसभा में यू पी ए के सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम का समर्थन कर रही थी.कैश फार वोट केस में कांग्रेस को शामिल बताकर बीजेपी राष्ट्र को गुमराह करने के कोशिश कर रही है .कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आज जो विज्ञप्ति बीजेपी की तरफ से बांटी गयी है वह डॉ सुब्रमन्यम स्वामी के आरोपों का सारांश मात्र है . अभी उस केस में पर सुनवाई चल रही है . अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कोई आदेश नहीं दिया है लेकिन तकलीफ की बात है कि बीजेपी ने उसको अपनी तरफ से प्रेस कानफरेंस में बाँट दिया है .और आदेश सुना दिया है कि कांग्रेस दोषी है . यह ठीक नहीं है . कांग्रेस ने इस बात का भी बुरा माना है कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर हों तो उनपर राजनीतिक हमला न करने की परम्परा को बीजेपी बार बार तोड़ रही है . यही उन्होंने बंगलादेश की यात्रा के समय भी किया था और अब अमरीका के यात्रा के समय भी यही किया.
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शेष नारायण सिंह
बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने की पूरी पेशबंदी की
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ सितम्बर.बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को घेरने के लिए सारी ताक़तों को आगे कर दीया है . आज संसद में दोनों सदनों के नेताओं, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि कांग्रेस की सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट है और वह अपने ही विरोधाभासों के नीचे बुरी तरह से दब चुकी है . बीजेपी ने प्रधान मंत्री के उस बयान को गलत बताया जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां सरकार क स्थिर करने की कोशिश कर रही हैं . प्रधान मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा से लौटते समय यह आरोप लगाया था कि विपक्ष की कोशिश है कि देश में जल्दी ही चुनाव हो जाएँ जबकि अभी सरकार का कार्यकाल पूरा होने में करीब ढाई साल बाकी हैं . बीजेपी ने पी चिदंबरम को बचाने के मामले में प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया लेकिन प्रधान मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की जबकि अरुण जेटली ने साफ़ कहा कि प्रधान मंत्री को मालूम था कि २००८ में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और ए राजा मिलकर २ जी घोटाला कर रहे थे.
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लोक सभा में विपक्ष की नेता,सुषमा स्वराज ने कहा कि बीजेपी अभी चुनाव के लिए दबाव नहीं डाल रही है . अगर मध्यावधि चुनाव होता है तो उसके लिए कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाली सरकार का गलत काम ही ज़िम्मेदार होंगें . दोनों नेताओं ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को भ्रष्ट बाताया और मांग की कि उनकी जांच की जानी चाहिए. बीजेपी ने दावा किया है कि जब यू पी ए सरकार में शामिल गैर कांग्रेस पार्टियों के नेता किसी गलती में पकडे जाते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व और प्रधान मंत्री उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं ./ उन्होंने २ जी मामले में ए राजा को जेल में भेजने का ज़िक्र किया . सुषमा स्वराज ने कहा कि जब मंहगाई के बढ़ने की बात आती है तो एन सी पी के शरद पवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है . इसी तरह जब एयर इंडिया में भ्रष्टाचार की बात आती है तो एन सी पी के प्रफुल पटेल का नाम ले लिया जाता है लेकिन जब कांग्रेस के पी चिदंबरम पर बात आती है तो कांग्रेस उनके बचाव में आ जाती है . अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री पर आरोप लगाया कि वे पी चिदंबरम का बचाव करके भ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं ..उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम दागी हैं और उन पर अगर भरोसा करते रहे तो प्रधान मंत्री देश का भरोसा बहुत जल्द खो देगें.बीजेपी ने अब कैश फार वोट मामले में फंसे अपने सदस्यों का बचाव करने का फैसला कर लिया है . कल सुषमा स्वराज जेल में बंद अपनी पार्टी के कैश फार वोट के अभियुक्तों से मिल कर आई हैं और आज अरुण जेटली और आडवानी से सुधीन्द्र कुलकर्णी और अन्य दो पूर्व सांसदों से मिलने जा रहे हैं . जब पूछा गया कि अब कैश फार वोट के केस से आप लोग अपनी पार्टी को कैसे बचायेगें तो अरुण जेटली ने कहा कि उनकी पार्टी के लोग तो भ्रष्टाचार को एक्सपोज कर रहे थे . वे अपराधी नहीं हैं .
नई दिल्ली,२८ सितम्बर.बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को घेरने के लिए सारी ताक़तों को आगे कर दीया है . आज संसद में दोनों सदनों के नेताओं, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि कांग्रेस की सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट है और वह अपने ही विरोधाभासों के नीचे बुरी तरह से दब चुकी है . बीजेपी ने प्रधान मंत्री के उस बयान को गलत बताया जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां सरकार क स्थिर करने की कोशिश कर रही हैं . प्रधान मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा से लौटते समय यह आरोप लगाया था कि विपक्ष की कोशिश है कि देश में जल्दी ही चुनाव हो जाएँ जबकि अभी सरकार का कार्यकाल पूरा होने में करीब ढाई साल बाकी हैं . बीजेपी ने पी चिदंबरम को बचाने के मामले में प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया लेकिन प्रधान मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की जबकि अरुण जेटली ने साफ़ कहा कि प्रधान मंत्री को मालूम था कि २००८ में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और ए राजा मिलकर २ जी घोटाला कर रहे थे.
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लोक सभा में विपक्ष की नेता,सुषमा स्वराज ने कहा कि बीजेपी अभी चुनाव के लिए दबाव नहीं डाल रही है . अगर मध्यावधि चुनाव होता है तो उसके लिए कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाली सरकार का गलत काम ही ज़िम्मेदार होंगें . दोनों नेताओं ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को भ्रष्ट बाताया और मांग की कि उनकी जांच की जानी चाहिए. बीजेपी ने दावा किया है कि जब यू पी ए सरकार में शामिल गैर कांग्रेस पार्टियों के नेता किसी गलती में पकडे जाते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व और प्रधान मंत्री उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं ./ उन्होंने २ जी मामले में ए राजा को जेल में भेजने का ज़िक्र किया . सुषमा स्वराज ने कहा कि जब मंहगाई के बढ़ने की बात आती है तो एन सी पी के शरद पवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है . इसी तरह जब एयर इंडिया में भ्रष्टाचार की बात आती है तो एन सी पी के प्रफुल पटेल का नाम ले लिया जाता है लेकिन जब कांग्रेस के पी चिदंबरम पर बात आती है तो कांग्रेस उनके बचाव में आ जाती है . अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री पर आरोप लगाया कि वे पी चिदंबरम का बचाव करके भ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं ..उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम दागी हैं और उन पर अगर भरोसा करते रहे तो प्रधान मंत्री देश का भरोसा बहुत जल्द खो देगें.बीजेपी ने अब कैश फार वोट मामले में फंसे अपने सदस्यों का बचाव करने का फैसला कर लिया है . कल सुषमा स्वराज जेल में बंद अपनी पार्टी के कैश फार वोट के अभियुक्तों से मिल कर आई हैं और आज अरुण जेटली और आडवानी से सुधीन्द्र कुलकर्णी और अन्य दो पूर्व सांसदों से मिलने जा रहे हैं . जब पूछा गया कि अब कैश फार वोट के केस से आप लोग अपनी पार्टी को कैसे बचायेगें तो अरुण जेटली ने कहा कि उनकी पार्टी के लोग तो भ्रष्टाचार को एक्सपोज कर रहे थे . वे अपराधी नहीं हैं .
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Wednesday, September 28, 2011
भ्रष्टाचार के बहाने बीजेपी को चाहिए गृहमंत्री का इस्तीफा
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२७ सितम्बर.बीजेपी किसी भी कीमत पर पी चिदंबरम को सरकार से बाहर देखना चाहती है . आज अपनी नियमित ब्रीफिंग में पार्टी ने पी चिदम्बरम को निशाने पर लिया . २ जी के मुख्य खलनायक के रूप में चिदंबरम को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही बीजेपी ने रामदेव के रामलीला मैदान वाले कार्यक्रम के दौरान घायल हुई महिला , राजबाला के मृत्यु के लिए भी गृह मंत्री को ज़िम्मेदार ठहराया और उनका इस्तीफा माँगा . जबकि कांग्रेस का दावा है कि पी चिदम्बरम को बीजेपी इसलिए हटाने की कोशिश कर रही है कि उनके विभाग के अधीन काम करने वाली जांच एजेंसी,एन आई ए की जांच के चलते बीजेपी और आर एस एस के कथित आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हो रहा है. कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह का दावा हैकि बीजेपी वाले गृह मंत्री के रूप में ,पी चिदंबरम की सफलता से बहुत परेशान हैं और इसीलिये वे पी चिदंबरम को गृह मंत्री पदसे हटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं .
बीजेपी मुख्यालय में आज पार्टी की ब्रीफिंग में प्रवक्ता, निर्मला सीतारामन ने देश के सामने आये कई संकटों के लिए गृह मंत्री पी चिदंबरम को ज़िम्मेदार ठहराया और उनके इस्तीफे की मांग की.उन्होंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि अगर चिदंबरम इस्तीफा न दें तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए. पार्टी ने २५ मार्च के उस पत्र का हवाला दिया जो सूचना के अधिकार का इसेतमाल करके निकाला गया है जिसमें वित्त मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि अगर तत्कालीन वित् मंत्री चिदंबरम ने चाहा होता तो संचार मंत्री, ए राजा स्पेक्ट्रम के काम में हेराफेरी न कर पाते..निर्मला सीतारामन ने कहा कि २००१ के कीमतों पर २००७ में स्पेक्ट्रम क्यों बेचा गया. कुल मिलाकर तत्कालीन वित्तमंत्री को ज़िम्मेदार बताते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने गृह मंत्री के इस्तीफे के फरमाइश कर दी. रामदेव के रामलीला मैदान वाले आन्दोलन में घायल हुई महिला राजबाला की मृत्यु के मामले में भी बीजेपी प्रवक्ता ने बहुत दुःख जताया और कहा कि राजबाला की हत्या दिल्ली पुलिस की लाठियों से चोट खाकर हुई थी. दिल्ली पुलिस चिदम्बरम के मातहत एक महकमा है इसलिए राजबाला की मौत के लिए भी पी चिदंबरम को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफ़ा दे देना चाहिए . ठीक इसी तरह का बयान लोकसभा में विपक्ष की नेता ,सुषमा स्वराज ने भी दिया . सुषमा स्वराज राजबाला के अंतिम संस्कार में शामिल होने आज हरियाणा गयी हुई हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने तेलंगाना में अलग राज्य की मांग बनाने के लिए चल रहे आन्दोलन के केस में भी पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि २ जी मामले में हुई सरकारी खजाने की लूट में पी चिदंबरम की संलिप्तता को कांग्रेस अध्यक्ष , सोनिया गाँधी अपनी पार्टी का मामला मान रही हैं और प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रही हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि यह न तो कांग्रेस का आन्तरिक माला है और न ही इसमें किसी सुलह की ज़रुरत है . इसमें तो गृह मंत्री का इस्तीफ़ा ही समस्या का हल निकाल सकता है.
उधर कांग्रेस भी हमलावर मूड में दिखी.कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि बीजेपी हाथ धोकर पी चिदंबरम के पीछे इसलिए पड़ गयी है कि अब आर एस एस के आतंकवाद के तामझाम का पर्दाफाश बहुत जल्द होने वाला है .दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि पी चिदंबरम दिग्विजय सिंह के अधीन काम करने वाली एन आई ए की जांच का नतीजा है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में हुई कई आतंकवादी घटनाओं में संघ से जुड़े लोग पकडे जा रहे हैं . मालेगांव, समझौता ,अजमेर आदि आतंकवादी घटनाओं में आर एस एस शामिल पायी गयी है . उन्होंने साफ़ कहा कि आर एस एस ने पहले तो आतंकवादी वारदात में पकडे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं से पल्ला झाड़ते रहने का सिलसिला अपनाया था लेकिन जब आर एस एस के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी भी जांच के घेरे में आ गए तो पी चिदंबरम को निशाने पर लिया गया. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सांसद जगदम्बिका पाल ने भी चिदंबरम को निशाना बनाने की बीजेपी की कोशिश की आलोचना की और कहा कि बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति का भंडाफोड़ हो रहा है . यह काम गृह मंत्रालय कर रहा है.इसलिए बीजेपी पी चिदंबरम के खिलाफ अभियान चला रही है .इस मुद्दे पर देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन सेकुलर फ्तंत के अध्यक्ष जमशेद जैदी भी दिग्विजय सिंह के एबात को सही मानते हैं . उन्होंने कहा कि देश के जागरूक वर्ग को चाहिए कि वह आर एस एस /बीजेपी की हर साज़िश को जनता के सामने लाये. जहां तक २ जे एस्पेत्रम का सवाल है उसकी जांच में राजनीति घुसाने की ज़रूरत नहीं है . २ जी घोटाले में शामिल हर दोषी व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए
नई दिल्ली,२७ सितम्बर.बीजेपी किसी भी कीमत पर पी चिदंबरम को सरकार से बाहर देखना चाहती है . आज अपनी नियमित ब्रीफिंग में पार्टी ने पी चिदम्बरम को निशाने पर लिया . २ जी के मुख्य खलनायक के रूप में चिदंबरम को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही बीजेपी ने रामदेव के रामलीला मैदान वाले कार्यक्रम के दौरान घायल हुई महिला , राजबाला के मृत्यु के लिए भी गृह मंत्री को ज़िम्मेदार ठहराया और उनका इस्तीफा माँगा . जबकि कांग्रेस का दावा है कि पी चिदम्बरम को बीजेपी इसलिए हटाने की कोशिश कर रही है कि उनके विभाग के अधीन काम करने वाली जांच एजेंसी,एन आई ए की जांच के चलते बीजेपी और आर एस एस के कथित आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश हो रहा है. कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह का दावा हैकि बीजेपी वाले गृह मंत्री के रूप में ,पी चिदंबरम की सफलता से बहुत परेशान हैं और इसीलिये वे पी चिदंबरम को गृह मंत्री पदसे हटाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं .
बीजेपी मुख्यालय में आज पार्टी की ब्रीफिंग में प्रवक्ता, निर्मला सीतारामन ने देश के सामने आये कई संकटों के लिए गृह मंत्री पी चिदंबरम को ज़िम्मेदार ठहराया और उनके इस्तीफे की मांग की.उन्होंने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि अगर चिदंबरम इस्तीफा न दें तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए. पार्टी ने २५ मार्च के उस पत्र का हवाला दिया जो सूचना के अधिकार का इसेतमाल करके निकाला गया है जिसमें वित्त मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि अगर तत्कालीन वित् मंत्री चिदंबरम ने चाहा होता तो संचार मंत्री, ए राजा स्पेक्ट्रम के काम में हेराफेरी न कर पाते..निर्मला सीतारामन ने कहा कि २००१ के कीमतों पर २००७ में स्पेक्ट्रम क्यों बेचा गया. कुल मिलाकर तत्कालीन वित्तमंत्री को ज़िम्मेदार बताते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने गृह मंत्री के इस्तीफे के फरमाइश कर दी. रामदेव के रामलीला मैदान वाले आन्दोलन में घायल हुई महिला राजबाला की मृत्यु के मामले में भी बीजेपी प्रवक्ता ने बहुत दुःख जताया और कहा कि राजबाला की हत्या दिल्ली पुलिस की लाठियों से चोट खाकर हुई थी. दिल्ली पुलिस चिदम्बरम के मातहत एक महकमा है इसलिए राजबाला की मौत के लिए भी पी चिदंबरम को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफ़ा दे देना चाहिए . ठीक इसी तरह का बयान लोकसभा में विपक्ष की नेता ,सुषमा स्वराज ने भी दिया . सुषमा स्वराज राजबाला के अंतिम संस्कार में शामिल होने आज हरियाणा गयी हुई हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने तेलंगाना में अलग राज्य की मांग बनाने के लिए चल रहे आन्दोलन के केस में भी पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि २ जी मामले में हुई सरकारी खजाने की लूट में पी चिदंबरम की संलिप्तता को कांग्रेस अध्यक्ष , सोनिया गाँधी अपनी पार्टी का मामला मान रही हैं और प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम के बीच सुलह कराने की कोशिश कर रही हैं . बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि यह न तो कांग्रेस का आन्तरिक माला है और न ही इसमें किसी सुलह की ज़रुरत है . इसमें तो गृह मंत्री का इस्तीफ़ा ही समस्या का हल निकाल सकता है.
उधर कांग्रेस भी हमलावर मूड में दिखी.कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि बीजेपी हाथ धोकर पी चिदंबरम के पीछे इसलिए पड़ गयी है कि अब आर एस एस के आतंकवाद के तामझाम का पर्दाफाश बहुत जल्द होने वाला है .दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि पी चिदंबरम दिग्विजय सिंह के अधीन काम करने वाली एन आई ए की जांच का नतीजा है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में हुई कई आतंकवादी घटनाओं में संघ से जुड़े लोग पकडे जा रहे हैं . मालेगांव, समझौता ,अजमेर आदि आतंकवादी घटनाओं में आर एस एस शामिल पायी गयी है . उन्होंने साफ़ कहा कि आर एस एस ने पहले तो आतंकवादी वारदात में पकडे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं से पल्ला झाड़ते रहने का सिलसिला अपनाया था लेकिन जब आर एस एस के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी भी जांच के घेरे में आ गए तो पी चिदंबरम को निशाने पर लिया गया. उत्तर प्रदेश के कांग्रेस सांसद जगदम्बिका पाल ने भी चिदंबरम को निशाना बनाने की बीजेपी की कोशिश की आलोचना की और कहा कि बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति का भंडाफोड़ हो रहा है . यह काम गृह मंत्रालय कर रहा है.इसलिए बीजेपी पी चिदंबरम के खिलाफ अभियान चला रही है .इस मुद्दे पर देश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन सेकुलर फ्तंत के अध्यक्ष जमशेद जैदी भी दिग्विजय सिंह के एबात को सही मानते हैं . उन्होंने कहा कि देश के जागरूक वर्ग को चाहिए कि वह आर एस एस /बीजेपी की हर साज़िश को जनता के सामने लाये. जहां तक २ जे एस्पेत्रम का सवाल है उसकी जांच में राजनीति घुसाने की ज़रूरत नहीं है . २ जी घोटाले में शामिल हर दोषी व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए
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Monday, September 26, 2011
मीडियाकर्मी को न्याय के निजाम की स्थापना के लिए काम करना चाहिए
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२४ सितम्बर. सुप्रीम कोर्ट की जज ,न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए . उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं , जो भी विषय उनके सामने आता है ,वे उस पर एक तरह से फैसला ही देते हैं . वे लोगों का क्रास एग्जामिनेशन करते हैं और उनके काम का असर देश काल पर पड़ता है . मीडियाकर्मी को ध्यान रखना चाहिए कि उनका भी एक मुख्य न्यायाधीश होता है जो उनकी आत्मा के अंदर बैठा रहता है . ज़रूरी यह है कि मीडिया में काम करने वाले अपने उस मुख्य न्यायाधीश की बात सुनें और चैनल के मालिक के व्यापारिक हितों के प्रभाव में आकर काम न करें .क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वे मीडियाकर्मी के पवित्र काम से विचलित हो जायेगें और अपने मालिक के व्यापारिक हितों के साधक के रूप में काम करते पाए जायेगें जो कि उनके लिए निश्चित रूप से ठीक नहीं होगा
नई दिल्ली में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में जस्टिस श्रीमती ज्ञानसुधा मिश्रा ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया किया कि समाज में बहुत सारी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ व्याप्त हैं . समाज के कई क्षेत्रों में बहुत सारी बुराइयां हैं . उन बुराइयों को ख़त्म करने की ज़रूरत है लेकिन यह काम कानून के सहारे नहीं किया जा सकता . उसके लिए ज़रूरी है व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव आये . अगर व्यक्ति बदलेगा ,तो समाज भी बदल जाएगा. समाज में बदलाव आने के बाद जो भी कानून बनेगा वह आसानी से लागू किया जा सकेगा. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए समाज में विचार क्रान्ति की ज़रुरत है . उन्होंने भरोसा जताया कि विचार क्रान्ति के ज़रिये बहुत सारी समस्याओं का शान्तिपूर्ण और सकारात्मक हल निकाला जा सकता है . विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति के दर्शन की उन्होंने तारीफ़ की और कहा कि इस विचार क्रान्ति के दर्शन से बहुत कुछ बदला जा सकता है और समाज में चौतरफा शांति का निजाम कायम किया जा सकता है .अगर समाज की मासिकता शुद्ध नहीं है तो कानून बनने के बाद भी हालात सुधरने की गारंटी नहीं की जा सकती . उन्होंने कन्या भ्रूण की हत्या के हवाले से अपनी बात समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनकी नानी -दादी बताया करती थीं कि उनके बचपन में उनके इलाके में कुछ लोगों के घर अगर बच्ची पैदा हो जाती थी तो उसे पैदा होते ही नमक चटाकर मार डालते थे. आज विज्ञान तरक्की कर गया है ,अल्ट्रासाउंड के ज़रिये लोग पता लगा लेते हैं कि गर्भ में बेटी है कि बेटा. विज्ञान की इतनी तरक्की हो जाने के बाद भी आज ऐसे बहुत सारे केस मालूम हैं जहां बच्ची को गर्भ में आते ही मार डाला जाता है . इस तरह के काम के खिलाफ बहुत ही मज़बूत कानून है लेकिन जब तक व्यक्ति के विचार में शुद्धता नहीं आयेगी , वैज्ञानिक और कानूनी प्रगति के बाद भी न्याय का निजाम नहीं कायम हो सकेगा और समाज में पीड़ा व्याप्त रहेगी. गायत्री परिवार के संस्थापक के काम की उन्होंने प्रशंसा की और कहा कि यह खुशी की बात है कि उनके उत्तराधिकारी डॉ प्रणव पंड्या ने आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति वाले दर्शन को सामाजिक परिवर्तन के एक निमित्त के रूप में अपनाया और समाज में शुचिता का माहौल बनाने में अपने संगठन का योगदान दे रहे हैं . इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश , जस्टिस आर सी लाहोटी ने विश्व गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या से अपने करीबी संबंधों का उल्लेख किया और बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा ने आज की समस्याओं का अपनी किताबों में बाकायदा हल सुझा दिया था . उन्होंने विश्व गायत्री परिवार के कार्यक्रमों की तारीफ़ की और कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमारी मौजूदा समस्याओं का हल निकाल सकते हैं . हमें ज्ञान के प्रकाश के ज़रिये अज्ञान और निराशा के अँधेरे के ऊपर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए . अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने इस अवसर पर बताया कि पूरी दुनिया में उनके संगठन के करीब दस करोड़ लोग सक्रिय है जो भारतीय वैदिक मूल्यों के सहारे अपने विचार परिवर्तन करके समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं . उन्होंने बताया कि कोशिश की जा रही है कि सभी समस्याओं का हल सबसे पहले व्यक्ति खुद अपने अंदर परिवर्तन करके निकालने के लिए उपाय करे. अगर ऐसा हो सका तो सारे समाज में परिवर्तन आ जाएगा.
नई दिल्ली,२४ सितम्बर. सुप्रीम कोर्ट की जज ,न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा है कि मीडिया में काम करने वालों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर ही काम करना चाहिए . उन्होंने ख़ास तौर से टेलिविज़न वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मीडियाकर्मी भी एक तरह के जज हैं , जो भी विषय उनके सामने आता है ,वे उस पर एक तरह से फैसला ही देते हैं . वे लोगों का क्रास एग्जामिनेशन करते हैं और उनके काम का असर देश काल पर पड़ता है . मीडियाकर्मी को ध्यान रखना चाहिए कि उनका भी एक मुख्य न्यायाधीश होता है जो उनकी आत्मा के अंदर बैठा रहता है . ज़रूरी यह है कि मीडिया में काम करने वाले अपने उस मुख्य न्यायाधीश की बात सुनें और चैनल के मालिक के व्यापारिक हितों के प्रभाव में आकर काम न करें .क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वे मीडियाकर्मी के पवित्र काम से विचलित हो जायेगें और अपने मालिक के व्यापारिक हितों के साधक के रूप में काम करते पाए जायेगें जो कि उनके लिए निश्चित रूप से ठीक नहीं होगा
नई दिल्ली में गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की जन्मशती के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी में जस्टिस श्रीमती ज्ञानसुधा मिश्रा ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया किया कि समाज में बहुत सारी रूढ़ियाँ और कुरीतियाँ व्याप्त हैं . समाज के कई क्षेत्रों में बहुत सारी बुराइयां हैं . उन बुराइयों को ख़त्म करने की ज़रूरत है लेकिन यह काम कानून के सहारे नहीं किया जा सकता . उसके लिए ज़रूरी है व्यक्ति की मानसिकता में बदलाव आये . अगर व्यक्ति बदलेगा ,तो समाज भी बदल जाएगा. समाज में बदलाव आने के बाद जो भी कानून बनेगा वह आसानी से लागू किया जा सकेगा. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि इसके लिए समाज में विचार क्रान्ति की ज़रुरत है . उन्होंने भरोसा जताया कि विचार क्रान्ति के ज़रिये बहुत सारी समस्याओं का शान्तिपूर्ण और सकारात्मक हल निकाला जा सकता है . विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति के दर्शन की उन्होंने तारीफ़ की और कहा कि इस विचार क्रान्ति के दर्शन से बहुत कुछ बदला जा सकता है और समाज में चौतरफा शांति का निजाम कायम किया जा सकता है .अगर समाज की मासिकता शुद्ध नहीं है तो कानून बनने के बाद भी हालात सुधरने की गारंटी नहीं की जा सकती . उन्होंने कन्या भ्रूण की हत्या के हवाले से अपनी बात समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनकी नानी -दादी बताया करती थीं कि उनके बचपन में उनके इलाके में कुछ लोगों के घर अगर बच्ची पैदा हो जाती थी तो उसे पैदा होते ही नमक चटाकर मार डालते थे. आज विज्ञान तरक्की कर गया है ,अल्ट्रासाउंड के ज़रिये लोग पता लगा लेते हैं कि गर्भ में बेटी है कि बेटा. विज्ञान की इतनी तरक्की हो जाने के बाद भी आज ऐसे बहुत सारे केस मालूम हैं जहां बच्ची को गर्भ में आते ही मार डाला जाता है . इस तरह के काम के खिलाफ बहुत ही मज़बूत कानून है लेकिन जब तक व्यक्ति के विचार में शुद्धता नहीं आयेगी , वैज्ञानिक और कानूनी प्रगति के बाद भी न्याय का निजाम नहीं कायम हो सकेगा और समाज में पीड़ा व्याप्त रहेगी. गायत्री परिवार के संस्थापक के काम की उन्होंने प्रशंसा की और कहा कि यह खुशी की बात है कि उनके उत्तराधिकारी डॉ प्रणव पंड्या ने आचार्य श्रीराम शर्मा के विचार क्रान्ति वाले दर्शन को सामाजिक परिवर्तन के एक निमित्त के रूप में अपनाया और समाज में शुचिता का माहौल बनाने में अपने संगठन का योगदान दे रहे हैं . इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश , जस्टिस आर सी लाहोटी ने विश्व गायत्री परिवार के वर्तमान प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या से अपने करीबी संबंधों का उल्लेख किया और बताया कि आचार्य श्रीराम शर्मा ने आज की समस्याओं का अपनी किताबों में बाकायदा हल सुझा दिया था . उन्होंने विश्व गायत्री परिवार के कार्यक्रमों की तारीफ़ की और कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो हमारी मौजूदा समस्याओं का हल निकाल सकते हैं . हमें ज्ञान के प्रकाश के ज़रिये अज्ञान और निराशा के अँधेरे के ऊपर विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए . अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने इस अवसर पर बताया कि पूरी दुनिया में उनके संगठन के करीब दस करोड़ लोग सक्रिय है जो भारतीय वैदिक मूल्यों के सहारे अपने विचार परिवर्तन करके समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रहे हैं . उन्होंने बताया कि कोशिश की जा रही है कि सभी समस्याओं का हल सबसे पहले व्यक्ति खुद अपने अंदर परिवर्तन करके निकालने के लिए उपाय करे. अगर ऐसा हो सका तो सारे समाज में परिवर्तन आ जाएगा.
Saturday, September 24, 2011
पी चिदंबरम को बचाने की डगर पर बार बार फिसल रही है कांग्रेस
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२३ सितम्बर.पी चिदंबरम के बचाव के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है .प्रणब मुखर्जी के उस नोट ने ज़रूरी तूफान मचा दिया है . बीजेपी ने पी चिदंबरम के २ जी मामले में कथित रूप से शामिल होने की बात को राजनीति और मीडिया के एजेंडे पर लाने में कोई कसर नहीं छोडी है . हर संभावित मंच पर आज बीजेपी ने पी चिदंबरम के माले को परवान चढाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास मामले में तकनीकी तौर पर बचाव करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. कांग्रेस प्रवक्ता लगभग गिडगिडाते हुए बोले कि बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की मुसीबत में उसे परेशान करने का अभियान शुरू कर दिया है जो ठीक नहीं है .
बीजेपी ने आज पी चिदंबरम के मामले में पूरी तरह से हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि २ जी मामले में प्रधान मंत्री की हर बात को नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने पहले तो ए राजा को भी निर्दोष बताया था लकिन बाद में उनकी सरकार की एजेंसियों ने जांच में उन्हें घोटाले में लिप्त पाया और आजकल वे जेल में हैं .बीजेपी का दावा है कि २ जी घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है औत्र उसकी पारदर्शी जांच ज़रूरी है . बीजेपी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी मुख्यालय की अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा कि पी चिदंबरम को क्या इस लिए बचाया जा रहा है कि कहीं २ जी घोटाले की जांच की लपटें प्रधान मंत्री कार्यालय तक न पंहुच जाएँ . इस ब्रीफिंग में बीजेपी प्रवक्ता ने सी बी आई की भूमिका को भी विवाद के दायरे में लेने की कोशिश की. बीजेपी ने प्रधान मंत्री से मांग की कि पी चिदंबरम को क्लीन चिट देने से बात ख़त्म नहीं हो जायेगी. उन्हें चाहिए वे चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई करे. मामले को कोर्ट में बता कर बचने की सरकार की कोशिश अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता के पास बीजेपी के आरोपों का कोई जवाब नहीं था . आज कांग्रेस के तरफ से मोर्चा संभाल रहे मनीष तिवारी ने बीजेपी के राज के दौरान हुए दूरसंचार घोटालों का बार बार उल्लेख किया और दावा किया कि मौजूदा २ जी घोटाले के बीज अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री रहते हुए लाई गयी दूरसंचार पालिसी १९९९ में मौजूद थे. उन्होंने ने साफ़ कहा कि एन दी ए सरकार के दौरान भी दूरसंचार पालिसी का बार उल्लंघन हुआ . उन्होंने कहा कि बीजेपी को चाहिए कि अपने गिरेबान में झाँक कर देखे और उसके बाद कांग्रेस की आलोचना करे . जब उनको बताया गया कि जब ए राजा की अगुवाई में २ जी घोटाला हो रहा था उसी दौर में वित्त मंत्रालय के ने आपत्ति की थी .क्या कारण है कि उस waqt के वित्त मंत्री ने नौअक्र्शाही के आदेश को ओवर रूल l करके ए राजा को घोटाला करने दिया, तो कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर वही संयुक्त संसदीय समिति के अंदर विचार होने की बात करके मामले को टालने की कोशिश की. जब पूछा गया कि तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जब तक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के नतीजे न आ जाएँ तब तक इस मामले में कोई खबर न लिखी जाए तो वे मामले को और भी बहुत लम्बे दायरे में घेरकर पेश करने की कोशिश करते नज़र आये .
नई दिल्ली,२३ सितम्बर.पी चिदंबरम के बचाव के मामले में कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है .प्रणब मुखर्जी के उस नोट ने ज़रूरी तूफान मचा दिया है . बीजेपी ने पी चिदंबरम के २ जी मामले में कथित रूप से शामिल होने की बात को राजनीति और मीडिया के एजेंडे पर लाने में कोई कसर नहीं छोडी है . हर संभावित मंच पर आज बीजेपी ने पी चिदंबरम के माले को परवान चढाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी के पास मामले में तकनीकी तौर पर बचाव करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. कांग्रेस प्रवक्ता लगभग गिडगिडाते हुए बोले कि बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस की मुसीबत में उसे परेशान करने का अभियान शुरू कर दिया है जो ठीक नहीं है .
बीजेपी ने आज पी चिदंबरम के मामले में पूरी तरह से हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि २ जी मामले में प्रधान मंत्री की हर बात को नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्होंने पहले तो ए राजा को भी निर्दोष बताया था लकिन बाद में उनकी सरकार की एजेंसियों ने जांच में उन्हें घोटाले में लिप्त पाया और आजकल वे जेल में हैं .बीजेपी का दावा है कि २ जी घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला है औत्र उसकी पारदर्शी जांच ज़रूरी है . बीजेपी के प्रवक्ता रवि शंकर प्रसाद ने आज पार्टी मुख्यालय की अपनी नियमित ब्रीफिंग में कहा कि पी चिदंबरम को क्या इस लिए बचाया जा रहा है कि कहीं २ जी घोटाले की जांच की लपटें प्रधान मंत्री कार्यालय तक न पंहुच जाएँ . इस ब्रीफिंग में बीजेपी प्रवक्ता ने सी बी आई की भूमिका को भी विवाद के दायरे में लेने की कोशिश की. बीजेपी ने प्रधान मंत्री से मांग की कि पी चिदंबरम को क्लीन चिट देने से बात ख़त्म नहीं हो जायेगी. उन्हें चाहिए वे चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई करे. मामले को कोर्ट में बता कर बचने की सरकार की कोशिश अपराध पर पर्दा डालने की कोशिश है और इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा.
कांग्रेस प्रवक्ता के पास बीजेपी के आरोपों का कोई जवाब नहीं था . आज कांग्रेस के तरफ से मोर्चा संभाल रहे मनीष तिवारी ने बीजेपी के राज के दौरान हुए दूरसंचार घोटालों का बार बार उल्लेख किया और दावा किया कि मौजूदा २ जी घोटाले के बीज अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री रहते हुए लाई गयी दूरसंचार पालिसी १९९९ में मौजूद थे. उन्होंने ने साफ़ कहा कि एन दी ए सरकार के दौरान भी दूरसंचार पालिसी का बार उल्लंघन हुआ . उन्होंने कहा कि बीजेपी को चाहिए कि अपने गिरेबान में झाँक कर देखे और उसके बाद कांग्रेस की आलोचना करे . जब उनको बताया गया कि जब ए राजा की अगुवाई में २ जी घोटाला हो रहा था उसी दौर में वित्त मंत्रालय के ने आपत्ति की थी .क्या कारण है कि उस waqt के वित्त मंत्री ने नौअक्र्शाही के आदेश को ओवर रूल l करके ए राजा को घोटाला करने दिया, तो कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर वही संयुक्त संसदीय समिति के अंदर विचार होने की बात करके मामले को टालने की कोशिश की. जब पूछा गया कि तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जब तक संयुक्त संसदीय समिति की जांच के नतीजे न आ जाएँ तब तक इस मामले में कोई खबर न लिखी जाए तो वे मामले को और भी बहुत लम्बे दायरे में घेरकर पेश करने की कोशिश करते नज़र आये .
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शेष नारायण सिंह
Thursday, September 22, 2011
आर एस एस ने आडवाणी को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से अलग किया
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२१ सितम्बर. लाल कृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की तरफ से २०१४ के लोक सभा चुनाव के वक़्त प्रधान मंत्री पड़ की दावेदारी से किनारा कर लिया है .आज सुबह नागपुर की यात्रा पर तलब किये गए आडवाणी ने आर एस एस को भरोसा दिला दिया है कि अब वे देश के सर्वोच्च पद के लिए दावेदारी नहीं करेगें . उनके इस बयान के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के अंदर का राजनीतिक संघर्ष तेज़ हो गया है . इस संघर्ष के तार अहमदाबाद से भी सीधे तौर पर जुड़ गए हैं.आज जब दिल्ली में पार्टी की नियमित ब्रीफिंग में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर से पूछा गया कि क्या आडवाणी के नागपुर के बयान के पीछे आर एस एस का दबाव था क्योंकि दिल्ली में आठ सितम्बर को जब उन्होंने अपनी रथ यात्रा का ऐलान किया था तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के सवाल को खुला छोड़ दिया था. आज नागपुर में उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें पार्टी, संघ और मीडिया से जितना प्यार मिला है वह प्रधान मंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है.पार्टी प्रवक्ता ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा और यही कहते रहे कि आडवाणी जी ने भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा के ऐलान के समय जो कुछ दिल्ली में कहा था वही बात उन्होंने नागपुर में भी कही. लेकिन बीजेपी के अंदर की खबर रखने वाले बताते हैं कि अब बीजेपी की राजनीति में आडवाणी युग समाप्त हो गया है और आर एस एस के टाप नेताओं की मौजूदगी में आज यह बात नागपुर में बिलकुल पक्के तौर पर तय कर दी गयी है . इसीलिये आडवानी ने आज नागपुर में कहा कि मैं पार्टी के साथ बना हूँ औअर यह उनके लिय एबहुत खुशी की बात है . उन्होंने साफ़ कहा कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते.बीजेपी प्रवक्ता ने आज स्पष्ट किया कि जिस रथयात्रा की घोषणा आडवाणी जी ने ८ सितम्बर को की थी , वह अभी रद्द नहीं की गयी है . लेकिन अभी उसके बारे में विस्तार से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
आडवाणी के इस बयान के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर उठापटक का दौर शुरू हो जाने की आशंका है . बीजेपी वालों को अनुमान है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार पूरी तरह से घिर चुकी है इसलिए अगले चुनाव में उसका जीतना असंभव है . उस खाली जगह को भरने के लिए बीजेपी के नए टाप नेता कोशिश कर रहे हैं . आडवानी के मैदान छोड़ देने के बाद यह रसाकशी और तेज़ हो जायेगी इस सम्बन्ध में जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के कम से कम पांच दावेदार हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी की आन्तरिक राजनीतिक उथल पुथल के बारे में वे कुछ नहीं कहना चाहते लेकिन उन्होंने बीजेपी का मजाक उडाना जारी रखा . बहरहाल बीजेपी में लाल कृष्ण आडवानी के नागपुर में दिए गए बयान के बाद सत्ता की दावेदारी का संघर्ष तेज़ हो गया है .
नई दिल्ली,२१ सितम्बर. लाल कृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की तरफ से २०१४ के लोक सभा चुनाव के वक़्त प्रधान मंत्री पड़ की दावेदारी से किनारा कर लिया है .आज सुबह नागपुर की यात्रा पर तलब किये गए आडवाणी ने आर एस एस को भरोसा दिला दिया है कि अब वे देश के सर्वोच्च पद के लिए दावेदारी नहीं करेगें . उनके इस बयान के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के अंदर का राजनीतिक संघर्ष तेज़ हो गया है . इस संघर्ष के तार अहमदाबाद से भी सीधे तौर पर जुड़ गए हैं.आज जब दिल्ली में पार्टी की नियमित ब्रीफिंग में पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर से पूछा गया कि क्या आडवाणी के नागपुर के बयान के पीछे आर एस एस का दबाव था क्योंकि दिल्ली में आठ सितम्बर को जब उन्होंने अपनी रथ यात्रा का ऐलान किया था तो उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के सवाल को खुला छोड़ दिया था. आज नागपुर में उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें पार्टी, संघ और मीडिया से जितना प्यार मिला है वह प्रधान मंत्री पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है.पार्टी प्रवक्ता ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा और यही कहते रहे कि आडवाणी जी ने भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा के ऐलान के समय जो कुछ दिल्ली में कहा था वही बात उन्होंने नागपुर में भी कही. लेकिन बीजेपी के अंदर की खबर रखने वाले बताते हैं कि अब बीजेपी की राजनीति में आडवाणी युग समाप्त हो गया है और आर एस एस के टाप नेताओं की मौजूदगी में आज यह बात नागपुर में बिलकुल पक्के तौर पर तय कर दी गयी है . इसीलिये आडवानी ने आज नागपुर में कहा कि मैं पार्टी के साथ बना हूँ औअर यह उनके लिय एबहुत खुशी की बात है . उन्होंने साफ़ कहा कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहते.बीजेपी प्रवक्ता ने आज स्पष्ट किया कि जिस रथयात्रा की घोषणा आडवाणी जी ने ८ सितम्बर को की थी , वह अभी रद्द नहीं की गयी है . लेकिन अभी उसके बारे में विस्तार से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
आडवाणी के इस बयान के बाद बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर उठापटक का दौर शुरू हो जाने की आशंका है . बीजेपी वालों को अनुमान है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार पूरी तरह से घिर चुकी है इसलिए अगले चुनाव में उसका जीतना असंभव है . उस खाली जगह को भरने के लिए बीजेपी के नए टाप नेता कोशिश कर रहे हैं . आडवानी के मैदान छोड़ देने के बाद यह रसाकशी और तेज़ हो जायेगी इस सम्बन्ध में जब कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के कम से कम पांच दावेदार हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी की आन्तरिक राजनीतिक उथल पुथल के बारे में वे कुछ नहीं कहना चाहते लेकिन उन्होंने बीजेपी का मजाक उडाना जारी रखा . बहरहाल बीजेपी में लाल कृष्ण आडवानी के नागपुर में दिए गए बयान के बाद सत्ता की दावेदारी का संघर्ष तेज़ हो गया है .
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शेष नारायण सिंह
योजना आयोग और कांग्रेस के बीच गरीबी रेखा पर मतभेद
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२१ सितम्बर.बीजेपी ने आज सरकार के उस हलफनामे की सख्त निंदा की जिसमें कथित रूप से गरीबों की संख्या घटाने की साज़िश की गयी है . बीजेपी ने एक बयान जारी करके कहा कि यह उस गरीब व्यक्ति का अपमान है जो बढ़ती मंहगाई और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है.गरीब को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के बजाय सरकार ने तथ्य को नकारने और गरीब व्यक्तियों की संख्या छिपाने का रास्ता चुना यह गरीबी दूर करना नहीं बल्कि गरीब को गरीब न मानना है. बीजेपी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार के इस गरीब विरोधी रवैये का सभी उपलब्ध मंचों पर विरोध करेगी. हालांकि कांग्रेस ने इस हलफनामे को अंतिम सत्य मानने से इनकार कर दिया और कहा कि योजना आयोग के पास इस मामले में सुझाव दिए जायेगें . कांग्रेस का दावा है कि यह सुझाव कोई भी दे सकता है . एक सीधे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी भी योजना आयोग को सकारात्मक सुझाव देगी.लगता है कि अर्थशात्र के विद्वान् योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने कांग्रेस के पार्टी से गरीबी की रेखा की परिभाषा तय करने के पहले हरी झंडी नहीं ली थी.
योजना आयोग ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा था कि देश के शहरी इलाकों में रह रहे लोग अगर ९६५ रूपये प्रति माह अपने परिवार के रख रखाव पर खर्च करते हैं तो वे गरीबी रेखा कि उपर मानेजायेगें जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पारिवारों के पास अगर ७८१ रूपये खर्च करने के लिए उपलब्ध है तो वे गरीब नहीं माने जायेगें. बीजेपी का कहना है कि यह सरकार की गैर ज़िम्मेदार कोशिश है . बीजेपी का दावा है कि यह दिमागी दिवालियापन है और इस प्रकार का हलफनामा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की विफलता का प्रतीक है .
खाद्य सुरक्षा का कानून बनाकर गरीब आदमी के बीच लोकप्रिय बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए योजना आयोग़ का यह हलफ़नामा बहुत मुश्किलें पैदा कर रहा है . आज जब कांग्रेस प्रवक्ता से इस बारे में जब सवाल किया गया तो तो उन्होंने साफ़ कहा कि अभी इस हलफनामे में सुधार किया जायेगा . हालांकि बात को बहुत घुमावदार तरीके से पेश किया गया लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता की बात से साफ़ था कि योजना आयोग ने उसके लिए मुश्किल पेश कर दी है . उनका कहना है कि बहुत ही सोच विचार के बाद यह आंकड़े उपलब्ध हुए हैं और योजना आयोग के बहुत ही काबिल लोगों ने इस हलफ नामे पर काम किया है . इसलिए इस पर सोच विचार के बाद कोई फैसला लिया जायेगा. कांगेस के सूत्रों का दावा है कि यह हलफनामा पार्टी को मुश्किल में डालने वाला है और बिना राजनीतिक क्लियरेंस के इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया है .
नई दिल्ली,२१ सितम्बर.बीजेपी ने आज सरकार के उस हलफनामे की सख्त निंदा की जिसमें कथित रूप से गरीबों की संख्या घटाने की साज़िश की गयी है . बीजेपी ने एक बयान जारी करके कहा कि यह उस गरीब व्यक्ति का अपमान है जो बढ़ती मंहगाई और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है.गरीब को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के बजाय सरकार ने तथ्य को नकारने और गरीब व्यक्तियों की संख्या छिपाने का रास्ता चुना यह गरीबी दूर करना नहीं बल्कि गरीब को गरीब न मानना है. बीजेपी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार के इस गरीब विरोधी रवैये का सभी उपलब्ध मंचों पर विरोध करेगी. हालांकि कांग्रेस ने इस हलफनामे को अंतिम सत्य मानने से इनकार कर दिया और कहा कि योजना आयोग के पास इस मामले में सुझाव दिए जायेगें . कांग्रेस का दावा है कि यह सुझाव कोई भी दे सकता है . एक सीधे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी भी योजना आयोग को सकारात्मक सुझाव देगी.लगता है कि अर्थशात्र के विद्वान् योजना आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने कांग्रेस के पार्टी से गरीबी की रेखा की परिभाषा तय करने के पहले हरी झंडी नहीं ली थी.
योजना आयोग ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करके कहा था कि देश के शहरी इलाकों में रह रहे लोग अगर ९६५ रूपये प्रति माह अपने परिवार के रख रखाव पर खर्च करते हैं तो वे गरीबी रेखा कि उपर मानेजायेगें जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पारिवारों के पास अगर ७८१ रूपये खर्च करने के लिए उपलब्ध है तो वे गरीब नहीं माने जायेगें. बीजेपी का कहना है कि यह सरकार की गैर ज़िम्मेदार कोशिश है . बीजेपी का दावा है कि यह दिमागी दिवालियापन है और इस प्रकार का हलफनामा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की विफलता का प्रतीक है .
खाद्य सुरक्षा का कानून बनाकर गरीब आदमी के बीच लोकप्रिय बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए योजना आयोग़ का यह हलफ़नामा बहुत मुश्किलें पैदा कर रहा है . आज जब कांग्रेस प्रवक्ता से इस बारे में जब सवाल किया गया तो तो उन्होंने साफ़ कहा कि अभी इस हलफनामे में सुधार किया जायेगा . हालांकि बात को बहुत घुमावदार तरीके से पेश किया गया लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता की बात से साफ़ था कि योजना आयोग ने उसके लिए मुश्किल पेश कर दी है . उनका कहना है कि बहुत ही सोच विचार के बाद यह आंकड़े उपलब्ध हुए हैं और योजना आयोग के बहुत ही काबिल लोगों ने इस हलफ नामे पर काम किया है . इसलिए इस पर सोच विचार के बाद कोई फैसला लिया जायेगा. कांगेस के सूत्रों का दावा है कि यह हलफनामा पार्टी को मुश्किल में डालने वाला है और बिना राजनीतिक क्लियरेंस के इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया गया है .
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शेष नारायण सिंह
गोपालगढ़ में मुसलमानों को टार्गेट करने के मामले में कांग्रेस को रंज है आराम के साथ
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, २१ सितम्बर .बीजेपी ने राजस्थान सरकार के इस्तीफे की मांग की है . पार्टी का आरोप है कि राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर को पुलिस ने एक समुदाय के लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की और लोगों की जान गयी . कांग्रेस के राशिद अल्वी इस मामले की जांच के लिए गोपाल गढ़ गए थे और उन्होंने राज्य के गृह मंत्री को घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराया . बीजेपी का आरोप है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद राजस्थान की पूरी सरकार को इस्तीफ़ा दे देना चाहिये . जब बीजेपी प्रवक्ता को बताया गया कि आप लोग गुजरात में हज़ारों मुसलमानों की हत्या के बाद भी नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं मानते हैं तो उन्होंने कहा कि गोपालगढ़ में सीधे तौर पर राज्य सरकार का हाथ है . मानवाधिकार संगठन ,पी यू सी एल का आरोप है कि इस मामले में पुलिस का गैर ज़िम्मेदार रवैया ही सबसे ज्यादा चिंता की बात है . अजीब बात है कि पुलिस ने दो लोगों के आपसी विवाद में भाग लेते हुए एक खास समुदाय को निशाना बनाया.
गोपालगढ़ की इस घटना में आठ लोग मारे गए और अधिकारिक रूप से 23 लोग घायल हुए। जिन आठ मृतकों की शिनाख्त हुई है, वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। 23 लोग घायल हुए, इसमें से 19 लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. यदि पुलिस ने सही कदम उठाते हुए गोलीबारी की है, तो यह एक पहेली है कि मरने वाले सभी एक ही समुदाय के कैसे हो सकते हैं. शुरुआती जांच में पता चला है कि पुलिस ने 219 राउंड गोलियां चलाईं. गोलीबारी से पहले सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का उल्लेख है लेकिन लाठीचार्ज या रबर बुलेट का कोई जिक्र नहीं आया है।
पीयूसीएल के अनुसार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्हें जलाया भी गया। यह जांच करने की जरूरत है कि यह किसने किया। गोलीबारी के बाद मस्जिद परिसर पुलिस के नियंत्रण में था . पी यू सी एल का आरोप हैं कि इस घटना के पीछे स्थानीय पुलिस के अलावा आरएसएस, बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं। आरोप यह लगाया कि ये लोग घटना से पहले थाने में थे, जहां दोनों समुदाय के बीच समझौते के लिए बैठक चल रही थी तथा इन्हीं लोगों ने दबाव बनाकर कलेक्टर से फायरिंग के आदेश लिखवाए। इसकी भी जांच करवाए जाने की आवश्यकता है. यह भी पता चला है कि गोपालगढ की मस्जिद की दीवारों पर गोलियों के निशान थे. खून के निशान भी मिले हैं .मारने के बाद लोगों को घसीटा भी गया .
नई दिल्ली में आज कांग्रेस के प्रवक्ता ने इसे बहुत ही दुखद और दुभाग्यपूर्ण बताया लेकिन वे इस से आगे जाने को तैयार नहीं थे. जब पूछा गया कि यह मामला तो गुजरात जैसा ही है तो उन्होंने एतराज़ किया और कहा कि गोपाल गढ़ के मामले में अभी कोई सबूत नहीं हैं . गुजरात के मामले में तो सबूत सुप्रीम कोर्ट तक पंहुच चुके हैं . बहरहाल कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद मुसलमानों को टार्गेट करके मारने की इस घटना से सभ्य समाज में बहुत नाराज़गी है .
नई दिल्ली, २१ सितम्बर .बीजेपी ने राजस्थान सरकार के इस्तीफे की मांग की है . पार्टी का आरोप है कि राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में 14 सितंबर को पुलिस ने एक समुदाय के लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की और लोगों की जान गयी . कांग्रेस के राशिद अल्वी इस मामले की जांच के लिए गोपाल गढ़ गए थे और उन्होंने राज्य के गृह मंत्री को घटना के लिए ज़िम्मेदार ठहराया . बीजेपी का आरोप है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद राजस्थान की पूरी सरकार को इस्तीफ़ा दे देना चाहिये . जब बीजेपी प्रवक्ता को बताया गया कि आप लोग गुजरात में हज़ारों मुसलमानों की हत्या के बाद भी नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं मानते हैं तो उन्होंने कहा कि गोपालगढ़ में सीधे तौर पर राज्य सरकार का हाथ है . मानवाधिकार संगठन ,पी यू सी एल का आरोप है कि इस मामले में पुलिस का गैर ज़िम्मेदार रवैया ही सबसे ज्यादा चिंता की बात है . अजीब बात है कि पुलिस ने दो लोगों के आपसी विवाद में भाग लेते हुए एक खास समुदाय को निशाना बनाया.
गोपालगढ़ की इस घटना में आठ लोग मारे गए और अधिकारिक रूप से 23 लोग घायल हुए। जिन आठ मृतकों की शिनाख्त हुई है, वे सभी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं। 23 लोग घायल हुए, इसमें से 19 लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. यदि पुलिस ने सही कदम उठाते हुए गोलीबारी की है, तो यह एक पहेली है कि मरने वाले सभी एक ही समुदाय के कैसे हो सकते हैं. शुरुआती जांच में पता चला है कि पुलिस ने 219 राउंड गोलियां चलाईं. गोलीबारी से पहले सिर्फ आंसू गैस के गोले छोड़े जाने का उल्लेख है लेकिन लाठीचार्ज या रबर बुलेट का कोई जिक्र नहीं आया है।
पीयूसीएल के अनुसार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उन्हें जलाया भी गया। यह जांच करने की जरूरत है कि यह किसने किया। गोलीबारी के बाद मस्जिद परिसर पुलिस के नियंत्रण में था . पी यू सी एल का आरोप हैं कि इस घटना के पीछे स्थानीय पुलिस के अलावा आरएसएस, बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ता शामिल हो सकते हैं। आरोप यह लगाया कि ये लोग घटना से पहले थाने में थे, जहां दोनों समुदाय के बीच समझौते के लिए बैठक चल रही थी तथा इन्हीं लोगों ने दबाव बनाकर कलेक्टर से फायरिंग के आदेश लिखवाए। इसकी भी जांच करवाए जाने की आवश्यकता है. यह भी पता चला है कि गोपालगढ की मस्जिद की दीवारों पर गोलियों के निशान थे. खून के निशान भी मिले हैं .मारने के बाद लोगों को घसीटा भी गया .
नई दिल्ली में आज कांग्रेस के प्रवक्ता ने इसे बहुत ही दुखद और दुभाग्यपूर्ण बताया लेकिन वे इस से आगे जाने को तैयार नहीं थे. जब पूछा गया कि यह मामला तो गुजरात जैसा ही है तो उन्होंने एतराज़ किया और कहा कि गोपाल गढ़ के मामले में अभी कोई सबूत नहीं हैं . गुजरात के मामले में तो सबूत सुप्रीम कोर्ट तक पंहुच चुके हैं . बहरहाल कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद मुसलमानों को टार्गेट करके मारने की इस घटना से सभ्य समाज में बहुत नाराज़गी है .
Wednesday, September 21, 2011
भारतीय ज्ञानपीठ ने श्रीलाल शुक्ल को सम्मानित करके अपनी इज्ज़त बढ़ाई
शेष नारायण सिंह
श्रीलाल शुक्ल और अमर कान्त को साहित्य का सबसे ज्यादा कीमत वाला पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, मिल गया है .लखनऊ के दैनिक अखबार , जनसंदेश टाइम्स ने आज इसे पहले पेज पर अपनी मुख्य हेडलाइन बनाकर छापा है . यह बहुत खुशी की बात है . श्री लाल शुक्ल के कालजयी ग्रन्थ ' राग दरबारी ' को देश का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार, " साहित्य अकादमी " तो १९६९ में ही मिल चुका था लेकिन सबसे ज्यादा पैसे वाला पुरस्कार मिलने में बहुत देर हुई .ज्ञान पीठ ने ' राग दरबारी ' के लेखक को यह पुरस्कार देकर उनका कोई सम्मान नहीं बढ़ाया है. हिन्दी साहित्य के जिस मुकाम पर श्रीलाल शुक्ल विराजते हैं , वहां किसी भी पुरस्कार की कोई औकात नहीं रह जाती लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा करके भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने सम्मान में वृद्धि ज़रूर की है . राजनीतिक और समकालीन घटनाओं पर केन्द्रित एक अखबार ने इस साहित्यिक घटना को मुख्य हेडलाइन बनाकर यह साबित कर दिया है कि पिछले ४० साल से जिस साहित्यकार की धमक लखनऊ की हर सांस में रही है वह किसी भी नेता से बड़ा है और जब कोई संगठन उसको सम्मानित करता है तो उसे लखनऊ की सबसे बड़ी खबर में शामिल होने का मौक़ा दिया जाना चाहिए. राग दरबारी का सम्मान करके ज्ञानपीठ ने अपने आपको सम्मान के लायक एक बार फिर घोषित कर दिया है .
१९७० में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास ,' गणदेवता ' को पढ़ते हुए मुझे लगा था कि प्रेमचंद के बाद भी ऐसे लोग पैदा हुए हैं जो आपको अपनी कहानी के गाँव में बैठा देते हैं. ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि और जाति की संस्था और ज़मीन के रिश्तों पर हमला बोल रहे ' गणदेवता ' में लेखक की कबीरपंथी ईमानदारी से मैं बहुत प्रभावित हुआ था. मैंने कभी बंगाल का कोई गाँव नहीं देखा था लेकिन उस उपन्यास के पात्र मुझे अपने गाँव में ही मिल गए थे. ख़ास तौर पर छिरू पाल का चरित्र तो कुछ पन्नों के बाद बंगाल के किसी गांव से उठ कर सीधे मेरे अपने गाँव में आ गया था. लगता है कि वह मेरे गाँव के एक गंवई दबंग का चरित्र है . पूरे उपन्यास में छिरू पाल मुझे अपने गाव के ही लगते रहे. गाँव में ज़मीन की मिलकियत के बदल रहे समीकरण ने भी मुझे अपने गाँव में ही स्थापित कर दिया था. गणदेवता पढने वाले उस वक़्त मेरे कालेज में बहुत कम लोग थे उनसे बात नहीं हो सकती थी. ज्ञानपीठ सम्मान में उन दिनों भी शायद एक लाख रूपये मिलते थे जो सम्मानित लेखक के लिए बहुत बड़ी रक़म थी. उन्हीं दिनों श्रीलाल शुक्ल का ग्रन्थ " राग दरबारी " बहुत चर्चा में था. उसे भी उसी साल या कुछ पहले साहित्य अकादमी पुरास्कार मिला था.. गणदेवता के बाद मैंने ' राग दरबारी ' पढ़ा मुझे लगा कि इस उपन्यास को भी लखटकिया पुरस्कार मिलना चाहिए . आज ४० साल बाद जब ' राग दरबारी ' के लेखक को लखटकिया पुरस्कार मिला तो वह ८५ साल की उम्र पार कर चुके हैं. खुशी इस बात की है कि जिस अखबार में मैं भी लिखता हूँ उस अखबार ने समकालीन साहित्य के सबसे बड़े मनीषी को मिले हुए सम्मान को मुख्य खबर बनाया है .
छात्र जीवन के बाद १९७३ में डिग्री कालेज में लेक्चरर होने के बाद मैंने ' राग दरबारी ' दुबारा पढ़ा . उसके सारे चरित्र वही थे लेकिन उनका मतलब मेरे लिए नया हो चुका था. खन्ना मास्टर में अब अपना अक्स दिखने लगा था. पहली बार पढने पर सनीचर मेरे अपने गाँव के एक आदमी के रूप में नज़र आता था लेकिन कालेज में तो वह प्रिंसिपल की काया में प्रवेश कर गया था. १९७० में रंग नाथ एक बन्तू किस्म का इंसान था जो कि मेरे कालेज में पढाता था. यहाँ आकर रंगनाथ एकदम अलग तरह का बेहूदा नज़र आने लगा था. वैद जी के चरित्र में भी नई पहचान घुस गयी थी. . नई परिस्थिति में एकदम अलग किस्म का रामाधीन भीखमखेडवी पैदा हो चुका था. मुराद यह कि ' राग दरबारी 'के जो चरित्र मूल रूप से शिवपाल गंज के आस पास विराजते थे , वे मौक़ा मिलते ही किसी भी गांव के चरित्र बन सकते थे. यही नहीं वे शहरी चरित्र भी बन सकते थे. दिल्ली में १९७७ के दौरान मैंने ' राग दरबारी ' के पात्रों को फिर से नए परिवेश में देखा. यहाँ वैद जी तो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नामवर सिंह ही लगते थे लेकिन . उन दिनों कई सनीचर नज़र आने लगे थे. यहाँ के रंगनाथ का बांकपन बिलकुल अलग था. १९७८ में शायद राजिंदर नाथ का नाटक "जाति ही पूछो साधू की " श्रीराम सेंटर में खेला गया था. उस नाटक में आज के बुज़ुर्ग अभिनेता, एस एम ज़हीर ने लेक्चरर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वाले पात्र की भूमिका अदा की थी. वह भी बिलकुल खन्ना मासटर का अवतार लग रहा था. राष्ट्रीय सहारा अखबार में नौकरी करते हुए मैंने और मेरे साथी संजय श्रीवास्तव ने उस अखबार के दफ्तर को ही शिवपालगंज नाम दे दिया था. वहां भी एक से एक बढ़ कर वैद जी, खन्ना मास्टर आदि पाए जाते थे. राग दरबारी के और भी बहुत सारे इस्तेमाल हैं . मैंने उसे तीन चार बार पढ़ रखा था लेकिन जब दिल्ली में अपनी पत्नी के साथ अपना घर बसाया तो मैंने उन्हें पूरा ' राग दरबारी ' करीब एक हफ्ते के अंदर बांचकर सुनाया था. मुझे मालूम है कि उसके बाद वे मुझे पहले से ज्यादा प्यार करने लगी थीं .
राग दरबारी को हालांकि उपन्यास कहा जाता है . लेकिन मैं उसे एक पूर्ण ग्रन्थ मानता हूँ .साहित्यकार और आलोचक क्या कहते हैं , मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं उसे १९६० के बाद के बदल रहे भारत का लखनऊ के आस पास का समकालीन इतिहास ही मानता हूँ . उसकी खूबी यह है कि उसके पात्र हर गाँव और हर व्यक्ति में अलग अलग मायने के साथ हाज़िर होते हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने एक बार अपनी इज़्ज़त को फिर से रिक्लेम करने की कोशिश की . हालांकि बीच में तो बहुत सारे तिकड़म बाजों को सम्मानित करके वह भी भारत सरकार के पद्म पुरस्कारों की तरह पतन के रास्ते पर चल पड़ा था. लेकिन लगता है कि अब वह फिर से अपने खोये हुए गौरव की तलाश में है .
श्रीलाल शुक्ल और अमर कान्त को साहित्य का सबसे ज्यादा कीमत वाला पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, मिल गया है .लखनऊ के दैनिक अखबार , जनसंदेश टाइम्स ने आज इसे पहले पेज पर अपनी मुख्य हेडलाइन बनाकर छापा है . यह बहुत खुशी की बात है . श्री लाल शुक्ल के कालजयी ग्रन्थ ' राग दरबारी ' को देश का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक पुरस्कार, " साहित्य अकादमी " तो १९६९ में ही मिल चुका था लेकिन सबसे ज्यादा पैसे वाला पुरस्कार मिलने में बहुत देर हुई .ज्ञान पीठ ने ' राग दरबारी ' के लेखक को यह पुरस्कार देकर उनका कोई सम्मान नहीं बढ़ाया है. हिन्दी साहित्य के जिस मुकाम पर श्रीलाल शुक्ल विराजते हैं , वहां किसी भी पुरस्कार की कोई औकात नहीं रह जाती लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा करके भारतीय ज्ञानपीठ ने अपने सम्मान में वृद्धि ज़रूर की है . राजनीतिक और समकालीन घटनाओं पर केन्द्रित एक अखबार ने इस साहित्यिक घटना को मुख्य हेडलाइन बनाकर यह साबित कर दिया है कि पिछले ४० साल से जिस साहित्यकार की धमक लखनऊ की हर सांस में रही है वह किसी भी नेता से बड़ा है और जब कोई संगठन उसको सम्मानित करता है तो उसे लखनऊ की सबसे बड़ी खबर में शामिल होने का मौक़ा दिया जाना चाहिए. राग दरबारी का सम्मान करके ज्ञानपीठ ने अपने आपको सम्मान के लायक एक बार फिर घोषित कर दिया है .
१९७० में ताराशंकर बंद्योपाध्याय के उपन्यास ,' गणदेवता ' को पढ़ते हुए मुझे लगा था कि प्रेमचंद के बाद भी ऐसे लोग पैदा हुए हैं जो आपको अपनी कहानी के गाँव में बैठा देते हैं. ग्रामीण बंगाल की पृष्ठभूमि और जाति की संस्था और ज़मीन के रिश्तों पर हमला बोल रहे ' गणदेवता ' में लेखक की कबीरपंथी ईमानदारी से मैं बहुत प्रभावित हुआ था. मैंने कभी बंगाल का कोई गाँव नहीं देखा था लेकिन उस उपन्यास के पात्र मुझे अपने गाँव में ही मिल गए थे. ख़ास तौर पर छिरू पाल का चरित्र तो कुछ पन्नों के बाद बंगाल के किसी गांव से उठ कर सीधे मेरे अपने गाँव में आ गया था. लगता है कि वह मेरे गाँव के एक गंवई दबंग का चरित्र है . पूरे उपन्यास में छिरू पाल मुझे अपने गाव के ही लगते रहे. गाँव में ज़मीन की मिलकियत के बदल रहे समीकरण ने भी मुझे अपने गाँव में ही स्थापित कर दिया था. गणदेवता पढने वाले उस वक़्त मेरे कालेज में बहुत कम लोग थे उनसे बात नहीं हो सकती थी. ज्ञानपीठ सम्मान में उन दिनों भी शायद एक लाख रूपये मिलते थे जो सम्मानित लेखक के लिए बहुत बड़ी रक़म थी. उन्हीं दिनों श्रीलाल शुक्ल का ग्रन्थ " राग दरबारी " बहुत चर्चा में था. उसे भी उसी साल या कुछ पहले साहित्य अकादमी पुरास्कार मिला था.. गणदेवता के बाद मैंने ' राग दरबारी ' पढ़ा मुझे लगा कि इस उपन्यास को भी लखटकिया पुरस्कार मिलना चाहिए . आज ४० साल बाद जब ' राग दरबारी ' के लेखक को लखटकिया पुरस्कार मिला तो वह ८५ साल की उम्र पार कर चुके हैं. खुशी इस बात की है कि जिस अखबार में मैं भी लिखता हूँ उस अखबार ने समकालीन साहित्य के सबसे बड़े मनीषी को मिले हुए सम्मान को मुख्य खबर बनाया है .
छात्र जीवन के बाद १९७३ में डिग्री कालेज में लेक्चरर होने के बाद मैंने ' राग दरबारी ' दुबारा पढ़ा . उसके सारे चरित्र वही थे लेकिन उनका मतलब मेरे लिए नया हो चुका था. खन्ना मास्टर में अब अपना अक्स दिखने लगा था. पहली बार पढने पर सनीचर मेरे अपने गाँव के एक आदमी के रूप में नज़र आता था लेकिन कालेज में तो वह प्रिंसिपल की काया में प्रवेश कर गया था. १९७० में रंग नाथ एक बन्तू किस्म का इंसान था जो कि मेरे कालेज में पढाता था. यहाँ आकर रंगनाथ एकदम अलग तरह का बेहूदा नज़र आने लगा था. वैद जी के चरित्र में भी नई पहचान घुस गयी थी. . नई परिस्थिति में एकदम अलग किस्म का रामाधीन भीखमखेडवी पैदा हो चुका था. मुराद यह कि ' राग दरबारी 'के जो चरित्र मूल रूप से शिवपाल गंज के आस पास विराजते थे , वे मौक़ा मिलते ही किसी भी गांव के चरित्र बन सकते थे. यही नहीं वे शहरी चरित्र भी बन सकते थे. दिल्ली में १९७७ के दौरान मैंने ' राग दरबारी ' के पात्रों को फिर से नए परिवेश में देखा. यहाँ वैद जी तो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नामवर सिंह ही लगते थे लेकिन . उन दिनों कई सनीचर नज़र आने लगे थे. यहाँ के रंगनाथ का बांकपन बिलकुल अलग था. १९७८ में शायद राजिंदर नाथ का नाटक "जाति ही पूछो साधू की " श्रीराम सेंटर में खेला गया था. उस नाटक में आज के बुज़ुर्ग अभिनेता, एस एम ज़हीर ने लेक्चरर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वाले पात्र की भूमिका अदा की थी. वह भी बिलकुल खन्ना मासटर का अवतार लग रहा था. राष्ट्रीय सहारा अखबार में नौकरी करते हुए मैंने और मेरे साथी संजय श्रीवास्तव ने उस अखबार के दफ्तर को ही शिवपालगंज नाम दे दिया था. वहां भी एक से एक बढ़ कर वैद जी, खन्ना मास्टर आदि पाए जाते थे. राग दरबारी के और भी बहुत सारे इस्तेमाल हैं . मैंने उसे तीन चार बार पढ़ रखा था लेकिन जब दिल्ली में अपनी पत्नी के साथ अपना घर बसाया तो मैंने उन्हें पूरा ' राग दरबारी ' करीब एक हफ्ते के अंदर बांचकर सुनाया था. मुझे मालूम है कि उसके बाद वे मुझे पहले से ज्यादा प्यार करने लगी थीं .
राग दरबारी को हालांकि उपन्यास कहा जाता है . लेकिन मैं उसे एक पूर्ण ग्रन्थ मानता हूँ .साहित्यकार और आलोचक क्या कहते हैं , मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं उसे १९६० के बाद के बदल रहे भारत का लखनऊ के आस पास का समकालीन इतिहास ही मानता हूँ . उसकी खूबी यह है कि उसके पात्र हर गाँव और हर व्यक्ति में अलग अलग मायने के साथ हाज़िर होते हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने एक बार अपनी इज़्ज़त को फिर से रिक्लेम करने की कोशिश की . हालांकि बीच में तो बहुत सारे तिकड़म बाजों को सम्मानित करके वह भी भारत सरकार के पद्म पुरस्कारों की तरह पतन के रास्ते पर चल पड़ा था. लेकिन लगता है कि अब वह फिर से अपने खोये हुए गौरव की तलाश में है .
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