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Thursday, October 6, 2011

पीस पार्टी ने जोड़ा सुलतानपुर की राजनीति में एक नया आयाम

शेष नारायण सिंह और विजय पाण्डेय


आम तौर पर बसपा का गढ़ माने जाने वाले सुलतान पुर की राजनीति में डॉ मोहम्मद अयूब की पीस पार्टी ने एक नया आयाम जोड़ दिया है . इस जिले की पांच सीटों में से अब तक चार सीटें बसपा के पास हैं .इस बार भी आम तौर पर माना जा रहा था कि ज़्यादातर सीटों पर मुकाबला बसपा और सपा के बीच होगा लेकिन पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने लम्भुआ विधान सभा सीट से अपने ठाकुर उम्मीदवार के नाम का ऐलान करके मुक़म्मल तरीके से लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है .लोकसभा चुनाव २००९ में बहुत दिन बाद कांग्रेसी उम्मीदवार की जीत के बाद माना जा रहा था कि इस इलाके में कांग्रेस की भी थोड़ी बहुत मौजूदगी लेकिन ऐसा कहीं होता कहीं नहीं दिख रहा है . जहां तक बीजेपी का सवाल है, उसने राम जन्मभूमि के आन्दोलन के बाद हुए दो चुनावों में सफलता पायी थी लेकिन अब वह बहुत दूर कहीं हाशिये पर चली गयी . लेकिन ऐसा लगता है कि पीस पार्टी की नई पहल के बाद समीकरण बिलकुल बदल जायेगें.

सुलतान पुर जिले में पिछले कई वर्षों से लोक सभा सीट बीजेपी और बी एस पी के कमज़ोर उम्मीदवारों के बीच बंटती रही है .बीजेपी ने कभी किसी बाबा को टिकट दे दिया तो कभी किसी पुलिस वाले को लेकिन जनसमर्थन का सैलाब ऐसा था कि पार्टी जीत जाती थी. जब राम जन्मभूमि वाला राजनीतिक मुद्दा कमज़ोर पड़ा तो बी एस पी के ऐसे उम्मीदवार जीतने लगे जिनका कहीं किसी ने नाम तक न सुना था. बी एस पी के पक्के वोटों की ताक़त पर ऐसे लोग जीत गए जिनका राजनीतिक मजबूती के बारे में ज्ञान लगभग शून्य था. ऐसे ही एक बी एस पी सांसद को हराने के लिए २००९ में लगभग पूरा जिला एकजुट हो गया और कांग्रेस के एक मज़बूत नेता को चुनाव जिता दिया और संजय गांधी और राजीव गाँधी युग के ताक़तवर कांग्रेस नेता , संजय सिंह एम पी बन गए.लेकिन उनकी जीत के बाद भी पार्टी को कोई मजबूती नहीं मिल सकी क्योंकि उनके आलाकमान ने उन्हें दिल्ली में कोई हैसियत नहीं दी.आज कांग्रेस की हालात खस्ता है . हालांकि पार्टी के बहुत बड़े नेता आस्कर फर्नांडीज़ के सहयोगी बी पी सिंह दिल्ली में माहौल बनाए हुए हैं कि वे जयसिंह पुर विधान सभा क्षेत्र से चुनाव जीत सकते हैं लेकिन क्षेत्र में उनकी ज़मीनी पहचान कुछ नहीं हैं . लोग उनको गंम्भीरता से नहीं ले रहे हैं .जयसिंह पुर विधान सभा क्षेत्र में एक अजीब बात देखने में आई . कांगेस के लिए टिकट की दौड़ में मुंबई के एक व्यापारी भी हैं.कहते हैं कि वे सीधे राहुल गाँधी के दरबार से टिकट पा जायेगें . इलाके के लोग उसको गंभीरता से ले रहे हैं . उसका एक भाई जिला पंचायत का सदस्य बनने में सफल रहा था . पूरे जिले में कांग्रेस के उम्मीदवारों में इनका नाम ही मुकाबले में मौजूद रह सकने लायक उम्मीद्वारों में लिया जा रहा है. हालांकि आई आई टी से बी टेक पास करने वाला एक नौजवान भी लम्भुआ से कांग्रेस के टिकट की कोशिश कर रहा है लेकिन जब कांग्रेस की ही हालत खस्ता है तो उसके उम्मीदवारों की क्या बिसात .
जिले में चर्चा है कि बी एस पी के मौजूदा विधायक चन्द्रभद्र सिंह बीजेपी के साथ भी जा सकते हैं . आकलन यह है कि अगर वे बीजेपी में जाते हैं तो बीजेपी को मजबूती मिलेगी . लेकिन यह बात चर्चा के स्तर पर ही है . इस बात को गंभीरता से लेने वालों की भारी कमी है . सुलतान पुर शहर से बीजेपी के कुछ ऐसे उम्मीदवार सुनायी पड़ रहे हैं जो जिले में बीजेपी की मौजूदगी का माहौल बना सकते हैं . हाँ ,अगर और पार्टियों ने उलटे सीधे टिकट दे दिए तो शहर की सीट पर बीजेपी की जीत की थोड़ी बहुत संभावना बन सकती है .लेकिन अगर चन्द्रभद्र सिंह बीजेपी के साथ न गए तो पार्टी का कोई नामलेवा नहीं है .

राष्ट्रीय स्तर की दोनों पार्टियों, बीजेपी और कांग्रेस की हालत एक जैसी ही है . जिले के जिन बड़े पत्रकारों से बातचीत हुई सब का मानना है कि लड़ाई बसपा और सपा के बीच ही है . कादीपुर सुरक्षित विधानसभा सीट पर बसपा के वर्तमान विधायक के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं लेकिन उनके खिलाफ सपा का जो उम्मीदवार है उसकी छवि एक बेदाग़ इंसान की है . १९७४ में वह तत्कालीन जनसंघ की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार जयराज गौतम ने उन्हें हरा दिया था . ३७ साल की अपनी चुनावी राजनीति में वे इस मुकाम पर हैं जहां उनके साथ लोगों की सहानुभूति है . क्षेत्र में मुसलमानों और पिछड़ी जातियों का प्रतिशत अच्छा है इसलिए वे मज़बूत माने जा रहे हैं .अगर कहीं कांग्रेसी उम्मीदवार ठीक से लड़ गया तो बसपा विधायक के लिए मुश्किल पेश आ सकती है . जिले की एक अन्य प्रतिष्ठित सीट लम्भुआ है. इस सीट पर भी सपा का उम्मीदवार मज़बूत है . हालांकि पार्टी ने वहां भी दुविधा दिखाई है . एक बार टिकट देकर बदल दिया गया है . चर्चा है कि फिर बदल दिया जाएगा . ऊपर से उसका मुकाबला राज्य के पर्यटन मंत्री , विनोद सिंह से है . लम्भुआ में आम तौर पर ठाकुर और ब्रह्मण एक दूसरे के खिलाफ रहते हैं . सपा का ब्राह्मण उम्मीदवार पहले भी विधायक रह चुका है और ब्राह्मणों में लोकप्रिय है .बसपा के विनोद सिंह का दावा है कि उनके खिलाफ कोई नहीं जीत सकता. उन्होंने बहुत काम किया है . गोमती नदी पर तीन पुल उनके सौजन्य से ही बन रहे हैं. वैसे भी वे क्षेत्र के लोगों से संपर्क में रहते हैं लेकिन उनके खिलाफ दो बातें हो सकती हैं . एक तो वे इलाके में एक ख़ास वर्ग के ठाकुरों को साथ लेकर चल रहे हैं . इसके अलावा पीस पार्टी के लम्भुआ से ताज़ा घोषित हुए उमीदवार उनकी मुसीबत बढ़ा सकते हैं . के डी सिंह नाम के यह व्यक्ति ठाकुर नौजवानों में आज से ही चर्चा में आ गए हैं .जो ठाकुर लड़के उनका गुणगान कर रहे हैं अगर वे साथ चले गए तो विनोद सिंह को फ़ौरन किसी नई रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर होना पडेगा.कुल मिलाकर सुल्तानपुर जिले की राजनीति ऐसी है जहां बहुत कुछ बदलने वाला नहीं है.

Tuesday, June 22, 2010

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमर सिंह ने कांशीराम का रास्ता अपनाया

शेष नारायण सिंह

बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम वोटों के लिए जुगाड़ शुरू हो गया है . बिहार में तो मुसलमानों को रिझाने के पारंपरिक तरीके इस्तेमाल किये जा रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में कुछ नए प्रयोग हो रहे हैं . आम तौर पर चुनाव में कुछ पैसों की लालच में छोटी राजनीतिक पार्टियां बना ली जाती हैं लेकिन इस बार जो छोटी राजनीतिक पार्टियां बन रही हैं, उन्हें जनता ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है . डुमरिया गंज विधान सभा चुनाव में इस बात पर बहस नहीं थी कि कौन जीतेगा . सब को मालूम था कि सत्ताधारी पार्टी की उम्मीदवार ही जीतेगी लेकिन दूसरी जगह पर कौन आएगा ,इस पर चर्चा थी क्योंकि उस को ही सबसे लोकप्रिय पार्टी माना जाएगा. दूसरी जगह पर बी जे पी आ गयी जबकि राहुल गाँधी और जगदम्बिका पाल की कोशिश के बावजूद कांग्रेस बहुत पीछे छूट गयी . उत्तर प्रदेश में आम तौर पर मुसलमानों की पसंदीदा पार्टी, समाजवादी पार्टी भी बहुत पिछड़ गयी. और गैर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर घोषित रूप से पिछड़े मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए बनायी गयी , पीस पार्टी का उम्मीदवार बाकायदा लड़ाई में बना रहा. पीस पार्टी के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का नंबर आया. पीस पार्टी के बारे में कहा जाता है कि उसे हिंदुत्व वादी ताक़तों ने बनवाया है ताकि मुसलमानों का वोट कांग्रेस या समाजवादी पार्टी को न मिल सके. इस बात के कोई सबूत नहीं है लेकिन ऐसा कहने वाले बहुत सारे लोग मिल जायेगें . पीस पार्टी के अलावा भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के नाम पर कई पार्टियां बन चुकी हैं. अभी उनकी राजनीतिक हैसियत कुछ ख़ास नहीं है लेकिन चुनाव के मैदान में उनकी मौजूदगी निश्चित रूप से नतीजों को प्रभावित कर रही है और करेगी भी .

उत्तर प्रदेश में डुमरिया गंज के उपचुनाव ने बहुत सारे राजनीतिक विमर्श के सूत्र छोड़े हैं . डुमरिया गंज जिस लोक सभा क्षेत्र में पड़ता है , वहां से पिछले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जगदम्बिका पाल विजयी रहे थे. डुमरिया गंज सेगमेंट में भी वे आगे थे . यानी वहां माहौल कांग्रेस के पक्ष में था लेकिन विधान सभा उपचुनाव में पांचवें स्थान पर आकर कांग्रेस ने साबित कर दिया कि लोक सभा चुनाव का नतीजा एक इत्तेफाक था .इस से ज्यादा कुछ नहीं .लेकिन इसमें कांग्रेस की प्रतिष्टा दांव पर लगी थी और वह धूमिल हुई है ..इस उपचुनाव में और भी बहुत कुछ दांव पर लगा था. कल्याण सिंह को साथ लेने के बाद समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के सम्बन्ध भी मुस्लिम जनमत के बीच बहस का विषय हैं . हालांकि कल्याणसिंह को अब समाजवादी पार्टी ने निकाल दिया है लेकिन अभी विश्वसनीयता का संकट बना हुआ है . कुछ मुसलमान नेता भी कल्याण सिंह मामले को मुद्दा बनाने के चक्कर में थे लेकिन सफल नहीं हुए . इनमें से एक तो पार्टी से निकाले भी गए. पूरे देश के मुसलमानों का प्रतिनिधि बनने का दावा करने वाले यह नेता जी अपने विधान सभा क्षेत्र में भी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार जयाप्रदा को हरा नहीं पाए . उनके घर के सामने , जयाप्रदा के समर्थकों ने सभा की और उनके समर्थन वाली कांग्रेसी उम्मीदवार को हराया .इसलिए मुस्लिम जनमत में उन नेता जी की तो कोई ख़ास इज्ज़त नहीं है लेकिन लोक सभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से जोड़ने वाले पार्टी के पूर्व महासचिव ,अमर सिंह की राजनीति का खामियाजा समाजवादी पार्टी को भोगना पड़ रहा है. डुमरिया गंज में भी अमर सिंह ने पूरी ताक़त से पीस पार्टी के उम्मीदवार की मदद की थी. भोजपुरी फिल्मों के नायक , मनोज तिवारी और हिन्दी फिल्मों की नायिका और संसद सदस्य , जयाप्रदा के साथ डुमरिया गंज में सभा भी की थी. और भी कारण रहे होंगें जिसकी वजह से मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट नहीं दिया लेकिन इस चुनाव ने साबित कर दिया कि समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह चुक जाने को तैयार नहीं हैं.. कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी में भी नेता की कृपा से सत्ता का सुख भोगने का फैशन है . कांगेस में इंदिरा गाँधी के नाम पर चुनाव जीते जाते थे और जिसको भी वे पार्टी से निकाल देती थीं उसकी राजनीति का अंत हो जाता था. अब सोनिया गाँधी की लोकप्रियता की छाया में कांग्रेस के नेता लोग सत्ता का आनंद ले रहे हैं . समाजवादी पार्टी में भी यही होता था. मुलायम सिंह यादव के नाम पर ही सारी जमात राज कर रही थी . माना जा रहा था कि अमर सिंह भी उसी भीड़ का हिसा हैं जो नेता जी के नाम पर मौज कर रहे हैं. जिसको भी नेता जी ने निकाल दिया उनकी हालत खस्ता हो जाती थी और पार्टी का कोई नुकसान नहीं होता था . बेनी प्रसाद वर्मा, रघु ठाकुर,राज बब्बर, आज़म खां आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो समाजवादी पार्टी के आलाकमान हुआ करते थे लेकिन आज कहीं नहीं हैं . अमर सिंह भी इसी दशा को प्राप्त होगें ऐसा माना जा रहा था लेकिन उन्होंने डुमरिया गंज चुनाव में हस्तक्षेप करके बता दिया है कि वे राज्य की राजनीति में मजबूती के साथ मौजूद हैं और आने वाले महीनों में अपनी पुरानी पार्टी के लिए तो मुश्किल पैदा करेगें ही, छोटी पार्टियों को जोड़कर एक ऐसा गठबंधन तैयार कर देगें जो उत्तर प्रदेश की पारंपरिक पार्टियों को सत्ता के गलियारों से बाहर भी खदेड़ सकता है. १९८७ के बाद कांशी राम ने भी यही प्रयोग किया था और आज देश के हर कोने में उनकी पार्टी की ताक़त से लोग डरते हैं. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तन का डंका बज चुका है . भविष्य में क्या होगा , उसके बारे में अभी कुछ कहना इसलिए ठीक नहीं होगा कि अपनी राजनीतिक समझदारी की समझ दांव पर लग सकती है .