अमरीका में भारत और चीन से जाकर शिक्षा लेने वाले बच्चों की बहुत इज्जत है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमरीका की शिक्षा व्यवस्था इस तरह की बनाई जाएगी कि वह भारत और चीन की शिक्षा के स्तर से मुकाबला कर सके। सच्चाई यह है कि अमरीका में शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा है, वहां कोई समस्या नहीं है। मुसीबत यह है कि अमरीकी नौजवान शिक्षा के प्रति उतना गंभीर नहीं है जितना भारतीय और चीनी नौजवान है।
नई शिक्षा व्यवस्था शुरू करने से ओबामा की योजना है कि अधिक से अधिक अमरीकी नौजवान ग्रेजुएट स्तर की शिक्षा और काम करने की कुशलता सीखे। ओबामा की इस योजना को अमेरिकन ग्रेजुएशन इनीशिएटिव नाम दिया गया है। उनकी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग सामुदायिक कालेजों में जायं और काम करने के लिए कुछ नई योग्यताएं हासिल करें। उस योजना में अगले दस वर्षों तक 12 अरब डॉलर खर्च किया जाएगा। इस धन की व्यवस्था उस सब्सिडी को काटकर की जाएगी जो अभी बैंकों और प्राइवेट वित्तीय संस्थानों दी जाती है जिससे वे मंहगी शिक्षा के लिए दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर कम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
सब्सिडी काटकर ओबामा ने यह ऐलान कर दिया है कि संपन्न वर्गों को ज्यादा सुविधा न देकर उनका प्रशासन अब आम आदमी की तरफ ज्यादा ध्यान देगा। बराक ओबामा का अमेरिकन ग्रेजुएशन इनीशिएटिव एक महत्वपूर्ण योजना है। द्वितीय विश्व युद्घ के बाद प्रेसिडेंट ट्रमैन ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण पहल की थी। उसके बाद से इतने बड़े पैमाने पर शिक्षा के क्षेत्र में कोई पहल नहीं हुई। दरअसल उच्च शिक्षा के लिए ओबामा की यह पहल बेरोजगारी की समस्या को हल करने की दिशा में दूरगामी और महत्वपूर्ण कदम है।
अमरीकी अर्थव्यवस्था के विकास के बाद ऐसा माहौल बन गया था कि हाई स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद बच्चे कोई न कोई नौकरी पा जाते थे। इसीलिए उच्च शिक्षा के लिए एशिया के देशों, खासकर भारत और चीन के बच्चों को फेलोशिप आदि देकर अमरीकी विश्वविद्यालयों में रिसर्च करने के लिए उत्साहित किया जाता था। नतीजा यह हुआ है कि निचले स्तर पर तो बड़ी संख्या में अमरीकी नौजवान काम कर रहा है लेकिन ऊपर के स्तर पर विदेशियों की संख्या ज्यादा है। ग्रेजुएशन इनीशिएटिव के माध्यम से ओबामा की कोशिश है कि बड़ी से बड़ी संख्या में अमरीकी नौजवान अच्छी शिक्षा लेकर नौकरियों की ऊपरी पायदान पर पहुंचे जिससे अमरीकी समाज और राष्ट्र का भला हो।
किसी भी राष्ट्र की तरक्की में शिक्षा के महत्व और उसकी मुख्य भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता भारत में पिछड़ेपन का मुख्य कारण शिक्षा की कमी ही थी। आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की दूर तक सोच सकने की क्षमता का ही नतीजा था कि उन्होंने बड़ी संख्या में विश्व स्तर के शिक्षा केंद्रों की स्थापना की। सामाजिक जीवन में सक्रिय लोगों को भी स्कूल कालेज खोलने की प्रेरणा दी। नतीजा यह हुआ कि बड़े पैमाने पर शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। भारत में शिक्षा के क्षेत्र में आजादी के बाद की गई पहल का नतीजा था कि देश के कई हिस्सों, खासकर दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में प्राइवेट शिक्षा संस्थाओं की स्थापना हुई।
जब 1991 में डा. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया गया तो उन्होंने आर्थिक विकास को उदारीकरण और वैश्वीकरण के रास्ते पर डाल दिया। उन्होंने कहा कि नौजवानों में कौशल के विकास और अच्छी शिक्षा के बिना कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता था। शिक्षा के महत्व को डा. मनमोहन सिंह से बेहतर कौन समझ सकता था। अविभाजित पंजाब के एक छोटे से गांव में पैदा हुए मनमोहन सिंह ने शिक्षा के बल पर ही समाज में इज्जत पाई थी और वर्तमान पद पर भी वे उच्च शिक्षा के बल पर पहुंचे है।
1991 में की गई उनकी शुरुआत का ही नतीजा है कि देश में शिक्षा संस्थाओं की बाढ़ आ गई है। कुछ धूर्त किस्म के लोगों ने भी उच्च शिक्षा के केंद्र खोल कर कमाई शुरू कर दी है लेकिन समय के साथ-साथ सब ठीक हो जाएगा। बराक ओबामा भी शिक्षा के बल पर ही अपनी वर्तमान पोजीशन तक पहुंचे है। उन्हें भी मनमोहन सिंह की तरह ही शिक्षा का महत्व मालूम है। शायद इसीलिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार के रास्ते वे अमरीकी समाज को तरक्की के रास्ते पर एक बार फिर से डालने की कोशिश कर रहे है।