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Wednesday, November 2, 2011

माफी मांगने के बाद सज़ा होगी तो मीडिया की स्वतंत्रता को ख़त्म होने से कोई नहीं रोक सकता .

शेष नारायण सिंह

मीडिया को भी संभल कर रहने का सन्देश बहुत ही साफ़ ज़बान में मिलना शुरू हो गया है .देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार से जुड़े हुए अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल ने पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे मामलों से पर्दा उठाया है कि कुछ नेताओं के लिए बहुत ही मुश्किल पैदा हो गयी है . सुरेश कलमाड़ी के कारनामों के बारे में लगभग हर शुरुआती जानकारी इसी चैनल से आई. हालांकि कलमाडी साहेब मुगालते में रहे लेकिन आखिर में घिर गए और आजकल जेल की हवा खा रहे हैं . ज़ाहिर है कि उनके दिमाग में इस चैनल को लेकर बहुत गुस्सा है . बताते हैं कि एक बार उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि इस चैनल को वे कभी माफ़ नहीं करेगें और इसको तबाह कर देगें.उनकी इस बात को एक परेशान आदमी का गुबार मान कर मीडिया बिरादरी ने इग्नोर कर दिया था लेकिन अब बात साफ़ होने लगी है . देश के कई शहरों में कलमाडी के लोगों ने इस इस चैनल और इसके संपादक पर मानहानि का मुक़दमा कर दिया है .कई मामले तो पुणे शहर में ही दाखिल कर दिए गए हैं. सुरेश कलमाड़ी मूल रूप से पुणे के ही रहने वाले हैं . पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वालों को यह मालूम रहता है कि अगर गलती हुई तो मानहानि के मुक़दमे दायर होंगें. इसीलिये हर ईमानदार पत्रकार कोशिश करता है कि गलती न हो और अगर गलती हो जाए तो फ़ौरन माफी मांग ली जाए. देश के लगभग सभी बड़े मीडिया संस्थाओं से गलती हो चुकी है . और जब गलती के लिए माफी मांग ली जाती है तो आमतौर पर पीड़ित पक्ष मुक़दमे नहीं दायर करता है . अगर किसी ने मुक़दमा दायर कर भी दिया तो दो बातें होती हैं. या तो अदालत मीडिया संस्थान की माफी को स्वीकार कर लेती है और फैसला कर देती है.अगर गलत सूचना के तुरंत बाद माफी नहीं माँगी गयी है तो कोर्ट का फैसला आ जाता है कि जिस प्रमुखता से खबर को प्रकाशित और प्रचारित किया गया था, उसी प्रमुखता से गलत खबर के लिए माफी माँगी जाए.लेकिन अगर मीडिया हाउस ऐसा नहीं करता तो उसके ऊपर जुर्माना होता है .

हालांकि इस मामले का कलमाडी से कोई लेना देना नहीं है लेकिन देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार से जुड़े हुए चैनल के मामले में ऐसा नहीं हुआ. बार बार माफी मांगने के बाद भी उनके ऊपर ट्रायल कोर्ट ने एक सौ करोड़ रूपये का जुर्माना ठोंक दिया .चैनल वालों ने जब हाई कोर्ट में अपील की पेशकश की तो माननीय हाई कोर्ट ने कहा कि आप बीस करोड़ रूपया जमा कर दीजिये और अस्सी करोड़ रूपये के लिए गारंटी दे दीजिये तब अपील ली जायेगी. अब लोग सुप्रीम कोर्ट गए हैं . गुहार यह है कि अगर निचली अदालत के फैसले में किये गए जुर्माने को जमा करके ही अपील होनी है तह तो न्याय के मार्ग में बाधा पड़ सकती है .इस मामले में जब चैनल के अधिकारियों से बात की गयी तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया . कहा कि मामला अदालत के अधीन है ,इसलिए वे कोई बात नहीं करेगें.
हालांकि यह केस बहुत ही दिलचस्प है २००८ में किसी खबर के सन्दर्भ में सुप्रीम के कोर्ट के एक रिटायर्ड जज साहब की गलत तस्वीर लग गयी थी. यह तस्वीर १०-१५ सेकण्ड आन एयर रही. गलती का एहसास तुरंत ही हो गया था. चैनल वालों ने माफी मांगना शुरू कर दिया और तीन चार दिन तक माफी मांगते रहे .लेकिन फिर भी मुक़दमा हो गया. ट्रायल कोर्ट ने माफी वाली बात को स्वीकार नहीं किया और एक सौ करोड़ रूपये का जुर्माना कर दिया. अपील के लिए जब हाई कोर्ट गए तब पता चला कि बीस करोड़ रूपये जमा करना पडेगा. ज़ाहिर है कि कोई भी मीडिया कंपनी इतनी बड़ी रक़म जमा नहीं करेगी . वैसे भी मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक जाना ही है तो पैसे जमा करने वाली बात बहुत समझ में नहीं आती. लेकिन यह सच्चाई है और इसका समाज के हर स्तर पर विवेचन किये जाने की ज़रुरत है . जहां तक अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल का प्रश्न है ,उसको पास तो इतना जमा करने के लिए रक़म होगी ही लेकिन अगर किसी छोटे अखबार या न्यूज़ चैनल के ऊपर गलती और उसकी बाद माफी मांगने के बाद यह सज़ा होगी तो मीडिया की स्वतंत्रता को ख़त्म होने से कोई नहीं रोक सकता .

Wednesday, March 31, 2010

मीडिया और न्यायपालिका की बुलंदी का दौर

शेष नारायण सिंह

हरियाणा में एक अदालत ने उन लोगों को सज़ा-ए-मौत का हुक्म दे दिया है जिन्होंने एक विवाहित जोड़े को मार डाला था. मारे गए पति पत्नी का तथाकतित जुर्म यह था कि उन्होंने पंचायत की मर्जी के खिलाफ अपनी पसंद से शादी कर ली थी. . पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में यह बहुत पहले से होता रहा है . ग्रामीण इलाकों में पंचायतों की स्थिति बहुत ही मज़बूत रही है और उन्हें मनमानी करने का पूरा अधिकार मिलता रहा है . इन् इलाकों में कुछ बिरादरी के लोगों ने अपने आप को एक खाप के रूप में संगठित कर रखा है .यह व्यवस्था बहुत ही पुरानी है ,. दर असल जब सरकारों की भूमिका केवल अपनी रक्षा और अपने राजस्व तक सीमित थी तो सामाजिक जीवन को नियम के दायरे में रखने का ज़िम्मा बिरादरी की पंचायतों का होता था. उस दौर में ज़िंदगी एक लीक पर चलती रहती थी लेकिन सूचना क्रान्ति के साथ साथ सब कुछ बदल गया. गावों में रहने वाले लडके लड़कियां पूरी दुनिया की सूचना देख सकते हैं , जान सकते हैं और बाकी दुनिया में प्रचलित कुछ रीति रिवाजों को अपनी ज़िंदगी में भी उतार रहे हैं . अब उनको मालूम है कि सभ्य समाज में अपनी पसंद के जीवन साथी के साथ ज़िंदगी बसर करने का रिवाज़ है . उसे यह भी मालूम है कि यह मामला बिलकुल निजी है और उसमें किसी को दखल देने का अधिकार नहीं है . . सूचना क्रान्ति का ही दूसरा पहलू यह है कि देश के किसी भी इलाके से कुछ सेकंड के अन्दर ही कोई भी खबर पंहुचायी जा सकती है और कोई भी तस्वीर कहीं भी भेजी जा सकती है. यानी किसी भी गाँव में बैठी हुई कोई पंचायत क्या फैसला करती है , यह अब गाँव का मामला नहीं रह गया है . कोई भी घटना अब मिनटों के अन्दर पूरी दुनिया के सामने पेश की जा सकती है . पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में आजकल यही हो रहा है . सूचना क्रान्ति के पहले के ज़माने में खाप पंचायतें जो कुछ भी करती थें ,वह उन्हीं लोगों के बीच रह जाता था लेकिन अब वह पूरी दुनिया के सामने पेश कर दिया जाता है .. इसका मतलब यह नहीं है कि खाप पंचायतें पहले जो हुक्म देती थीं वे सही होते थे . फैसले तो गलत तब भी होते थे लेकिन अब उन फैसलों को बाकी दुनिया के पैमाने से नापा जाने लगा है .



ग्रामीण इलाकों में इन पंचायतों का इतना दबदबा है कि किसी नेता की हिम्मत नहीं पड़ रही है कि इस मामले में कोई पक्का रुख ले सके. हरियाणा के मुख्य मंत्री, भूपेंद्र सिंह हुड्डा से जब बात की गयी तो वे मामले को टाल गए. किसी टी वी चैनल में बी जे पी का एक छुटभैया नेता खाप पंचायतों को सही ठहरा रहे एक किसान नेता की तारीफ़ करने लगा . संतोष की बात यह यह है कि अब इन नेताओं के बस की बात नहीं है कि ये न्याय के रथ को विचलित कर सकें. अब सूचना क्रान्ति की बुलंदी का वक़्त है . इस क्रान्ति ने मीडिया को पूरी तरह से आम आदमी की पंहुच के अन्दर ला दिया है और किसी की भी दादागीरी लगभग हमेशा ही पब्लिक की नज़र में रहती है . . करनाल के किसी गाँव में एक ही गोत्र में शादी करने के कारण मौत के घाट उतार दिए गए मनोज और बबली का मामला भी इतिहास के इस मोड़ पर सामने आया जब कि कोई भी आदमी ऐलानियाँ तौर पर खाप वालों की मनमानी को सही ठहरा ही नहीं सकता.. करनाल के अतिरिक्त जिला और सेशन जज ने अपने १०५ पेज के फैसले में लडकी के भाई, चाचा और चचेरे भाई को को तो फांसी के सज़ा सुना दी . पंचायत के मुखिया को केवल उम्र क़ैद की सज़ा सुनायी. पंचायतों की इस तरह की मनमानी के किस्से रोज़ ही होते रहते हैं . नेताओं के अलगर्ज़ रवैय्ये के कारण इन् मामलोंमें कहीं कुछ होता जाता नहीं था . ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी जज ने खाप के आतंक से जुडे हुए मामले में शामिल लोगों को सज़ा सुनायी है . ज़ाहिर है इस फैसले की धमक दूर दूर तक महसूस की जायेगी. और भविष्य में मुहब्बत करके शादी करने वाले जोड़ों को भेड़ बकरियों की तरह मार डालने वाले इन आततायी पंचों को कानून का डर लगेगा . वरना अब तक तो यही होता था कि इनकी मनमानी के खिलाफ कहीं कोई कार्रवाई नहीं होती थी.

मौजूदा मामले में मारे गए लडके के परिवार वालों की भूमिका सबसे अहम है . उन्होंने तय कर लिया था कि उनके बच्चे को मारने वालों को न्याय की बेदी पर हाज़िर किये बिना उन्हें चैन नहीं है . लेकिन सबसे बड़ी भूमिका इस सारे मामले में मीडिया की है . जब से २४ घंटे के समाचार चैनल शुरू हुए हैं ,मीडिया के लोग इस तरह के मामलों को सार्वजनिक करने में संकोच नहीं कर रहे हैं . और जब सारी बात मीडिया की वजह से पहले ही पब्लिक डोमेन में आ जाती है तो उसे टाल पाना न तो नेताओं के लिए संभव होता है और न ही अन्य सरकारी संगठनों के अगर भविष्य में भी मीडिया इसी तरह से चौकन्ना रहा तो कुछ ही वर्षों में यह मध्यकालीन सामंती सोच ग्रामीण इलाकों से गायब हो जायेगी और फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इन संपन्न इलाकों में मुहब्बत करने वालों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी.

Monday, July 27, 2009

न्यायपालिका का इकबाल और बेलगाम मंत्री

मद्रास हाईकोर्ट के एक जज के पास किसी केंद्रीय मंत्री ने टेलीफोन करके जज साहब से एक विचाराधीन मुकदमे में अग्रिम जमानत देने की सिफारिश कर दी। माननीय न्यायाधीश ने मंत्री की इस हिम्मत पर अपनी नाराजगी जताई और भरी अदालत में ऐलान कर दिया कि आगे से इस तरह की दखलंदाजी हुई तो वे जरूरी कार्रवाई करेंगे। न्यायपालिका के कामकाज में मंत्रियों का दखल बहुत बुरी बात है। इससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं।
हर जागरूक नागरिक को इस तरह की घटनाओं का विरोध करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने भी केंद्रीय मंत्री के इस मूर्खतापूर्ण आचरण पर सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की किसी कोशिश को ठीक नहंी मानते। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मंत्रियों को मालूम है कि न्यायपालिका का काम करने का तरीका क्या है और वे न्यायप्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करते लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश से सिफारिश करने वाले मंत्री को शायद पता नहीं है। मुख्य न्यायाधीश महोदय का कहना है कि इस मामले में जो भी कार्रवाई होनी है, वह सरकार की तरफ से होगी।
जहां तक न्याय पालिका का सवाल है मद्रास हाईकोर्ट के जज, न्यायमूर्ति आर. रघुपति के कार्य की सराहना की जानी चाहिए और अन्य जजों को भी सरकारी दबाव की बात आते ही दोषी मंत्री को बेनकाब करना चाहिए। इस बीच बीजेपी वाले भी राजनीति करने का मौका देख इस विवाद में कूद पड़े हैं। बीजेपी की इस लठैती को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि न्यायपालिका को सम्मान देने का उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। नए कानून मंत्री, वीरप्पा मोइली का बयान महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट के जज की कोर्ट में की गई टिप्पणी को गंभीरता से लिया जाएगा जो भी जरूरी होगा, नियम कानून के दायरे में रहते हुए सरकार वह कदम उठाएगी। विवाद के केंद्र में फर्जी मार्कशीट का एक मामला है। एक व्यक्ति ने मेडिकल कालेज में दाखिले के लिए अपने बेटे की मार्कशीट में हेराफेरी की थी। पुदुचेरी विश्वविद्यालय के एक क्लर्क और एक दलाल की मदद से उसने अपने बेटे की मार्कशीट में नंबर बढ़वा लिए थे जिसकी बिना पर लड़के को मेडिकल कालेज में एडमिशन मिल गया। मामले की जांच सीबीआई के पास पहुंची। सीबीआई ने बाप बेटे के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया।
इसी मामले की अग्रिम जमानत के लिए मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस आर. रघुपति के सामने अर्जी विचाराधीन है। न्याय के उच्चतम आदर्शों का पालन करते हुए माननीय न्यायाधीश ने अपना कर्तव्य विधिवत निभा दिया है। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि अज्ञानी राजनेताओं को शासन करने के तमीज सिखाए और न्यायमूर्ति रघुपति पर दबाव डालने वाले मंत्री को ऐसा सबक सिखाए कि आने वाले वक्त में किसी मंत्री की हिम्मत न पड़े कि न्यायपालिका से पंगा ले। इस अवसर का इस्तेमाल मंत्रियों के अधिकार की सीमा के बारे में एक राष्टï्रीय बहस की शुरुआत करके भी किया जा सकता है।
आम तौर पर कम शिक्षित और अज्ञानी मंत्रियों को शपथ लेते ही यह मुगालता हो जाता है कि वह सम्राट हो गए हैं। उनके दिमाग में लोकशाही व्यवस्था में शासक का तसव्वुर एक ऐसे आदमी का होता है जो ब्रिटिश शासन के दौरान सामंतों का होता था। मंत्री को लगने लगता है कि वह राजा हो गया है और उसके भौगोलिक क्षेत्र में आने वाला हर व्यक्ति उसकी प्रजा है। यहीं से गलती शुरू होती है। वह स्थानीय प्रशासन, पुलिस, व्यापारी आदि पर धौंस मारने लगता है। हालांकि उसके पास यह अधिकार नहीं होता लेकिन हजारों वर्षों तक सामंती सोच के तहत रहे समाज के लोग इसे स्वीकार कर लेते हैं। यह दूसरी गलती है।
अगर जनता के लोगों को उनका अधिकार मालूम हो, वे जागरूक हों और लोकतंत्र में मंत्री के अधिकारों की जानकारी हो तो बात यहीं संभल सकती है। लेकिन ऐसा नहीं होता। नौकरशाही और पुलिस वाले भी मंत्री के धौंस को स्वीकार कर लेते हैं। इसके बाद मंत्री के दिमाग में सत्ता का मद चढऩे लगता है और वह एक मस्त हाथी की तरह आचरण करने लगता है। दुर्भाग्य यह है कि मीडिया में भी थोक के भाव चाटुकार भर गए हैं। मीडिया का वास्तविक काम सच्चाई को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना ही है लेकिन चापलूस टाइप पत्रकार मंत्रियों की जय जयकार करने लगते हैं।
इसके बाद मंत्री का दिमाग खराब हो जाता है तो वह अजीबोगरीब हरकतें करने लगता है। कहीं अपनी मूर्तियां लगवाता है, कहीं अपने को दुर्गा माता कहलवाता है, तो कहीं अपने नाम पर हनुमान चालीसा की तर्ज पर साहित्य की रचना करवाता है। सत्ता के मद में मतवाला यह हाथी हर उस मान्यता को रौंद देता है जिसकी गरिमा की रक्षा के लिए उसे नियुक्त किया गया है। यह मंत्री सार्वजनिक संपत्ति को अपनी मानता है, सरकारी खर्चे पर चमचों और रिश्तेदारों का मनोरंजन करता है और दुनिया की हर मंहगी चीज को अपने उपभोग की सामग्री मानता है।
रिश्वत और कमीशन को अपनी आमदनी में शुमार करता है और घूस का भावार्थ कमाई बताने लगता है। यह बीमारी छोड़ती तभी है जब मंत्री जनता की फटकार पाकर पैदल हो जाता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। जरूरत इस बात की है कि मंत्री को सत्ता के मद में पागल होने के पहले ही लगाम लगा दी जाए। यह काम इस देश की मीडिया और जागरुक जनता ही कर सकती है। अच्छा संयोग है कि मद्रास हाईकोर्ट के मामले में दखलंदाजी के मामले के प्रकाश में आने पर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हैं।
वे काफी मजबूत नेता हैं, हालांकि सरकार उतनी निर्णायक नहीं है। विवादित मामले में मंत्री कौन है, यह जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं हुई है। इसलिए जो भी मंत्री हो उसके खिलाफ ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए जिससे हुकूमत का इकबाल बुलंद हो, न्याय पालिका की अथॉरिटी को कमतर करने की कोशिश दुबारा कोई भी मंत्री न कर सके। यह हमारे विकासमान लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है।