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Monday, July 27, 2009

न्यायपालिका का इकबाल और बेलगाम मंत्री

मद्रास हाईकोर्ट के एक जज के पास किसी केंद्रीय मंत्री ने टेलीफोन करके जज साहब से एक विचाराधीन मुकदमे में अग्रिम जमानत देने की सिफारिश कर दी। माननीय न्यायाधीश ने मंत्री की इस हिम्मत पर अपनी नाराजगी जताई और भरी अदालत में ऐलान कर दिया कि आगे से इस तरह की दखलंदाजी हुई तो वे जरूरी कार्रवाई करेंगे। न्यायपालिका के कामकाज में मंत्रियों का दखल बहुत बुरी बात है। इससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं।
हर जागरूक नागरिक को इस तरह की घटनाओं का विरोध करना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने भी केंद्रीय मंत्री के इस मूर्खतापूर्ण आचरण पर सख्त नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की किसी कोशिश को ठीक नहंी मानते। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मंत्रियों को मालूम है कि न्यायपालिका का काम करने का तरीका क्या है और वे न्यायप्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करते लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश से सिफारिश करने वाले मंत्री को शायद पता नहीं है। मुख्य न्यायाधीश महोदय का कहना है कि इस मामले में जो भी कार्रवाई होनी है, वह सरकार की तरफ से होगी।
जहां तक न्याय पालिका का सवाल है मद्रास हाईकोर्ट के जज, न्यायमूर्ति आर. रघुपति के कार्य की सराहना की जानी चाहिए और अन्य जजों को भी सरकारी दबाव की बात आते ही दोषी मंत्री को बेनकाब करना चाहिए। इस बीच बीजेपी वाले भी राजनीति करने का मौका देख इस विवाद में कूद पड़े हैं। बीजेपी की इस लठैती को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि न्यायपालिका को सम्मान देने का उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। नए कानून मंत्री, वीरप्पा मोइली का बयान महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट के जज की कोर्ट में की गई टिप्पणी को गंभीरता से लिया जाएगा जो भी जरूरी होगा, नियम कानून के दायरे में रहते हुए सरकार वह कदम उठाएगी। विवाद के केंद्र में फर्जी मार्कशीट का एक मामला है। एक व्यक्ति ने मेडिकल कालेज में दाखिले के लिए अपने बेटे की मार्कशीट में हेराफेरी की थी। पुदुचेरी विश्वविद्यालय के एक क्लर्क और एक दलाल की मदद से उसने अपने बेटे की मार्कशीट में नंबर बढ़वा लिए थे जिसकी बिना पर लड़के को मेडिकल कालेज में एडमिशन मिल गया। मामले की जांच सीबीआई के पास पहुंची। सीबीआई ने बाप बेटे के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया।
इसी मामले की अग्रिम जमानत के लिए मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस आर. रघुपति के सामने अर्जी विचाराधीन है। न्याय के उच्चतम आदर्शों का पालन करते हुए माननीय न्यायाधीश ने अपना कर्तव्य विधिवत निभा दिया है। अब सरकार की जिम्मेदारी है कि अज्ञानी राजनेताओं को शासन करने के तमीज सिखाए और न्यायमूर्ति रघुपति पर दबाव डालने वाले मंत्री को ऐसा सबक सिखाए कि आने वाले वक्त में किसी मंत्री की हिम्मत न पड़े कि न्यायपालिका से पंगा ले। इस अवसर का इस्तेमाल मंत्रियों के अधिकार की सीमा के बारे में एक राष्टï्रीय बहस की शुरुआत करके भी किया जा सकता है।
आम तौर पर कम शिक्षित और अज्ञानी मंत्रियों को शपथ लेते ही यह मुगालता हो जाता है कि वह सम्राट हो गए हैं। उनके दिमाग में लोकशाही व्यवस्था में शासक का तसव्वुर एक ऐसे आदमी का होता है जो ब्रिटिश शासन के दौरान सामंतों का होता था। मंत्री को लगने लगता है कि वह राजा हो गया है और उसके भौगोलिक क्षेत्र में आने वाला हर व्यक्ति उसकी प्रजा है। यहीं से गलती शुरू होती है। वह स्थानीय प्रशासन, पुलिस, व्यापारी आदि पर धौंस मारने लगता है। हालांकि उसके पास यह अधिकार नहीं होता लेकिन हजारों वर्षों तक सामंती सोच के तहत रहे समाज के लोग इसे स्वीकार कर लेते हैं। यह दूसरी गलती है।
अगर जनता के लोगों को उनका अधिकार मालूम हो, वे जागरूक हों और लोकतंत्र में मंत्री के अधिकारों की जानकारी हो तो बात यहीं संभल सकती है। लेकिन ऐसा नहीं होता। नौकरशाही और पुलिस वाले भी मंत्री के धौंस को स्वीकार कर लेते हैं। इसके बाद मंत्री के दिमाग में सत्ता का मद चढऩे लगता है और वह एक मस्त हाथी की तरह आचरण करने लगता है। दुर्भाग्य यह है कि मीडिया में भी थोक के भाव चाटुकार भर गए हैं। मीडिया का वास्तविक काम सच्चाई को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना ही है लेकिन चापलूस टाइप पत्रकार मंत्रियों की जय जयकार करने लगते हैं।
इसके बाद मंत्री का दिमाग खराब हो जाता है तो वह अजीबोगरीब हरकतें करने लगता है। कहीं अपनी मूर्तियां लगवाता है, कहीं अपने को दुर्गा माता कहलवाता है, तो कहीं अपने नाम पर हनुमान चालीसा की तर्ज पर साहित्य की रचना करवाता है। सत्ता के मद में मतवाला यह हाथी हर उस मान्यता को रौंद देता है जिसकी गरिमा की रक्षा के लिए उसे नियुक्त किया गया है। यह मंत्री सार्वजनिक संपत्ति को अपनी मानता है, सरकारी खर्चे पर चमचों और रिश्तेदारों का मनोरंजन करता है और दुनिया की हर मंहगी चीज को अपने उपभोग की सामग्री मानता है।
रिश्वत और कमीशन को अपनी आमदनी में शुमार करता है और घूस का भावार्थ कमाई बताने लगता है। यह बीमारी छोड़ती तभी है जब मंत्री जनता की फटकार पाकर पैदल हो जाता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। जरूरत इस बात की है कि मंत्री को सत्ता के मद में पागल होने के पहले ही लगाम लगा दी जाए। यह काम इस देश की मीडिया और जागरुक जनता ही कर सकती है। अच्छा संयोग है कि मद्रास हाईकोर्ट के मामले में दखलंदाजी के मामले के प्रकाश में आने पर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर विराजमान हैं।
वे काफी मजबूत नेता हैं, हालांकि सरकार उतनी निर्णायक नहीं है। विवादित मामले में मंत्री कौन है, यह जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं हुई है। इसलिए जो भी मंत्री हो उसके खिलाफ ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए जिससे हुकूमत का इकबाल बुलंद हो, न्याय पालिका की अथॉरिटी को कमतर करने की कोशिश दुबारा कोई भी मंत्री न कर सके। यह हमारे विकासमान लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है।