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Tuesday, April 16, 2013

महाराष्ट्र और गुजरात में सूखे के आतंक से ज़िंदगी परेशान है .




शेष नारायण सिंह

पश्चिमी भारत में सूखे से त्राहि त्राहि  मची हुई है . महाराष्ट्र और गुजरात के बड़े इलाके में पानी की भारी किल्लत है , कपास का किसान सबसे ज्यादा परेशान है .महाराष्ट्र और गुजरात में कैश क्राप वाले किसान बहुत भारी मुसीबत में हैं . अजीब बात है कि इन दोनों राज्यों के आला राजनीतिक नेता कुछ और ही राग अलाप रहे हैं . गुजरात के मुख्यमंत्री  दिल्ली और कोलकता में धन्नासेठों के सामने गुजरात माडल के विकास को  मुक्तिदाता के रूप में पेश कर रहे हैं जबकि  महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री  बांधों में पानी की कमी को पेशाब करके पूरा करने की धमकी दे रहे हैं . इस बीच इन दो राज्यों में आम आदमी की समझ में नहीं आ रहा है  कि वह ज़िंदगी कैसे बिताए
  उपभोक्तावाद के चक्कर में इन राज्यों में बड़ी संख्या में किसान कैश क्राप की तरफ मुड चुके हैं .कैश क्राप में आर्थिक फायदा तो होता है लेकिन लागत भी लगती है . अच्छे फायदे के चक्कर में किसानों ने सपने देखे थे और कर्ज लेकर लागत लगा दी . जब सब कुछ तबाह हो गया और कर्ज वापस न कर पाने की स्थिति आ गयी तो मुश्किल आ गयी. ख़बरें हैं कि किसानों की आत्महत्या करना शुरू कर दिया है .महाराष्ट्र का सूखा तो तीसरे सीज़न में पंहुच गया है . योजना बनाने वालों ने ऐसी बहुत सारी योजनाएं बनाईं जिनको अगर लागू कर दिया गया होता तो आज हालत इतनी खराब न होती लेकिन जिन लोगों के ऊपर उन योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी थी वे भ्रष्टाचार के रास्ते सब कुछ डकार गए . आज हालत यह है कि किसान असहाय खड़ा है . महाराष्ट्र में सरकार ने पिछले १२ वर्षों में ७०० अरब रूपये पानी की व्यवस्था पर खर्च किया है लेकिन राज्य के दो तिहाई हिस्से में लोग आज भी बारिश के पानी के सहारे जिंदा रहने और खेती करने को मजबूर हैं . महारष्ट्र सरकार के बड़े अफसरों ने खुद स्वीकार किया है कि हालात बहुत ही खराब हैं. मराठवाडा क्षेत्र में स्थिति बहुत चिंताजनक है .बाकी राज्य में भी पानी के टैंकरों की मदद से हालात संभालने की कोशिश की जा रही है .लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कहीं कोई भी चैन से रह रहा है .केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं .उनका कहना है कि बहुत सारे बांध और जलाशय सूख गए हैं . कुछ गाँव तो ऐसे हैं जहां हफ्ते में एक बार ही पानी का टैंकर पंहुचता है .सरकारी अफसर अपनी स्टाइल में आंकड़ों के आधार पर बात करते पाए जा रहे हैं . जहां पूरे ग्रामीण महाराष्ट्र इलाके में चारों तरफ पानी के लिये हर तरह की मुसीबतें पैदा हो चुकी हैं ,वहीं सरकारी अमले की मानें  तो राज्य के ३५ जिलों में से केवल १३ जिलों में सूखे का स्थिति है. ४० साल पहले महाराष्ट्र में इस तरह का सूखा आया था और इंदिरा गांधी का गरीबी हटाओ का नारा उसी सूखे की भेंट चढ गया था. कहीं कोई गरीबी नहीं हटी थी और ग्रामीण भारत से भाग कर लोग शहरों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए थे.  नतीजा यह हुआ था कि गाँवों में तो लगभग सब कुछ उजड गया था और शहरों में बहुत सारे लोग फुटपाथों और झोपडियों में रहने को मजबूर हो गए थे . देश के बड़े शहरों में १९७२ के बाद से गरीब आदमी का जो रेला आना शुरू हुआ वह रुकने का नाम  नहीं ले रहा है.

जो लोग भी हालात से वाकिफ हैं उनका कहना है कि  सिचाई की जो परियोजनाएं शुरू की गयी थें अगर वे समय पर पूरी कर ली गयी होतीं तो सूखे के आतंक को झेल रहे इलाको की संख्या आधे से भी कम हो गयी होती. पिछले साल कुछ गैर सरकारी संगठनों ने राज्य सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार का भंडाफोड किया था और बताया था कि राज्य के मंत्री अजीत पवार ने भारी हेराफेरी की थी. उनको उसी चक्कर में सरकार से इस्तीफ़ा भी देना पड़ा था लेकिन जब बात चर्चा में नहीं रही तो फिर सरकार में वापस शामिल हो गए थे . अभी पिछले दिनों उनका एक बयान आया है  जो कि  सूखापीड़ित लोगों का अपमान करता है और किसी भी राजनेता के लिए बहुत ही घटिया बयान माना जाएगा .खबर है कि केन्द्र सरकार ने इस साल महारष्ट्र सरकार को १२ अरब रूपये की रकम सूखे की हालत को काबू करने के लिए दी है .केन्द्र सरकार ने यह भी कहा है कि जिन किसानों की फसलें बर्बाद हो गयी हैं उनको उसका मुआवजा दिया जाएगा . इसके लिए कोई रकम  या सीमा तय नहीं  की गयी है . सरकार का कहना है कि जो भी खर्च होगा वह दिया जाएगा. देश में चारों तरफ सूखे और किसानों की आत्महत्या के विषय पर  गंभीर  काम कर रहे पत्रकार पी साईनाथ ने कहा है कि जब भी भयानक सूखा पड़ता है तो सरकारी अफसरों , ठेकेदारों और राजनीतिक नेताओं की आमदनी का एक और ज़रिया बढ़ जाता है . साईनाथ ने तो इसी विषय पर बहुत पहले एक किताब भी लिख दी थी और दावा किया था कि सभी लोग एक अच्छे सूखे से  खुश हो जाते हैं .महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों से लौट कर आने वाले सभी पत्रकारों ने बताया कि अगर भ्रष्टाचार इस स्तर पर न होता तो इस साल के सूखे से आसानी से लड़ा जा सकता था .सरकार ने अपने ही आर्थिक सर्वे में यह बात स्वीकार किया है कि १९९९ और २०११ के बीच राज्य में सिंचित क्षेत्र में शून्य दशमलव एक ( ०.१ ) प्रतिशत की वृद्धि हुई है .इस बात को समझने के लिए इसी  कालखंड में हुए ७०० अरब रूपये के खर्च पर भी नज़र डालना ज़रूरी है . इसका भावार्थ यह हुआ कि ७०० अरब रूपये खर्च करके  सिंचाई की स्थिति में कोई भी बढोतरी नहीं हुई .पूरे देश में सिंचित क्षेत्र का राष्ट्रीय औसत ४५ प्रतिशत है जब कि महाराष्ट्र में यह केवल १८ प्रतिशत है . यानी अगर पिछले १२ साल में जो ७०० अरब रूपये पानी के मद में राज्य सरकार को मिले थे उसका अगर सही इस्तेमाल किया गया होता, भ्रष्टाचार का आतंक न फैलाया गया होता तो हालात आज जैसे तो बिलकुल न होते. आज तो हालत यह हैं कि पिछली फसल तो तबाह हो ही चुकी है इस बार भी गन्ने की  खेती  शुरू नहीं हो पा रही है क्योंकि उसको लगाने के लिये पानी की  ज़रूरत होती  है .
गुजरात के सूखे की हालत भी महाराष्ट्र जैसी ही है .वहाँ पीने के पाने के लिये मीलों जाना पड़ता है तब जाकर कहीं पानी मिलता है .सौराष्ट्र और कच्छ में करीब २५० बाँध ऐसे हैं जो पूरी तरह से सूख चुके हैं .करीब ४००० गाँव और करीब १०० छोटे बड़े शहर  सूखे की चपेट में हैं  सौराष्ट्र ,कच्छ और उत्तर गुजरात में पानी के  लिए त्राहि त्राहि मची हुई है .राज्य की ताक़तवर मंत्री आनंदीबेन पटेल ने स्वीकार किया है कि राज्य के २६ जिलों में से १० जिले भयानक सूखे के शिकार हैं . राज्य के ३९१८ गाँव पानी की किल्लत झेल रहे हैं . इस सबके बावजूद गुजरात सरकार के लिए कोई फर्क नहीं पड़ रहा था .जब यह सारी जानकारी मीडिया में आ गयी तो सरकार ने दावा किया है कि वन विभाग को कह दिया गया है कि वह लोगों को सस्ते दाम पर जानवरों के लिये चारा देगा और टैंकरों से लोगों को पानी दिया जायेगा . गुजरात  सरकार की बात को सूखे से प्रभावित  लोग मानने को तैयार नहीं हैं. उनका आरोप है कि गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री महोदय जिस गुजरात माडल के विकास की तारीफ़ करते घूम रहे हैं , वह और भी तकलीफ देता  है क्योंकि गुजरात में किसानों के हित की अनदेखी करके या उनके अधिकार को छीनकर मुख्यमंत्री  के उद्योगपति मित्रों को मनमानी  करने का  मौक़ा दिया  गया है और किसान आज सूखे को झेलने के लिए अभिशप्त है .गुजरात में सूखे से लड़ रहे लोगों के बीच काम करने वाले कार्यकर्ताओं को कांग्रेस से भी बहुत शिकायत है . उनका कहना है कि अगर उन्होंने अपने मंचों से गुजरात के सूखा पीड़ित लोगों की तकलीफों का उल्लेख किया होता तो आज हालत ऐसी न होती . महाराष्ट्र की तरह गुजरात के सूखा पीड़ित  इलाकों में कुछ क्षेत्रों में हफ्ते में एक दिन पानी का टैंकर आता है .सौराष्ट्र के अमरेली कस्बे में १५ दिन के बाद एक घंटे के लिए पानी की सप्लाई आती है जबकि भावनगर जिले के कुछ कस्बे ऐसे हैं जहां २० दिन बाद पानी आता है . सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात से ग्रामीण लोगों में भगदड़ शुरू हो चुकी है किसान सबकुछ छोड़कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं .
महाराष्ट्र और गुजरात की हालत देखने से साफ़ लगता है कि प्रकृति की आपदा से लड़ने के लिए अपना देश बिलकुल तैयार नहीं है और मीडिया का इस्तेमाल करके वे नेता अभी देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं . यह अलग बात है कि इन दोनों ही राज्यों में सूखे से दिनरात जूझ रहे लोगों में मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं .

Saturday, December 15, 2012

नरेन्द्र मोदी ने पत्रकारों को भी डरा दिया है

शेष नारायण सिंह 


आज जब गुजरात में फिर से चुनाव हो रहे  हैं , मुझे २०१० के शुरुआती महीनों की बहुत याद आ रही है . उन दिनों मोदी और उनके समर्थकों ने प्रचार कर रखा था कि मोदी के २००२ वाले नरसंहार कार्यक्रम  को  मुसलमान भूल चुके हैं और अब मुसलमान शुद्ध रूप से मोदी के साथ हैं . मैंने गुजरात के कुछ तथ्य जुटाए और एक लेख  लिख मारा था . जून २०१० में  यह लेख ख़ासा चर्चित हुआ और कई जगह इसका उद्धरण दिया गया . गुजरात चुनाव के मौजूदा संस्करण में भी मुझे एक बात बार बार समझ में आती रही जिसे पत्रकार और  विश्लेषक  प्रदीप सौरभ ने  रखांकित कर दिया . जो भी गुजरात से वापस आ रहा है कि वह बताता है कि मोदी की हालत ठीक नहीं है . लेकिन वह अपनी बात को कुछ गोलमोल तरीके से कहता है  .प्रदीप सौरभ ने कहा कि भाई जब आप देख कर आये हैं कि मोदी की हालत खराब है तो उसको ऐलानियाँ क्यों नहीं कहते .  कई लोगों ने कहा कि बात अभी बिलकुल साफ़ नहीं है . मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी आतंक के तरह तरह के तरीके जानते हैं . उन्होंने आजकल पत्रकारों के वर्ग को भी आतंकित कर दिया है . देश के कुछ बड़े अखबारों के कुछ बड़े पत्रकार  मोदी या उनके चेलों की  चेलाही करते हैं और वे अपने मोदी  जी के गुणगान के कार्यक्रम के तहत माहौल बनाए  हुए हैं कि मोदी को हराया नहीं  जा सकता . नतीजा यह है कि  दिल्ली में विराजमान विश्लेषक दहशत में हैं और वही कह रहे हैं जो देश के बड़े अखबारों में छपा रहता है . इस तरह से मोदी   ने पत्रकारों के बीच जो दहशत फैला रखी है वह टेलिविज़न के स्टूडियो में साफ़ नज़र आ रही है .  सच्चाई यह  है कि मोदी अपनी  ज़िंदगी की सबसे मुश्किल राजनीतिक लड़ाई लड़  रहे हैं और उसमें उनकी जीत की  संभावना बहुत कम है . आतंक फैलाने के उनके तरीकों को समझने के लिए मैंने अपने ही एक लेख का सहारा लिया जो मुसलमानों के बीच आतंक फैलाने के  मोदी के तरीकों को  साफ़ करने के लिए मैंने लिखा था . प्रस्तुत है वही पुराना लेख .

गुजरात में एक दलित नेता और उनकी पत्नी को पकड़ लिया गया है . पुलिस की कहानी में बताया गया है कि वे दोनों नक्सलवादी हैं और उनसे राज्य के अमन चैन को ख़तरा है . शंकर नाम के यह व्यक्ति मूलतः आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन अब वर्षों से गुजरात को ही अपना घर बना लिया है . गुजरात में साम्प्रदायिकता के खिलाफ जो चंद आवाजें बच गयी हैं , वे भी उसी में शामिल हैं. विरोधियों को परेशान करने की सरकारी नीति के खिलाफ वे विरोध कर रहे हैं और लोगों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं .उनकी पत्नी, हंसाबेन भी इला भट के संगठन सेवा में काम करती हैं , वे गुजराती मूल की हैं लेकिन उनको गिरफ्तार करते वक़्त पुलिस ने जो कहानी दी है ,उसके अनुसार वे अपने पति के साथ आंध्र प्रदेश से ही आई हैं और वहीं से नक्सलवाद की ट्रेनिंग लेकर आई हैं . ज़ाहिर है पुलिस ने सिविल सोसाइटी के इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के पहले होम वर्क नहीं किया था. इसके पहले डांग्स जिले के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ,अविनाश कुलकर्णी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था . किसी को कुछ पता नहीं कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन वे अभी तक जेल में ही हैं .गुजरात में सक्रिय सभी मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं को चुप कराने की गुजरात पुलिस की नीति पर काम शुरू हो चुका है और आने वाले वक़्त में किसी को भी नक्सलवादी बता कर धर लिया जाएगा और उसक अभी वही हाल होगा जो पिछले १० साल से गुजराती मुसलमानों का हो रहा है .नक्सलवादी बता कर किसी को पकड़ लेना बहुत आसान होता है क्योंकि किसी भी पढ़े लिखे आदमी के घर में मार्क्सवाद की एकाध किताब तो मिल ही जायेगी. और मोदी क एपुलिस वालों के लिए इतना ही काफी है . वैसे भी मुसलमानों को पूरी तरह से चुप करा देने के बाद , राज्य में मोदी का विरोध करने वाले कुछ मानवाधिकार संगठन ही बचे हैं . अगर उनको भी दमन का शिकार बना कर निष्क्रिय कर दिया गया तो उनकी बिरादराना राजनीतिक पार्टी , राष्ट्रवादी सोशलिस्ट पार्टी और उसके नेता , एडोल्फ हिटलर की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री का भी अपने राज्य में एकछत्र निरंकुश राज कायम हो जाएगा .
अहमदाबाद में जारी के बयान में मानवाधिकार संस्था,दर्शन के निदेशक हीरेन गाँधी ने कहा है कि 'गुजरात सरकार और उसकी पुलिस विरोध की हर आवाज़ को कुचल देने के उद्देश्य से मानवाधिकार संगठनो , दलितों के हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के अन्य कार्यकर्ताओं को नक्सलवादी बताकर पकड़ रही है ' लेकिन विरोध के स्वर भी अभी दबने वाले नहीं है . शहर के एक मोहल्ले गोमतीपुर में पुलिस का सबसे ज़्यादा आतंक है, . वहां के लोगों ने तय किया है कि अपने घरों के सामने बोर्ड लगा देंगें जिसमें लिखा होगा कि उस घर में रहने वाले लोग नक्सलवादी हैं और पुलिस के सामने ऐसी हालात पैदा की जायेगीं कि वे लोगों को गिरफ्तार करें . ज़ाहिर है इस तरीके से जेलों में ज्यादा से ज्यादा लोग बंद होंगें और मोदी की दमनकारी नीतियों को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया जाएगा.वैसे भी अगर सभ्य समाज के लोग बर्बरता के खिलाफ लामबंद नहीं हुए तो बहुत देर हो चुकी होगी और कम से कम गुजरात में तो हिटलरी जनतंत्र का स्वाद जनता को चखना ही पड़ जाएगा.

वैसे गुजरात में अब मुसलमानों में कोई अशांति नहीं है , सब अमन चैन से हैं . गुजरात के कई मुसलमानों से सूरत और वड़ोदरा में बात करने का मौक़ा लगा . सब ने बताया कि अब बिलकुल शान्ति है , कहीं किसी तरह के दंगे की कोई आशंका नहीं है . उन लोगों का कहना था कि शान्ति के माहौल में कारोबार भी ठीक तरह से होता है और आर्थिक सुरक्षा के बाद ही बाकी सुरक्षा आती है.बड़ा अच्छा लगा कि चलो १० साल बाद गुजरात में ऐसी शान्ति आई है .लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि जो कुछ मैं सुन रहा था वह सच्चाई नहीं थी. वही लोग जो ग्रुप में अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे , जब अलग से मिले तो बताया कि हालात बहुत खराब हैं . गुजरात में मुसलमान का जिंदा रहना उतना ही मुश्किल है जितना कि पाकिस्तान में हिन्दू का . गुजरात के शहरों के ज़्यादातर मुहल्लों में पुलिस ने कुछ मुसलमानों को मुखबिर बना रखा है , पता नहीं चलता कि कौन मुखबिर है और कौन नहीं है . अगर पुलिस या सरकार के खिलाफ कहीं कुछ कह दिया गया तो अगले ही दिन पुलिस का अत्याचार शुरू हो जाता है. मोदी के इस आतंक को देख कर समझ में आया कि अपने राजनीतिक पूर्वजों की लाइन को कितनी खूबी से वे लागू कर रहे हैं . लेकिन यह सफलता उन्हें एक दिन में नहीं मिली . इसके लिए वे पिछले दस वर्षों से काम कर रहे हैं . गोधरा में हुए ट्रेन हादसे के बहाने मुसलमानों को हलाल करना इसी रणनीति का हिस्सा था . उसके बाद मुसलमानों को फर्जी इनकाउंटर में मारा गया, इशरत जहां और शोहराबुद्दीन की हत्या इस योजना का उदाहरण है . उसके बाद मुस्लिम बस्तियों में उन लड़कों को पकड़ लिया जाता था जिनके ऊपर कभी कोई मामूली आपराधिक मामला दर्ज किया गया हो . पाकेटमारी, दफा १५१ , चोरी आदि अपराधों के रिकार्ड वाले लोगों को पुलिस वाले पकड़ कर ले जाते थे , उन्हें गिरफ्तार नहीं दिखाते थे, किसी प्राइवेट फार्म हाउस में ले जा कर प्रताड़ित करते थे और अपंग बनाकर उनके मुहल्लों में छोड़ देते थे . पड़ोसियों में दहशत फैल जाती थी और मुसलमानों को चुप रहने के लिए बहाना मिल जाता था .लोग कहते थे कि हमारा बच्चा तो कभी किसी केस में पकड़ा नहीं गया इसलिए उसे कोई ख़तरा नहीं था . ज़ाहिर है इन लोगों ने अपने पड़ोसियों की मदद नहीं की ..इसके बाद पुलिस ने अपने खेल का नया चरण शुरू किया . इस चरण में मुस्लिम मुहल्लों से उन लड़कों को पकड़ा जाता था जिनके खिलाफ कभी कोई मामला न दर्ज किया गया हो . उनको भी उसी तरह से प्रताड़ित करके छोड़ दिया जाता था . इस अभियान की सफलता के बाद राज्य के मुसलमानों में पूरी तरह से दहशत पैदा की जा सकी. और अब गुजरात का कोई मुसलमान मोदी या उनकी सरकार के खिलाफ नहीं बोलता ..डर के मारे सभी नरेन्द्र मोदी की जय जयकार कर रहे हैं. अब राज्य में विरोध का स्वर कहीं नहीं है . कांग्रेस नाम की पार्टी के लोग पहले से ही निष्क्रिय हैं . वैसे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि विपक्ष का अभिनय करने के लिए उनकी ज़रूरत है .यह मानवाधिकार संगठन वाले आज के मोदी के लिए एक मामूली चुनौती हैं और अब उनको भी नक्सलवादी बताकर दुरुस्त कर दिया जाएगा. फिर मोदी को किसी से कोई ख़तरा नहीं रह जाएगा. हमारी राजनीति और लोकशाही के लिए यह बहुत ही खतरनाक संकेत हैं क्योंकि मोदी की मौजूदा पार्टी बी जे पी ने अपने बाकी मुख्यमंत्रियों को भी सलाह दी है कि नरेन्द्र मोदी की तरह ही राज काज चलाना उनके हित में होगा


Monday, March 29, 2010

मोदी से एस आई टी की पूछ ताछ के पीछे क्या है ?

शेष नारायण सिंह

नरेंद्र मोदी से आठ घंटे चली पूछताछ के बाद कुछ लोग बहुत खुश हैं कि अब मोदी को २००२ के गुजरात नरसंहार के लिए उनके किये की सज़ा दिलाई जा सकेगी. जांच के लिए पेश होने के बाद जब मोदी बाहर निकले तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपने महान देश की न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा है और उनके साथ भी न्याय होगा.यह बात सभी कहते हैं और यह सच भी है . मोदी का गुनाह ऐसा है जिसे वे सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं जिन्हें उस दौर में गुजरात का नरसंहार देखने या उसे कवर करने का मौका लगा था .लेकिन सच्चाई यह है कि कहीं कुछ नहीं होने वाला है . कुछ जानकार तो यह कहते पाए गए हैं कि यह सारा आडम्बर मोदी को पाक-साफ घोषित करने की एक साज़िश है . बड़े नेताओं के खिलाफ राजनीतिक मजबूरी के कारण शुरू किये गए मामलों में अब तक किसी के दण्डित होने की जानकारी नहीं है .राजनीति में बड़ा पद पाने वाले बहुत सारे लोगों के ऊपर मुक़दमें चले लेकिन लगभग सभी बरी हो गए. इमरजेंसी के तुरंत बाद जिस तरह से सबूत मिलना शुरू हुए, सबको लगने लगा था कि इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी, जगमोहन, विद्या चरण शुक्ल, ओम मेहता, बंसी लाल, नारायण दत्त तिवारी जैसे सैकड़ों नेताओं और अफसरों को कानून की जंजीर पहना दी जायेगी. लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाद में बोफोर्स तोप का सौदा हुआ जिसमें भी राजनीति के बड़े लोगों का नाम आया था लेकिन कुछ नहीं हुआ. पी वी नरसिंह राव जब प्रधान मंत्री थे तो तरह तरह के हेरा फेरी और ठगी के मामले उन पर दर्ज हुए लेकिन कुछ नहीं हुआ . जार्ज फर्नांडीज़ , बंगारू लक्ष्मण आदि को तहलका मामले में घूस का शिकार होते पूरी दुनिया ने देखा . जांच में कुछ नहीं निकला . जैन हवाला काण्ड में देश की सुरक्षा से समझौता किया गया था . और उसमें लाल कृष्ण आडवानी,शरद यादव, सीता राम केसरी, सतीश शर्मा, अरुण नेहरू, आरिफ मुहम्मद खान जैसे गैर कम्म्युनिस्ट पार्टियों के बहुत सारे नेता शामिल थे .लेकिन किसी के ऊपर चार्ज शीट तक दाखिल नहीं हुई अटल बिहारी वाजपयी के करीबी रिश्तेदार , भट्टाचार्य नाम के एक सज्जन थे , देश को लूट कर रख दिया लेकिन कहीं हुछ नहीं हुआ . बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मामले में लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी उमा भारती, विनय कटियार आदि के खिलाफ संगीन आरोप हैं लेकिन सब मस्त हैं . प्रमोद महाजन और अरुण शोरी के ऊपर सरकारी कंपनियों को औने पौने दाम पर बेचने का आरोप लगा लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. लालू प्रसाद, राबडी देवी, जगन्नाथ मिश्र, शिबू सोरेन,मायावती, मुलायम सिंह यादव आदि के ऊपर गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोप हैं और सब के सब निश्चिन्त हैं . सब को मालूम है कि सब ठीक हो जाएगा, कहीं कुछ नहीं होने वाला नहीं है .

इसलिए इस बात में कोई शक़ नहीं हिया कि मोदी का कुछ बनने बिगड़ने वाला नहीं है . अगर उन लोगों की बात को मान लिया जाए कि मोदी को क्लीन चिट देने के लिए उनसे कड़ाई से पूछताछ का स्वांग किया गया तो बात बहुत ही आसान हो जाती है लेकिन अगर इस बात को न भी माना जाए और यह विश्वास किया जाए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही जांच में किसी की हिम्मत हेरा फेरी करने की नहीं है तो भी मोदी जैसे ताक़तवर नेता के खिलाफ आरोप साबित कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा. हमारी न्याय व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है , ईमानदार गवाह . हमने देखा है कि मुकामी गुंडों को सज़ा इस लिए नहीं हो पाती कि उनके खिलाफ गवाह नहीं मिलते. तो मोदी जैसे सत्ताधीश के खिलाफ कहाँ से गवाह आ जाएंगें . दुनिया जानती है कि फरवरी २००२ में किस तरह से गुजरात के कुछ शहरों में खून खराबा हुआ था और किस तरह मुसलमानों को चुन चुन कर मारा गया था . लेकिन मोदी न केवल खुले आम घूम रहे हैं बल्कि चुनाव भी जीत रहे हैं .. ज़ाहिर है कि सिस्टम में कहीं कोई खोट है जिसके चलते सत्ता के पदों पर बैठे राजनेता बरी हो जाते हैं . और जब किसी नेता पर बुरा वक़्त आता है तो बाकी लोग ,जो राज नेता, फंसे हुए नेता के खिलाफ रहते हैं , वे भी साथ साथ खड़े हो जाते हैं . ठीक वैसे है जैसे मौसेरे भाइयों के बीच होता है .जब एक भाई फंसता है तो उसका मौसेरा भाई उसे बचाने आ जाता है . मौसेरे भाइयों की यह मुहब्बत अपने देश की बहुत सारी कहावतों में भी संभाल कर रखी हुई है . वरना वली गुजरती की मज़ार को ज़मींदोज़ करने वाले को तो सज़ा कभी की मिल गयी होती .

इस लिए मोदी या किसी नेता के अपराधों के लिए उस से पूछ ताछ तक तो हो सकती है लेकिन उसे सज़ा नहीं दी जा सकती . अगर मोदी के अपराध की सज़ा उनको मिल गयी तो देश की जनता को भरोसा हो जाएगा कि कानून का राज सब पर चलता है वरना अभी तक तो लोग यही मानते हैं कि कानून की ताक़त को नेता लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं .

Friday, June 26, 2009

जेल, नरेंद्र मोदी और नरसंहार

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अब डर लग रहा है कि शायद गुजरात के 2002 के नरसंहार में उनके शामिल होने की बात को छुपाया नहीं जा सकता। अब तक तो जितनी भी जांच हुई है, वह सब मोदी के ही बंदों ने कीं इसीलिए उसमें उनके फंसने का सवाल ही नहीं था। एक और जांच रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने करवाई थी, जिसे बीजेपी के नेताओं और पत्रकारों ने मजाक में उड़ा दिया था।

दरअसल लालू प्रसाद की अपनी विश्वसनीयता भी ऐसी नहीं है कि उनकी जांच को गंभीरता से लिया जाता, लेकिन इस बार मामला अलग है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जांच होने वाली है और जांच करने वाला अफसर भी ऐसा है जिसे खरीदा नहीं जा सकता। सी बी आई के पूर्व निदेशक राघवन को जांच का जिम्मा सौंपा गया है जिनका अब तक का रिकार्ड एक ईमानदार और आत्म सम्मानी अफसर का है।

यानी अब 2002 के नरसंहार में मोदी के शामिल होने के शक पर सही जांच की संभावना बढ़ गई है। मोदी भी जानते हैं और दुनिया भी जानती है कि गोधरा और उससे संबंधित नरसंहार के मुख्य प्रायोजक नरेंद्र मोदी ही हैं। जब राघवन जैसा ईमानदार अफसर जांच करेगा तो मोदी के बच निकलने की संभावना बहुत कम रहेगी।

इसी सच्चाई के नतीजों से घबरा कर मोदी और बीजेपी के आडवाणी गुट के नेता सुप्रीम कोर्ट के आदेश को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी के नेता ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे लगे कि मोदी के खिलाफ जांच का काम कांग्रेस पार्टी और केंद्र सरकार करवा रही है, जबकि जंाच सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हो रही है। नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि कांग्रेस उन्हें जेल में डालने की साज़िश रच रही है।

हो सकता है कि वे तीन महीनों बाद जेल की सलाखों के अंदर हों। मोदी का यह बयान बहुत ही गैर जिम्मेदार है। इस बयान का भावार्थ यह है कि सुप्रीम कोर्ट के काम को कांग्रेस साजिश करके प्रभावित कर सकती है। शायद मोदी को भी मालूम हो कि यह बयान सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है और अगर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस बयान पर कारवाई करने का फैसला कर लिया तो तीन महीने तो दूर की बात है, मोदी को अभी जेल की सज़ा हो जाएगी। जहां तक मोदी के अपने जेल जाने की बात कहकर सहानुभूति बटोरने की बात है, वह बेमतलब है।

मोदी जैसे व्यक्ति को तो 2002 के बाद ही जेल में बंद कर दिया जाना चाहिए था। राजनीति की बात का न्यायालय के आदेशों पर थोपने की कोशिश हर फासिस्ट पार्टी करती है इसलिए बीजेपी की इस कोशिश के पीछे भी उसकी नीत्शेवादी राजनीतिक सोच ही है।हिटलर की नैशनलिस्ट सोशलिस्ट पार्टी भी ऐसे कारनामों के जरिये, अदालतों पर दबाव डालती थी। जो बात उत्साह वद्र्घक है वह यह कि गुजरात नरसंहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सकारात्मक दखल बहुत ही अहम है।

अब तक तो दंगों में मारे गए व्यक्तियों का कहीं कोई हिसाब ही नहीं होता था और कभी भी किसी दंगाई को सजा नहीं होई थी। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद गुजरात के नरसंहार की जांच के नतीजों के बाद शायद दंगाईयों की समझ मे आ जाएगा कि दंगा कराने वालों तक भी कानून की पहुंच होती है और अगर नरेंद्र मोदी को गुजरात नरसंहार 2002 के अपराध में सजा हो गई तो आगे दंगाइयों के हौंसलों को पस्त करने में मदद मिलेगी।