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Saturday, May 25, 2013

दिग्विजय सिंह के नाम से कुछ लोगों को गुस्सा क्यों आता है .?



शेष नारायण सिंह

 कर्नाटक में बीजेपी की हार के बाद उस हार के कारणों का विश्लेषण अब एक
कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है . एक नए विश्लेषक भी मैदान में हैं .
शिवसेना के सांसद संजय राउत ने हार के कारणों में हिंदुत्व से दूरी को
बताया है .अपनी पार्टी के अखबार सामना के सम्पादकीय में उन्होंने लिखा है
कि अगर बीजेपी ने हिंदुत्व को फोकस में रखा होता तो कर्नाटक में इतनी
बड़ी हार न होती. संजय राउत ने मोदी को भी हिंदुत्व से अलग होने पर खरी
खोटी सुनायी है और कहते हैं अगर मोदी ने हिंदुत्व का सम्मान नहीं किया तो
उनमें और दिग्विजय सिंह कोई फर्क नहीं रहेगा . बीजेपी के नेता भी
दिग्विजय सिंह का नाम आते ही इस तरह से बिफर पड़ते हों जैसे उन्हें लाल
अंगोछा दिखा दिया गया हो .किसी भी विषय पर दिग्विजय सिंह की राय को
बीजेपी वाले खारिज करने में एक मिनट नहीं लगाते . मीडिया में भी एक बड़ा
वर्ग ऐसे पत्रकारों का है जो दिग्विजय सिंह को बहुत ही अछूत टाइप मानते
हैं .  अन्ना हजारे, रामदेव और अरविन्द केजरीवाल के समर्थकों  में ऐसे
लोगों की बड़ी संख्या है जो दिग्विजय सिंह का नाम आते ही गुस्से में आ
जाते हैं और कुछ तो यह  कहते सुने गए हैं वे दिग्विजय सिंह की बातों को
गंभीरता से नहीं लेते . कांग्रेस में बड़े नेताओं का एक ताक़तवर वर्ग
दिग्विजय सिंह के किसी बयान के बाद उस बयान से अपनी दूरी बनाने के लिए
व्याकुल हो जाता है . सोशल मीडिया में भी दिग्विजय सिंह को गाली देने
वालो का एक बहुत बड़ा वर्ग है . जानकार बताते हैं वह वर्ग भी हिंदुत्ववादी
ताक़तों ने ही बनाया है .कुल मिलाकर ऐसा माहौल बन गया है कि हिंदुत्ववादी
साम्प्रदायिक पार्टियों में किसी को दिग्विजय कह देना बहुत अपमान जनक
माना जा रहा है .

सवाल यह उठता  है कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ इस तरह का माहौल क्यों है ?
इस सवाल का जवाब उनसे ही लेने की कोशिश की गयी लेकिन उन्होंने कोई जवाब
देने से साफ़ मना कर दिया और कहा कि उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही है
जिसके कारण उनके खिलाफ इस तरह का माहौल बनाया जाए . वे अपनी पार्टी की
बात करते हैं उसके सिद्धांतों की बात करते हैं और पार्टी में उनका कोई
विरोध नहीं है . उनकी पार्टी के बुनियादी सिद्धांतों में सभी धर्मों
संप्रदायों और जातियों को साथ लेकर चलने की बात कही गयी है इसलिए अगर कोई
भी व्यक्ति किसी भी भारतीय को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश
करेगा तो उसका विरोध किया जाएगा और उसकी राजनीतिक सोच को बेनकाब किया
जाएगा .

 मीडिया के बड़े वर्ग और दक्षिणपंथी पार्टियों के  तीखे रुख के बावजूद
दिग्विजय सिंह की पार्टी में उनकी ताक़त किसी से कम नहीं .पार्टी के
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का उन्हें पूरा संरक्षण मिला हुआ है .इसलिए यह बात
साफ़ है कि बीजेपी , शिवसेना और उनके मुरीद चाहे जो कहें कांग्रेस पार्टी
दिग्विजय सिंह को एक महत्वपूर्ण नेता मानती है और उनकी बातों का सम्मान
किया जाता है . ज़ाहिर है कांग्रेस को उनके बयानों और राजनीति से कोई
नुक्सान नहीं हो रहा है और पार्टी उनकी राजनीतिक सोच को आगे बढाने को
तैयार है . दिग्विजय सिंह के विरोधी भी मानते हैं  कि वे धर्मनिरपेक्षता
की राजनीति को आगे बढाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं . और जब उस
राजनीति से पार्टी का कोई नुक्सान नहीं हो रहा हो तो उनकी पार्टी को क्या
एतराज़ हो सकता है . इस बारीकी को समझने के लिए कांग्रेस के समकालीन
इतिहास पर नज़र डालनी पड़ेगी. महात्मा गांधी, सरदार पटेल , मौलाना आज़ाद और
जवाहरलाल नेहरू आज़ादी के पहले और उसके बाद के  सबसे बड़े नेता थे .
उन्होंने आज़ादी के पहले और बाद में बता दिया था कि धर्मनिरपेक्षता इस
राष्ट्र की स्थापना और संचालन का बुनियादी आधार रहेगा . देखा गया है कि
जवाहरलाल नेहरू के जाने के  बाद कांग्रेस ने जब भी धर्मनिरपेक्षता की
राजनीति को  कमज़ोर किया उसे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा .

सबसे पहले इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता की राह को छोड़ने
की कोशिश की . विपक्ष के सभी बड़े नेता जेलों में बंद थे और ऐसा लगता था
कि बाहर  निकलना असंभव था . आर एस एस वाले भी बंद थे . उस वक़्त के आर एस
एस के मुखिया बालासाहेब  देवरस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को
कई पत्र लिखे और कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने का भरोसा दिया . १०
नवंबर 1975 को येरवदा जेल से लिखे एक पत्र में बालासाहेब देवरस ने इंदिरा
गांधी को बधाई दी थी कि सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय बेंच ने उनके
रायबरेली वाले चुनाव को वैध ठहराया है.  इसके पहले 22 अगस्त 1975 को लिखे
एक अन्य पत्र में आर एस एस प्रमुख ने लिखा कि ''मैंने आपके 15 अगस्त के
भाषण को काफी ध्यान से सुना। आपका भाषण आजकल के हालात के उपयुक्त था और
संतुलित था।'' इसी पत्र में उन्होने इंदिरा गांधी को भरोसा दिलाया था कि
संघ के कार्यकर्ता पूरे देश में फैले हुए हैं जो निस्वार्थ रूप से काम
करते हैं। वह आपके कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में तन-मन से सहयोग करेगें
. इस सब के बावजूद भी इंदिरा गांधी के रुख में तो कोई बदलाव नहीं हुआ
लेकिन उनके बेटे संजय गांधी ने मुसलमानों के विरोध का रवैया अपनाया .
अपने खास अफसरों को लगाकर मुसलमानों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई की और कोशिश
की कि देश के बहुसंख्यक हिंदू  उनको मुस्लिमविरोधी के रूप में स्वीकार कर
लें . यह वह कालखंड है जब कांग्रेस ने पहली बार साफ्ट हिंदुत्व को अपनी
राजनीति का आधार बनाने की कोशिश की थी. कांग्रेस की १९७७ की हार में अन्य
कारणों के अलावा इस बात का महत्त्व सबसे ज्यादा था .हार के बाद  इंदिरा
गांधी ने फिर धर्मनिरपेक्षता की बात शुरू कर दी और उनको हराने वाली जनता
पार्टी में  फूट डाल दी . उन्होंने देश को बताना शुरू कर दिया कि जनता
पार्टी वास्तव में आर एस एस की पार्टी है उसमें समाजवादी तो बहुत कम
संख्या में हैं . जनता पार्टी के बड़े नेता और समाजवादी विचारक मधु लिमये
ने भी साफ़ ऐलान कर दिया कि आर एस एस वास्तव में एक राजनीतिक पार्टी है और
उसके सदस्य जनता पार्टी के सदस्य नहीं रह सकते . कई महीने चली बहस के बाद
जनता पार्टी टूट गयी और १९८० में कांग्रेस पार्टी दुबारा सत्ता में आ गयी
.

दोहरी सदस्यता के बारे में लाल कृष्ण आडवानी ने अपने ब्लॉग में लिखा है
कि ” मुख्य रूप से 'दोहरी सदस्यता' का विचार मधु लिमये की मानसिक उपज था,
जिसका लक्ष्य था जनता पार्टी के उन सदस्यों को कमजोर करना, जो पहले जनसंघ
का हिस्सा थे और लगातार संघ से जुड़े हुए थे। जब जनता पार्टी को बने एक
वर्ष भी नहीं हुआ था तब लिमये, जो पार्टी के महासचिव थे, ने इस बात पर
जोर दिया कि जनता पार्टी का कोई भी सदस्य साथ-ही-साथ संघ का भी सदस्य
नहीं हो सकता” उन्होंने कांग्रेस की जीत का भी अपने तरीके से ज़िक्र किया
है .लिखते हैं कि “ वर्ष 1980 के संसदीय चुनावों में जनता पार्टी की हार
का अनुमान मुझे पहले से ही था। यह हार अत्यंत गंभीर थी। इसने दर्शाया कि
मतदाता 1977 के जनादेश के साथ विश्वासघात करने के लिए पार्टी को दंड देना
चाहते थे। 1977 में 298 सीटों की तुलना में पार्टी को मात्र 31 सीटें
प्राप्त हुईं। इसमें जनसंघ की सीटें 1977 में 93 की तुलना में मात्र 16
थीं। दूसरी ओर इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाली कांग्रेस (आई) शानदार तरीके
से वापस लौटी और 1977 के 153 सांसदों की तुलना में 1980 में उसके 351
सांसद विजयी रहे, जो कि 542 सदस्यीय सदन में लगभग दो-तिहाई बहुमत था।“

दूसरी बार कांग्रेस ने साफ्ट हिंदुत्व की राजनीति को अपनाने का कार्य
बाबरी मसजिद के लिए चलाये गए आर एस एस के आंदोलन के दौरान किया जब राजीव
गांधी मंत्रिमंडल में गृहमंत्री , सरदार बूटा सिंह  ने जाकर अयोध्या में
बाबरी मसजिद के पास एक मंदिर का शिलान्यास करवा दिया . काँग्रेस पार्टी
उसके बाद हुए १९८९ के चुनावों में हार गयी . १९९१ में पी वी नरसिम्हाराव
ने जुगाड करके एक सरकार बनायी .कांग्रेस की इसी सरकार के काल में बाबरी
मसजिद का विध्वंस हुआ और उसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस फिर हार गयी.
उसके बाद कांग्रेस पार्टी इतिहास का विषय बनने की तरफ बढ़ रही थी लेकिन
१९९७ के कोलकता कांग्रेस में सोनिया गांधी ने पार्टी की सदस्यता ली और
१९९८ में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं. उस वक़्त कांग्रेस की हालत बहुत खराब थी
. लेकिन सोनिया गांधी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्षता की राह
से भटक गयी थी अब वे हमेशा उसी धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलती रहेगीं
.सिद्धांतों को फिर से संभाल लेने का ही नतीजा है कि कांग्रेस ने अपनी
पुरानी हैसियत को पाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया और २००४ में
केन्द्र सरकार पर कांग्रेस का दुबारा कब्ज़ा हो गया . मुख्य विपक्षी दल तब
से लगातार सिमट रहा है .बीजेपी की सरकारें कई राज्यों में बन गयी थीं जो
अब धीरे धीरे विदा हो रही हैं . राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इसका कारण
कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष नीतियां हैं .



दिग्विजय सिंह कांग्रेस की इसी आक्रामक धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ा रहे
हैं .ज़ाहिर है धर्मनिरपेक्ष राजनीति से बीजेपी को चुनावी नुक्सान हो रहा
है और उसके नेता जब भी मौक़ा मिलता है ,दिग्विजय सिंह के खिलाफ अभियान
चलाने का अवसर नहीं चूकते . बीजेपी के समर्थक भी दिग्विजय सिंह को बहुत
ही घटिया इंसान के रूप में पेश करने में संकोच नहीं करते .रामदेव जैसे
लोगों के अलावा मीडिया में मौजूद बीजेपी के सहयोगी भी दिग्विजय सिंह के
हर बयान  को अपनी सुविधानुसार  पेश करते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आज
दिग्विजय सिंह साम्प्रदायिक ताक़तों को चुनौती देने की राजनीति के विशेषण
बन चुके हैं और उनकी पार्टी में उनको पूरा सम्मान मिल रहा है ..

Friday, August 10, 2012

रामदेव का उपवास उल्लासपूर्ण माहौल में शुरू,कांग्रेस को दिक्क़त नहीं



शेष नारायण सिंह 
नई दिल्ली,९ अगस्त. योग शिक्षक  रामदेव  का तीन दिन का  उपवास आज रामलीला मैदान में पूरे जोश खरोश के साथ शुरू हो गया. तीन दिन के  इस उपवास में उनके करीब २० हज़ार समर्थक सवेरे ही रामलीला मैदान पंहुच चुके थे. खबर है कि उनके बहुत सारे समर्थक भी उनके साथ उपवास कर रहे हैं . राम लीला मैदान में रामदेव के भाषण के  बाद माहौल बहुत ही उल्लासपूर्ण  था क्योंकि  अब समर्थकों को भरोसा हो गया है कि  पिछली बार की तरह इस बार रामलीला मैदान में  पुलिस की लाठियां नहीं चलेगीं.  शुक्रवार को जन्माष्टमी है . उस दिन लोग वैसे भी व्रत रखते हैं और शनिवार को तीन दिन पूरे हो जायेगें. रामदेव ने इस बार  बहुत ही चतुराई  से अपने आपको अन्ना हजारे की टीम से अलग  कर दिया  है.. उन्होंने मंच से ऐलान किया कि उनका आन्दोलन किसी  भी पार्टी के  खिलाफ नहीं है और वे काले धन को वापस लाने के अलावा अब एक मज़बूत लोकपाल के लिए भी संघर्ष  कर रहे हैं .रामदेव ने साफ़ कहा कि वे उसी लोकपाल को पास करवाने  की माग कर रहे हैं जिसे  लोक सभा में  पास किया जा चुका है. उन्होंने कहा  वे सी बी आई के निदेशक , सी ए जी, मुख्य  विजिलेंस  कमिशनर , और  चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को पारदर्शी  बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं . 
रामदेव ने अपने भाषण में साफ़ किया कि वे किसी भी नेता के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगें. अन्ना हजारे की टीम वालों की तरह वे किसी भी मंत्री के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगें. उन्होंने यह भी कहा कि अगर लोकसभा में पास हुए लोकपाल में कुछ कमियाँ हैं और वह ९८ प्रतिशत सही है तो उसे पास करवा लेना चाहिए , बाकी २ प्रतिशत की जो कमी रह जायेगी उसे बाद  में ठीक करवा लिया जाएगा  लेकिन एक मज़बूत लोकपाल पास होना बहुत ज़रूरी है .बाबा के इस नरम रुख के बाद उनके समर्थको में  बहुत उत्साह है . कांग्रेस पार्टी ने भी  राहत की साँस ली है. बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी रामदेव के पाँव छुए और रामदेव ने गुजरात जाकर  अपने भाषण में नरेंद्र मोदी  को महान बताया  तो कांग्रेस पार्टी में  दहशत थी लेकिन आज कांग्रेसी बहुत खुश हैं .  कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नता  ने बताया कि रामदेव जिन मुद्दों पर आन्दोलन कर रहे हैं उन पर तो कांग्रेस का भी भरोसा है . ज़ाहिर है कि कांग्रेस में इस आन्दोलन को लेकर अब कोई चिंता नहीं  है .  रामदेव की तरफ पार्टी न बनाने जाने के फैसले से बीजेपी भी खुश है . यह अलग बात है कि कांग्रेस के प्रति नरम हो जाने एक बाद बीजेपी के नेता अभी निजी  बातचीत में रामदेव के प्रति नाराज़गी जाता रहे हैं .

Saturday, June 9, 2012

दिग्विजय सिंह कहा- नितिन गडकरी और रामदेव व्यापारिक हित साध रहे हैं





शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली,७ जून. कांग्रेस के  महामंत्री दिग्विजय सिंह ने योग शिक्षक रामदेव पर फिर हमला बोला है . उन्होंने रामदेव से अपील की है कि काले धन के बारे में अभियान चलाना बहुत सही काम है लेकिन रामदेव को सबसे पहले अपने काले धन के बारे में जानकारी सार्वजनिक   करनी चाहिए.दिग्विजय  सिंह ने कहा कि रामदेव के बारे में अब तक उन्होंने जो कुछ भी कहा सब सही साबित हुआ है .उनके खिलाफ काला धन रखने और  टैक्स की चोरी के मामले लंबित हैं . उनके एक सहयोगी पर चार सौ बीसी और हेराफेरी का केस चल रहा है और अपने ऊपर से सरकारी एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए वे  सरकार के खिलाफ उल्टी सीधी बात करते हैं.
दिग्विजय सिंह ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का भी  मखौल उड़ाया और कहा  कि जब श्री गडकरी ने रामदेव  के चरण छुए उसी वक़्त नितिन गडकरी की राजनीति की गहराई का पता लग गया. दिग्विजय सिंह ने भी कहा कि नितिन गडकरी और रामदेव दोनों ही व्यापारी हैं और नितिन गडकरी ने अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए अपनी पार्टी को राम देव के चरणों में डाल दिया है. यह काम नितिन  गडकरी और बीजेपी के चाल चरित्र और चेहरे को एक बार फिर उजागर करता है .बीजेपी यह भी पता चला है कि रामदेव  ने भारत छोडो दिवस के दिन ९ अगस्त को दिल्ली में फिर भीड़ जुटाने की योजना बनायी  है . उसके  बाद उनको भारी प्रचार  मिलेगा .लेकिन उसके साथ साथ  ही दवा बेचने की उनकी नई दुकानों के खुलने की घोषणा भी होने वाली है .
कांग्रेस के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कल रामदेव के बारे में कुछ सहानुभूति पूर्ण बयान दिया था . उसके बाद लगने लगा था कि कांग्रेस अब रामदेव को बहुत नाराज़ नहीं करना चाहती . लेकिन आज दिग्विजय सिंह का यह बयान हालत को और भी कन्फ्यूज़ कर देता है . दिल्ली के राजनीतिक दरबारों में राम देव की स्वीकार्यता बढ़ रही है . बीजेपी के अध्यक्ष तो खुले आम उनके चरणों की वंदना कर रहे हैं जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश  के नेता अजित सिंह भी अब  खुल कर रामदेव के समर्थन की बात करने लगे हैं . एन सी पी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कृषि मंत्री शरद पवार भी रामदेव के समर्थकों में शामिल हो गए हैं . हालांकि  रामदेव के  साथी अन्ना हजारे के एक कथित समर्थक ने उन्हें अपमानित किया था . अन्ना के लोगों केंद्र सरकार में जिन मंत्रियोंको भ्रष्ट बताया है उसमें शरद  पवार का नाम भी है. ऐसी हालत में दिल्ली में बात बहुत ही अजीबोगरीब तर्कों के दायरे में घूम रही है. एन सी पी के एक नेता ने कहा कि अब राम देव अपनी औकात पर आ जायेगें क्योंकि अब वे राजनीतिक नेताओं के  दरवाजों पर नज़र आयेगे और दिल्ली में  नेताओं के इर्द गिर्द चक्कर काटने वालों की क्या हालत होती है, यह सभी जानते हैं .