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Tuesday, March 26, 2013

उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी का खामियाजा २०१४ में भुगतना पड़ सकता है .





शेष नारायण सिंह 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने  उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मंत्रियों को आइना दिखाने की कोशिश की .उन्होंने साफ़ कहा कि राज्य में पिछले एक साल में हालात बहुत बिगड गए हैं .उन्होंने सबसे पहले अपने बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ही नसीहत दी और कहा कि  अखिलेश के बारे में यह बहुत मशहूर हो गया है कि वे बहुत सीधे आदमी हैं  लेकिन सिधाई से राज नहीं चलता . सख्ती बरतनी पड़ेगी क्योंकि सत्ता में आने पर अपराधियों, अफसरों , माफिया आदि से सामना होता है और उनको दुरुस्त रखने के लिए सख्ती से काम लेना पडेगा . उन्होने साफ़ कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था की हालत बहुत ही खराब है . कुल मिलाकर मुलायमसिंह यादव ने अपनी पार्टी की ऐसी आलोचना की जैसी कि किसी विपक्षी पार्टी ने भी नहीं की थी .
 
सवाल यह उठता है कि मुलायम सिंह यादव इतने गुस्से में क्यों  हैं . एक साल पहले बहुत ही खुशी खुशी उन्होने अपने बेटे को सत्ता सौंपी थी और उम्मीद जताई थी कि करीब दो साल बाद जब लोक सभा के चुनाव होंगें तो  समाजवादी पार्टी को लोक सभा में करीब ५० सीटें मिल जायेगीं . अगर ५० सीटें मिल जातीं तो उनके बल पर कांग्रेस या बीजेपी , कोई भी उन्हें प्रधान मंत्री बनाने के पेशकश कर सकता था . लेकिन आज साल भर बाद मुलायम सिंह यादव की पारखी नज़र ने भांप लिया है कि अगर आज चुनाव हो जाएँ तो उनकी पार्टी को उतनी सीटें भी नहीं मिलेगीं जितनी २००९ में मिली थीं. राज्य सरकार ही समाजवादी पार्टी की जीत या हार को सुनिश्चित करने का सबसे बड़ा जरिया है . और जब राज्य सरकार  की हालत खस्ता है तो उसके हवाले से २०१४ जीतना बिलकुल असंभव है. ऐसी हालत में मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से फटकार कर उन्होने हालात को ठीक  करने की कोशिश की है .लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वे स्थिति को कितना सुधार पाते हैं .

मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और उनकी सरकार को फटकार कर यह बात तो बहुत साफ़ शब्दों में बता दिया है कि हालात में सुधार लाने की  ज़रूरत है लेकिन एक सच्चाई और है और वह यह कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार में अखिलेश यादव केवल मुख्यमंत्री हैं  . बाकी सभी कैबिनेट मंत्री वे हैं जो अखिलेश यादव को बच्चा समझते हैं और मुलायम सिंह यादव के भरोसे के लोग हैं . जब यह सरकार बनी थी तो  लोगों ने उम्मीद जताई थी कि अखिलेश यादव आधुनिक शिक्षा से लैस नौजवान हैं और वे सरकार में नए विचार लायेगें और उन विचारों के बल पर एक नए उत्तर प्रदेश का निर्माण होगा  लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ काम  कर चुके ज़्यादातर मंत्रियों ने आखिलेश की एक न सुनी और सबने अपने मंत्रालय को अपनी ज़मींदारी की तरह चलाना शुरू कर दिया . कानून व्यवस्था पर भी मुलायम सिंह यादव खासे  नाराज़ हैं . लेकिन सच्चाई यह है कि अखिलेश यादव जिस  पुलिस अफसर को राज्य पुलिस का नेतृत्व देना चाहते थे , उसको मौक़ा न देकर नेताजी ने अपने प्रिय अफसर को पुलिस की कमान सौंप दी.अगर आज कानून व्यवस्था की हालत खराब है तो उसके लिए  खराब पुलिस प्रशासन  ज़िम्मेदार  हैं . जहां तक अफ़सरों की तैनाती की बात है  उसमें भी अखिलेश यादव की बहुत नहीं चलती. उनके  अपने सचिवालय में ऐसे कई अफसर तैनात हैं जिनको नेताजी ने सीधे तौर पर नियुक्त किया है . ज़ाहिर है वे लोग भी आखिलेश यादव की नहीं सुनते. नोयडा में कुछ अफसरों की नियुक्ति के मामले में हाई कोर्ट के बार बार दखल देने ले बाद भी उनको वहाँ से तब हटाया गया जब लगा कि सरकार के ऊपर ही मानहानि का मुक़दमा चल जाएगा. बताते  हैं कि राज्य सरकार के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद पर एक ऐसे अफसर को तैनात कर दिया गया है जिसको कि कोर्ट के आदेश पर बाकायदा जेल की सज़ा हो चुकी है . तो ऐसी हालत में राज्य सरकार की असफलता का सारा ज़िम्मा अखिलेश यादव पर डाल  देना नाइंसाफी होगी. अगर मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि अखिलेश यादव पूरी जिम्मेवारी से अपना काम करें तो उनको मंत्रियों और अफसरों की तैनाती में खुली छूट देनी होगी वर्ना बहुत देर हो जायेगी .

मुलायम सिंह यादव ने जो आज लखनऊ में सार्वजनिक रूप से कहा  है वही बात उन्होंने इस रिपोर्टर को कई दिन पहले संसद भवन के अपने कमरे में बतायी थी जिसे कई अखबारों ने छापा भी था . मुलायम सिंह यादव का कहना है २०१४ का चुनाव बहुत ही गंभीरता से लड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि संसद का बजट सत्र खत्म होने के बाद वे निकल पड़ेगें और पूरे राज्य में  जनसंपर्क शुरू कर देगें . वे संसद का सत्र खत्म होते ही हर मंडल में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायेगें और उनसे व्यक्तिगत संपर्क करेगें . स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र ने उनको आगाह किया था कि अब हर कस्बे में जाने की ज़रूरत नहीं है . उनकी सलाह थी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनको वहीं जाना चाहिए जहां समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई वाले जाने को कहें . लेकिन उन्होंने  राज्य स्तर के अपने पार्टी के नेताओं खासी नाराजगी जताई और कहा कि जो विधायक बन गए हैं वे अब अपने क्षेत्रों में नहीं जा रहे हैं .जो लोग मंत्री बन गए हैं .वे भी तो विधायक ही  हैं लेकिन सब लोग लखनऊ में जमे रहते हैं और जनता से संपर्क नहीं रख रहे हैं . इस कारण से पार्टी का बहुत नुक्सान हो रहा है . उन्होने उन संसद सदस्यों के प्रति भी नाराजगी जताई जो कार्यकर्ताओं को दिल्ली बुला लेते हैं और उनको संसद के अंदर आने  का पास बनवा देते हैं . नतीजा यह होता है कि वे लोग संसद भवन के मुलायम सिंह यादव के कार्यालय के  बाहर आकर खड़े हो जाते हैं . यह ठीक नहीं है. वे चाहते हैं  कि पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें लखनऊ में ही मिलें .

मुलायम  सिंह यादव की यह चिंता इसलिए भी है कि उत्तर प्रदेश में आगामी लोक सभा चुनाव  धार्मिक ध्रुवीकरण की बीजेपी की कोशिश की छाया में लड़ा जाएगा . अगर बीजेपी ने वरुण गांधी, उमा भर्ती, कल्याण सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों के जयकारे के साथ चुनाव लड़ा तो यह बात लगभग पक्की है कि मुलायम सिंह यादव को मुसलमानों के वोट नहीं मिलेगें. और अगर मुसलमानों के वोट थोक में कांग्रेस के पास  चले गए तो मुलायम सिंह यादव की सीटें लोक सभा में मौजूदा सीटों से भी कम  हो जायेगीं. पिछली बार २००९ में यह सीटें इसलिए मिली थीं कि राज्य की एक बहुत बड़ी आबादी मायावाती को हराना चाहती थी. इस बार ऐसा नहीं है . इस बार तो ऐसे बहुत लोग मिल जायेगें जो मौजूदा सरकार के काम काज से बहुत निराश हैं और  वे इस सरकार के अलावा किसी और को वोर दे सकते हैं . अगर ऐसा हुआ तो मुलायम सिंह यादव और  उनकी पार्टी के लिए बहुत मुश्किल  हो जायेगी . 

Monday, April 30, 2012

अखिलेश यादव को मायावती जैसा साबित करने के चक्कर में हैं दिल्ली दरबार के कुछ पत्रकार


 

शेष नारायण सिंह 

करीब डेढ़ महीने पहले उत्तर प्रदेश में नई सरकार ने शपथ ली थी. इन पैंतालीस दिनों में  बहुत कुछ बदला है . लेकिन अजीब बात है कि उस परिवर्तन के बारे में कुछ भी लिखा नहीं जा  रहा है . दिल्ली के सत्ता के गलियारों में जहां कहीं भी एकाध लोग यह कहते पाए जाते हैं कि उत्तर प्रदेश में हालात पहले से बेहतर हैं , उन्हें फ़ौरन नकलेल लगाने  की कोशिश की जाती है .उन्हें डांट दिया जाता है कि सरकार की चापलूसी करने की ज़रुरत नहीं है . पत्रकार के रूप में हमारा कर्त्तव्य है कि हम सरकारों के खिलाफ लिखते  रहें, उनको हमेशा  चौकन्ना रहने के लिए मजबूर करते रहें. यह उपदेश देने वालों में वे लोग भी शामिल होते हैं जो राहुल गांधी के दलित प्रेम के बारे में टेलिविज़न पर  राग दरबारी में राहुल रासो गाया करते थे. दिल्ली में एक अजीब माहौल बन रहा है कि  उत्तर प्रदेश की मौजूदा  सरकार के खिलाफ कुछ न कुछ लिखना ज़रूरी है  वरना निष्पक्ष पत्रकार के रूप में पहचान नहीं बन पायेगी. यहाँ  इस विषय पर बात नहीं की जायेगी कि राहुल  गांधी की छींक को भी खबर बनाकर अभिभूत होने वालों और अखिलेश यादव के राजनीतिक  निर्णयों को मामूली बताने वालों की मानसिकता क्या है .अभी डेढ़ महीने पहले उत्तर प्रदेश की जनता ने इस मानसिकता  वालों को उनकी औकात बता दी थी और राजनीति के जनवादीकरण की मिसाल पेश की थी.  दिल्ली में एक ऐसा वर्ग है  जो लगातार कोशिश कर रहा है कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार को राज्य की पिछली सरकार के खांचे से बाहर ही न आने दिया जाए. दोनों सरकारों की तुलना ऐसे बिन्दुओं पर की जाए जिनपर डेढ़ महीने में कोई बदलाव हो ही नहीं सकता . मसलन अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ साथ  ही  टेलिविज़न चैनलों पर  हाहाकार मच गया था कि राज्य में अपराध बढ़ रहा है . अब सब को मालूम है कि जिस राज्य में अपराध और राजनीति में चोली दामन का साथ है वहां बिजली के स्विच ऑन  या ऑफ़ करने से अपराध पर रोक नहीं लग जायेगी. उन मुद्दों पर चर्चा होने ही नहीं दी जा रही है जहां मौलिक परिवर्तन हो रहे हैं .   इसके साथ ही एक और कोशिश हो रही है कि अगर कोई पत्रकार अखिलेश यादव की सकारात्मक बातों का उल्लेख करता है तो उसे  हड़का कर यह बता दिया जाये कि भाई अखिलेश यादव की तारीफ़ करोगे तो पत्रकारिता की कसौटी पर खरे नहीं उतरोगे. ऐसे माहौल में राज्य में पिछले ४५ दिनों की राजनीति का सही आकलन करना बहुत पेचीदा काम हो गया है लेकिन आकलन होना ज़रूरी है क्योंकि दिल्ली में बैठे अकबर रोड या अशोक रोड वाली पार्टियों के  कृपापात्र पत्रकारों के नागपाश से तो राजनीतिक  विश्लेषण को बाहर लाना ही पड़ेगा. इस काम को करने के लिए उन नौजवान पत्रकारों को भी आगे झोंकना ठीक नहीं होगा जो अभी पत्रकारिता में अपनी रोज़ी रोटी तलाश करने के लिए मजबूर हैं और उनके अखबार में शीर्ष  पदों  पर  वही लोग विद्यमान हैं जो अपनी सोच  को ही राजनीतिक विश्लेषण बना कर पेश कर देते हैं . उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मुख्यमंत्री के काम काज की जांच परख के लिए किसी ऐसे विश्लेषक की ज़रुरत है  जिसे दिल्ली के सत्ताधीश पत्रकार मजबूर न कर सकें  और जिसे वेब पोर्टल की वैकल्पिक मीडिया की दुनिया में सर पर कफ़न बाँध कर घूम रहे नौजवान पत्रकार, अपना बंदा मानते हों .  वैकल्पिक मीडिया के उन्हीं सूरमाओं की  सदिच्छा  के पाथेय के साथ यह विश्लेषण करने की कोशिश की जा रही है .

डेढ़ महीने पहले सत्ता में आई सरकार ने बहुत कुछ बदलने की शुरुआत की है .  सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि लखनऊ में एकाधिकारवादी सत्ता  का पर्याय बन चुके पंचम तल के आतंक को कम किया है .पिछली सरकार में सब कुछ पंचम तल से ही तय होता था और उसमें किसी से भी राय सलाह नहीं ली जाती थी. मुख्य मंत्री का सीधा संवाद केवल एक अफसर से था और उसको भी केवल हुक्म सुनाया जाता था . उसकी ड्यूटी थी  कि वह मुख्य मंत्री के हुक्म का पालन करवाए. बताते हैं कि हुक्म का पालन करवाने के चक्कर में वह अफसर जिलों में तैनात आई ए एस और आई पी एस  अफसरों को  भद्दी भद्दी गालियाँ भी  देता था. जब मुझे यह पता लगा तो मैं सन्न रह गया था क्योंकि आई ए एस या आई पी एस में भर्ती होना कोई हंसी खेल नहीं है . वैसे भी इन सेवाओं में आते वक़्त नौजवान केवल संविधान को लागू करने की शपथ लेता है और उसके अनुसार ही काम करने की क़सम के साथ सरकार में प्रवेश करता है . उसे गाली देने का हक किसी को नहीं है . लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उसे अपनी गरिमा का रक्षा खुद ही करनी चाहिए . अगर उसने गाली खाकर प्रतिरोध नहीं किया तो वह भी अपनी हालत के लिए जिम्मेवार है . हो सकता  है कि रिश्वत की गिज़ा  के चक्कर में वह  फजीहत झेल रहा हो . क्योंकि उसी लखनऊ में ऐसे बहुत सारे अफसर हैं जो अपनी गरिमा के साथ राज्य सरकार की सेवा कर रहे हैं . किसी भी पंचम तल वाले की बेअदबी के मोहताज  नहीं है .पिछले डेढ़ महीने में यह परिवर्तन आया है . अब कोई भी कलेक्टर या पुलिस कप्तान , पंचम तल के किसी अफसर की गाली नहीं खा  रहा है . यह बड़ा  परिवर्तन है . इसी से जुड़ा हुआ एक और परिवर्तन भी पता चल रहा है कि ट्रांसफर पोस्टिंग का धंधा भी बंद हो चुका है . पिछले पांच वर्षों के दौरान जिन लोगों ने यू पी पर नज़र रखा है  उन्हें मालूम है कि किसी भी मलाईदार तैनाती के लिए  तत्कालीन पंचम  तल के किसी एजेंट के पास रक़म  पंहुचा कर ही अफसर  चैन की साँस लेता था. किसी भी सरकार की नीतियों को लागू करने का काम अफसरों का   ही होता है. अगर वे ही घूस की ज़िंदगी जी रहे हों  तो जनहित का काम कर पाना उनके बूते की बात नहीं है. अगर कोई  सरकार अफसरों को भय मुक्त माहौल में काम करने की सुविधा दे रही है तो उत्तर प्रदेश की समकालीन हालात में यह भी अपने आप में बड़ी उपलब्धि है . 
पिछले डेढ़ महीने में एक और संकेत बिकुल साफ़ नज़र आ  रहा है . पंचम तल का आतंक खतम होने के साथ ही  लखनऊ में सत्ता का विकेंद्रीकरण हो रहा  है . अब  किसी भी विभाग में हो रही गड़बड़ियों के लिए सम्बंधित मंत्री की आलोचना हो रही है .इसका मतलब यह है कि अब मंत्री लोग अपने विभागों की फाइलें निपटा रहे हैं और फैसले ले रहे हैं.उत्तर प्रदेश के बाहर वालों को यह बात अजीब लग सकती है लेकिन सच्चाई यह है कि मायावती की सरकार में हर फैसला मुख्यमंत्री के दफ्तर में ही  होता था.  किसी भी मंत्री  की औकात नहीं थी कि वह कोई फैसला ले ले . मंत्रियों को उनके विभाग के फैसले की जानकारी तक नहीं दी जाती थी. हाँ कुछ मंत्री पंचम तल तक अपना  रसूख बनाये रहते थे तो उन्हें अपने विभाग के फैसलों के बारे में अखबारों में छपने के पहले पता लग जाता था.   मायावती के राज में पंचम तल पर जो बहुत सारे अफसर तैनात थे उन के बीच  सरकार के विभाग  बाँट दिए गए थे और वे ही फैसले लेते थे . मंत्री बेचारे को तो अखबारों के ज़रिये ही पता लगता था  या अगर उसने अपने विभाग के प्रमुख सचिव की कृपा अर्जित कर  रखी थी तो उसे अखबारों में जाने के पहले  खबर का पता लग जाता था. आज स्थिति बिलकुल अलग है . हर विभाग का मंत्री अपने फैसले ले रहा है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि मुख्य मंत्री के अधिकार में किसी तरह की कमी आई है .
नौकरशाही को उसकी सही जगह पर लाने की जो कोशिश मौजूदा मुख्यमंत्री ने की है उसके नतीजे अभी  आना शुरू नहीं हुए हैं. लेकिन यह तय है कि नौकरशाही को उसकी ज़िम्मेदारी  निभाने के लिए जो स्पेस चाहिए  वह बहुत दिन बाद मिलना शुरू हो गया है. उत्तर प्रदेश से मुहब्बत करने वालों को उम्मीद हो गयी है कि अब  सरकारी अफसर भी अपना काम नियमानुसार करेगें और अपने मातहत अफसरों को अपना काम करने देगें. 

पिछले पंद्रह वर्षों में जो भी मुख्यमंत्री आया है उसने गौतम बुद्ध नगर जिले के नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा का खूब आर्थिक दोहन किया है .मायावती के राज में यह काम खुद माननीय मुख्यमंत्री या उनके भाई साहेब की सरपरस्ती में होता था . मुलायम सिंह यादव के राज में यह  काम उनके बहुत करीबी  नेता और बाबू साहेब के नाम से  विख्यात उनकी पार्टी के महामंत्री जी किया करते  थे.  बीजेपी के सत्ता में रहने पर तो कई ऐसे केंद्र थे जहां से  गौतम बुद्ध नगर जिले की आर्थिक घेराबंदी की जाती थी.  अखिलेश यादव की सरकार आने के साथ  ही इलाके में एक अफवाह फैल गयी कि अब गौतम बुद्ध नगर जिले का काम समाजवादी पार्टी के महामंत्री , प्रोफ़ेसर राम गोपाल यादव देखेगें . दिल्ली में रहकर उत्तर प्रदेश या समाजवादी पार्टी की बीट कवर करने वाले पत्रकारों को मालूम है कि राजनीतिक शब्दावली में राम गोपाल यादव  होने के क्या मतलब है . सबको मालूम है  कि वे कभी भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं होने देगें . बहुत लोगों को यह भी मालूम है कि जब  मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते   बाबू साहेब का लूट युग चल रहा था तो रामगोपाल यादव चुप रहते थे लेकिन कभी भी उस तंत्र को अपने करीब नहीं आने दिया . जानकार बताते हैं कि बाबू साहेब को पार्टी से निकालने का सख्त फैसला भी राम गोपाल यादव की प्रेरणा से ही  लिया गया था. जो भी हो , इस अफवाह का फायदा यह हो रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश  के भूमाफिया के लोग आजकल डरे हुए हैं और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि अखिलेश  यादव सरकार में किस तरह से लूट तंत्र वाली पुरानी व्यवस्था को कायम किया जाए. सबको मालूम है कि राम गोपाल यादव इस खेल को कभी नहीं होने देगें.ज़ाहिर है अपनी छवि को सही तरीके से पेश करने में अखिलेश यादव को इस स्थिति का निश्चित फायदा होगा.
 
अखिलेश यादव ने जो पिछले डेढ़ महीने में सबसे अहम काम किया है वह यह है कि उन्होंने आबादी के लोकतन्त्रीकरण  की कोशिश  शुरू कर दी है . मायावती के राज में ऐसा माहौल बना दिया गया था कि  मुख्यमंत्री तक कोई भी नहीं पंहुच सकता .अगर कोई उनसे मिलने की  कोशिश करता तो उसे भगा दिया  जाता था  . मुख्य मंत्री और आम आदमी के बीच  बहुत ही भारी डिस्कनेक्ट था .चुनावी विश्लेषणों के दौरान यह बात कई बार चर्चा  में आई भी कि इसी डिस्कनेक्ट के कारण मायावती चुनाव हार गयी थीं. हो सकता  यह सच भी लेकिन   मायावती की आम आदमी से दूरी बनाए रखने की नीति के कारण आम आदमी  की सत्ता से किसी तरह की भागीदारी ख़त्म हो गयी थी. अब वह सब कुछ इतिहास है . अब महीने में दो बार मुख्यमंत्री अपने घर पर मेला लगाकर लोगों से मिलेगें. इसका फायदा यह होगा कि नौकरशाही पर राजनीतिक  सत्ता की हनक  बनी रहेगी और सरकारी अफसर मनमानी नहीं कर सकेगा . उसको मालूम है कि  पीड़ित इंसान मुख्यमंत्री के पास पंहुच जाएगा  और मुख्यमंत्री की नाराज़गी का भावार्थ उत्तर प्रदेश  के सरकारी अफसरों से ज्यादा कोई नहीं समझ  सकता .  उन्होंने पिछले पांच वर्षों में उसको बाकायदा झेला है . ज़ाहिर है कि राज्य में शासन का लोकतंत्रीकरण एक बड़ी शुरुआत है और इसके चलते ही अपराध भी ख़त्म होगें और भ्रष्टाचार भी ख़त्म होगा. पिछले डेढ़ महीने के सरकारी फैसलों पर नज़र डालें तो साफ़ लग जाएगा कि  उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस काम को करने का संकल्प लिया है. इसलिए किसी जिले में होने वाली अपराध की घटना को  मुख्यमंत्री की असफलता के रूप में पेश  करना जल्दबाजी होगी . लोकतंत्र  में लाजिम है कि अपराध खत्म करने का  एक संस्थागत ढांचा बनाया जाया. अब तक की प्रगति से  तो यही लगता है कि मौजूदा मुख्य मंत्री उसी ढाँचे की तलाश में है . 

Saturday, March 17, 2012

क्या अखिलेश यादव इन चुनौतियों को अवसर के रूप में बदल पायेगें ?

शेष नारायण सिंह

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने शपथ ले ली है . उन्हें यह पद एक सही लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बाद मिला है . पूरे राज्य में चार मुख्य पार्टियों ने चुनाव लड़ा, धुआंधार प्रचार हुआ, सबने एक दूसरे के खिलाफ बातें कीं और जब नतीजा आया तो सभी पार्टियों ने चुनाव नतीजों को स्वीकार किया . उनके सामने कोई विकल्प भी नहीं था लेकिन कभी कभार देखा गया है कि चुनाव के बाद तल्खी रह जाती है .खुशी कीबात्याह अहि इस बार ऐसी कोई तल्खी नहीं थी . अब तक के संकेतों से लगता है कि अखिलेश यादव एक गंभीर मुख्य मंत्री होंगें . एक राजनीतिक प्रचारक के रूप में अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के अभियान की अगुवाई की और उसमें वे एक सफल राजनेता के रूप में पहचाने गए हैं . लेकिन क्या वे आने वाली लड़ाइयों में भी सफल होंगें , यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का काम बहुत ही मुश्किल है . सबसे बड़ा तो यही कि पिछली सरकार ने अपना पांच साल पूरा किया और उसके राज की जो सबसे बड़ी बात राज्य के अंदर और राज्य के बाहर मालूम है ,वह यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री के बहुत करीबी लोगों ने नोयडा और ग्रेटर नोयडा के कुछ लोगों को अपना एजेंट बना रखा था और वे यहाँ पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर अरबों रूपये की वसूली करते थे . बताते हैं कि नोयडा और ग्रेटर नोयडा में ज़मीन के हर इंच की बिक्री में इन लोगों ने मुख्यमंत्री या उनके भाई के नाम पर उगाही की . पिछले एक हफ्ते से दिल्ली के आसपास के इलाकों में चर्चा है कि जिन लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री के यहाँ वसूली का तंत्र बना रखा था , उन्होंने किसी बिल्डर की मार्फ़त अखिलेश यादव के यहाँ भी अपनी पंहुच बना ली है और कुछ सौ करोड़ रूपये अखिलेश यादव के यहाँ पंहुचा दिया है . अखिलेश यादव का मुख्यमंत्री के रूप में सबसे बड़ा काम होना चाहिए कि इस तरह के लोगों के बारे में पता करें और उनको ऐसी सज़ा दें कि आने वाले पांच वर्षों में किसी की हिम्मत न पड़े कि वह मुख्यमंत्री के नाम पर वसूली का काम शुरू कर सके. क्योंकि अब तक के उनके राजनीतिक आचरण से साफ़ लगता है कि वे एक आधुनिक राजनेता हैं और वे किसी भी तरह के धंधेबाज़ के हाथों में इस्तेमाल नहीं हो सकेगें .नए मुख्यमंत्री ने साफ़ कहा है कि उनकी सरकार बदले की भावना से काम नहीं करेगी लेकिन उन्हें यह तो सुनिश्चित करना ही होगा कि उनके नाम पर कोई भी व्यक्ति किसी तरह का धंधा न कर सके . ख़ास तौर पर कोई भी ऐसा आदमी जिसने पिछली सरकार के दौरान लूटमार मचा रखी थी,उसे दूर रखना उनके हित में होगा.
अगर एक सफल मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें अपनी छवि स्थापित करनी है तो उन्हें यह बात सुनिश्चित करनी पड़ेगी कि वे उन लोगों से दूर रहें जिन्होंने पिछली सरकार को एक उगाही की सरकार के रूप में पहचान दिलाई थी. इन लोगों को सज़ा देना बिलकुल आसान होगा क्योंकि यह सभी सरकारी कर्मचारी हैं . इन लोगों के बारे में पता लगाना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए बहुत ही आसान होगा. लेकिन उनकी सरकार के कामकाज को देखने के लिए इस बार उनके चुनावी घोषणा पत्र को देखा जाएगा. समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र को इस बार राज्य की जनता ने बहुत ही गंभीरता से लिया है . उस में जो भी वायदे किये गए हैं उनको पूरा करना नई सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी. इस बार नौजवानों और महिलाओं ने समाजवादी पार्टी को झूम कर वोट दिया है . उनके बारे में जो वायदे किये गए हैं उन्हें हर हाल में लागू करना होगा. और अगर अपने घोषणा पत्र में किये गए वायदों को लागू करने की दिशा में मुख्यमंत्री ने सही क़दम उठा लिया तो आने वाले वर्षों में वे एक ऐसे राजनेता के रूप में पहचाने जायेगें जिसका कोई जोड़ नहीं रहेगा. समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में कहा गया है कि किसानों को मुफ्त पानी दिया जाएगा, खेती के लिए और शहरी इलाकों में बिजली हर हाल में उपलब्ध कराई जायेगी और बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिया जायेगा . अगर उन्हें रोजगार नहीं दिया जा सका तो जब तक वे काम नहीं पा जाते ,उन्हें बेरोजगारी भत्ते के रूप में हर महीने क हज़ार रूपया दिया जायेगा . यह बहुत बड़ी बात है . समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की इस बात पर राज्य के नौजवानों ने विश्वास किया और उनको बड़ी संख्या में वोट दिया . इस विश्वास का कारण यह है कि पिछली बार जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे , तो उन्होंने बेरोजगारी भत्ता देना शुरू कर दिया था. उनपर विश्वास किया गया इसीलिये जब से चुनाव का काम पूरा हुआ है तभी से बुन्देलखंड , मध्य उत्तर प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हर जिला रोज़गार कार्यालय में नाम लिखाने के लिए नौजवानों की कतारें लगी हुई हैं . इन नौजवानों की उम्मीद को पूरा करना मुख्य मंत्री की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए अपने पिछले कार्यकाल में मुलायम सिंह यादव ने लडकियोंको बहुत महत्व दिया था . बच्चियों के लिए उन्होंने कन्याधन की व्यवस्था थी. उनकी इस बात को राज्य के ग्रामीण इलाकों में बहुत सराहा गया था और इस चुनाव में बूथों पर माहिलाओं की जो लंबी लम्बी कतारें लगी थीं , वह उन महिलाओं की थीं जो मानती हैं कि मुलायम सिंह यादव बात के धनी नेता हैं .उनकी उम्मीदों पर भी समाजवादी पार्टी को खरा उतरना होगा. इन दोनों ही स्कीमों में पिछली बार बिचौलियों ने खूब दलाली खाई थी, विधायकों ने भी जम कर लूटा था, इस बार स्पष्ट बहुमत से आई सरकार के लिए बेईमान विधायकों या उनके एजेंटों की मनमानी रोकना बहुत आसान होगा . अगर यह योजनायें और इनका लाभ आम आदमी तक पंहुच गया तो सही मायनों में एक वेलफेयर स्टेट की स्थापना हो जायेगी. आखिलेश यादव के रिकार्ड बेदाग़ है और मुख्य मंत्री के बेटे के रूप में उन्होंने कभी भी सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया है इसलिए लगता है कि वे सत्ता को आम आदमी के हित के लिए इस्तेमाल ज़रूर करेगें. समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में शिक्षित लड़के लड़कियों के लिए लैपटाप और टैबलेट का वायदा किया गया है . बहुत बड़ा राज्य है , और इस तरह के लैपटाप और टैबलेट को खरीदने के लिए बहुत बड़ी रक़म की ज़रुरत भी पड़ेगी . शहरी बाबू और बुद्धिजीवी टाइप पत्रकार कहने लगे हैं कि इतनी बड़ी रक़म का इंतजाम कर पाना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन उन्हें मालूम नहीं कि अगर सरकार तय कर ले तो कुछ भी असंभव नहीं होता . जो सरकार एक मामूली फैसले से पूंजीपतियों को लाखों करोडो रूपये के टैक्स की छूट दे सकती है ,वह अपने राज्य के नौजवानों की शिक्षा के लिए ज़रूरी लैपटाप का इंतज़ाम भी कर सकती है . पिछले पांच वर्षों में इसी उत्तर प्रदेश सरकार के अफसरों और मुख्यमंत्री की कृपा से नोयडा और ग्रेटर नोयडा में कई हज़ार करोड़ रूपये रिश्वत के रूप में खाए गए हैं . नए मुख्यमंत्री ने अगर दिल्ली से लगे इलाकों में ज़मीन की बिक्री में होने वाले सरकारी धन की लूट पर लगाम लगाने में सफलता हासिल कर ली तो नौजवानों के कल्याण के लिए खर्च होने वाली रक़म का इंतज़ाम बहुत ही आसानी से किया जा सकेगा. वैसे भी नीतीश कुमार ने एक नया रास्ता खोल दिया है . अफसरों की घूस की कमाई को वे ज़ब्त कार लेते हैं . अगर अखिलेश यादव ने अफसरों की घूस की कमाई को ज़ब्त करने का काम शुरू कर दिया तो राज्य में धन की कमी नहीं रह जायेगी.
इस बार समाजवादी पार्टी को मुसलमानों ने लगभग एकतरफा वोट किया है . यह भी सच है कि पिछले बीस वर्षों से मुसलमान हर चुनाव में मुलायम सिंह यादव के साथ खड़े रहते हैं .अब तक मुसलमानों ने जब भी समाजवादी पार्टी को वोट दिया तो उनके मन में यह उम्मीद रहती रही है कि उन्हें राज्य में शान्ति से रहने का मौक़ा मिलेगा और वे अपना काम कर सकेगें . राज्य में पिछली सदी में इतने दंगे हुए हैं कि मुसलमान के लिए दंगे बच पाना ही सबसे बड़ी मदद हुआ करती थी . लेकिन अब माहौल बदल गया है .अब किसी भी जमात के लिए दंगे को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर पाना बहुत मुश्किल होगा .इसके कई कारण हैं . सबसे बड़ी बात तो यह है कि मीडिया अब बहुत ही चौकन्ना रहता है . कहीं भी कोई भी बात होती है ,वह फ़ौरन टेलीविज़न के ज़रिये पूरी दुनिया को पता लग जाती है . ज़ाहिर है कोई भी नेता यह नहीं चाहेगा कि वह दंगा करवाए और उसका नुकसान उठाये . वैसे भी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दंगा कराने वाली जमातों की औकात घटी है . इसलिए दंगे से बचना मुसलमान के लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं है , वह अपने आप बच जाता है. इस बार मुसलमान नई सरकार की तरफ इस उम्मीद से आया है कि उसकी सामाजिक तरक्की होगी. उसे सरकार में भागीदारी का मौक़ा मिलेगा. पिछली बार जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तो सरकारी नौकरियों में बड़ी संख्या में मुसलमानों को भर्ती किया गया था. इस बार भी मुसलमानों को उम्मीद है कि सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या के हिसाब से अवसर मिलेगें.
मुसलमानों के बीच शिक्षा की बहुत कमी है. इसके चलते भी गरीबी बहुत है . नई सरकार को उनकी शिक्षा के लिए बड़े पैमाने पर काम करना पडेगा हालांकि यह काम सबसे आसान है . केंद्र सरकार ने मुसलमानों के लिए मौलाना आज़ाद फाउडेशन नाम के संस्था के ज़रिये हर मुस्लिम बच्चे के लिए वजीफे की व्यवस्था कर रखी है . हर मुस्लिम बच्चा जो स्कूल जाता है या ऊंचे दर्जों की पढाई करता है इस वजीफे का हक़दार है . दक्षिण भारत के सभी राज्यों और महारष्ट्र में बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम बच्चे इस योजना का लाभ उठा रहे हैं . लेकिन उत्तर भारत में यह योजना उतनी सफल नहीं है . राज्य सरकार को चाहिए कि हर इलाके में बाहुत सारे सेकुलर लोगों को उत्साहित करके इस काम में लगा दे . अगर गरीब मुसलमानों के परिवारों में वजीफे के रूप में हर महीने कुछ हज़ार रूपये आने लगेगें तो मुसलमानों के बच्चे भारी संख्या में शिक्षा हासिल कर लेगें और फिर उनकी तरक्की को कोई नहीं रोक पायेगा. इसके अलावा राज्य सरकार के जिन प्राइमरी स्कूलों की पूरी तरह से दुर्दशा हुई पड़ी है ,उसको भी ठीक किया जा सकता है .अगर शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक पहल करने में अखिलेश यादव की सरकार कामयाब हो गयी तो वे मुख्यमंत्री के रूप में राज्य का मुस्तकबिल चमकदार बना देगें .