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Tuesday, March 26, 2013

उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी का खामियाजा २०१४ में भुगतना पड़ सकता है .





शेष नारायण सिंह 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने  उत्तर प्रदेश सरकार और उसके मंत्रियों को आइना दिखाने की कोशिश की .उन्होंने साफ़ कहा कि राज्य में पिछले एक साल में हालात बहुत बिगड गए हैं .उन्होंने सबसे पहले अपने बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ही नसीहत दी और कहा कि  अखिलेश के बारे में यह बहुत मशहूर हो गया है कि वे बहुत सीधे आदमी हैं  लेकिन सिधाई से राज नहीं चलता . सख्ती बरतनी पड़ेगी क्योंकि सत्ता में आने पर अपराधियों, अफसरों , माफिया आदि से सामना होता है और उनको दुरुस्त रखने के लिए सख्ती से काम लेना पडेगा . उन्होने साफ़ कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था की हालत बहुत ही खराब है . कुल मिलाकर मुलायमसिंह यादव ने अपनी पार्टी की ऐसी आलोचना की जैसी कि किसी विपक्षी पार्टी ने भी नहीं की थी .
 
सवाल यह उठता है कि मुलायम सिंह यादव इतने गुस्से में क्यों  हैं . एक साल पहले बहुत ही खुशी खुशी उन्होने अपने बेटे को सत्ता सौंपी थी और उम्मीद जताई थी कि करीब दो साल बाद जब लोक सभा के चुनाव होंगें तो  समाजवादी पार्टी को लोक सभा में करीब ५० सीटें मिल जायेगीं . अगर ५० सीटें मिल जातीं तो उनके बल पर कांग्रेस या बीजेपी , कोई भी उन्हें प्रधान मंत्री बनाने के पेशकश कर सकता था . लेकिन आज साल भर बाद मुलायम सिंह यादव की पारखी नज़र ने भांप लिया है कि अगर आज चुनाव हो जाएँ तो उनकी पार्टी को उतनी सीटें भी नहीं मिलेगीं जितनी २००९ में मिली थीं. राज्य सरकार ही समाजवादी पार्टी की जीत या हार को सुनिश्चित करने का सबसे बड़ा जरिया है . और जब राज्य सरकार  की हालत खस्ता है तो उसके हवाले से २०१४ जीतना बिलकुल असंभव है. ऐसी हालत में मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से फटकार कर उन्होने हालात को ठीक  करने की कोशिश की है .लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि वे स्थिति को कितना सुधार पाते हैं .

मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और उनकी सरकार को फटकार कर यह बात तो बहुत साफ़ शब्दों में बता दिया है कि हालात में सुधार लाने की  ज़रूरत है लेकिन एक सच्चाई और है और वह यह कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार में अखिलेश यादव केवल मुख्यमंत्री हैं  . बाकी सभी कैबिनेट मंत्री वे हैं जो अखिलेश यादव को बच्चा समझते हैं और मुलायम सिंह यादव के भरोसे के लोग हैं . जब यह सरकार बनी थी तो  लोगों ने उम्मीद जताई थी कि अखिलेश यादव आधुनिक शिक्षा से लैस नौजवान हैं और वे सरकार में नए विचार लायेगें और उन विचारों के बल पर एक नए उत्तर प्रदेश का निर्माण होगा  लेकिन मुलायम सिंह यादव के साथ काम  कर चुके ज़्यादातर मंत्रियों ने आखिलेश की एक न सुनी और सबने अपने मंत्रालय को अपनी ज़मींदारी की तरह चलाना शुरू कर दिया . कानून व्यवस्था पर भी मुलायम सिंह यादव खासे  नाराज़ हैं . लेकिन सच्चाई यह है कि अखिलेश यादव जिस  पुलिस अफसर को राज्य पुलिस का नेतृत्व देना चाहते थे , उसको मौक़ा न देकर नेताजी ने अपने प्रिय अफसर को पुलिस की कमान सौंप दी.अगर आज कानून व्यवस्था की हालत खराब है तो उसके लिए  खराब पुलिस प्रशासन  ज़िम्मेदार  हैं . जहां तक अफ़सरों की तैनाती की बात है  उसमें भी अखिलेश यादव की बहुत नहीं चलती. उनके  अपने सचिवालय में ऐसे कई अफसर तैनात हैं जिनको नेताजी ने सीधे तौर पर नियुक्त किया है . ज़ाहिर है वे लोग भी आखिलेश यादव की नहीं सुनते. नोयडा में कुछ अफसरों की नियुक्ति के मामले में हाई कोर्ट के बार बार दखल देने ले बाद भी उनको वहाँ से तब हटाया गया जब लगा कि सरकार के ऊपर ही मानहानि का मुक़दमा चल जाएगा. बताते  हैं कि राज्य सरकार के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद पर एक ऐसे अफसर को तैनात कर दिया गया है जिसको कि कोर्ट के आदेश पर बाकायदा जेल की सज़ा हो चुकी है . तो ऐसी हालत में राज्य सरकार की असफलता का सारा ज़िम्मा अखिलेश यादव पर डाल  देना नाइंसाफी होगी. अगर मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि अखिलेश यादव पूरी जिम्मेवारी से अपना काम करें तो उनको मंत्रियों और अफसरों की तैनाती में खुली छूट देनी होगी वर्ना बहुत देर हो जायेगी .

मुलायम सिंह यादव ने जो आज लखनऊ में सार्वजनिक रूप से कहा  है वही बात उन्होंने इस रिपोर्टर को कई दिन पहले संसद भवन के अपने कमरे में बतायी थी जिसे कई अखबारों ने छापा भी था . मुलायम सिंह यादव का कहना है २०१४ का चुनाव बहुत ही गंभीरता से लड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि संसद का बजट सत्र खत्म होने के बाद वे निकल पड़ेगें और पूरे राज्य में  जनसंपर्क शुरू कर देगें . वे संसद का सत्र खत्म होते ही हर मंडल में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायेगें और उनसे व्यक्तिगत संपर्क करेगें . स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र ने उनको आगाह किया था कि अब हर कस्बे में जाने की ज़रूरत नहीं है . उनकी सलाह थी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनको वहीं जाना चाहिए जहां समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई वाले जाने को कहें . लेकिन उन्होंने  राज्य स्तर के अपने पार्टी के नेताओं खासी नाराजगी जताई और कहा कि जो विधायक बन गए हैं वे अब अपने क्षेत्रों में नहीं जा रहे हैं .जो लोग मंत्री बन गए हैं .वे भी तो विधायक ही  हैं लेकिन सब लोग लखनऊ में जमे रहते हैं और जनता से संपर्क नहीं रख रहे हैं . इस कारण से पार्टी का बहुत नुक्सान हो रहा है . उन्होने उन संसद सदस्यों के प्रति भी नाराजगी जताई जो कार्यकर्ताओं को दिल्ली बुला लेते हैं और उनको संसद के अंदर आने  का पास बनवा देते हैं . नतीजा यह होता है कि वे लोग संसद भवन के मुलायम सिंह यादव के कार्यालय के  बाहर आकर खड़े हो जाते हैं . यह ठीक नहीं है. वे चाहते हैं  कि पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें लखनऊ में ही मिलें .

मुलायम  सिंह यादव की यह चिंता इसलिए भी है कि उत्तर प्रदेश में आगामी लोक सभा चुनाव  धार्मिक ध्रुवीकरण की बीजेपी की कोशिश की छाया में लड़ा जाएगा . अगर बीजेपी ने वरुण गांधी, उमा भर्ती, कल्याण सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों के जयकारे के साथ चुनाव लड़ा तो यह बात लगभग पक्की है कि मुलायम सिंह यादव को मुसलमानों के वोट नहीं मिलेगें. और अगर मुसलमानों के वोट थोक में कांग्रेस के पास  चले गए तो मुलायम सिंह यादव की सीटें लोक सभा में मौजूदा सीटों से भी कम  हो जायेगीं. पिछली बार २००९ में यह सीटें इसलिए मिली थीं कि राज्य की एक बहुत बड़ी आबादी मायावाती को हराना चाहती थी. इस बार ऐसा नहीं है . इस बार तो ऐसे बहुत लोग मिल जायेगें जो मौजूदा सरकार के काम काज से बहुत निराश हैं और  वे इस सरकार के अलावा किसी और को वोर दे सकते हैं . अगर ऐसा हुआ तो मुलायम सिंह यादव और  उनकी पार्टी के लिए बहुत मुश्किल  हो जायेगी .