शेष नारायण सिंह
एक अन्य प्रभावशाली सदस्य डॉ सुनीलम भी अलग हो गए . वे एक राजनीतिक पार्टी के महासचिव रह चुके हिना उर उसे छोड़कर वे जनांदोलनों में शामिल हुए थे. एक सोशलिस्ट के रूप में भी उन्होंने आम आदमी की पक्षधरता की कई लडाइयां लड़ी हैं. उनसे बात करके अन्ना हजारे के दिमाग में चल रही सारी उथल पुथल समझ में आ गयी. अन्ना हजारे का अब तक जो इतिहास हैं उसमें वे कभी भी खुद चुनावी तिकड़म में नहीं पड़े. जन आन्दोलनों के ज़रिये ही उन्होंने अपनी बात कही और उसे आगे बढ़ाया . कभी किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्षधर नहीं रहे और जो भी राजनीतिक पक्ष उनको भ्रष्ट नज़र आया उसके खिलाफ उन्होंने मैदान लेने में संकोच नहीं किया. महाराष्ट्र सरकार के कई मंत्री उनके अभियान के कारण इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर हो चुके हैं . इस बार भी उनके आन्दोलन में वह ताक़त थी कि केंद्र सरकार झुक गयी . शुरुआती दौर में केंद्र सरकार के जिन मंत्रियों के खिलाफ उन्होंने टिप्पणी कर दी उनको चुप होना पड़ा . सरकारी कमेटी के सदस्य के रूप में उनकी हर बात मानने का वादा सरकार की तरफ से किया गया लेकिन उनके अति उत्साही साथी ऐसी ऐसी मांगें करने लगे जिनका हल निकाला ही नहीं जा सकता. बस यहीं गड़बड़ हो गयी . जिस अन्ना हजारे की मर्जी का आदर करके केंद्र सरकार ने कपिल सिब्बल को उनके खिलाफ बयान देने से रोक दिया था उसी केंद्र सरकार ने उनके ९ दिन के आन्दोलन को पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर दिया. ज़ाहिर है कि उनका आन्दोलन रास्ते से भटक गया था . और अन्ना की अथारिटी कमज़ोर हुई थी . अन्ना हजारे की भूखों रह सकने की क्षमता अदम्य है लेकिन उनको अपना अनशन ख़त्म करवाने के लिए अपने कुछ प्रबुद्ध नागरिकों की एक चिट्ठी का सहारा लेना पड़ा.
डॉ सुनीलम को अन्ना हजारे ने बताया कि महात्मा गांधी का आन्दोलन देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए था . उसके बाद उनकी इच्छा थी कांग्रेस को एक राजनीतिक पार्टी के रूप में मान्यता न दी जाए और वह सामाजिक परिवर्तन के एक आन्दोलन के रूप में चलता रहे . लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने कांग्रेस को चुनावी राजनीति की एक पार्टी बना दिया और महात्मा गाँधी की राह से अलग सामाजिक न्याय की गाडी चलाने का फैसला किया . अन्ना हजारे का मानना है कि महात्मा गांधी को कांग्रेस को भंग करने की एकतरफा घोषणा कर देनी चाहिए थी. अगर उन्होंने ऐसा कर दिया होता तो आज़ादी की लड़ाई में शामिल नेता अपनी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाते और चुनाव लड़ते . लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस बहुत भारी गुडविल के साथ चुनावी अखाड़े में कूदी और भारी बहुमत से जीती . यह सिलसिला लगातार चलता रहा और कांग्रेस में भ्रष्ट लोग भरते गए. महात्मा गांधी की राजनीति के जानकार और उनके अनुयायी अन्ना हजारे ने वह काम कर दिया जो महात्मा जी करने से चूक गए थे . उन्होंने लोकपाल बिल के लिए बात करने के लिए बनायी गयी टीम को भंग कर दिया और यह कहा कि यह टीम अब किसी काम की नहीं है क्योंकि केंद्र सरकार से लोकपाल के मुद्दे पर बात करने के लिए बनाई गयी थी और लोकपाल के मामले में सरकार किसी से बात करने को तैयार नहीं है . यह सारी घोषणा अन्ना हजारे ने अपने ब्लॉग के ज़रिये की और अपने किसी भी साथी को इसकी भनक तक न लगने दी. बताते हैं कि उनको शक़ था कि अगर उन्होंने इस बात को अपनी टीम के सदस्यों की नोटिस में लाने की भूल की तो वे हर बार की तरह इस बार भी सब गड़बड़ कर देगें . पता चला है कि उनको भरोसा था कि उनकी शख्सियत का लाभ उठाकर उनके साथी राजनीतिक लाभ लेगें इसलिए उन्होंने अपने आपको चुनावी राजनीति से अलग कर लिया और राजनीतिक पार्टी बनाने वालों को मुक्त कर दिया . उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में भी वे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखेगें . राजनेताओं की गड़बड़ियों को दुनिया के सामने लाते रहेगें . यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि अब उनके साथी जो राजनीतिक पार्टी बनाने जा रहे हैं,उसको भी अन्ना हजारे भ्रष्ट आचरण करने से रोकेगें . यह भी सच है कि प्रस्तावित राजनीतिक पार्टी से अपने आपको अलग करके उन्होंने भ्रष्टाचार से पीड़ित जनता की उम्मीदों को जिंदा रखा है .