सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टï कर दिया है कि ऐसा कोई दिशा निर्देश नहीं जारी किया जा सकता जिसके तहत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सम्मान करना अनिवार्य किया जा सके। माननीय न्यायालय ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की। कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर प्रार्थना की थी कि उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री को चेताया जाय कि महात्मा गांधी का सम्मान किया जाना चाहिए।
मायावती की पार्टी में महात्मा गांधी की इज्जत करने की रिवाज नहीं है इसलिए पिछले दिनों उन्होंने महात्मा जी को नाटकबाज कह दिया था। उनकी इस बात का याचिका कर्ताओं ने बुरा माना और फरियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि इस देश में और बाकी दुनिया में महात्मा गांधी का सम्मान इसलिए नहीं किया जाता कि उसके लिए कानून है या किसी कोर्ट का आदेश है। महात्मा जी का सम्मान करने वाले अपनी अंतरात्मा की प्रेरणा से उनका सम्मान करते हैं।
याचिका कर्ताओं की यह उम्मीद कि गांधी जी का सम्मान सभी करें, बेमतलब है। जिसके मन में उनके प्रति सम्मान का भाव होगा वह उनका सम्मान करेगा और जिसके मन में नहीं होगा, वह सम्मान नहीं करेगा। लाठी के जोर पर या भीख मांगकर सम्मान पाना बहुत बड़ा असम्मान है और इस बारे में सरकारी फरमान न जारी करके माननीय न्यायालय ने बहुत बड़ा और अच्छा काम किया है।
जहां तक महात्मा गांधी के सम्मान की बात है, पूरी दुनिया में उनके प्रशंसक और भक्त फैले हुए हैं। महात्मा जी के सम्मान का आलम तो यह है कि वे जाति, धर्म, संप्रदाय, देशकाल सबके परे समग्र विश्व में पूजे जाते हैं। वे किसी जाति विशेष के नेता नहीं हैं। हां यह भी सही है कि भारत में ही एक बड़ा वर्ग उनको सम्मान नहीं करता बल्कि नफरत करता है। इसी वर्ग और राजनीतिक विचारधारा के एक व्यक्ति ने 30 जनवरी 1948 के दिन गोली मारकर महात्मा जी की हत्या कर दी थी। उसके वैचारिक साथी और कुछ साधारण लोग उस हत्यारे को सिरफिरा कहते हैं लेकिन महात्मा गांधी की हत्या किसी सिरफिरे का काम नहीं था।
वह उस वक्त की एक राजनीतिक विचारधारा के एक प्रमुख व्यक्ति का काम था। उनका हत्यारा कोई सड़क छाप व्यक्ति नहीं था, वह हिंदू महासभा का नेता था और 'अग्रणी' नाम के उनके अखबार का संपादक था। गांधी जी की हत्या के आरोप में उसके बहुत सारे साथी गिरफ्तार भी हुए थे। ज़ाहिर है कि गांधीजी की हत्या करने वाला व्यक्ति भी महात्मा गांधी का सम्मान नहीं करता था और उसके वे साथी भी जो आजादी मिलने में गांधी जी के योगदान को कमतर करके आंकते हैं। यह सारे लोग भी महात्मा गांधी का सम्मान नहीं करते। जिन लोगों ने 1920 से लेकर 1947 तक महात्मा गांधी को जेल की यात्राएं करवाईं, वे भी उनको सम्मान नहीं करते थे।
भारत के कम्युनिस्ट नेता भी महात्मा गांधी के खिलाफ थे। उनका आरोप था कि देश में जो राष्ट्रीय आंदोलन चल रहा था, उसे मजदूर और किसान वर्ग के हितों के खिलाफ इस्तेमाल करने में महात्मा गांधी का खास योगदान था। कम्युनिस्ट बिरादरी भी महात्मा गांधी के सम्मान से परहेज करती थी। जमींदारों और देशी राजाओं ने भी गांधी जी को नफरत की नजर से ही देखा था, अपनी ज़मींदारी छिनने के लिए वे उन्हें ही जिम्मेदार मानते थे। इसलिए यह उम्मीद करना कि सभी लोग महात्मा जी की इज्जत करेंगे, बेमानी है। लेकिन एक बात और भी सच है, वह यह कि महात्मा गांधी से नफरत करने वाली सभी जमातें बाद में उनकी प्रशंसक बन गईं। जो कम्युनिस्ट हमेशा कहते रहते थे कि महात्मा गांधी ने एक जनांदोलन को पूंजीपतियों के हवाले कर दिया था, वही अब उनकी विचारधारा की तारीफ करने के बहाने ढूंढते पाये जाते हैं। अब उन्हें महात्मा गांधी की सांप्रदायिक सदभाव संबंधी सोच में सदगुण नजर आने लगे है।
आर.एस.एस. के ज्यादातर विचारक महात्मा गांधी के विरोधी रहे थे लेकिन 1980 में बीजेपी ने गांधीवादी समाजवाद के सिद्घांत का प्रतिपादन करके इस बात को ऐलानिया स्वीकार कर लिया कि महात्मा गांधी का सम्मान किया जाना चाहिए। जिन अंग्रेजों ने महात्मा जी को उनके जीवनकाल में अपमान की नजर से देखा, उनको जेल में बंद किया, टे्रन से बाहर फेंका उन्हीं के वंशज अब दक्षिण अफ्रीका और इंगलैंड के हर शहर में उनकी मूर्तियां लगवाते फिर रहे हैं। यह सब कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि आप किसी को मजबूर नहीं कर सकते कि वह किसी व्यक्ति का सम्मान करे। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का सम्मान किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को यह निर्देश भी दे देना चाहिए कि भविष्य में भी कोई सरकार यह कानून न बनाए जिसके तहत किसी का सम्मान करना अनिवार्य कर दिया जाय क्योंकि इस बात का खतरा बना हुआ है कि उत्तरप्रदेश में जनता के पैसे बन रही मूर्तियों की इज्जत करने के लिए कोई नियम न बन जाय।
बहरहाल मायावती के नाटकबाज कहने से महात्मा गांधी का सम्मान कम नहीं होता, नाथूराम गोडसे के गोली मारने से महात्मा गांधी का सम्मान कम नहीं होता और चर्चिल के नंगा फकीर कहने से महात्मा गांधी का सम्मान कम नहीं होता। गांधी जो को जिसने भी अपमानित किया, पता नहीं गुमनामी के किए गढढे में होगा लेकिन महात्मा गांधी की शान पूरी दुनिया में बनी हुई है, उनको सम्मान भीख में नहीं मिला और न ही किसी ने लाठी के जोर पर महात्मा गांधी को सम्मानित करवाया।
जहां तक कानून बनाकर जबरदस्ती सम्मान उगाहने की बात है, उसके बारे में कुछ लोगों का जिक्र करना सही होगा। हिटलर, सद्दाम हुसैन, किम इल सुंग, फ्रांको, च्यांग काई शेक आदि कुछ ऐसा राजनेता हैं जिन्होंने कानून और आतंक के जरिए अपना सम्मान करवाने की कोशिश की लेकिन इनकी ताकत कम होते ही जनता ने इनकी औकात बता दी। सद्दाम हुसैन की मूर्तिंयों पर तो इराकी जनता को जूते बरसाते पूरी दुनिया ने देखा है। ठीक यही हाल अन्य तानाशाहों का भी हुआ था जिन्होंने अपनी ही मूर्तियां देश के कोने कोने में बनवाई थीं और लोगों को मजबूर किया था कि उनका सम्मान करें। जहां तक महात्मा गांधी का सवाल है, उनके जीवन काल में उनकी कोई मूर्ति नहीं बनी थी लेकिन आज दुनिया के हर प्रमुख शहर में उनकी मूर्तियां हैं और लोग उन्हें सम्मान करते हैं। मायावती के नाटकबाज कहने से महात्मा गांधी की महानता में कोई कमी नहीं आती। गांधी जी के प्रशंसकों को इतिहास की न्याय क्षमता पर भरोसा करके शांत बैठे रहना चाहिए। उनके सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं आएगी।
Showing posts with label सद्दाम. Show all posts
Showing posts with label सद्दाम. Show all posts
Wednesday, August 12, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)