शेष नारायण सिंह
बी जे पी से अलग होकर राजनीतिक लड़ाई लड़ने की आर एस एस की कोशिश को ज़बरदस्त धक्का लगा है . बड़े जोर शोर से जुटने के बाद आर एस एस के धरनों पर इतने आदमी भी नहीं जुट पाए कि पुलिस को कोई अलग से बंदोबस्त करना पड़े. नतीजा साफ़ है . आर एस एस के नेता बौखला गए हैं . इसी बौखलाहट में बेचारे उल जलूल बयान दे रहे हैं . आर एस एस के पूर्व मुखिया सुदर्शन ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के खिलाफ बहुत ही अमर्यादित टिप्पणी कर डाली. उन्हें सी आई से एजेंट कहा और आरोप लगाया कि इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की ह्त्या में भी सोनिया गाँधी का हाथ था. ऊपरी तौर पर देखें तो यह किसी पागल का बयान लगता है लेकिन ऐसा है नहीं .जो व्यक्ति देश के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन का मुखिया रह चुका हो,तत्कालीन प्रधान मंत्री और गृह मंत्री जिस के हुक्म से काम करते हों, प्रेस के सामने दिए गए उसके बयान को पागल का बयान कहना ठीक नहीं है . यह बयान आर एस एस के धरने पर बैठे लोगों के बीच में दिन भर वक़्त बिताने के बाद ही सुदर्शन ने दिया है . वह पूरे होशो हवास में दिया गया बयान है.ऐसे राज्य की राजधानी के मुख्य धरना स्थल से दिया गया है जहां आर एस एस की सरकार है .ऐसी हालत में इस बयान को सुदर्शन का अपना दृष्टिकोण यह कहकर टालना संभव नहीं है . हालांकि आर एस एस के आला नेतृत्व ने कोशिश शुरू कर दी है कि सुदर्शन से किनारा कर लिया जाय. उनके बयान को नकार कर के जान बचाई जाय. आर एस एस के प्रभाव वाले मीडियाकर्मी सक्रिय हो गए हैं और प्रचार किया जा रहा है कि सुदर्शन वास्तव में थोडा खिसक गए हैं . इसीलिए आर एस एस की परंपरा से हटकर उन्हें पद से बर्खास्त किया गया था. आर एस एस का नेतृत्व उनको एक गैरजिम्मेदार आदमी के रूप में पेश करके सोनिया के बारे में दिए गए उनके बयान से पल्ला झाड़ने की कोशिश में है . लेकिन लगता है कि यह संभव नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस वाले भी अपनी सर्वोच्च नेता की शान में की गयी गुस्ताखी को राजनीतिक रंग देकर आर एस एस को उसकी औकात बताने की राजनीति पर उतर आये हैं. तोड़ फोड़ और सडकों पर तूफ़ान मचाने में कांग्रेसी भी आर एस एस वालों से कम नहीं होते. बस उनको मौक़ा मिलना चाहिए . और लगता है कि पार्टी के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने यह मौक़ा दे दिया है . उन्होंने जब सुदर्शन की टिप्पणी पर उसकी थुक्का फजीहत करने के लिए पत्रकारों से बात की तो तर्ज लगभग वहीं था जो इंदिरा जी की हत्या के बाद राजीव गाँधी के बयान में था . जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आर एस एस के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते वक़्त शान्ति बनाए रखनी चाहिए . साधारण राजनीतिक आचरण की भाषा में इसका अनुवाद करने पर पता चलेगा कि यह मार पीट करने का संकेत है. इसका भावार्थ यह हुआ कि आने वाले कुछ दिनों में कांग्रेसी नौजवान आर एस एस वालों को अपने हमलों का निशाना बनायेगें. अपने को ज़्यादा वफादार साबित करने की कोशिश में कांग्रेसी नेता सक्रिय हो गए हैं .कोई सुदर्शन के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने की बात कर रहा है तो कोई उन्हें पागलखाने भेजने की बात कह रहा है . अजीब बात है कि आर एस एस और बी जे पी वाले भी लगभग यही कह रहे हैं . आर एस एस के मुख्यालय से बयान आया है कि सुदर्शन ने जो कहा है वह उनकी अपनी बात है, संघ का उस बयान से कुछ लेना देना नहीं है. यही बात बी जे पी के नेता भी कह रहे हैं. यानी उनके दिमागी संतुलन को मुद्दा बना कर संघी बिरादरी अपने आपको उनसे अलग करना चाहती है .
आर एस एस को जानने वाले जानते हैं कि सुदर्शन का बयान हवा में नहीं आया है . सच्चाई यह है कि यह आर एस एस की सोची समझी राजनीतिक चाल का हिस्सा है . अगर बी जे पी से अलग होकर किये गए राजनीतिक विरोध प्रदर्शन को सफलता मिल गयी होती तो सुदर्शन का बयान न आता अ. उस स्थिति में तो संघी मीडिया में आर एस एस की महान संगठन क्षमता के ही गीत गाये जा रहे होते लेकिन जब धरना प्रदर्शन बुरी तरह से फ्लाप हो गया ,तो सुदर्शन जैसी बुझी कारतूस को आगे कर दिया गया और निहायत ही बेहूदा बयान दिलवा दिया गया . ज़ाहिर है इस बयान के आर एस एस के आयोजन की असफलता गौड़ हो जायेगी . मुख्य चर्चा सुदर्शन की फजीहत पर केन्द्रित हो जायेगी. इसका एक दूसरा मकसद भी संभव है .हो सकता है कि यह सोचा गया हो कि आम आदमी की नाराज़गी का स्तर टेस्ट करने के लिए एक शिगूफा छोड़ दिया जाय. अगर देशभर में लोग नाराज़ हो जाएँ तो सुदर्शन बेचारे को डंप कर दिया जाय और अगर आम आदमी की प्रतिक्रिया ज्यादा गुस्से वाली न हो तो इस लाइन को धीरे धीरे चला दिया जाये. आर एस एस की नीति है कि वह किसी भी बात में पक्ष विपक्ष दोनों का स्पेस अपने ही पास रखना चाहता है . लेकिन लगता है कि बी जे पी को कमज़ोर करके किसी और पार्टी या विश्व हिन्दू परिषद् को अपनी राजनीति के कारोबार को देखने के ज़िम्मा देने की आर एस एस की चाल बेकार साबित हो गयी है . इसके कुछ नतीजे बहुत ही साफ़ होंगें. एक तो बी जे पी के दिल्ली दरबार वाले नेता आर एस एस की धमकियों को अब उतनी गंभीरता से नहीं लेगें जितनी अब तक लेते थे . दूसरा जिस नितिन गडकरी को मज़बूत करने के लिए मोहन भागवत सारा खेल कर रहे हैं, वह अब और भी कमज़ोर हो जायेगें. कुल मिलाकर संघी आतंकवाद के स्रोत के रूप में स्थापित हो चुके आर एस एस को यह झटका शायद कुछ सद्बुद्धि देने में सफल हो और देश की लोकशाही की परंपरा को कमज़ोर करने की उसकी योजना को लगाम लगे.
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Sunday, November 14, 2010
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