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Monday, May 27, 2013

छत्तीसगढ़ का माओवादी हमला लोकतंत्र पर हमला है

शेष नारायण सिंह
बस्तर में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर हुए माओवादी हमले की चारों तराफ से निंदा हो रही है . कांग्रेस तो इस हमले का पीड़ित पक्ष है और बीजेपी पहली बार किसी बर्बरतापूर्ण हमले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश न करने की अपील करती नज़र आ रही है .बीजेपी में हडकंप है और घबडाहट का आलम यह है कि उनकी महत्वाकांक्षी जेलभरो योजना स्थगित कर दी गयी . बीजेपी के गंभीर नेता माओवादी हमले को आतंकवादी कार्रवाई बता रहे हैं और उस से राजनीतिक स्तर पर निपटने की चर्चा हो रही है . बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और बड़े नेता लाल कृष्ण आडवानी ने माओवादी आतंकवाद का राजनीतिक हल तलाशने की कोशिश शुरू कर दिया है .
जहां तक माओवादियों को कम्युनिस्ट कहने की बात है उसका हर स्तर पर खंडन हो चुका है और सबको मालूम है कि कि माओवादी केवल आतंकवादी हैं , और कुछ नहीं . देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी छत्तीसगढ़ में हुए माओवादी हमले की निन्दा की है . मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए बर्बरतापूर्ण हमले की निंदा की है .पार्टी ने कहा है कि इस हमले के बाद छत्तीसगढ़ के कांग्रेस अध्यक्ष सहित  और भी कई नेता और कार्यकर्ता मारे गए हैं . इस बर्बरतापूर्ण घटना ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ माओवादी किस तरह से आतंक से परिपूर्ण हिंसक आचरण करते हैं.पार्टी ने छत्तीसगढ़  सरकार के गैरजिम्मेदार रुख का ज़िक्र किया है और कहा है सरकार ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा के ज़रूरी क़दम नहीं उठाये . छत्तीसगढ़ सरकार ने माओवादियों से लड़ने के नाम पर निर्दोष आदिवासियों की हत्या करवाई और जब माओवादियों का मुकाबला कारने की बात आयी तो अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया .
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( एम-एल ) ने भी माओवादियों के हमले की निंदा की है और उनके काम को एक दिग्भ्रमित राजनीति का नतीजा बताया है . लेफ्ट फ्रंट की अन्य पार्टियों ने भी इस हमले की निंदा की है . ज़ाहिर है छत्तीसगढ़ सहित कई अन्य राज्यों में आतंक के ज़रिये राजनीति कर रहे माओवादी किसी भी तरह से कम्युनिस्ट नहीं हैं और उनकी सभी राजनीतिक पार्टियों की तरफ से निंदा की जा रही है . ऐसी स्थिति में अति दक्षिणपंथी ताक़तों की उस कोशिश को भी  नाकाम किया जाना चाहिए इसमें नरेंद्र मोदी जैसे लोग माओवादियों को  कम्युनिस्ट बताकर देश के लोकतांत्रिक वामपंथी आंदोलन को तबाह करने की योजना पर काम शुरू कर चुके हैं . देश में सही राजनीतिक परंपरा को विकसित करने के उद्देश्य से इन लोगों की अराजकतावादी राजनीति को रोका जाना चाहिए .
कांग्रेस के युवा संगठनों के नेता बीजेपी की छत्तीसगढ़ सरकार को बरखास्त कारने की मांग शुरू कर चुके हैं . छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अजीत जोगी भी रमण सिंह सरकार क बर्खास्त करने की मांग कर चुके हैं . लेकिन सबको मालूम है कि किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करके इतनी खतरनाक और बराबर समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता .रायपुर की शोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन  सिंह ने भी राजनीतिक अडवेंचर की भावना को कोई महत्व नहीं दिया . प्रधानमंत्री के साथ रायपुर से लौटकर केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश  ने पत्रकारों से बताया कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों का हमला लोकतंत्र को कमज़ोर करने की साजिश का नतीजा है .उन्होंने कहा कि आतंक का सहारा लेकर माओवादी लोकतंत्र को कमज़ोर करना चाहते हैं क्योंकि अगर खुले आम चुनाव प्रचार करने पर आतंक का साया पड़ जाएगा तो किसी भी हालत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं चल सकती. इस बीच छत्तीसगढ़ एक मुख्यमंत्री रमन सिंह ने आत्नकवादी हमले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की घोषणा कर दी है .

Thursday, August 12, 2010

लालगढ़ में लाल होती राजनीति से दिल्ली में लाल होते चेहरे

शेष नारायण सिंह

( डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छप चुका है )

माओवादी आतंकवादियों के गढ़ में बड़ी रैली करके तृणमूल कांग्रेस की नेता और रेल मंत्री ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि वे पश्चिम बंगाल में सत्ता के दर पर दस्तक दे रही हैं. रैली में उनके साथ मंच पर मेधा पाटकर और स्वामी अग्निवेश मौजूद थे जिस से साबित होता है कि एन जी ओ सेक्टर पूरी तरह से ममता बनर्जी के साथ है.लेकिन राजनीतिक बिरादरी में ममत और माओवादियों के बीच बढ़ रही राजनीतिक निकटता को लेकर शंकाएं हैं .लोकसभा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने आरोप लगाया कि लाल गढ़ की रैली का इंतज़ाम पूरी तरह से माओवादियों के हाथ में था.और जो आदमी रैली का नेता था वह माओवादी आतंक से जुड़े अपराधों की जांच में पूछताछ का विषय है.माओवादियों को तृणमूल कांग्रेस का ख़ास सहयोगी बताते हुए मार्क्सवादी नेताओं ने सरकार से मांग की कि वह यू पी ए और माओवादी आतंकवाद के बीच के रिश्ते को साफ़ करे.कांग्रेस की औपचारिक लाइन चाहे जो हो लेकिन अनौपचारिक रूप से ममता बनर्जी के माओवादियों के रिश्ते की चर्चा से कांग्रेस में बहुत ज्यादा मतभेद हैं .प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने जब कहा कि माओवादी देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े बड़ा ख़तरा हैं , तो वे अपनी निजी राय नहीं दे रहे थे. वास्तव में वे सरकार की नीति बता रहे थे. विपक्ष ने सवाल किया कि जिस संगठन को प्रधान मंत्री सबसे बड़ा ख़तरा बता चुके हैं , उनकी सरकार के रेल मंत्री को क्या उसके साथ एक ही मंच पर मौजूद रहना चाहिए.. आरोप यह भी लगा है कि जिन लोगों के ऊपर सी आर पी एफ के जवानों को क़त्ल करने के आरोप लगे हैं , उन्हें मंच पर बुलाना क्या राष्ट्र हित में है. तृणमूल कांग्रेस के नेता, सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा कि ममता बनर्जी लाल गढ़ में शान्ति और एकता के मिशन पर गयी थीं.. राजनीतिक बयानबाजी की बात तो अलग है लेकिन ममता बनर्जी का रवैया कांग्रेस के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है .गृह मंत्री पी चिदंबरम और कांगेस महासचिव, दिग्विजय सिंह पहले ही एक doosre के खिलाफ मैदान ले चुके हैं और अब कांग्रेस के प्रवक्ता लोग अपनी पार्टी को लालगढ़ रैली से अलग रखने की koshish कर रहे हैं लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि उनकी गति सांप छंछूदर की हो गयी है.उधर बाकी पार्टियों के लोग पीपुल्स कमेटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटीज़ को माओवादी संगठनों के मंच के रूप में पेश कर रहे हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि पीपुल्स कमेटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटीज़ कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है. बी जे पी ने भी माओवादी आतंक को हल करने के सरकार के तरीकों पर सवाल उठाये हैं..

उधर माओवादियों के साथ सहानुभूति रखने वाली जमातें ममता को पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री के रूप में पेश करना शुरू कर चुकी हैं ..मेधा पाटकर ने लालगढ़ की रैली में ऐलान किया कि तृणमूल कांग्रेस ने वचन दिया है कि वह २०११ के बाद भी शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान जारी रखेगी ,इसलिए वे उनके साथ हैं. उनके साथ आये स्वामी अग्निवेश ने कहा कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को पूरी तरह से आराम करना चाहिए क्योंकि उसके बाद ममता बनर्जी का युग शुरू हो जाएगा.मेधा पाटकर ने माओवादी आतंकवादियों से भी अपील की कि उन्हें हथियार डाल देना चाहिए और शांतिपूर्वक अपनी मांगों को रखना चाहिए लेकिन बाकी राजनीतिक दलों के नेताओं को उनकी इस अपील में कोई दम नहीं नज़र आता क्योंकि माओवादियों की राजनीति का बुनियादी सिद्धांत ही सशस्त्र क्रान्ति है और वे उसी में लगे हुए हैं . अभी मेधा पाटकर और अग्निवेश जैसे लोग उन्हें समर्थन दे रहे हैं तो ठीक है लेकिन जब बात बढ़ जायेगी तो माओवादियों के प्रभाव वाले इलाकों में मेधा पाटकर के बिना भी राजनीति अच्छी तरह से चलाई जा सकती है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप है कि लालगढ़ इलाके के माओवादियों को फिर से संगठित होने और अन्य सुरक्षित स्थानों पर भेजने के उद्देश्य से लाल गढ़ में रैली का आयोजन किया गया था. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के आला नेता, सीताराम येचुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री को इस बात का जवाब देना होगा कि उनके सरकार की एक मंत्री उन्हीं माओवादियों के साथ मिलकर राजनीतिक गतिविधियों को संचालित कर रही है जिन माओवादियों को उन्होंने खुद देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बताया था. ममता बनर्जी ने कहा था कि उसी लालगढ़ में वे बिना सुरक्षा के घूम रही हैं जहां, पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री की जाने की हिम्मत नहीं पड़ी थी. सीताराम येचुरी ने कहा कि जिन लोगों से आम लोगों को ख़तरा हो सकता है , ममता बनर्जी तो उनके साथ मिलकर राजनीति कर रही हैं . उन्होंने बुद्धिजीवियों की भी खिंचाई की और कहा कि जिस तरह से पश्चिम बंगाल में आतंक को उकसाया जा अरझा है अगर उस पर फ़ौरन रोक न लगाई गयी तो नतीजे भयानक हो सकते हैं ..जो भी हो माओवादी राजनीति के कारण देश में आतंरिक हलचल है और इसे दुरुस्त करने की सख्त ज़रुरत है .

Monday, June 14, 2010

दांतेवाडा के आस पास दलितों की बेटियों की इज्ज़त लूटी जा रही है

शेष नारायण सिंह


छत्तीस गढ़ के दांतेवाडा जिले में माओवादी आतंकवादियों ने केंद्रीय रिज़र्व पुलिस के ७६ सिपाहियों को ६ अप्रैल २०१० की रात में मार डाला था. मारे गए पुलिस के वे जवान अपनी ड्यूटी कर रहे थे , उनको बहुत ही मुश्किल से सी आर पी की नौकरी मिली थी. गरीबी से जूझ रहे भारत के गावों में जब किसी बच्चे को सी आर पी एफ , बी एस एफ, आई टी बी पी या अन्य अर्ध सैनिक संगठनों में नौकरी मिल जाती है तो खुशी मनाई जाती है ., प्रीतिभोज किया जाता है और इलाके में परिवार की इज़्ज़त बढ़ती है . संपन्न इलाकों के लोगों की समझ में यह बात नहीं आयेगी लेकिन व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि इन अर्ध सैनिक बलों में नौकरी पाने के लिए इन बच्चों के मातापिता बड़ी रक़म बतौर रिश्वत के भी देते हैं . सरकारी नौकरी की सुरक्षा के लिए गरीब आदमी सब कुछ करता है . लेकिन जब दांतेवाडा में आतंकवादियों ने इन्ही गरीब परिवारों के बच्चों को मार डाला तो पूरे देश में गम और गुस्से का माहौल बन गया .वैसे भी जिन लोगों के हाथों में माओवादी लुटेरों ने बंदूक पकड़ा दी है , वे भी तो गरीब लोगों की औलादें हैं और उनको बेवक़ूफ़ बना कर कुछ पैसों की लालच में फंसाया गया है . इसलिए माओवादी आतंक के इस खूनी खेल में दोनों तरफ ही शिकार हो रही शोषित पीड़ित जनता है और शासक वर्गों के लोग उनको अपने हित में इस्तेमाल कर रहे हैं . वास्तव में सरकारी नेताओं और माओवादी आतंकवादियों का वर्गचरित्र एक ही है. . वे दोनों ही गरीबों को चारे की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं . लेकिन इस सब में सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी सरकारों की है , केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों की . उन्होंने विदेशी और स्वदेशी पूंजीपतियों के हाथों आदिवासी इलाकों की खनिज सम्पदा को औने पौने दामों में बेच कर इन इलाकों में रहने वाले और इस खनिज सम्पदा के असली वारिस लोगों के भविष्य को बड़ी पूंजी के हाथों गिरवी रख दिया है. ज़ाहिर हैं यह वही लोग हैं जो राजनीति और नौकरशाही में बड़े पदों पर विराजमान हैं और हज़ारों करोड़ की रिश्वत खा कर आम आदमी का शोषण कर रहे हैं . दूसरी तरफ माओवादी हैं जो अपने हितों के लिए गरीब आदिवासी जनता के हाथों में बंदूक पकड़ा रहे हैं . इस सारे ड्रामे में मुकामी बदमाश भी शामिल हो गए हैं और चारों तरफ से राष्ट्र हित पर हमला बोल दिया गया है .यहाँ यह भी साफ़ कर देना ज़रूरी है कि राज्य या केंद्र में सरकार चाहे जिस पार्टी की हो , सभी पार्टियां घूस की लालच में अपने देश के हितों के खिलाफ काम कर रही हैं . जहां भी आतंकवाद बढ़ता है, वहां हालात पर सामाजिक कंट्रोल बिलकुल ख़त्म हो जाता है . उसके बाद हालात पर लोकल ठगों का क़ब्ज़ा हो जाता है , सरकार का हुक्म नहीं चलता और आतंकवादी संगठन जो अपने को क्रांतिकारी समझ रहे होते हैं, वे बदमाशों को भी अपना मानने की गलती कर बैठते हैं और हालात बेकाबू हो जाते हैं . दांतेवाडा के आस पास भी यही हो रहा है. हालात के बेकाबू होने का सबसे बड़ा नुकसान उन लोगों को होता है जो गरीब होते हैं और जिनमें शिक्षा का अभाव होता है . कुछ चालाक और शातिर किस्म के लोग आतंकवादियों और सरकारी एजेंसियों के मुखबिर बन जाते हैं और आतंक की वजह से जो लूट होती है उनको यही करते हैं .
दांतेवाडा के आस पास आजकल हर लेवल पर आतंक का राज है . दैनिक हिन्दू अखबार के रिपोर्टर ने दांतेवाडा जिले के गावों का दौरा करने के बाद अपनी आँखों से देखा कि पुलिस और माओवादियों के मुखबिर किस तरह से लोगों का शोषण कर रहे हैं . इस इलाके में आजकल पुलिस का बहुत ही भारी बंदोबस्त है . लिहाजा माओवादी आतंकवादियों की गतिविधियाँ तो उतनी ज्यादा नहीं हैं लेकिन पुलिस के मुखबिर खुले आम लूट पाट कर रहे हैं . मुकरम गाँव में जाकर संवाददाता ने पाया कि मुखबिरों ने तीन लड़कियों को मारा पीटा और उनके साथ बलात्कार किया . उनके शरीर के नाजुक स्थानों पर लात से मारा और बच्चियों को फेंक कर चले गए.इन लड़कियों ने बताया कि जब एक बड़ा पुलिस अधिकारी उधर से गुज़रा तब यह लोग उन्हें फेंक कर भागे वरना पता नहीं क्या हो सकता था. यह तो एक गाँव की घटना है . छत्तीस गढ़ और झारखण्ड में इस तरह के हज़ारों गाँव हैं और इमकान है कि हर जगह यही हो रहा होगा . इस घटना का पता तो बाकी दुनिया को इस लिए चल गया कि वहां एक सम्मानित अखबार का रिपोर्टर पंहुच गया . इस रिपोर्टर ने पड़ोस के गाँव में भी इसी तरह का आतंक देखा जो कि सरकारी पक्ष से हो रहा है
दांतेवाडा नरसंहार को दो महीने हो गए हैं और आस पास का इलाका पूरी तरह से छावनी की शक्ल अख्तियार कर चुका है .वहां गए रिपोर्टर को गाँव वालों ने बताया कि जब गाँव के मर्द खेतों में काम करने चले जाते हैं , तो आस पास तैनात पुलिस वाले गश्त के बहाने गाँवों में आते हैं और औरतों को परेशान करते हैं इस तरह की अमानवीय आचरण की बहुत सारी घटनाएं इन इलाकों में हो रही हैं .सरकारों और सिविल सोसाइटी को चाहिए कि फ़ौरन से पेशतर ज़रूरी कार्रवाई करें वरना बहुत देर हो जायेगी. .

Sunday, June 6, 2010

ता हद्दे नज़र शहरे-खामोशां के निशाँ हैं

शेष नारायण सिंह

गुजरात में एक दलित नेता और उनकी पत्नी को पकड़ लिया गया है . पुलिस की कहानी में बताया गया है कि वे दोनों नक्सलवादी हैं और उनसे राज्य के अमन चैन को ख़तरा है . शंकर नाम के यह व्यक्ति मूलतः आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन अब वर्षों से गुजरात को ही अपना घर बना लिया है . गुजरात में साम्प्रदायिकता के खिलाफ जो चंद आवाजें बच गयी हैं , वे भी उसी में शामिल हैं. विरोधियों को परेशान करने की सरकारी नीति के खिलाफ वे विरोध कर रहे हैं और लोगों को एक जुट करने की कोशिश कर रहे हैं .उनकी पत्नी, हंसाबेन भी इला भट के संगठन सेवा में काम करती हैं , वे गुजराती मूल की हैं लेकिन उनको गिरफ्तार करते वक़्त पुलिस ने जो कहानी दी है ,उसके अनुसार वे अपने पति के साथ आंध्र प्रदेश से ही आई हैं और वहीं से नक्सलवाद की ट्रेनिंग लेकर आई हैं . ज़ाहिर है पुलिस ने सिविल सोसाइटी के इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के पहले होम वर्क नहीं किया था. इसके पहले डांग्स जिले के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ,अविनाश कुलकर्णी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था . किसी को कुछ पता नहीं कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन वे अभी तक जेल में ही हैं .गुजरात में सक्रिय सभी मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं को चुप कराने की गुजरात पुलिस की नीति पर काम शुरू हो चुका है और आने वाले वक़्त में किसी को भी नक्सलवादी बता कर धर लिया जाएगा और उसक अभी वही हाल होगा जो पिछले १० साल से गुजराती मुसलमानों का हो रहा है .नक्सलवादी बता कर किसी को पकड़ लेना बहुत आसान होता है क्योंकि किसी भी पढ़े लिखे आदमी के घर में मार्क्सवाद की एकाध किताब तो मिल ही जायेगी. और मोदी क एपुलिस वालों के लिए इतना ही काफी है . वैसे भी मुसलमानों को पूरी तरह से चुप करा देने के बाद , राज्य में मोदी का विरोध करने वाले कुछ मानवाधिकार संगठन ही बचे हैं . अगर उनको भी दमन का शिकार बना कर निष्क्रिय कर दिया गया तो उनकी बिरादराना राजनीतिक पार्टी , राष्ट्रवादी सोशलिस्ट पार्टी और उसके नेता , एडोल्फ हिटलर की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री का भी अपने राज्य में एकछत्र निरंकुश राज कायम हो जाएगा .
अहमदाबाद में जारी के बयान में मानवाधिकार संस्था,दर्शन के निदेशक हीरेन गाँधी ने कहा है कि 'गुजरात सरकार और उसकी पुलिस विरोध की हर आवाज़ को कुचल देने के उद्देश्य से मानवाधिकार संगठनो , दलितों के हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के अन्य कार्यकर्ताओं को नक्सलवादी बताकर पकड़ रही है ' लेकिन विरोध के स्वर भी अभी दबने वाले नहीं है . शहर के एक मोहल्ले गोमतीपुर में पुलिस का सबसे ज़्यादा आतंक है, . वहां के लोगों ने तय किया है कि अपने घरों के सामने बोर्ड लगा देंगें जिसमें लिखा होगा कि उस घर में रहने वाले लोग नक्सलवादी हैं और पुलिस के सामने ऐसी हालात पैदा की जायेगीं कि वे लोगों को गिरफ्तार करें . ज़ाहिर है इस तरीके से जेलों में ज्यादा से ज्यादा लोग बंद होंगें और मोदी की दमनकारी नीतियों को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया जाएगा.वैसे भी अगर सभ्य समाज के लोग बर्बरता के खिलाफ लामबंद नहीं हुए तो बहुत देर हो चुकी होगी और कम से कम गुजरात में तो हिटलरी जनतंत्र का स्वाद जनता को चखना ही पड़ जाएगा.

वैसे गुजरात में अब मुसलमानों में कोई अशांति नहीं है , सब अमन चैन से हैं . गुजरात के कई मुसलमानों से सूरत और वड़ोदरा में बात करने का मौक़ा लगा . सब ने बताया कि अब बिलकुल शान्ति है , कहीं किसी तरह के दंगे की कोई आशंका नहीं है . उन लोगों का कहना था कि शान्ति के माहौल में कारोबार भी ठीक तरह से होता है और आर्थिक सुरक्षा के बाद ही बाकी सुरक्षा आती है.बड़ा अच्छा लगा कि चलो १० साल बाद गुजरात में ऐसी शान्ति आई है .लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि जो कुछ मैं सुन रहा था वह सच्चाई नहीं थी. वही लोग जो ग्रुप में अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे , जब अलग से मिले तो बताया कि हालात बहुत खराब हैं . गुजरात में मुसलमान का जिंदा रहना उतना ही मुश्किल है जितना कि पाकिस्तान में हिन्दू का . गुजरात के शहरों के ज़्यादातर मुहल्लों में पुलिस ने कुछ मुसलमानों को मुखबिर बना रखा है , पता नहीं चलता कि कौन मुखबिर है और कौन नहीं है . अगर पुलिस या सरकार के खिलाफ कहीं कुछ कह दिया गया तो अगले ही दिन पुलिस का अत्याचार शुरू हो जाता है. मोदी के इस आतंक को देख कर समझ में आया कि अपने राजनीतिक पूर्वजों की लाइन को कितनी खूबी से वे लागू कर रहे हैं . लेकिन यह सफलता उन्हें एक दिन में नहीं मिली . इसके लिए वे पिछले दस वर्षों से काम कर रहे हैं . गोधरा में हुए ट्रेन हादसे के बहाने मुसलमानों को हलाल करना इसी रणनीति का हिस्सा था . उसके बाद मुसलमानों को फर्जी इनकाउंटर में मारा गया, इशरत जहां और शोहराबुद्दीन की हत्या इस योजना का उदाहरण है . उसके बाद मुस्लिम बस्तियों में उन लड़कों को पकड़ लिया जाता था जिनके ऊपर कभी कोई मामूली आपराधिक मामला दर्ज किया गया हो . पाकेटमारी, दफा १५१ , चोरी आदि अपराधों के रिकार्ड वाले लोगों को पुलिस वाले पकड़ कर ले जाते थे , उन्हें गिरफ्तार नहीं दिखाते थे, किसी प्राइवेट फार्म हाउस में ले जा कर प्रताड़ित करते थे और अपंग बनाकर उनके मुहल्लों में छोड़ देते थे . पड़ोसियों में दहशत फैल जाती थी और मुसलमानों को चुप रहने के लिए बहाना मिल जाता था .लोग कहते थे कि हमारा बच्चा तो कभी किसी केस में पकड़ा नहीं गया इसलिए उसे कोई ख़तरा नहीं था . ज़ाहिर है इन लोगों ने अपने पड़ोसियों की मदद नहीं की ..इसके बाद पुलिस ने अपने खेल का नया चरण शुरू किया . इस चरण में मुस्लिम मुहल्लों से उन लड़कों को पकड़ा जाता था जिनके खिलाफ कभी कोई मामला न दर्ज किया गया हो . उनको भी उसी तरह से प्रताड़ित करके छोड़ दिया जाता था . इस अभियान की सफलता के बाद राज्य के मुसलमानों में पूरी तरह से दहशत पैदा की जा सकी. और अब गुजरात का कोई मुसलमान मोदी या उनकी सरकार के खिलाफ नहीं बोलता ..डर के मारे सभी नरेन्द्र मोदी की जय जयकार कर रहे हैं. अब राज्य में विरोध का स्वर कहीं नहीं है . कांग्रेस नाम की पार्टी के लोग पहले से ही निष्क्रिय हैं . वैसे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि विपक्ष का अभिनय करने के लिए उनकी ज़रूरत है .यह मानवाधिकार संगठन वाले आज के मोदी के लिए एक मामूली चुनौती हैं और अब उनको भी नक्सलवादी बताकर दुरुस्त कर दिया जाएगा. फिर मोदी को किसी से कोई ख़तरा नहीं रह जाएगा. हमारी राजनीति और लोकशाही के लिए यह बहुत ही खतरनाक संकेत हैं क्योंकि मोदी की मौजूदा पार्टी बी जे पी ने अपने बाकी मुख्यमंत्रियों को भी सलाह दी है कि नरेन्द्र मोदी की तरह ही राज काज चलाना उनके हित में होगा