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Wednesday, October 20, 2010

वंशवादी राजनीति देश के नौजवान को अलग थलग कर देगी

शेष नारायण सिंह

मुंबई में दशहरा के दिन शिव सेना के नेता बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी में अपने और अपने बेटे के बाद तीसरी पीढी को भी राजनीति में शामिल कर लिया है और उसे अपने वंश का उत्तराधिकारी बनाने का अघोषित सन्देश जारी कर दिया है . इस तरह से वंशवाद की राजनीति के एक पुराने विरोधी ने धृतराष्ट्र की तरह पुत्र मोह की बेदी पर अपने आपको कुरबान कर दिया है . देश के भविष्य को सबसे बड़ा ख़तरा वंशवादी राजनीति से है . वंशवाद की राजनीति राष्ट्र की मुख्यधारा से नौजवानों के एक बड़े वर्ग को अलग कर सकने की क्षमता रखती है . देश में अपने बच्चों को की अपनी राजनीतिक विरासत थमा देने की राजनीति फिर से सामंती व्यवस्था लागू करने जैसा है . पिछले एक हज़ार साल के इतिहास पर नज़र डालें तो समझ में आ जाएगा कि राजपरिवारों की बातों में देश का आम आदमी नहीं शामिल होता था. राजा महाराजा आपस में लड़ते रहते थे. उनकी लड़ाई में उनके निजी स्वार्थ मुख्य भूमिका निभाते थे. इसलिए आमआदमी को कोई मतलब नहीं रहता था. भारत की एकता का सूत्र उसकी संस्कृति और उसकी धार्मिक परम्पराएं थी. राजनीति पूरी तरह से वंशवाद की भेट चढ़ चुकी होती थी. देश एक रहता था और सामंत लड़ते रहते थे . महात्मा गाँधी ने यह सब बदल दिया . जब वे कांग्रेस में आये तो कांग्रेस एक तरह से अंग्रेजों से छूट मांगने का फोरम मात्र था लेकिन महात्मा गाँधी ने कांग्रेस को जन आकांक्षाओं से जोड़ दिया और १९२० में पूरा देश महात्मा गाँधी के साथ कहदा हो गया. महातम अगंधी ने पूरे देश में यह सन्देश पंहुचा दिया कि आज़ादी के लड़ाई किसी एक राजा ,एक वंश या एक खानदान के हितों के लिए नहीं लड़ी जा रही थी , वह भारत के हर आदमी की अपनी लड़ाई थी . और पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया. अपने किसी बच्चे को महात्मा गाँधी ने राजनीति में महत्व नहीं दिया . यह परंपरा आज़ादी मिलने के शुरुआती वर्षों में भी थी. जवाहरलाल नेहरू की बेटी , इंदिरा गाँधी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं , वे राजनीति में भूमिका भी अदा करना चाहती थीं लेकिन आज़ादी की लड़ाई की जो गतिशीलता थी, उसके दबाव में जवाहरलाल नेहरू की भी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि वे इंदिरा गाँधी को अपने वारिस के रूप में पेश करते. उनकी मौत के बाद स्व लाल बहादुर शास्त्री ने इंदिरा गाँधी को पहली बार मंत्री बनाया था . लेकिन इंदिरा गाँधी में आजादी की महान परम्पराओं के प्रति वह सम्मान नहीं था . उन्होंने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को राजनीति में शामिल किया और उसे मनमानी करने की पूरी छूट दी और भारतीय राजनीति में वंशवाद की बुनियाद रख दी. संजय गाँधी की याद इस देश के राजनीतिक इतिहास के उस अध्याय में की जायेगी जिसमें यह बताया जायेगा कि कांग्रेस ने महात्मा गाँधी की राजनीतिक मान्यताओं को कैसे तिलांजलि दी थी.. संजय गांधी की राजनीतिक ताजपोशी का बहुत सारे कांग्रेसियों ने विरोध भी किया था लेकिन वे सब इतिहास के डस्टबिन के हवाले हो गए. संजय गांधी को इंदिरा गाँधी ने १९८० में जितनी ताक़त दी थी , उतनी समकालीन इतिहास में किसी के पास नहीं थी. संजय गाँधी की राजनीतिक ताजपोशी की सफलता के बाद बाकी पार्टियों में भी यही ज़हर फैल गया .. मुंबई में शिव सेना की तीसरी पीढी की ताजपोशी उसी वंशवादी राजनीति का सबसे ताज़ा उदाहरण है .
इस दशहरे के दिन मुंबई में जो हुआ , उसके पहले बहुत सारी पार्टियों के नेता अपने बच्चों को राजनीति में स्थापित कर चुके हैं और ज्यदातर ऐसे नेताओं की दूसरी तीसरी पीढी राजनीति के चरागाह में मौज उड़ा रही है . दक्षिण से लेकर उत्तर तक लगभग हर बड़े नेता के बच्चे बिलकुल नाकारा होने के बावजूद राज कर रहे हैं . करूणानिधि, शरद पवार , जी के मूपनार , करुणाकरण, राजशेखर रेड्डी, एन टी रामाराव ,बीजू पटनायक , लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव , चौधरी चरण सिंह , देवी लाल, बंसी लाल , भजन लाल, शेख अब्दुल्ला, प्रकाश सिंह बदल , सिंधिया परिवार, कांग्रेस में लगभग सभी नेता ,इस मर्ज़ के शिकार हैं. अभी पिछले दिनों बिहार से खबर आई थी कि बी जे पी के प्रदेश अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया था क्योंकि वे अपने बेटे को टिकट नहीं दिलवा पाए थे. देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में तो वंशवाद है ही.ज़ाहिर है कि हालात बहुत खराब हैं और अपने वंश जो कायम करने की बेसब्री में बहुत सारे नेता देश की राजनीतिक संस्थाओं का बहुत अपमान कर रहे हैं . अगर यही हालत चलती रही तो देश के नौजवानों की बहुत बड़ी संख्या राजनीति में रूचि लेना बंद कर देगी और देश की एकता और अखंडता को भारी ख़तरा पैदा हो जाएगा. जिन देशों में कुछ खानदानों के लोग ही सत्ता पर काबिज़ रहते हैं , उनके हस्र को देखना दिलचस्प होगा. पड़ोसी देश नेपाल के अलावा इस सन्दर्भ में उत्तर कोरिया का उदाहरण दिया जा सकता है अगर देश के सभी लोग देश की भलाई में साझी नहीं किये जायेगें तो देश का भला नहीं होगा. वंशवादी राजनीति आम आदमी को सत्ता से भगा देने की एक साजिश है और उसका विरोध किया जाना चाहिये