Showing posts with label डेविड केमरून. Show all posts
Showing posts with label डेविड केमरून. Show all posts

Sunday, August 1, 2010

ब्रिटेन की चेतावनी ----- पाकिस्तान के आतंकवाद से दुनिया को ख़तरा

शेष नारायण सिंह

भारत की यात्रा पर आये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में जो कुछ कहा उस से साफ़ है कि ब्रिटेन अब भारत और पाकिस्तान को एक तराजू में रखने की मानसिकता से बाहर आ चुका है . अब तक ब्रिटेन सहित अन्य पूजीवादी ,साम्राज्यवादी देश भारत और पाकिस्तान को बराबर मानने की ग्रंथि के शिकार थे. अब हालात बदल चुके हैं . यह कोई अहसान नहीं है . दुनिया के विकसित देशों को मालूम है कि भारत एक विकासमान देश है जबकि पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसने पिछले साठ वर्षों की गलत आर्थिक,राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का पालन करके अपने आपको ऐसे मुकाम पर पंहुचा दिया है जहां से उसके एक राष्ट्र के रूप में बचे रहने की संभावना बहुत कम है . इसलिए अब भारत और पाकिस्तान के बारे में बात करते हुए पश्चिम के बड़े देश हाइफन इस्तेमाल करना बंद कर चुके हैं . ब्रिटिश प्रधान मंत्री डेविड केमरून की भारत यात्रा इस मामले में भी ऐतिहासिक है कि वह अब अपने देश को भारत के मित्र के रूप में पेश करके खुश हैं . प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के साथ उनकी पत्रकार वार्ता को देख कर लगता है कि ब्रिटेन अब पाकिस्तान से दूरी बनाकार रखना चाहता है . ब्रिटेन भी पहले जैसा ताक़तवर देश नहीं रहा . उनकी अर्थ व्यवस्था में विदेशों से आने वाले छात्रों के पैसों का ख़ासा योगदान रहता है . भारत में शिक्षा को जो मह्त्व दिया जा रहा है ,उसके मद्देनज़र दोनों देशों के बीच हुए शिक्षा के समझौते में ब्रिटेन का ज्यादा हित है . व्यापार और रक्षा के समझौतों में भी ब्रिटेन का ही फायदा होगा और उसकी अर्थ व्यवस्था को बल मिलेगा . इस तरह अब साफ़ नज़र आने लगा है कि साठ वर्षों में हालात यहाँ तक बदल गए हैं कि कभी भारत पर राज करने वाला ब्रिटेन अब अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए भारत की ओर देखता है . लेकिन पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं है . पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कुछ भी मज़बूत नहीं है . आजकल तो उनका खर्च तक विदेशी सहायता से चल रहा है . अगर अमरीका और सउदी अरब से दान मिलना बंद हो जाये तो पाकिस्तानी आबादी का बड़ा हिस्सा भूखों मरने को मजबूर हो जाएगा. भारत से मिल रहे सहयोग के बदले ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने भारत की पक्षधरता की बात की . उन्होने भारत को सुरक्षा परिषद् में शामिल करने की बात की और पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद को भारत , अफगानिस्तान और लन्दन के लिए ख़तरा बताया और पाकिस्तानी मदद से चलाये जा रहे आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम में अपने आप को शामिल कर लिया . उन्होंने साफ़ कहा कि इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान के अन्दर इस तरह के आतंकवादी संगठन मौजूद हों जो पाकिस्तान के अन्दर भी आतंक फैलाएं और भारत और अफगानिस्तान को आतंक का निशाना बनाएं. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की कोशिश है कि वह पाकिस्तान को इस बात के लिए उत्साहित करे कि वह लश्कर-ए-तय्यबा और तालिबान से मुकाबला कर सके.उन्होंने कहा कि अगले हफ्ते वे पाकिस्तान के राष्ट्रपति से इन विषयों पर बातचीत करेगें.भारत के प्रधानमंत्री ने भी इस बात से सहमति जताई और कहा कि उन्हें उम्मीद है पाकिस्तानी विदेश मंत्री, शाह महमूद कुरेशी भारत की यात्रा पर आने का निमंत्रण स्वीकार करेगें.जिस से देर सबेर बातचीत का सिलसिला शुरू किया जा सके.उन्होंने शाह महमूद कुरेशी की आचरण पर भी टिप्पणी की .

पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताने की ब्रिटिश प्रधानमंत्री की बात को पाकिस्तान ने पसंद नहीं किया है . उनके हुक्मरान की समस्या यह है कि वे अभी भी अपनी जनता को बताते रहते हैं कि भारत और पाकिस्तान बाकी दुनिया की नज़र में बराबर की हैसियत वाले मुल्क हैं लेकिन अब सच्चाई सब के सामने आ चुकी है . अमरीका के ख़ास रह चुके पाकिस्तान को अमरीकी रुख में बदलाव भी नागवार गुज़र रहा है . लेकिन अब कोई भी देश पाकिस्तान को इज्ज़त से देखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता. पाकिस्तान एक ऐसा देश हैं जहां सबसे ज्यादा खेती आतंकवाद की होती है और पिछले तीस वर्षों से वह आतंकवाद को सरकारी नीति के रूप में चला रहा है. अगर पाकिस्तान की इस बात को मान भी लिया जाए कि ब्रिटेन उसे भारत के बराबर माने तो उसके बाद क्या होगा . पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था इतनी जर्जर है कि जो देश भी उस से सम्बन्ध बनाएगा उसे पाकिस्तान की आर्थिक सहायता करनी पड़ेगी . अगर शिक्षा या संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग हुआ तो पाकिस्तान से छात्रों के रूप में कितने आतंकवादी ब्रिटेन पंहुच जायेगें, इसका अंदाज़ कोई नहीं लगा सकता .इस लिए पाकिस्तान के शासकों को चाहिए कि वे वास्तविकता को स्वीकार करें और भारत समेत बाकी दुनिया से सहायता मांगें और अपने देश में मौजूद आतंकवाद को ख़त्म करें . बाकी दुनिया को यह मुगालता भी नहीं रखना चाहिए पाकिस्तान में लोकतंत्र कायम हो चुका है . वास्तव में वहां सत्ता फौज के हाथ में ही है . हालांकि विदेशों से सहायता झटकने के लिए फौज ने सिविलियन सरकार को बैठा रखा है लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि फौज के आला अफसर ,शाह महमूद कुरैशी जैसे गैर ज़िम्मेदार नेताओं को लगाम दें. जहां तक भारत से बराबरी की बात है ,उसे हमेशा के लिए भूल जाएँ क्योंकि भारत ने विकास की जो मंजिलें तय की हैं वह पाकिस्तान के लिए सपने जैसा है . पाकिस्तान को सच्चाई को स्वीकार करने की शक्ति विकसित करनी चाहिए