जामिया मिल्लिया इसलामिया के करीब बटला हाउस का इलाका पिछले साल चर्चा में आ गया जब दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि वहां एक घर में छुपे हुए आतंकवादियों को पुलिस ने घेर लिया, दो लडक़ों को मार गिराया और बाकी भाग निकले। इस कथित मुठभेड़ में पुलिस का एक इंस्पेक्टर भी मारा गया। परिस्थितियां ऐसी थीं कि पुलिस की बात पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। मारे गए लडक़े उत्तरप्रदेश के आज़म गढ़ जिले के थे और उनके रिश्तेदारों के अनुसार वे दिल्ली में पढ़ाई करने आए थे।
हर मुसलमान को आतंकवादी करार देने के लिए व्याकुल बीजेपी इस कांड को मुद्दा बनाने में जुट गई और दिल्ली पुलिस के उस इंस्पेक्टर को हिंदुत्व का हीरो बनाने की कोशिश शुरू कर दी जिसे बीजेपी का कोई नेता जानता तक नहीं था। बीजेपी की इस कोशिश को लगाम तब लगी जब इंस्पेक्टर के परिवार वालों ने बी जे पी इन कोशिशों को $गलत बताया लेकिन राजनीति चलती रही। आज़मगढ़ के मूल निवासी और समाजवादी पार्टी के महासचिव, अमर सिंह ने भी रुचि लेना शुरू कर दिया। जब बटला हाउस गए तो लोगों ने उनसे जो बताया उससे वे चिंतित हुए। दूध का दूध और पानी का पानी कर देने की गरज़ से घटना की न्यायिक जांच की मांग कर दी।
उन्होंने यह भी कहा कि यह इसलिए ज़रूरी है कि ओखला, आज़मगढ़ और पूरे देश के अल्प संख्यकों में यह भरोसा पैदा करना ज़रूरी है कि उनके साथ न्याय हो रहा है। सारी दुनिया के संघी, अमर सिंह पर टूट पड़े और उनको बिलकुल घेर लिया। हिन्दुओं के दुश्मन के रूप में पेश करने की कोशिश की और एक पुलिस ज्यादती की घटना को हिंदू बनाम मुसलमान रंग देने की कोशिश की। अमर सिंह ने सफाई दी कि वह बटला हाउस के इनकांउन्टर को अभी फर्जी नहीं बता रहे हैं। लेकिन उस वारदात की वजह से अल्पसंख्यकों में जो असुरक्षा का भाव आया है, उसे कम करने की कोशिश की जानी चाहिए। अमर सिंह ने साफ किया कि बीजेपी के नेताओं के आरोप बेबुनियाद है कि वे वोट बैंक राजनीतिक कर रहे हैं।
उनका कहना था कि आज़मगढ़ के दो नौजवानों और पुलिस के एक अफसर की हत्या के बारे में पुलिस द्वारा दी जा रही कहानी किसी के गले के नीचे नहीं उतर रही है और न्याय का तकाजा है कि इस मामले की न्यायिक जांच की जाय। इसके बाद हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अमर सिंह ने अपने इस रुख पर वोट लेने की कोशिश नहीं की ओर साफ कर दिया कि बटला हाउस मामले पर उनका रुख इंसानी फर्ज था, वोट बैंक राजनीति नहीं। संघी राजनीति में किसी भी मुद्दे को तब तक जिंदा रखा जाता है जब तक उसमें जान रहे। दिल्ली के सत्ता के गलियारों और मीडिया के दफ्तरों में आजकल बटला हाउस के हत्याकांड को हलका करने की कोशिश चल रही है। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा प्रेमी पत्रकार एकजुट हैं।
एक बड़े अखबार में ख़बर छप गई है कि जामिया नगर और ओखला के इला$के में रहने वाले मुसलमानों के लिए बटला हाउस कोई मुद्दा नहीं है, उन्हें तो बिजली, सडक़ पानी के मुद्दो को ध्यान में रखकर वोट देना है। इस तरह का रुख मानवीय संवेदनाओं के साथ छिछोरापन है और इस पर रोक लगनी चाहिए। निर्दोष मुसलमानों को मारकर बिजली, सडक़ और पानी की रिश्वत देने की कोशिश हर स्तर पर विरोध होना चाहिए।
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Sunday, July 26, 2009
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