Showing posts with label गाजियाबाद. Show all posts
Showing posts with label गाजियाबाद. Show all posts

Tuesday, March 16, 2010

कांग्रेस ने बनाया राज ठाकरे को मंझधार में छोड़ने का प्लान

शेष नारायण सिंह

नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद ,मेरठ और बुलंदशहर जिलों में अपराधी से नेता बने एक ऐसे व्यक्ति का आतंक था जो हर तरह की मनमानी करता था. उसके खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हो सकता था क्योंकि किसी की हिम्मत गवाही देने की नहीं थी . इस दौर में इन जिलों में एक ही बैच के आई पी एस अधिकारी जिला पुलिस के प्रमुख के रूप में तैनात थे .. तीनों मित्र भी थे . उन्होंने ऐसी नीति का सहारा लिया कि उस नेता की मनमानी पर रोक तो लग ही गयी , वह फरार हो गया और अपनी जान बचाते फिरने लगा . इन अफसरों ने अफवाह फैला दी कि उसका इनकाउंटर हो जाएगा .उन में से एक अधिकारी ने बताया कि इस अपराधी नेता को सज़ा तो नहीं दी जा सकती लेकिन जब इसका दरबार लगना बंद हो जाएगा , और जनता में यह सन्देश चला जाएगा कि यह तो अपनी ही जान बचाने के लिए मारा मारा फिर रहा है ,तो इसकी अपराध करने की क्षमता अपने आप कम हो जायेगी. यानी जब तक यह मशहूर रहता है कि अपराधी बहुत ताक़तवर है और पुलिस भी उस से बच कर रहती है , अपराधी का धंधा पानी चलता रहता है लेकिन जैसे ही यह पता चला कि अपराधी एक मामूली आदमी है ,उसकी दुकान बंद हो जाती है . उसे अदालत से सज़ा मिले चाहे न मिले, अपराध के ज़रिये कमाई कर सकने की ताक़त ख़त्म हो जाती है . महाराष्ट्र में यही हुआ . १९६६ से अब तक की राज्य सरकारें और राजनीतिक पार्टियां शिव सेना को पाल रही थीं और उसके सदस्य और मालिक वसूली के धंधे में लगे हुए थे . यह लोग मुंबई महानगर में हर उस इंसान से वसूली करते थे जो किसी तरह के कारोबार में लगा होता था. जहां मालिक लोग बिल्डरों और फिल्म वालों से उगाही करते थे, वहीं मोहल्ला लेवल के कार्यकर्ता , खोमचे वालों , पाकिटमारों और भिखारियों से रक़म वसूल कर अपना खर्च चलाते थे . इस सारे गोरख धंधे में पुलिस कुछ नहीं बोलती थी क्योंकि लगभग हमेशा ही कांग्रेस, एन सी पी या बी जे पी वाले शिव सेना की मदद करते रहते थे और पुलिस निष्क्रिय रहती थी .इस साल जब शिव सेना ने राहुल गाँधी को धमकी दे दी तो सरकार की अथारिटी का इस्तेमाल किया गया और शिव सेना के कार्यकर्ताओं को उनकी औकात बता दी गयी. . राहुल गाँधी के परिवार के ख़ास दोस्त , शाहरुख खान को भी जब धमकी मिली तो सरकार सक्रिय हो गयी और शिव सेना की दुकान में शटर लगाने के प्रोजेक्ट में पूरा सरकारी अमला जुट गया . शिव सेना के साथ काम करने वाले मुकामी बदमाशों की तबियत से धुनाई हुई और शिव सेना के सभी नेता आजकल ठंडे चल रहे हैं . पिछले दिनों शिव सेना के मालिक के परिवार के एक सदस्य को भी सत्ताधारी पार्टी ने शह देना शुरू किया था.. उसको मदद करके महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नाम की पार्टी भी बनवा दी गयी.. शिव सेना को कमज़ोर करने के लिए उसकी पार्टी का इस्तेमाल भी हुआ लेकिन उसने अपनी ताक़त से ज्यादा हल्ला गुल्ला करना शुरू कर दिया . अब खबर आई है कि शिव सेना से अलग हुए इस धड़े के बदमाशों को भी पुलिस ने ठीक करने का काम शुरू कर दिया है . और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के ११ कार्यकर्ताओं को बाँध कर थाने में बैठा दिया. यह लोग किसी सिनेमा वाले के यहाँ वसूली करने गए थे . इनका कहना था कि उस फिल्म यूनिट में कुछ विदेशी लोग काम कर रहे हैं ,जिनके पास वर्क परमिट नहीं है. लिहाज़ा फिल्म वाले से इन्होने कहा कि अगर बिना परमिट वाले विदेशियों से काम करवाना है तो २७ लाख रूपये इनको दें वरना काम रोक दिया जाएगा. यह सही है कि वर्क परमिट के बिना विदेशी काम नहीं कर सकते लेकिन उसकी चेकिंग का काम पुलिस का है , राज ठाकरे के बदमाशों का नहीं . लिहाज़ा पुलिस को खबर हुई और उसने इन्हें पकड़ किया . थाने में ले जाकर बैठाया और ३-३ हज़ार की ज़मानत पर छोड़ दिया . इसका मतलब यह है कि उनका अपराध ऐसा संगीन नहीं था कि उन्हें हिरासत में लेकर पूछ-ताछ की जाती लेकिन महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के रोज़ ही बढ़ रहे वसूली साम्राज्य पर ब्रेक लगाने के लिए इनके महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को माफी माँगने पर मजबूर करना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है . अब राज ठाकरे का भी वही हाल हो जाएगा , जो उनके चाचा बाल ठाकरे का है या जो नब्बे के दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वसूली का धंधा करने वाल्रे अपराधी-नेता का हुआ था . क्योंकि अगर अवाम के दिमाग में यह बात बैठ गयी कि वसूली का रैकेट चलाने वाला पुलिस से डरता है तो जनता उसकी मामूली सी बात की शिकायत लेकर थाने जाने लगेगी और एक बार अगर थाने की टेढ़ी नज़र पड़ गयी तो कोई भी अपराधी अपना धंधा बदलने के लिए मजबूर हो जाता है . इसलिए जिस तरह से मुंबई में बाल ठाकरे और राज ठाकरे के लोगों के खिलाफ पुलिस सक्रिय हुई है ,उस से लगता हैकि अब इन लोगों की औकात एक मामूली क्रिमिनल की हो जायेगी और मुंबई की जनता राहत की सांस लेगी

Monday, July 27, 2009

कायर, अपराधी और निर्दयी पुलिस

गाजियाबाद के छात्र रणबीर को देहरादून पुलिस ने इनकाउंटर में मार डाला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पता चला है कि लड़के को पुलिस ने प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी। पुलिस की बर्बरता की जब शुरुआती खबरें आने लगी थीं तो यही कहा जाता था कि ब्रिटिश राज की पुलिस लोकशाही में काम करने लायक नहीं है, इसे सेवा करने और सुरक्षा करने के लिए काम करने का प्रशिक्षण देना चाहिए। इसी तरह के और भी बहुत सारे तर्क दिए जाते थे।
लेकिन अब बात बहुत आगे निकल चुकी है। राजनीति के अपराधीकरण के बाद बहुत सारे पुलिस वालों ने ऐसे काम भी किए हैं जो बड़े बड़े अपराधियों को भी पीछे छोड़ जाने के लिए काफी है। इसलिए ब्रिटिश पुलिस बनाम लोकतांत्रिक पुलिस का तर्क बेमतलब है। कई राज्य सरकारों में ऐसे मंत्री हैं जो कई घृणित अपराधों के मुलजिम हैं, कई मंत्रियों पर हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार, आगजनी जैसे मुकदमे चल रहे हैं। लोकतंत्र में मंत्री ही सत्ता का मुखिया होता है, वही सरकार होता है।
अगर वह अपराधी है तो लोकतंत्र के तबाह होने के खतरे बढ़ जाते हैं। लोक प्रतिनिधित्व कानून और संविधान में ऐसे प्रावधान नहीं हैं कि किसी अपराधी को चुनाव लडऩे से रोका जा सके। बाद में कुछ संशोधन आदि करके बात को कुछ संभालने की कोशिश की गई है लेकिन वह अपराधियों को संसद या विधानसभा में पहुंचने से रोकने के लिए नाकाफी है। दरअसल संविधान के निर्माताओं ने यह नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि अपराधी भी चुनाव लडऩे लगेगा। उनकी सोच थी कि अव्वल तो अपराधी चुनाव लडऩे की हिम्मत ही नहीं करेगा और अगर लड़ता भी है तो जनता उसे नकार देगी।
ऐसा हुआ नहीं। जातिपांत के दलदल में फंसे समाज में अपराधी स्वीकार्य होने लगा और एक समय तो ऐसा आया कि उत्तरप्रदेश विधानसभा में बड़ी संख्या में अपराधी पहुंचने लगे। जाहिर है कि प्रशासन का स्तर गिरना था, सो गिरा। लेकिन पुलिस को अपनी सेवा की शर्तों के हिसाब से काम करना चाहिए। जब पुलिस का अधिकारी नौकरी में आता है तो संविधान को पालन करने की शपथ लेता है किसी नेता की चापलूसी करने की शपथ नहीं लेता लेकिन नेताओं की हां में हां मिलाने वालों की पुलिस फोर्स में हो रही भरमार की वजह से देहरादून जैसी घटनाएं थोक में हो रही है जोकि अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आती हैं।
अपने देश, खासकर उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में पुलिस प्रशासन की हालत बहुत खराब है। राज्य में पुलिस की लीडरशिप बिलकुल कमजोर है। बड़े अफसर अपराध के कम करने के लिए दबाव तो बनाते हैं लेकिन इंगेजमेंट के नियमों का पालन नहीं करवाते। अपराधियों को खत्म करने के लिए फर्जी मुठभेड़ का सहारा लेते हैं। कुछ मामलों में तो अपराधियों से ही दूसरे अपराधी को मरवाते हैं। एक जो सबसे खराब बात सिस्टम में आ गई है कि अगर कोई अपराधी मारा जाता है तो आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की कल्चर के तहत अपराधी को मारने वाला प्रमोशन पा जाता है। कई बार उसे पुरस्कार भी मिल जाता है।
फर्जी मुठभेड़ के मामलों में सबसे ज्यादा योगदान प्रमोशन-एवार्ड कल्चर का है। इसके चलते चालू किस्म के पुलिस वाले जल्दबाजी में पड़कर निर्दोष लोगों को भी मार देते है। सबसे बड़ी जो गलती हो रही है, वह यह कि पुलिस वाले ठीक से मुखबिरों का विकास नहीं कर रहे है। निजी दुश्मनी के चलते कभी-कभी मुखबिर निर्दोष लोगों को मरवा देते हैं। जिले में तैनात पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि मुखबिर व्यवस्था के विकास के लिए विभाग की तरफ से जो नियम बनाए गए हैं उसका पालन करवाएं। इनकाउंटर में भी रूल्स ऑफ इंगेजमेंट हैं। देहरादून में हुए रणबीर के $कत्ल में पुलिस प्रशासन की हर प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया है।
लड़के के शरीर पर 28 ऐसे घाव हैं जो उसके जिंदा रहते उसे पुलिस प्रताडऩा के दौरान दिए गए थे। लगता है कि किसी गलत मुखबिरी के चक्कर में रणबीर को पकड़ लिया गया था और जब उसको इतनी प्रताडऩा दी गई कि उसके बचने की उम्मीद नहीं रह गई तो उसे इनकाउंटर दिखाकर गोलियों से भून दिया गया। यह अक्षम्य अपराध है। इन पुलिस वालों से पूछा जाना चाहिए कि उनके अपने बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार हो, तो उन्हें कैसा लगेगा।
देहरादून की घटना पुलिस प्रशासन की सरासर असफलता है और इसकी सभ्य समाज के लोगों को कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करनी चाहिए और राज्य सरकार को चाहिए कि जिम्मेदार पुलिस वालों को दंडित करें और कमजोर अफसरों को हटाकर योग्य पुलिस वालों को तैनात करें। दंड भी ऐसा हो कि भविष्य में पुलिस वालों की हिम्मत न पड़े कि किसी निर्दोष बच्चे को बेरहमी से पीटें और उसकी जान ले लें।