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Wednesday, February 15, 2012

उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक राजनीति का कोई भविष्य नहीं है .

शेष नारायण सिंह

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पहले दौर के मतदान के बाद तस्वीर कुछ साफ़ होने लगी है . करीब एक महीने पहले तक माना जा रहा था कि चुनाव में मुकाबले चार मुख्य पार्टियों में होंगें लेकिन बीजेपी के चुनावी अभियान के कारण उसके पुराने वोटरों में वह उत्साह नहीं पैदा हो सका जिसके लिए यह पार्टी जानी जाती है . इस एक राजनीतिक घटना के चलते उत्तर प्रदेश विधान सभा के चुनाव के तरीके, बदल गए हैं . ज़ाहिर है इनका असर नतीजों पर भी होगा. .
उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार जानते हैं कि राज्य में सत्ता तक पंहुचने के लिए मुसलमानों का समर्थन बहुत ज़रूरी होता है . इसीलिए सभी राजनीतिक पार्टियों में वोटर को अपनी तरफ खींच लेने की होड़ मची हुई है . गैर बीजेपी पार्टियां अपने को मुसलमानों का सबसे बड़ा शुभचिन्तक बता रही हैं . तीन मुख्य राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों के समर्थन के बल पर लखनऊ की सत्ता पर काबिज़ होने के सपने देख रही हैं . इसके लिए जहां पुराने तरीकों को भी अपनाया जा रहा है तो नए से नए तरीके भी अपनाए जा रहे हैं .राज्य की सत्ताधारी पार्टी की मुखिया ने बहुत बड़ी संख्या में मुसलिम उम्मीदवारों को टिकट देकर यह माहौल बनाने की कोशिश की है कि वह मुसलमान की असली शुभचिन्तक हैं . कांग्रेस पार्टी आज़ादी के बाद से ही मुसलमानों में लोकप्रिय हुआ करती थी. लेकिन १९७७ के बाद वह रुख बदला था . ६ दिसंबर १९९२ के बाद तो हालात बिलकुल बदल गए. उसके बाद उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की प्रिय पार्टी का रुतबा समाजवादी पार्टी को मिल गया . लेकिन जब समाजवादी पार्टी ने कल्याण सिंह को साथ ले लिया तो मुसलमानों ने तय कर लिया कि समाजवादी पार्टी उनका ठिकाना नहीं है . उसी एक फैसले के कारण मुसलमानों ने कांग्रेस को फिर एक विकल्प के रूप में देखना शुरू किया. २००९ के लोक सभा चुनावों में इस बदलाव का नतीजा भी सामने आ गया जब राज्य में चौथे मुकाम पर पंहुच चुकी कांग्रेस पार्टी ने पहले से बहुत अधिक सीटें जीतने में सफलता पायी. उसके बाद तो कांग्रेस ने बहुत सारे ऐसे काम किये हैं जिससे लगता है कि कांग्रेस ६ दिसंबर १९९२ के अपने काम के लिए शर्मिंदा है और बात को ठीक करना चाहती है . कांग्रेस की सरकार ने जो सच्चर कमेटी बनायी है वह मुसलमान की हालत सुधारने की दिशा में उठाया गया एक निर्णायक क़दम है . सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आ जाने के बाद अब तक प्रचलित बहुत सारी भ्रांतियों से पर्दा उठ गया है . मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का प्रचार करके संघ परिवार और उसके मातहत संगठन हर सरकार पर आरोप लगाते रहते थे कि मुसलमान का अपीजमेंट किया जाता है.लेकिन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद उस तर्क की हवा निकल चुकी है .इतना ही नहीं ,कांग्रेस की सरकार ने रंगनाथ मिश्रा कमीशन बनाकर मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में रिज़र्वेशन देने की भी सरकारी पहल को एक शक्ल दे दी. यू पी ए सरकार ने सरकारी नौकरियों में ओ बी सी कोटे से काटकर साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण की बात की, तो बात कुछ आगे बढ़ी. कांग्रेस ने इसका खूब प्रचार प्रसार भी किया और इस साढ़े चार प्रतिशत को मुसलमान का आरक्षण बताने की राजनीतिक मुहिम चलाई .

१९९२ के बाद से हर चुनाव में मुसलमानों ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए वोट दिया है . हर बार बीजेपी मुख्य रूप से मुकाबले में रहती थी लेकिन इस बार हालात बदल गए हैं . मौजूदा चुनाव में बीजेपी की वह ताक़त नहीं है कि उस से डर कर मुसलमान ऐसी पार्टी को वोट दे जो बीजेपी को हरा सके. बीजेपी ज़्यादातर सीटों पर मुख्य मुकाबले में ही नहीं है. बहुजन समाज पार्टी के बारे में यह चर्चा पूरे राज्य में सुनने को मिल जाती है कि अगर सरकार बनाने में उसे कुछ सीटें कम पडीं तो वह बीजेपी के समर्थन से सरकार बना लेगी. शायद इसीलिये बहुत बड़ी संख्या में मुसलमानों को टिकट देने के बाद भी आम मुसलमान बहुजन समाज पार्टी को अपनी पहली प्राथमिकता नहीं मान रहा है. उत्तर प्रदेश में आज मुसलमानों के वोट को हासिल करने के लिए मुख्य रूप से मुकाबला कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच है . कांग्रेस की रणनीति मुसलमान को अपने साथ लेने की है . सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्रा आयोग आदि ऐसे कुछ कार्य हैं जिसके बल पर कांग्रेस अपने आपको मुस्लिम दोस्त के रूप में पेश कर रही है . पार्टी के महासचिव राहुल गांधी कई साल से मुसलमानों से संपर्क बनाए हुये हैं . हर उस ठिकाने पर जाते रहते हैं जिसक सम्बन्ध मुसलमानों से माना जाता है . चुनाव के ठीक अफ्ले ओबीसी मुसलमानों को साढ़े चार प्रतिशत की बात भी की जा चुकी है . लेकिन समाजवादी पार्टी अभी भी मुस्लिम वोटों की मुख्य दावेदार के रूप में पहचानी जा रही है. कम से कम समाजवादी पार्टी कोशिश तो यही कर रही है . समाजवादी पार्टी के सांसद और पार्टी के मुखिया के परिवार के सदस्य धर्मेन्द्र यादव ने अपनी पार्टी की बात विस्तार से की. जब उनसे पूछा गया कि उत्तर प्रदेश में मुसलमान कांग्रेस को छोड़कर उनकी पार्टी को क्यों वोट दे तो वे फ़ौरन शुरू हो गए. बताया कि राज्य में मुसलमानों को कांग्रेस को किसी कीमत पर वोट नहीं देना चाहिए . उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस हमेशा से मुसलमानों के हित के खिलाफ काम करती रही है . कांग्रेस ने मुसलमानों के भावनात्मक मुद्दों पर भी गैर ज़िम्मेदार काम किया है . उन्होंने बाबरी मस्जिद के हवाले से बताया कि कांग्रेस ने हमेशा ही मुस्लिम विरोधी रवैया अपनाया है . उनका आरोप है कांग्रेस ने बाबरी मस्जिद में १९४९ में मूर्ति रखवाई ,१९४७ में ताला खुलवाया, १९८९ में शिलान्यास करवाया और कांग्रेस नेता और प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने १९९२ में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में भूमिका निभाई. समाजवादी पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस ने मुसलमानों को सरकारी नौकरियों से बिकुल बेदखल कर दिया. कहते हैं कि १९४७ में सरकारी नौकरियों में राज्य में ३५ प्रतिशत मुसलमान थे जबकि कांग्रेस के राज में वह घट कर २ प्रतिशत रह गया. धर्मेन्द्र यादव का दावा है कि अगर उनकी पार्टी सरकार में आई तो वे मुसलमानों के हित में ठोस क़दम उठायेगें . उर्दू को तरक्की देगें और सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को मह्त्व दिया जाएगा.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनाव का संचालन कर रहे पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने समाजवादी पार्टी की बातों को बेबुनियाद बताया . उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को इतिहास को सही तरह से समझना चाहिए . उन्होंने कहा कि १९४९ में फैजाबाद के जिस कलेक्टर ने बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखवाई थी वह बाद में आर एस एस की राजनीतिक पार्टी जनसंघ की ओर से लोक सभा का सदस्य बना .उसने साज़िश की थी . उसकी साज़िश का नतीजा आजतक पूरा देश भोग़ रहा है.१९९२ में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए निश्चित रूप से प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने आर एस एस की साजिश को समझने में गलती की और बाबरी मस्जिद को तबाह करने की योजना में शामिल उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के उस हलफनामे पर विश्वास किया जो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था . बाद में कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट और इस देश की जनता के साथ विश्वासघात किया जिस के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा दी और कांग्रेस अब तक उस गलती की सज़ा भोग रही है . जहां तक १९४७ में ३५ प्रतिशत मुसलमानों का सरकारी नौकरी में होने का सवाल है , समाजवादी पार्टी को पता होना चाहिए कि १९४७ के बाद बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान पाकिस्तान चले गए थे. वहां जाने वालों में पढ़े लिखे मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा थी. दिग्विजय सिंह कहते हैं कि जबसे सोनिया गाँधी ने कांग्रेस का नेतृत्व सम्भाला है तब से मुसलमानों के लिए कांग्रेस ने बहुत कल्याणकारी योजनायें चलाईं . उन्होंने दावा किया कि सच्चर कमेटी ,रंगनाथ मिश्रा कमीशन , साढ़े चार प्रतिशत का आरक्षण कुछ ऐसी बातें हैं जिनके बाद मुसलमानों का भविष्य हर हाल में सुधरेगा. कांग्रेस ने मुसलमानों के कल्याण के लिए समर्पित अल्पसंख्यक मंत्रालय की स्थापना करके अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी है . दिग्विजय सिंह कहते हैं मुसलमानों के वोट के लिए कोशिश कर रहे मुलायम सिंह यादव को कुछ सवालों के जवाब देने होंगें . वे कहते हैं वास्तव में यह सवाल बार बार मुसलमानों की तरफ से पूछे जाने चाहिए . वे पूछते हैं कि कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद से सम्बंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन सज़ा दी थी, उस सज़ायाफ्ता कल्याण सिंह के लिए मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के आगरा अधिवेशन में जिंदाबाद के नारे लगाए थे.कल्याण सिंह के बेटे को अपने साथ मंत्री बनाया और उसी मंत्रिमंडल में उनके ख़ास दोस्त आज़म खां साहेब भी थे. २००९ के चुनावों में कल्याण सिंह को मुलायम सिंह यादव ने लोक सभा का सदस्य बनवाया और आज भी कल्याण सिंह लोक सभा में मुलायम सिंह की मदद की वजह से ही हैं . साक्षी महाराज बाबरी मस्जिद के विध्वंस अभियुक्त हैं . उनको राज्य सभा में मुलायम सिंह यादव ने ही भेजा था .दिग्विजय सिंह कहते हैं कि उन्होंने इस बात पर रिसर्च किया है कि मुलायम सिंह यादव ने कभी भी आर एस एस के खिलाफ बयान नहीं दिया है और मुलायम सिंह यादव २००३ में बीजेपी के साथ एक गुप्त समझौते के तहत मुख्यमंत्री बने थे. दिग्विजय सिंह के इन आरोपों को टाल पाना मुलायम सिंह यादव के लिए बहुत आसान नहीं होगा.
मुसलमानों के वोट की तीसरी दावेदार बहुजन समाज पार्टी है . वह पार्टी पिछले पांच साल से राज्य में सरकार चला रही है और उसे कोई वादा करने की ज़रुरत नहीं है . लोग उसके काम को साफ़ देख रहे हैं . जैसा कि आम तौर पर होता है हर सत्ताधारी पार्टी को चुनाव में मुश्किल पेश आती है लेकिन मायावती ने जिस बड़ी संख्या में मुसलमानों को टिकट दिया है उसकी रोशनी में कहा जा सकता है कि मुसलमानों की आबादी का एक हिस्सा बहुजन समाज पार्टी को भी वोट देगा. इस बात में दो राय नहीं है कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों की संख्या अहम भूमिका निभाने वाली है .आबादी के हिसाब से करीब १९ जिले ऐसे हैं जहां मुसलमानों की मर्जी के लोग ही चुने जायेगें . इन जिलों में करीब सवा सौ सीटें हैं . रामपुर ,मुरादाबाद,बिजनौर ,मुज़फ्फरनगर,सहारनपुर, बरेली,बलरामपुर,अमरोहा,मेरठ ,बहराइच और श्रावस्ती में मुसलमान तीस प्रतिशत से ज्यादा हैं . गाज़ियाबाद,लखनऊ , बदायूं, बुलंदशहर, खलीलाबाद पीलीभीत,आदि कुछ ऐसे जिले जहां कुल वोटरों का एक चौथाई संख्या मुसलमानों की है . ज़ाहिर है कि कोई भी पार्टी लखनऊ में सरकार बनाए वह सेकुलर सरकार ही होगी, लगता है कि उत्तर प्रदेश में मौजूदा चुनाव के नतीजे ऐसे होगें कि आने वाले वक़्त में यहाँ साम्प्रदायिक राजनीति कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. .