बेलगाम होतीं सडक़ दुर्घटनाएं हर दिन जिंदगियां छीन रही हैं। सडक़ों पर जिस तरह मौत का तांडव चल रहा है, वह यातायात व्यवस्था की कलई खोलने के लिए पर्याप्त है। जिस तरह सडक़ों पर यातायात नियमों का मखौल उड़ाया जाता है उससे इस स्थिति का भय तो हमेशा बना रहता है। इन सब के लिए लोगों का रवैया सबसे अधिक जिम्मेदार है।
सडक़ों पर जिस रफ्तार में वाहन दौड़ाए जाते हैं, मानो हर कोई किसी रेस में भाग ले रहा है। जागरूकता पैदा करने के तमाम उपाय, यातायात नियम व ट्रैफिक पुलिस इस प्रवृत्ति पर लगाम कसने में नाकाम है। सुरक्षित यात्रा के लिए समय-समय पर अदालतें भी दिशा-निर्देश देती रहती हैं, लेकिन जल्दबाजी की मनोवृत्ति हालात में सुधार ही नहीं होने देती।
इसमें यातायात पुलिस का ढीला-ढाला रवैया भी जिम्मेदार है। अकसर देखा जाता है कि ट्रैफिक व्यवस्था में लगे कर्मी सरेआम वाहन चालकों से अवैध वसूली करते हैं। विभिन्न मार्गो पर इन कर्मचारियों की मिलीभगत से अवैध रूप से वाहन चालक सवारियां ढो रहे हैं। यह बताने की जरूरत नहीं है कि बार-बार ऐसे मामले सामने आने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं होती।
चंडीगढ़ के पास सोमवार को हादसे में 24 श्रद्धालुओं की मौत के बाद सोमवार को भी देर रात महम के पास पिकअप के ट्रैक्टर ट्राली से टकरा जाने से चार साल के बच्चे व पांच महिलाओं की मौत हो गई। 18 श्रद्धालु घायल हो गए। ये हादसे भी वाहनों के तेज रफ्तार की वजह से हुए। दूसरी बात पिकअप में 24 लोग सवार थे, जो कि इसकी क्षमता से बहुत अधिक हैं।
अक्सर देखा जाता है कि वाहनों में क्षमता से अधिक लोग सवार होते हैं, खासकर अवैध रूप से सवारियां ढोने वाली ट्रैक्सियों में। लेकिन यातायात पुलिस की लापरवाही कहें या मिलीभगत इन वाहन चालकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
लोगों को सोचना चाहिए कि जल्दी पहुंचने से जरूरी है सुरक्षित पहुंचना। जब तक जन जागरूकता नहीं आएगी सडक़ों पर यूं खून बहना बंद न होगा। रफ्तार पर लगाम लगाकर यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करना हर वाहन चालक का दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है। वे सडक़ों को रेस का मैदान न बनाएं। यातायात पुलिस की भाषा में कहें तो सुरक्षित चलें और वाहन सुरक्षित चलाएं।
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Friday, June 26, 2009
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