Showing posts with label सकारत्मक पहल. Show all posts
Showing posts with label सकारत्मक पहल. Show all posts

Monday, September 27, 2010

कश्मीर में सकारत्मक पहल की ज़रुरत

शेष नारायण सिंह

जम्मू-कश्मीर में भारत के राजनीतिक इकबाल की बुलंदी की कोशिश शुरू हो गयी है .कश्मीर में जाकर वहां के लोगों से मिलने की भारतीय संसद सदस्यों की पहल का चौतरफा असर नज़र आने लगा है . सबसे बड़ा असर तो पाकिस्तान में ही दिख रहा है . पाकिस्तानी हुक्मरान को लगने लगा है कि अगर कश्मीरी अवाम के घरों में घुस कर भारत की जनता उनको गले लगाने की कोशिश शुरू कर देगी तो पाकिस्तान की उस बोगी का क्या होगा जिसमें कश्मीरियों को मुख्य धारा से अलग रखने के लिए तरह तरह की कोशिशें की जाती हैं .पाकिस्तान की घबडाहट का ही नतीजा है कि उनकी संसद में भी भारत की पहल के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया और अमरीका की यात्रा पर गए उनके विदेश मंत्री अमरीकियों से गिडगिडाते नज़र आये कि अमरीका किसी तरह से कश्मीर मामले में हस्तक्षेप कर दे जिससे वे अपने मुल्क वापस जा कर शेखी बघार सकें कि अमरीका अब उनके साथ है . . जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर गए सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल को आम कश्मीरी से मिलने का मौक़ा तो नहीं लगा लेकिन हज़रत बल और अस्पताल में वे कुछ ऐसे लोगों से मिले जिन्हें उमर अब्दुल्ला की सरकार पकड़ कर नहीं लाई थी . यह अलग बात है कि कुछ दकियानूसी प्रवृत्ति के लोगों ने इस प्रतिनधिमंडल को कांग्रेसी पहल मानकर इसमें खामियां तलाशने की कोशिश की लेकिन लगता है उन लोगों को भी यह अहसास हो गया कि वे गलती कर रहे थे क्योंकि यह प्रतिनधिमंडल पूरे भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति को व्यक्त करता था. जो लोग खासकर प्रतिधिमंडल के सामने प्रायोजित तरीके से लाये गए थे उनसे कोई बात नहीं निकल कर सामने आई क्योंकि सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल में केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला बैठे रहते थे . प्रतिनधिमंडल के एक सदस्य मोहन सिंह ने बताया कि लगता था कि जो लोग पेश किये जा रहे थे उन्हें सब सिखा पढ़ाकर लाया गया था और फारूक अब्दुल्ला उन लोगों पर नज़र रख रहे थे जो उनके बेटे के खिलाफ कुछ भी बोलते थे. इसलिए इस बैठक में सही बात सामने नहीं आ सकी. लेकिन कुछ बातें साफ़ हो गयीं . सबसे बड़ी बात तो यही कि कांग्रेस और केंद्र सरकार की यह जिद कि जब तक हालात सामान्य नहीं होते बात चीत नहीं होगी, को तोड़ दिया गया. सभी पार्टियों के नेताओं को पहली बार पता लगा कि कश्मीर में भारत के प्रति नाराज़गी का स्तर क्या है . अब पूरी राजनीतिक बिरादरी को मालूम है कि नाराज़गी बहुत गहरी है और अब उसका राजनीतिक स्तर पर हल तलाशा जायेगा. सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल के सदस्य सीताराम येचुरी ने बताया कि वहां जाने पर पता चला कि भारत के प्रति कितनी नाराज़गी है . आज़ादी की बात अस्पतालों में भर्ती होने के बावजूद भी लोग करते हैं . सच्चाई यह है केंद्र और राज्य सरकारों ने वहां की स्थिति की सही जानकारी नहीं रखी है . जितनी नज़र आती है स्थिति उस से बहुत ज्यादा खराब है . सर्वदलीय प्रतिनधिमंडल में शामिल लोगों को कश्मीरियों ने बताया कि उनकी ज़िंदगी बिलकुल बर्बाद हो गयी है . घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है .
ऐसी हालत में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से बहुत उम्मीदें हैं .राजनीतिक आकलन के बाद सरकार ने फ़ौरन पहल की है लेकिन ध्यान रखना होगा कि वहां की मौजूदा सरकार की विश्वसनीयता पूरी तरह से ख़त्म हो चुकी है .इसलिए सरकार जो भी पहल करेगी उसे सही तरीके से लागू करने के लिए उमर अब्दुल्ला की सरकार के अलावा कोई और तरीका सोचना पडेगा. अभी जो पैकेज घोषित किया गया है ,वह एक अच्छी शुरुआत है लेकिन कहीं वह उमर सरकार की नाकामी और लालची नेताओं की बलि न चढ़ जाए .सरकार ने घोषणा की है कि ११ जून से शुरू हुए विरोध में मरने वालों के परिवारों में से हर एक परिवार को पांच पांच लाख रूपया दिया जाएगा . जिन लड़कों पर केवल पत्थर फेंकने के आरोप हैं और अन्य कोई संगीन मामला नहीं है ,उन्हें केंद्र सरकार की सिफारिश पर रिहा किया जाएगा. . राजनीतिक पार्टियों,छात्रों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बातचीत करने के लिए कुछ लोगों की कमेटी बनायी जायेगी जो संवाद का माहौल तैयार करेगी. शिक्षा संस्थाओं को ठीक करने के लिए एक सौ करोड़ रूपये की फौरी सहायता दी जायेगी . राज्य के स्कूलों को जल्दी खोलने के लिए राज्य सरकार पर दबाव डाला जाएगा .पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत पकडे गए लोगों के मामलों की जांच की जायेगी और राज्य में बुनियादी ढाँचे को दुरुस्त करने के लिए एक टास्क फ़ोर्स के गठन की भी बात है. उम्मीद की जानी चाहिए कि अब कश्मीर में महाल बदलेगा और हालात में कुछ सुधार होगा.