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Sunday, July 26, 2009

आडवाणी की हिमाक़त

भारतीय जनता पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री पद की उम्मीद में बैठे लाल कृष्ण आडवाणी ने वरुण गांधी की तुलना जय प्रकाश नारायण से की है उनके इस बयान पर उन लोगों ने काफी नाराजगी जाहिर की है जिन्होंने इमरजेंसी के उन्नीस महीनों में उस वक्त की कांग्रेसी हुकूमत के हाथों भयानक तकलीफें उठाई हैं।

आडवाणी के इस बयान के बाद उन बातों पर फिर यकीन होने लगा है जिनमें बताया जाता है कि भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के सपने सजाने वाले व्यक्ति की याददाश्त में कुछ दिक्कतें पेश आने लगी हैं। क्योंकि संजय गांधी के बेटे को संपूर्ण क्रांति के नायक जय प्रकाश नारायण के बराबर खड़ा करने वाले व्यक्ति की समझदारी पर सवाल उठना लाजमी है।

लाल कृष्ण आडवाणी ने वरुण गांधी की गिरफ्तारी पर दिए गए अपने बयान में कहा कि इस गिरफ्तारी से उनको इमरजेंसी की याद आ गई। वे शायद यह भूल गए या जान बूझकर भूल गए कि इमरजेंसी के सबसे बड़े खलनायक इन्ही वरुण गांधी के पिता स्व. संजय गांधी ही थे। उस वक्त की राजनीति को समझने वाला कोई भी व्यक्ति बता देगा कि इमरजेंसी के सारे अत्याचार संजय गांधी ने ही करवाएथे दिल्ली के तुर्कमान गेट पर जो गोलियां चली थीं, उसका आदेश संजय गांधी के ही चहेते पुलिस अफसर भिंडर ने दिया था और तुर्कमान गेट इलाके में जो लाखों लोग बेघर हुए थे वह भी संजय गांधी की राजनीति का ही नतीजा था।

उस वक्त के डीडीए के सेर्वसर्वा जगमोहन ने अपनी निगरानी में तुर्कमान गेट पर तबाही मचाई थी। उस अभियान में लाखों लोगों के घर तबाह हो गए थे और इनके घर ढहाए गए थे, उनमें से ज्यादातर मुसलमान थे। संजय गांधी के ही इशारों पर ही पूरे हिंदुस्तान में नसबंदी का जगरदस्त अभियान चलाया गया था। उत्तर प्रदेश के कुछ मुस्लिम बुहत इलाकों में संजय गांधी का आतंक आज तक लोग नहीं भूले हैं। यह भी इत्तफाक ही है कि इमरजेंसी के सबसे खुंखार व्यक्ति का परिवार आज भाजपा में है।

संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने इमरजेंसी में मनमानेपन की कई मिसाले कायम की थीं। दिल्ली में संजय गांधी के आतंक को अमली जामा देने का काम उस वक्त के डीडीए के उपाध्यक्ष जगमोहन ने किया था। आज कल वह भी भाजपा की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इमरजेंसी और उसके बाद के समकालीन इतिहास के जानकार यह भी बता सकेंगे कि इमरजेंसी खत्म होने के बाद जब जनता पार्टी का राज आया तो आर.एस.एस. के नेता लोग संजय गांधी को अपनाने की फिराक में थे जब 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार दूबारा बनी तो कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति शुरू की थी।

जानकार मानते है कि यह काम भी आरएसएस की प्ररेणा से ही शुरू हुआ था। गरज़ यह है कि अपने आखरी दिनों में संजय गांधी का आरएसएस की तरफ झुकाव बिल्कुल साफ हो गया था। एक दुर्भाग्य पूर्ण दुर्घटना में संजय गांधी को मृत्यु हो गई। बहरहाल उनके बाद उनकी पत्नी और बेटे ने आक्रमण हिंदुत्व का झंडा बुलंद कर रखा है। इस तर्क से इतना तो साफ है। कि आडवाणी और नागपुर में बैठे हुए उनके नेताओं को संजय गांधी के परिवार में बहुत अच्छाइयां दिखती है।

लेकिन जब संपूर्ण क्रांति के नायक जय प्रकारश नारायण से वरुण गांधी जैसे खूंखार हिंदुवादी नेता की तुलना की जाती है तो इमरजेंसी में मुसीबतें झेल चुके लोगों को लगता है कि कोई घाव पर नमक मल रहा है प्रधानमंत्री पद का सपना संजो कर बैठे व्यक्ति को देश के नागरिक एक बड़े वर्ग के पुराने घावों पर नमक नहीं मलना चाहिए।