मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने केरल के मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन को पोलिट ब्यूरो से निकाल दिया है। उन्हें पार्टी के राज्य सचिव पिनयारी विजयन के विरोध के कारण जाना पड़ा। जबसे विजयन के ऊपर भ्रष्टाचार का मामला चला अच्युतानंदन के लिए बहुत मुश्किल पेश आ रही थी। वी एस अच्युतानंदन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं।
1964 में उस वक्त की भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दो टुकड़े हो गए थे। कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारिक नेतृत्व का विश्वास था कि देश उस वक्त नैशनल डेमाक्रेटिक रिवोल्यूशन के दौर से गुजर रहा है और उस वक्त की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी साम्राज्यवाद से मोर्चा ले रही है, इसलिए कांग्रेस की थोड़ी बहुत आलोचना करके उसका सहयोग किया जाना चाहिए। इसके विपरीत पार्टी के एक बड़े वर्ग का मत इससे अलग था। दूसरे वर्ग की समझ थी कि देश उस वक्त पीपुल्स डेमाक्रेटिक रिवोल्यूशन के दौर से गुजर रहा था। उस वक्त की सरकार का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी कर रही थी।
कांग्रेस एक बुर्जुवा जमींदार वर्ग की पार्टी थी। सरकार के असली मालिक एकाधिकार पूंजीपति थे और कांग्रेस सरकार का नियंत्रण साम्राज्यवादी ताकतों के हाथ में था। इसलिए कांग्रेस के साथ किसी तरह का सहयोग नहीं किया जाना चाहिए। उसे वर्ग शत्रु की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए। तत्कालीन कम्युनिस्ट पार्टी की नेशनल कौंसिल के नेता विचाराधारा के इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बंटे हुए थे। 1964 में नेशनल कौंसिल की जिस बैठक में इस विषय पर बहस चल रही थी, उसमें देश के लगभग सभी बड़े वामपंथी नेता थे।
जब बातचीत के रास्ते एकमत से फैसला नहीं हो सका तो अधिकारिक लाइन के विरोध में 32 सदस्यों ने नेशनल कौंसिल की बैठक से वाक आउट किया। जो सदस्य वाक आउट करके बाहर आए वे एक नई पार्टी के संस्थापक बने और उस पार्टी का नाम रखा गया, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतागण तो कांग्रेस के सहयोगी हो गए क्योंकि वे कांग्रेस के माध्यम से साम्राज्यवाद से लडऩा चाहते थे। दूसरी तरफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के खिलाफ सरकार की सारी ताकत झोंक दी गई।
सभी बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया, उनके ऊपर देशद्रोही होने तक के आरोप लगाए गए लेकिन वे 32 कम्युनिस्ट नेता अपने निश्चय पर डटे रहे। उन नेताओं में प्रमुख थे ए.के. गोपालन, ज्योति बसु, हरिकिशन सिंह सुरजीत, प्रमोद दासगुप्ता, ई एम एस, नंबू दिरीपाद, बीटी रणदिवे, पी. सुंदरैया, एम बासवपुनैया, वी एस अच्युतानंदन आदि। आंध्र प्रदेश के तेनाली में पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन करके एक पार्टी की कांग्रेस का अधिवेशन बुलाया गया। सीपीएम का इसी अधिवेशन में जन्म हुआ और अप्रैल में नैशनल कौंसिल से वाक आउट करने वाले वे 32 नेता माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माने गए।
उन संस्थापकों में दो को छोड़कर लगभग सभी की मृत्यु हो चुकी है। ज्योति बसु और वी एस अच्युतानंदन जीवित हैं। उन्हीं वी एस अच्युतानंदन को दिल्ली में 12 जुलाई को खत्म हुई सीपीएम की केंद्रीय कमेटी ने पोलिट ब्यूरो से निकाल दिया। उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में काम करने से नहीं रोका जाएगा उन पर आरोप है कि उन्होंने पार्टी का अनुशासन तोड़ा है। क्योंकि उन्होंने पार्टी के राज्य सचिव पिनरायी विजयन के एसएनसी-लावलिन भ्रष्टाचार मामले में उनका बचाव नहीं किया। पिनरायी विजयन पर सीबीआई आरोप है कि 1996-98 के दौरान जब वे राज्य के बिजली मंत्री थे तो उन्होंने बिजली घरों की मरम्मत के मामले में ठेकेदार कंपनी से रिश्वत लिया था।
इसी मामले में सीबीआई उन पर मुकदमा चला रही है। सीपीएम की केंद्रीय कमेटी विजयन पर चलाए जा रहे भ्रष्टाचार के मामले को राजनीतिक मानती है। उसका कहना है कि इसका राजनीतिक रूप से मुकाबला किया जाना चाहिए। पिनरायी विजयन के इस कथित भ्रष्टï आचरण के बारे में वी एस अच्युतानंदन का कहना था कि सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले व्यक्ति को ईमानदार होना चाहिए और लोगों को लगे भी कि वह ईमानदार है। पिनरायी विजयन के प्रति इस रवैय्ये के चलते अच्युतानंदन को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इस फैसले के बाद केरल में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त गुस्सा फूट पड़ा, जगह-जगह विजयन के पुतले जलाए गए, पार्टी के सर्वोच्च अधिकारी प्रकाश करात के खिलाफ नारे लगाए गए और अन्य तरीकों से वामपंथी कार्यकर्ताओं ने अपने गम और गुस्से का इज़हार किया। पिनरायी विजयन के गांव में भी बहुत बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता जुटे और केंद्रीय नेतृत्व को फजीहत किया। बाद में विजयन के खिलाफ जुलूस निकाला। वी एस अच्युतानंदन के खिलाफ हुई माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की कार्रवाई से केरल ही नहीं पूरे देश का मध्य वर्ग हतप्रभ है। उसे लगता है कि एक ईमानदार आदमी को उसकी ईमानदारी की सजा दी गई है।
जिन्हें पता है वे जानते हैं कि केरल के मुख्यमंत्री देश के सबसे ईमानदार मुख्य मंत्रियों में से एक हैं, फिर भी उन्हें भ्रष्टाचार के एक अभियुक्त के खिलाफ पोजीशन लेने के लिए दंडित होना पड़ा। कुछ वामपंथी बुद्घिजीवियों का कहना है कि केरल के मुख्यमंत्री के खिलाफ की गई सीपीएम की कार्रवाई लगभग उसी तर्ज पर है जिसमें लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निकाल दिया था। पार्टी के आला अफसर ने तो केरल के मामले में भी पोलिट ब्यूरो और मुख्यमंत्री पद दोनों से वीएस अच्युतानंदन को हटाने का सुझाव दिया था लेकिन बड़ी संख्या में केंद्रीय कमेटी सदस्यों ने उनका विरोध किया और उन्हें मानना पड़ा।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में जारी उथल पुथल के लिए आमतौर पर वर्तमान महासचिव प्रकाश करात को जिम्मेदार माना जा रहा है। जानकार बताते हैं कि सीपीएम का इस बार जैसा कमजोर चुनावी प्रदर्शन कभी नहीं रहा। 1964 में कांग्रेस सरकार ने पार्टी के सभी बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया था लेकिन जब 1965 में केरल में चुनाव हुए तो सीपीएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई क्योंकि पार्टी के शीर्ष नेताओं की विश्वसनीयता पर कभी सवाल नहीं उठा था। मौजूदा नेतृत्व के कार्यभार संभालने के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी की ताकत आधे से भी कम हो गई है।
केरल में तो बुरी तरह से हार चुके हैं, बंगाल में भी प्रणब मुखर्जी, ममता बनर्जी की टीम कम्युनिस्ट राज अंत करने की मंसूबाबंदी कर चुकी है। इस सबके पीछे नेतृत्व की हठधर्मिता कहीं न कहीं जरूर है वरना एक समय था जब कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मध्य वर्ग के एक बड़े तबके के हीरो हुआ करते थे। सोमनाथ चटर्जी को अपमानित करके बंगाली मध्य वर्ग को पार्टी ने जबरदस्त चोट दी थी, नतीजा लोकसभा चुनावों में हार के रूप में सामने आया। अब केरल के सबसे आदरणीय दलित नेता को अपमानित करके माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बड़ा खतरा लिया है। वक्त ही बताएगा कि पार्टी के मौजूदा महासचिव, पार्टी को कहां तक ले जाते हैं।
Showing posts with label मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी. Show all posts
Showing posts with label मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी. Show all posts
Thursday, July 30, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)