प्रकाश रे
( विस्फोट.कॉम से सादर नक़ल किया गया )
पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ को वहां की सरकारें किस कदर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं इसका ताजा उदाहरण वह फरमान है जिसमें संघीय सरकार ने राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे ऐसी व्यवस्था करें कि राज्यों में कोई केबल टीवी वाला हिन्दू पौराणिक चरित्रों पर बनी फिल्में, एनीमेशन इत्यादि का प्रदर्शन न कर सकें. साथ ही ऐसे सीडी और डीवीडी की बिक्री पर भी पाबंदी लगाने की कोशिश की जा रही है.
पाकिस्तान अपने इतिहास के सबसे अधिक संकट के दौर से गुज़र रहा है. आतंकवाद, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक असफलता और प्राकृतिक आपदाओं ने पाकिस्तानी जनता का जीना मुश्किल कर दिया है. लेकिन वहाँ की संघीय सरकार और राज्य सरकारें इन समस्याओं से निपटने के लिये कोई गंभीर कोशिश नहीं कर रही हैं. दरअसल, ये सरकारें इन मुश्किलों से जनता का ध्यान हटाने के लिये बेमतलब के पैंतरे दिखा रही हैं. कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों और आतंकवादी गिरोहों से पाकिस्तानी सरकारों, राजनीतिक दलों, अदालतों, अखबारों, सेना, पुलिस और गुप्तचर संस्थाओं की मिलीभगत का लंबा इतिहास रहा है. इस्लाम और भारत-विरोध का झांसा दे कर वहाँ की जनता को लगातार लूटा गया है. इस वज़ह से एक ओर जहाँ पाकिस्तान की आम जनता एक त्रासद जीवन जीने को अभिशप्त है, वहीं दूसरी तरफ दक्षिण एशिया आतंकवाद और गृह-युद्धों की आग में जल रही है. ऐसे समय में जब पाकिस्तान भयानक बाढ़ की चपेट में है, वहाँ सांप्रदायिक राजनीति अपनी रोटी सेंकने में लगी हुई है. कभी अहमदिया संप्रदाय तो कभी शियाओं को बम और बंदूकों का निशाना बनाया जा रहा है. कभी ईसाईयों को पीटा जा रहा है तो कभी हिन्दुओं को उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है.
इस कड़ी में अब हिन्दूओं के पौराणिक कार्यक्रमों के प्रसारण और उनकी वीडिओ सीडी-डीवीडी बेचने या केबल पर दिखाने पर रोक लगाने की क़वायद की जा रही है. सिंध सरकार ने एक अंतरिम आदेश देकर पिछले ही महीने इस तरह के चैनलों पर रोक लगा दी है और केबल वालों को ऐसे कार्यक्रमों की डीवीडी या वीसीडी दिखाने की मनाही कर दी है. पाकिस्तान के पंजाब की प्रांतीय सरकार ने एक समिति का गठन किया है जो हिन्दू पौराणिक कथाओं पर आधारित कार्यक्रमों के तथाकथित दुष्परिणामों के कारण उन पर प्रतिबन्ध लगाने की सिफ़ारिश सरकार से करेगी. दिलचस्प बात यह है कि समिति के सदस्य अध्ययन से पहले ही अपने निष्कर्षों पर पहुँच चुके हैं कि ऐसे कार्यक्रम इस्लाम-विरुद्ध हैं और इनसे बच्चों पर ग़लत प्रभाव पड़ रहा है. पंजाब में सत्तारूढ़ नवाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग की सरकार के प्रवक्ता और पाकिस्तान सीनेट के सदस्य परवेज़ राशीद इस समिति के प्रमुख हैं. इसके अन्य मुख्य सदस्य फ़राह दीबा और ख़्वाजा इमरान नज़ीर हैं. फ़राह दीबा पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की सांकृतिक इकाई की अध्यक्ष और पंजाब असेम्बली की सदस्य हैं. इमरान नज़ीर भी असेम्बली के सदस्य हैं. समिति के बाकी सदस्य सम्बद्ध मंत्रालयों-विभागों के अफ़सर हैं. इस समिति में कोई भी सदस्य कला, साहित्य या संस्कृति के क्षेत्र से नहीं है. इसमें ऐसे भी किसी व्यक्ति को नहीं लिया गया है जो प्रसारण माध्यमों, मीडिया या सिनेमा के समाज पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन से जुड़ा हो.
फ़राह दीबा पाकिस्तानी मीडिया में दिए अपने बयानों में कहा है कि जिन कार्टूनों में हनुमान जैसे मिथकीय चरित्रों का गौरवगान किया जाता है उनसे बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है. वह कहती हैं कि ऐसे कार्टून इस्लामी स्थापनाओं के अनुरूप नहीं हैं और इन्हें देख कर बच्चे भ्रमित हो जाते हैं. इन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए. हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में आखिरी फ़ैसला पाकिस्तान सरकार के अधीन काम कर रही इलेक्ट्रौनिक मीडिया पर नज़र रखने वाली संस्था के हाथ में है. पाकिस्तान के जानकारों का मानना है कि पाकिस्तानी सरकार को पंजाब सरकार की सिफारिशों को मानने में कोई दिक्क़त नहीं होगी. ज़रदारी की पीपुल्स पार्टी और नवाज़ शरीफ की मुस्लिम लीग में कट्टरपंथियों को तुष्ट करने की होड़ लगी हुई है. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में पहले से ही भारतीय चैनलों के प्रसारण पर पाबंदी है. लेकिन उनकी भारी लोकप्रियता के चलते केबल वाले चोरी-छुपे सीरियल दिखाते हैं. हिन्दी फ़िल्मों की तरह भारतीय टेलीविजन के कार्यक्रमों की वीसीडी और डीवीडी की ज़बरदस्त बिक्री होती है और उनका केबलों पर पुनर्प्रसारण होता है.
हिन्दू पौराणिक कार्टूनों को प्रतिबंधित करने की पंजाब सरकार की इस ताज़ा पहल का अच्छा-ख़ासा विरोध हुआ है. पाकिस्तान की जानी-मानी कलाकार और लाहौर के प्रतिष्ठित नेशनल आर्ट्स कॉलेज की पूर्व प्राचार्य सलीमा हाशमी कहती हैं कि सरकार आतंकवाद के कारणों की पड़ताल के लिये समिति क्यों नहीं बनती. सरकार यह जानने के लिये समिति क्यों नहीं बनाती कि बच्चे आत्मघाती हमलावरों में कैसे तब्दील कर दिए जाते हैं. हाशमी ने तो यहाँ तक कह दिया कि भारत में पाकिस्तान से अधिक मुसलमान रहते हैं. जब भारतीय मुसलमानों के बच्चों पर हिन्दू पौराणिक चरित्रों का तथाकथित कुप्रभाव नहीं पड़ा तो फिर पाकिस्तानी बच्चे कैसे कुप्रभावित हो जायेंगे. उन्होंने सरकार को सलाह दी है कि बेकार की बातों में समय बरबाद करने से बेहतर है कि लोगों की समस्याओं पर ध्यान दिया जाये.
पाकिस्तानी टीवी के बड़े नामों में से एक शानाज़ रम्ज़ी के अनुसार ये पौराणिक चरित्र और कहानियां हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं और उन्हें देखने से किसी मुसलमान का ईमान नहीं बदलेगा. उनके अफ़सोस जताया है कि पाकिस्तान एक असहिष्णु समाज बन गया है जहाँ अलग-अलग विचारों और समझदारियों के लिये जगह नहीं बची है. बड़ी संख्या में आम पाकिस्तानियों ने इन्टरनेट पर और अखबारों में पत्र लिख कर सरकारी रवैये का विरोध किया है. वहाँ के कुछ अखबारों ने भी लेखों और रिपोर्टों के द्वारा इस समिति के सामने सवाल उठाया है.
पाकिस्तान में लगभग दो करोड़ तिहत्तर लाख हिन्दू रहते हैं. इस फैसले से उनके ऊपर सीधा असर होगा. पाकिस्तान हिन्दू परिषद् के पूर्व महासचिव और सलाहकार परिषद् के सदस्य हरि मोटवाणी ने दुःख व्यक्त किया है कि पाकिस्तान की सरकारें और प्रशासन ऐसे फैसले लेने से पहले व्यापक सोच-विचार करें और यह ध्यान रखें कि इन पौराणिक चरित्रों से हिन्दू धर्म को अलग रख के नहीं देखा जा सकता. उनके अनुसार ऐसी पहलों से अल्पसंख्यकों में व्याप्त असुरक्षा की भावना बढ़ती है. लेकिन ऐसा नहीं माना जाना चाहिए कि पाकिस्तान में उम्मीद की कोई किरण नहीं बची है. दो बच्चियों के पिता लाहौर निवासी शाहिद अशरफ़ कहते हैं: 'मैं ऐसा पिता बनना चाहता हूँ जो अपने बच्चों को हर जानकारी उपलब्ध करा दे और उन्हें यह समझदारी और आज़ादी दे कि वे अपनी बेहतरी की दिशा ख़ुद तय करें'
Showing posts with label महाभारत. Show all posts
Showing posts with label महाभारत. Show all posts
Thursday, September 9, 2010
Tuesday, May 11, 2010
यह महारथी हार मानने वाले नहीं हैं
शेष नारायण सिंह
वेब मीडिया ने वर्तमान समाज में क्रान्ति की दस्तक दे दी है .और उसका नेतृत्व कर रहे हैं आधुनिक युग के कुछ अभिमन्यु .मीडिया के महाभारत में वेब पत्रकारिता के यह अभिमन्यु शहीद नहीं होंगें .हालांकि मूल महाभारत युद्ध में शासक वर्गों ने अभिमन्यु को घेर कर मारा था लेकिन मौजूदा समय में सूचना की क्रान्ति के युग का महाभारत चल रहा है .. जनपक्षधरता के इस यज्ञ में आज के यह वेब पत्रकार अभिमन्यु अपने काम के माहिर हैं और यह शासक वर्गों की १८ अक्षौहिणी सेनाओं का मुकाबला पूरे होशो हवास में कर रहे हैं . कल्पना कीजिये कि अगर भड़ास जैसे कुछ पोर्टल न होते तो निरुपमा पाठक के प्रेमी को परंपरागत मीडिया कातिल साबित कर देता और राडिया के दलाली कथा के सभी खलनायक मस्ती में रहते और सरकारी समारोहों में मुख्य अतिथि बनते रहते और पद्मश्री आदि से सम्मानित होते रहते..लेकिन इन बहादुर वेब पत्रकारों ने टी वी, प्रिंट और रेडियो की पत्रकारिता के संस्थानों को मजबूर कर दिया कि वे सच्चाई को जनता के सामने लाने के इनके प्रयास में इनके पीछे चलें और लीपापोती की पत्रकारिता से बचने की कोशिश करें .. महाभारत के काल का अभिमन्यु तो गर्भ में था और सत्ता के चक्रव्यूह को भेदने की कला सीख गया था लेकिन हमारे वाले अभिमन्यु वैसे सादा दिल नहीं है . आज का हर अभिमन्यु, शासक वर्गों के खेल को अच्छी तरह समझता है क्योंकि इसने उनके ही चैनलों या अखबारों में घुस कर उनके तमाशे को देखा भी है और सीखा भी है . शायद यही कारण है कि पत्रकारिता की किताबों में लिखी गयी आम आदमी की पक्ष धरता की पत्रकारिता अपने वातविक रूप में जनता के सामने है .
वास्तव में हम जिस दौर में रह रहे हैं वह पत्रकारिता के जनवादीकरण का युग है . इस जनवादीकरण को मूर्त रूप देने में सबसे बड़ा योगदान तो सूचना क्रान्ति का है क्योंकि अगर सूचना की क्रान्ति न हुई होती तो चाह कर भी कम खर्च में सच्चाई को आम आदमी तक न पंहुचाया जा सकता. और जो दूसरी बात हुई है वह यह कि अखबारों और टी वी चैनलों में मौजूद सेठ के कंट्रोल से आज़ाद हो कर काम करने वाले इन नौजवानों की राजनीतिक और सामाजिक समझदारी बिकुल खरी है . इन्हें किसी कर डर नहीं है , यह सच को डंके की चोट पर सच कहने की तमीज रखते हैं और इनमें हिम्मत भी है ..कहने का मतलब यह नहीं है कि अखबारों में और टी वी चैनलों में ऐसे लोग नहीं है जो सच्चाई को समझते नहीं हैं लेकिन उनमें बहुत सारे ऐसे हैं जो मोटी तनखाह के लालच में उसी गाव में रहने को मजबूर हैं . ज़ाहिर है इस मजबूरी की कीमत वे बेचारे हाँजी हाँजी कह कर दे रहे हैं . हमें उसने सहानुभूति है . हम उनके खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते हम जानते हैं कि हर इंसान की अपनी अलग अलग मजबूरियाँ होती हैं . लेकिन हम उन्हें सलाम भी नहीं करेंगें क्योंकि हमारे सलाम के हक़दार वेब के वे बहादुर पत्रकार हैं जो सच हर कीमत पर कह रहे हैं .इस देश में बूढों का एक वर्ग भी है जो अपनी पूरी जवानी में लतियाए गए हैं लेकिन उन्होंने उस लतियाए जाने को कभी अपनी नियति नहीं माना . वे खुद तो कुछ नहीं कर सके लेकिन जब किसी ने सच्चाई कहने की हिम्मत दिखाई तो उसके सामने सिर ज़रूर झुकाया . इन पंक्तियों का लेखक उसी श्रेणी का मजबूर इंसान है .
हालांकि उम्मीद नहीं थी कि अपने जीवन में सच को इस बुलंदी के साथ कह सकने वालों के दर्शन हो पायेगा जो कबीर साहेब की तरह अपनी बात को कहते हैं और किसी की परवाह नहीं करते लेकिन खुशी है कि इन लोगों को देखा जा रहा है .. आज सूचना किसी साहूकार की मुहताज नहीं है . मीडिया के यह जनपक्षधर उसे आज वेब पत्रकारिता के ज़रिये सार्वजनिक डोमेन में डाल दे रहे हैं और बात दूर तलक जा रही है . राडिया ने जिस तरह का जाल फैला रखा है वह हमारे राजनीतिक सामाजिक जीवन में घुन की तरह घुस चुका है . और अभी तो यह एक मामला है . ऐसे पता नहीं कितने मामले हैं जो दिल्ली के गलियारों में घूम रहे होंगें . जिस तरह से राडिया ने पूरी राजनीतिक बिरादरी को अपने लपेट में ले लिया वह कोई मामूली बात नहीं है . इस से बहुत ही कमज़ोर एक घोटाला हुआ था जिसे जैन हवाला काण्ड के नाम से जाना जाता है . उसमें सभी पार्टियों के नेता बे-ईमानी करते पकडे गए थे लेकिन कम्युनिस्ट उसमें नहीं थे . इस बार कम्युनिस्ट भी नहीं बचे हैं . . यानी जनता के हक को छीनने की जो पूंजीवादी कोशिशें चल रही हैं उसमें पूंजीवादी राजनीतिक दल तो शामिल हैं ही, कम्युनिस्ट भी रंगे हाथों पकडे गए हैं . सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा. जिस तरह से जैन हवाला काण्ड दफन हो गया था क्या उसी तरह सब कुछ इस बार भी दफ़न कर दिया जाएगा. अगर वेब पत्रकारिता का युग न होता और मीडिया का जनवादीकरण न हो रहा होता तो ऐसा संभव हो सकता था. .. आज दुनिया राडिया के खेल की एक एक चाल को इस लिए जानती है कि वेब ने हर वह चीज़ सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया है जो खबर की परिभाषा में आता है . और अजीब बात यह है कि मामूली सी बात पर लड़ाई पर आमादा हो जाने वाली, बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे लोग सन्न पड़े हैं . इंदौर से निकल कर पत्रकारिता के मानदंड स्थापित करने वाले अखबार के मालिक दलाली की फाँस में ऐसे पड़े हैं कि कहीं कुछ सूझ नहीं रहा है . इसलिए सभ्य समाज को चाहिए कि वर्तमान मीडिया के सबसे क्रांतिकारी स्वरुप, वेब को ही सही सूचना का वाहक मानें और दलाली को प्रश्रय देने वाले समाचार चैनलों को उनके औकात बताने के सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करें ..
वेब मीडिया ने वर्तमान समाज में क्रान्ति की दस्तक दे दी है .और उसका नेतृत्व कर रहे हैं आधुनिक युग के कुछ अभिमन्यु .मीडिया के महाभारत में वेब पत्रकारिता के यह अभिमन्यु शहीद नहीं होंगें .हालांकि मूल महाभारत युद्ध में शासक वर्गों ने अभिमन्यु को घेर कर मारा था लेकिन मौजूदा समय में सूचना की क्रान्ति के युग का महाभारत चल रहा है .. जनपक्षधरता के इस यज्ञ में आज के यह वेब पत्रकार अभिमन्यु अपने काम के माहिर हैं और यह शासक वर्गों की १८ अक्षौहिणी सेनाओं का मुकाबला पूरे होशो हवास में कर रहे हैं . कल्पना कीजिये कि अगर भड़ास जैसे कुछ पोर्टल न होते तो निरुपमा पाठक के प्रेमी को परंपरागत मीडिया कातिल साबित कर देता और राडिया के दलाली कथा के सभी खलनायक मस्ती में रहते और सरकारी समारोहों में मुख्य अतिथि बनते रहते और पद्मश्री आदि से सम्मानित होते रहते..लेकिन इन बहादुर वेब पत्रकारों ने टी वी, प्रिंट और रेडियो की पत्रकारिता के संस्थानों को मजबूर कर दिया कि वे सच्चाई को जनता के सामने लाने के इनके प्रयास में इनके पीछे चलें और लीपापोती की पत्रकारिता से बचने की कोशिश करें .. महाभारत के काल का अभिमन्यु तो गर्भ में था और सत्ता के चक्रव्यूह को भेदने की कला सीख गया था लेकिन हमारे वाले अभिमन्यु वैसे सादा दिल नहीं है . आज का हर अभिमन्यु, शासक वर्गों के खेल को अच्छी तरह समझता है क्योंकि इसने उनके ही चैनलों या अखबारों में घुस कर उनके तमाशे को देखा भी है और सीखा भी है . शायद यही कारण है कि पत्रकारिता की किताबों में लिखी गयी आम आदमी की पक्ष धरता की पत्रकारिता अपने वातविक रूप में जनता के सामने है .
वास्तव में हम जिस दौर में रह रहे हैं वह पत्रकारिता के जनवादीकरण का युग है . इस जनवादीकरण को मूर्त रूप देने में सबसे बड़ा योगदान तो सूचना क्रान्ति का है क्योंकि अगर सूचना की क्रान्ति न हुई होती तो चाह कर भी कम खर्च में सच्चाई को आम आदमी तक न पंहुचाया जा सकता. और जो दूसरी बात हुई है वह यह कि अखबारों और टी वी चैनलों में मौजूद सेठ के कंट्रोल से आज़ाद हो कर काम करने वाले इन नौजवानों की राजनीतिक और सामाजिक समझदारी बिकुल खरी है . इन्हें किसी कर डर नहीं है , यह सच को डंके की चोट पर सच कहने की तमीज रखते हैं और इनमें हिम्मत भी है ..कहने का मतलब यह नहीं है कि अखबारों में और टी वी चैनलों में ऐसे लोग नहीं है जो सच्चाई को समझते नहीं हैं लेकिन उनमें बहुत सारे ऐसे हैं जो मोटी तनखाह के लालच में उसी गाव में रहने को मजबूर हैं . ज़ाहिर है इस मजबूरी की कीमत वे बेचारे हाँजी हाँजी कह कर दे रहे हैं . हमें उसने सहानुभूति है . हम उनके खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते हम जानते हैं कि हर इंसान की अपनी अलग अलग मजबूरियाँ होती हैं . लेकिन हम उन्हें सलाम भी नहीं करेंगें क्योंकि हमारे सलाम के हक़दार वेब के वे बहादुर पत्रकार हैं जो सच हर कीमत पर कह रहे हैं .इस देश में बूढों का एक वर्ग भी है जो अपनी पूरी जवानी में लतियाए गए हैं लेकिन उन्होंने उस लतियाए जाने को कभी अपनी नियति नहीं माना . वे खुद तो कुछ नहीं कर सके लेकिन जब किसी ने सच्चाई कहने की हिम्मत दिखाई तो उसके सामने सिर ज़रूर झुकाया . इन पंक्तियों का लेखक उसी श्रेणी का मजबूर इंसान है .
हालांकि उम्मीद नहीं थी कि अपने जीवन में सच को इस बुलंदी के साथ कह सकने वालों के दर्शन हो पायेगा जो कबीर साहेब की तरह अपनी बात को कहते हैं और किसी की परवाह नहीं करते लेकिन खुशी है कि इन लोगों को देखा जा रहा है .. आज सूचना किसी साहूकार की मुहताज नहीं है . मीडिया के यह जनपक्षधर उसे आज वेब पत्रकारिता के ज़रिये सार्वजनिक डोमेन में डाल दे रहे हैं और बात दूर तलक जा रही है . राडिया ने जिस तरह का जाल फैला रखा है वह हमारे राजनीतिक सामाजिक जीवन में घुन की तरह घुस चुका है . और अभी तो यह एक मामला है . ऐसे पता नहीं कितने मामले हैं जो दिल्ली के गलियारों में घूम रहे होंगें . जिस तरह से राडिया ने पूरी राजनीतिक बिरादरी को अपने लपेट में ले लिया वह कोई मामूली बात नहीं है . इस से बहुत ही कमज़ोर एक घोटाला हुआ था जिसे जैन हवाला काण्ड के नाम से जाना जाता है . उसमें सभी पार्टियों के नेता बे-ईमानी करते पकडे गए थे लेकिन कम्युनिस्ट उसमें नहीं थे . इस बार कम्युनिस्ट भी नहीं बचे हैं . . यानी जनता के हक को छीनने की जो पूंजीवादी कोशिशें चल रही हैं उसमें पूंजीवादी राजनीतिक दल तो शामिल हैं ही, कम्युनिस्ट भी रंगे हाथों पकडे गए हैं . सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा. जिस तरह से जैन हवाला काण्ड दफन हो गया था क्या उसी तरह सब कुछ इस बार भी दफ़न कर दिया जाएगा. अगर वेब पत्रकारिता का युग न होता और मीडिया का जनवादीकरण न हो रहा होता तो ऐसा संभव हो सकता था. .. आज दुनिया राडिया के खेल की एक एक चाल को इस लिए जानती है कि वेब ने हर वह चीज़ सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया है जो खबर की परिभाषा में आता है . और अजीब बात यह है कि मामूली सी बात पर लड़ाई पर आमादा हो जाने वाली, बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे लोग सन्न पड़े हैं . इंदौर से निकल कर पत्रकारिता के मानदंड स्थापित करने वाले अखबार के मालिक दलाली की फाँस में ऐसे पड़े हैं कि कहीं कुछ सूझ नहीं रहा है . इसलिए सभ्य समाज को चाहिए कि वर्तमान मीडिया के सबसे क्रांतिकारी स्वरुप, वेब को ही सही सूचना का वाहक मानें और दलाली को प्रश्रय देने वाले समाचार चैनलों को उनके औकात बताने के सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करें ..
Labels:
अभिमन्यु,
महाभारत,
महारथी,
राडिया,
वेब पत्रकारिता,
शेष नारायण सिंह
Subscribe to:
Posts (Atom)