Showing posts with label बीबीसी. Show all posts
Showing posts with label बीबीसी. Show all posts

Thursday, January 27, 2011

अब कोई नहीं कहेगा कि यह बीबीसी लन्दन है

शेष नारायण सिंह



ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन के कई सेक्शन बंद किये जा रहे हैं . दुर्भाग्य की बात यह है कि हिन्दी सर्विस में भी बंदी का ऐलान कर दिया गया है.इसका मतलब यह हुआ कि बीबीसी रेडियो की हिंदी सर्विस को मार्च के अंत में बंद कर दिया जाएगा. बीबीसी की हिन्दी सेवा का बंद होना केवल एक व्यापारिक फैसला नहीं है . यह संस्कृति को प्रभावित करने वाला इतिहास का ऐसा मुकाम है जिसकी धमक बहुत दिनों तक महसूस की जायेगी. हालांकि इस बात में भी दो राय नहीं है कि बीबीसी की हिंदी सर्विस ने अपना वह मुकाम खो दिया है जो उसको पहले हासिल था.. पहले के दौर में बीबीसी की ख़बरों का भारत में बहुत सम्मान किया जाता था .१९७५ में जब इमरजेंसी लगी और भारत की आकाशवाणी और दूरदर्शन इंदिरा सरकार की ढपली बजाने लगे तो जो कुछ भी सही खबरें इस देश के आम आदमी के पास पंहुचीं वे सब बीबीसी की कृपा से ही पंहुचती थीं . इसके अलावा भी देश के हिन्दी भाषी इलाकों में रेडियों के श्रोताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग है जिसकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बीबीसी रेडियो पर हिन्दी खबरें सुनना एक ज़रूरी काम की तरह है . उत्तर प्रदेश और बिहार में पढ़े लिखे लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग है जिसके लिए कोई भी सूचना खबर नहीं बनती जब तक कि उसे बीबीसी पर न सुन लिया जाए. इस तरह की संस्था का बंद होना निश्चित रूप से इस देश के लिए दुःख की बात है . पता चला है कि बीबीसी हिन्दी की वेब खबरों का सिलसिला जारी रहेगा . लेकिन अभी वेब का नाम उतना नहीं है कि वह लोगों की आदात में शुमार हो सके.अपने देश में बीबीसी की विश्वसनीयता बहुत ज्यादा थी. . हालांकि बाद के दिनों में यह थोड़ी कम हो गयी थी लेकिन पत्रकारिता के सर्वोच्च मानदंडों का वहां हमेशा ख्याल रखा जाता था .मैंने अपने बचपन में देखा था कि जब दो लोग बहस कर रहे हों और बात सहमति पर न पंहुच रही हो तो कोई एक पक्ष बीबीसी का नाम लेकर बहस को समाप्त कर देता था . अगर आप मेरी बात नहीं मान रहे हैं और मैं कह दूं कि मैंने यह बात बीबीसी पर सुनी है तो अगले की हिम्मत नहीं पड़ती थी को बहस को आगे बढाए. पहले के ज़माने में चुनाव पूर्व सर्वे या एक्सिट पोल नहीं होते थे . ज़्यादातर अखबार अपने आकलन देते थे और बीबीसी ने अगर कभी कोई आकलन दे दिया तो उस पर सबको विश्वास हो जाता था. बीबीसी का इस्तेमाल आर एस एस ने भी खूब किया . १९९१ में जब मुलायम सिंह यादव ने बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए जुटी भीड़ पर गोलियां चलवा दी थीं तो आर एस एस के प्रिय अखबारों ने खबर दी कि अयोध्या में सरजू नदी में इतना खून बह गया था कि वह लाल हो गयी थी तो उन खबरों का तब तक विश्वास नहीं किया गया जब तक कि उन खबरों एक साथ साथ यह अफवाह फैलाने वालों क नहीं लगाया गया .भाइयों ने अफवाह फैला दी कि यह खबर बीबीसी पर सुनी गयी थी. पूरा देश तो बीबीसी सुनता नहीं लेकिन बीबीसी के नाम पर इस देश का आम आदमी झूठ पर भी विश्वास कर लेता था. नेताओंने कई बार देश में दंगे फैलाने के लिए बीबीसी का इस्तेमाल किया है . अफवाह फैला दी जाती थी कि फलां खबर बीबीसी पर सुनी है बस फिर क्या था. उस खबर को सच मान कर प्रतिक्रिया होती थी और कई बार तो दंगे भी शुरू हो जाते थे. इंदिरा गाँधी की मौत की खबर सबसे पहेल बीबीसी ने ही दी थी और उसके बाद जो सिखों का क़त्ले आम कांग्रेस के दिल्ली वाले नेताओं ने करवाया उसमें भी बीबीसी का इस्तेमाल किया गया . हुआ यह कि दुष्टों ने प्रचार करवा दिया कि बीबीसी में खबर आई है कि कुछ इलाकों में सिखों ने इंदिरा गाँधी के क़त्ल के बाद मिठाई बांटी . ऐसा बीबीसी ने कभी नहीं कहा था लेकिन उस पर लोगों का भरोसा इतना था कि बात फैल गयी. यहाँ इन बातों को बताने का उद्देश्य केवल इतना है कि कि बीबीसी इस देश में हमेशा ही एक भरोसेमंद संवाद का सोर्स रहा है और अब उसके बंद हो जाने पर ग्रामीण भारत में खबरें सुनने और विश्वास करने का फैशन बदल जाएगा. एक व्यक्तिगत अनुभव भी है.. मेरी आवाज़ बीबीसी के सुबह के प्रोग्राम में कई साल तक सुनी जाती रही थी . कई बार ऐसा हुआ कि जब भी मैंने किसी ट्रेन में या किसी पूछताछ दफ्तर में बात की तो लोगों ने आवाज़ पहचान ली और सम्मान दिया . यह मेरा निजी सम्मान नहीं होता था . यह बीबीसी की विश्वसनीयता पर आम आदमी के भरोसे की मुहर लगती थी. अब वह सब नहीं होगा . अप्रैल के बाद से बीबीसी की हिन्दी सर्विस इतिहास के कोख में जा छुपेगी . हालांकि बीबीसी के एफ एम रेडियो पर हिन्दी बोली तो जायेगी लेकिन बीबीसी हिन्दी के खबरें अब इस देश के हिन्दी जानने वाले के लिए सपना हो जायेगीं. ,इतिहास हो जायेगीं

Wednesday, December 22, 2010

अलविदा ब्रायन हनरहन

शेष नारायण सिंह

बीबीसी के कूटनीतिक सम्पादक ब्रायन हनरहन की ६१ साल की उम्र में लन्दन में मृत्यु हो गयी. उन्हें कैंसर हो गया था. १९७० में बीबीसी से जुडे ब्रायन हनरहन ने हालांकि क्लर्क के रूप में काम शुरू किया था लेकिन बाद वे बहुत नामी रिपोर्टर बने . भारत में उन्हें पहली बार १९८४ में नोटिस किया गया जब वे मार्क टली और सतीश जैकब के साथ इंदिरा गाँधी की हत्या की रिपोर्ट करने वाली टीम के सदस्य बने . इंदिरा गाँधी की हत्या की रिपोर्ट करके बीबीसी ने पत्रकारिता की दुनिया में अपनी हैसियत को और भी बड़ा कर दिया था . यह वह दौर था जब बीबीसी की हर रिपोर्ट को पूरा सच माना जाता था .ब्रायन हनरहन हांग कांग में रहकर एशिया की रिपोर्टिंग करते थे . बीबीसी ने ही बाकी दुनिया को बताया था कि इंदिरा गाँधी की हत्या हो गयी थी जबकि सरकारी तौर पर इस बात को बहुत बाद में घोषित किया गया. इंदिरा गाँधी की हत्या के दौरान भारत की राजनीति बहुत भरी उथल पुथल से गुज़र रही थी .पंजाब में आतंकवाद उफान पर था . पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक का राज था और उन्होंने बंगलादेश की हार का बदला लेने का मंसूबा बना लिया था . उनको भरोसा था कि आतंकवादियों को सैनिक और आर्थिक मदद देकर वे पंजाब में खालिस्तान बनवाने में सफल हो जायेगें. इंदिरा गाँधी के एक बेटे की बहुत ही दुखद हालात में मौत हो चुकी थी वे अन्दर से बहुत कमज़ोर हो चुकी थीं . हालांकि राजीव गाँधी राजनीति में शामिल हो चुके थे और कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में काम कर रहे थे लेकिन आम तौर पर माना जा रहा था कि अभी उनके प्रधान मंत्री बनने का समय नहीं आया था. लोगों को उम्मीद थी कि वे कुछ वर्षों बाद ही प्रधान मंत्री बनेगें . इंदिरा गाँधी की उम्र केवल ६७ साल की थी और लोग सोचते थे कि वे कम से कम १० साल तक और सत्ता संभालेगीं. दिल्ली में अरुण नेहरू और उनके साथियों की तूती बोलती थी . यह सारी बातें दुनिया को बीबीसी ने बताया जिसके सदस्यों में ब्रायन हनरहन भी एक थे . यह अलग बात है कि इस टीम के सबसे बड़े पत्रकार तो मार्क टली ही थे .इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद १ नवम्बर से शुरू हुए सिख विरोधी दंगों और राजीव गाँधी की ताजपोशी की रिपोर्ट करने में भी बीबीसी ने दुनिया भर में अपनी धाक जमाई थी . सिख विरोधी दंगोंमें कांग्रेस के कई मुकामी नेता शामिल थे और जब बीबीसी ने सबको बता दिया कि सच्चाई क्या है तो किसी की भी हिम्मत सच को तोड़ने की नहीं पड़ी. यह ब्रायन हनरहन की रिपोर्टिंग की ज़िंदगी का दूसरा बड़ा काम था . वे इसके पहले ही अपनी पहचान बना चुके थे. उन्होंने ब्रिटेन के फाकलैंड युद्ध की रिपोर्टिंग की थी और बीबीसी रेडियो के श्रोताओं में उनकी पहचान बन चुकी थी. हांग कांग में अपनी तैनाती के दौरान ब्रायन हनरहन ने दुनिया को बताया था कि कम्युनिस्ट चीन में डेंग शियाओपिंग ने परिवर्तन का चक्र घुमा दिया है . बाद में वे १९८९ में चीन फिर वापस गए और तियान्मन चौक से रिपोर्ट किया . इ ससाल के नोबेल पुरस्कार विजेता लिउ जियाबाओ के बारे में पहली रिपोर्ट १९८९ में ब्रायन हनरहन ने ही की थी .१९८६ में जब रूस में गोर्बाचेव की परिवर्तन की राजनीति शुरू हुई तो ब्रायन हनरहन बतौर नामाबर मौजूद थे. पश्चिम की दुनिया को उन्होंने ही बताया कि रूस में पेरेस्त्रोइका और ग्लैस्नास्त के प्रयोग हो रहे हैं . गोर्बाचेव की इन्हीं नीतियों के कारण और बाद में सोवियत संघ का विघटन हुआ... कोल्ड वार के बाद पूर्वी यूरोप में जो भी परिवर्तन हुए उनके गवाह के रूप में ब्रायन लगभग हर जगह मौजूद थे .जब जर्मन अवाम ने बर्लिन की दीवार पर पहला हथौड़ा मारा तो बीबीसी ने वहीं मौके से रिपोर्ट किया था और वह रिपोर्ट ब्रायन की ही थी .बर्लिन दीवार का ढहना समकालीन इतिहास की बड़ी घटना है और हमें उसका आँखों देखा हाल ब्रायन ने ही बताया था. बीबीसी रेडियो और टेलिविज़न के दर्शक उनकी रिपोर्ट को बहुत दिनों तक याद रखेगें . जब अमरीका पर ११ सितम्बर २००१ को आतंकवादी हमला हुआ तो ब्रायन हनरहन बीबीसी स्टूडियो में मौजूद थे और उनकी हर बात पर बीबीसी के टेलिविज़न के श्रोता को विश्वास था.बाद में उन्होंने न्यू यार्क जाकर अमरीका की एशियानीति को करवट लेते देखा था और पूरी दुनिया को बताया था . एशिया की बदली राजनीतिक हालात के चश्मदीद के रूप में उन्होंने आतंकवादी हमलों की बारीकी को दुनिया के सामने खोल कर रख दिया था. बीबीसी रेडियो के रिपोर्टर के रूप में ब्रायन ने पोलैंड में सत्ता परिवर्तन और उस से जुडी राजनीति को बहुत बारीकी से समझा था और उसे रिपोर्ट किया था. जब पोलैंड में राष्ट्रपति के रूप में कम्युनिस्ट विरोधी लेक वालेंचा ने सत्ता संभाली थी तो ब्रायन हनरहन वहां मौजूद थे. उन्होंने पोप जान पाल द्वितीय की मृत्यु और उनके उत्तराधिकारी के गद्दी संभालने की घटना को बहुत ही करीब से देखा था और रिपोर्ट किया था.एशिया और पूर्वी यूरोप की राजनीति के जानकार के रूप में ब्रायन हनरहन को हमेशा याद किया जाएगा . ब्रायन अपने पीछे पत्नी, आनर हनरहन और एक बेटी छोड़ गए हैं