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Sunday, July 26, 2009

स्वाइन फलू और मीडिया की भूमिका

एक बहुत ही खतरनाक बीमारी इंसानियत के दरवाज़े पर दस्तक दे रही है। दक्षिण अमरीका के देश मेक्सिको से चली यह बीमारी पूरी दुनिया के सामने चुनौती बनी हुई है। सुअर इंफलुएंजा या के नाम से इस बीमारी की पहचान की गई है और बताया गया है कि इसके वायरस हवा में फैल जाते हैं और किसी भी इंसान को पकड़ लेते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वाइन फलू के बारे में पूरी दुनिया की सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों को चेताया है कि इस बीमारी को रोकने की हर संभव कोशिश की जाय। स्वाइन फलू का वायरस एक बहुत ही जटिल किस्म का वायरस है, इसमें साधारण फलू और सुअर के शरीर में मौजूद विषाणु के आपसी रिएक्शन से बना हुआ वायरस होता है जो बहुत ही खतरनाक होता है।

अभी तक इसके इलाज के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है और इस बीमारी के लग जाने की संभावना बहुत ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की गई चेतावनी पांचवें स्तर की है। $गौरतलब है कि भयानक महामारी की चेतावनी छठवें स्तर पर दी आती है। यानी स्वाइन फलू एक भयानक महामारी का रूप ले सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक मारगे्रट चान ने बताया कि हर नई बीमारी की तरह इस के बारे में भी समझदारी का अभाव है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास केवल 35 लाख खुराक दवा है, यानी हालात बहुत ही चिंता जनक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पांचवें स्तर की चेतावनी देकर दुनिया भर की सरकारों और दवा कंपनियों को युद्घ स्तर पर सक्रिय होने का निर्देश दे दिया है।

स्वाइन फलू के इलाज और कंट्रोल की फौरन व्यवस्था की जानी चाहिय। सचाई यह है कि यह बीमारी एड्स से भी ज्यादा ख़तरनाक है। अभी तक यह भी एड्स की तरह लाइलाज है। एड्स के केस में कम से कम सावधानी बरते जाने का विकल्प है क्योंकि उसका वायरस शारीरीक संपर्क या खून से फैलता है जबकि स्वाइन फलू वायरस हवा के रास्ते इंसानों को बीमार कर सकता है। एच 1 एन 1 वायरस इस बीमारी का वाहक है, के कंट्रोल के तरी$के मिलने क पहले खतरा बना रहेगा। मेक्सिको से शुरू हुई यह बीमारी बा$की दुनिया में फैलनी शुरू हो चुकी है।

अमरीका में भी कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है यानी वायरस अमरीका भी पहुंच चुका है। अमरीका एक विकसित देश है और वहां इस संभावित महामारी से लडऩे के लिए युद्घ स्तर पर कोशिश की जाएगी। मुसीबत तो गरीब देशों में बसने वाली इंसानियत की होगी, जहां स्वास्थ्य और चिकित्सा की बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो सभी संबंधित व्यक्तियों को चेतावनी दे दी है लेकिन पश्चिमी देशों में इसके खतरों को कमतर करके पेश करने की कोशिश चल रही है।

इंगलैंड में बीबीसी और गार्जियन जैसे संगठन स्वाइन फलू के बारे में दुनिया भर में शुरू हुए खतरे को बर्ड फलू जैसी बीमारियों की श्रेणी में रखने की कोशिश में जुट गए हैं। मीडिया की इस कोशिश का नतीजा यह है कि यूरोप में मीडिया की विश्वसनीयता के सवाल पर फिर से बहस शुरू हो गई है। प्रसिद्घ ब्रिटिश अखबार गार्जियन में बैड साइंस नाम का कालम लिखने वाले डाक्टर बेन गोल्डेकर ने लिखा है कि उन्हें बीबीसी से कई बार बुलावा आया है कि वहां जाकर वह कह दें कि मामला इतना गंभीर नहीं है, महज मीडिया इसे बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहा है।

डा गोल्डेकर का कहना है कि हो सकता है कि बीबीसी वाले स्टोरी को बैलेंस करने की गरज़ से ऐसा कह रहे हों। जो भी हो मशीन की तरह स्टोरी का बैलेंस करने की कोशिश बात को खराब तो करती ही है और सवाल मीडिया की जवाबदेही पर उठता है। सच्चाई यह है कि मीडिया को एक संभावित महामारी की खबरों को कमतर करके पेश करने का अधिकार नहीं है। हां ऐसा भी न होकर खबरों की वजह से आतंक फैल जाए।