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Friday, July 22, 2011

गीता के नाम पर शिक्षा को साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं बेल्लारी के नवाब

शेष नारायण सिंह

कर्नाटक के एक मंत्री का बयान आया है कि कर्नाटक के स्कूलों में हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ गीता को जो नहीं स्वीकार करेगा उसे यह देश छोड़ देना चाहिए.कर्नाटक के सरकारी स्कूलों में गीता के अध्ययन को लगभग अनिवार्य कर दिया गया है . इसके बारे में जब शिक्षा विभाग के मंत्री ने बात की गयी तो उसने कहा कि गीता इस देश का महाकाव्य है और उसे भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को सम्मान देना चाहिए . इस मंत्री को शायद पता नहीं है कि गीता महाकाव्य नहीं है , वह महाभारत महाकाव्य का एक अंश मात्र है .थोडा और घिरने पर मंत्री महोदय और बिखर गए. कहने लगे कि स्कूलों में चल रहा गीता वाला कार्यक्रम कोई सरकारी योजना नहीं है . उन्होंने जानकारी दी कि उत्तर कन्नडा जिले के सोंध स्वर्णावली मठ के ओर से वह कार्यक्रम चलाया जा रहा है . यानी राज्य के सरकारी स्कूलों में एक गैर सरकारी संस्था अपना कार्यक्रम चला रही है और राज्य सरकार का एक मंत्री उसकी पक्षधरता इस तरह से कर रहा है जिससे देश की बहुत बड़ी आबादी अपमानित महसूस कर सकती है . करनाटक के शिक्षा मंत्री के इस बयान से वह बात तो साफ़ हो ही जाती है जो वह कहना चाह रहा है लेकिन एक बात और साफ़ हो जाती है .वह यह कि कर्नाटक में जो समाज और स्कूली शिक्षा के साम्प्रदायीकरण का आभियान चल रहा है उसमें सरकार ऐसे लोगों को इस्तेमाल कर रही है जिन का सरकार से कोई लेना देना नहीं है .जब कभी सवाल उठेगा तो सरकार साफ़ मुकर जायेगी कि इस तरह का कोई अभियान कभी चला था. इस तरह की कारस्तानी का कोई आडिट आबजक्शन भी नहीं होता . इस मंत्री का बयान किसी ऐसे आदमी का बयान भी है जो गीता में दिए गये उपदेशों को बिलकुल नहीं समझता . गीता के अठारहों अध्यायों में कहीं भी ऐसा ज़िक्र नहीं है कि कहीं किसी ने ज़बरदस्ती की हो .सच्चाई यह है कि गीता का उपदेश ही दुर्योधन की ज़बरदस्ती के खिलाफ संघर्ष करने के लिए दिया गया था . गीताकार कृष्ण ने हमेशा किसी भी जोर ज़बरदस्ती का विरोध किया है . पूरी गीता में आपको कहीं कोई ऐसा सन्दर्भ नहीं मिलेगा जहां कृष्ण ने अर्जुन को कुछ भी करने का आदेश दिया हो . पूरी गीता में कृष्ण अर्जुन को समझा बुझाकर ही उन्हें युद्ध करने की प्रेरणा देना चाहते हैं .जबकि इस मंत्री के बयान से साफ़ है कि वह अगर ज़रुरत पड़ी तो जोर ज़बरदस्ती की बात भी कर सकता है . उसकी इस बयान बाज़ी की निंदा की जानी चाहिए . वैसे अगर ध्यान से देखा जाय तो वह मंत्री वही बातें कह रहा है जो आर एस एस की शाखाओं में सिखाया जाता है .यह भी सच है कि जो बातें शाखाओं में कही जाती हैं वे सार्वजनिक रूप से नहीं कही जातीं . हो सकता है उस मंत्री के आका लोग उसके इस बयान की वजह से उस पर कुछ अंकुश लगाने के बारे में भी सोचें . हर फासिस्ट संगठन यह सुनिश्चित करता है कि उसके अंदरखाने हुई बातों को सार्वजनिक न किया जाए. ऐसा ही आर एस एस में भी होता होगा. ज़ाहिर है संविधान की शपथ लेने वाले किसी मंत्री को संविधान के खिलाफ बयान देने का हक नहीं है . अगर वह ऐसा करता है तो उसे संविधान का अपमान करने का दोषी माना जाएगा .उस हालत में उसे मंत्री पद छोड़ना भी पड़ सकता है. बीजेपी ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी. इसका मतलब यह हुआ कि उस मंत्री का बयान उसकी मूर्खता को रेखांकित भर करता है और कुछ नहीं .लेकिन उसके बयान से एक बात बहुत ही ज्यादा साफ़ हो गयी है कि कर्नाटक सरकार भी शिक्षा के साम्प्रदायीकरण की पूरी योजना बना चुकी है. बीजेपी या आर यस एस का हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार से कुछ भी लेना देना नहीं है . वे हिन्दू धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करने के अलावा और कुछ नहीं सोचते . लेकिन हिन्दू धर्म के जो ग्रन्थ हैं या जो महापुरुष हैं उनका राजनीतिक अभियान में इस्तेमाल करने की रणनीति पर काम करते हैं . इस काम को वे उत्तर प्रदेश में बखूबी कर चुके हैं . अयोध्या की बाबरी मस्जिद को आर एस एस ने बहुत ही योजनाबंद्ध तरीके से राम मंदिर घोषित कर दिया . उसके बाद भगवान् राम के व्यक्तित्व के इर्द गिर्द एक राजनीतिक तामझाम खड़ा किया . अपने सभी कार्यकर्ताओं को रामभक्त बना दिया और जब देश के बहुसंख्यक हिन्दू भगवान राम के नाम पर आर एस एस द्वारा शुरू किये गए संगठनों के प्रभाव में आ गए तो उनके वोट को बीजेपी की सत्ता हासिल करने की कोशिश के हवाले कर दिया .नतीजा सामने है . जहां बीजेपी दो सीटों में सिमट कर रह गयी थे उसी उत्तर प्रदेश के बल पर बीजेपी ने अपने आदमी को देश का प्रधान मंत्री बनवा दिया .कर्नाटक में गीता के साथ जोड़कर शुरू होने वाला अभियान भी इसी तरह की राजनीति को कार्यरूप देने की एक कोशिश मात्र है .

शिक्षा को साम्प्रदायिक करना आर एस एस की राजनीतिक का एक प्रमुख एजेंडा है . जानकार बताते हैं कि कर्नाटक में गीता के सहारे हिन्दुओं को एकमुश्त करने की योजना बन चुकी है . स्कूलों में यह अभियान चलाया जा रहा है . उत्तर प्रदेश में शिक्षा में ज़हर घोलने के लिए दूसरा तरीका अपनाया गया था. वहां के प्राइमरी स्कूलों को पहले ध्वस्त किया गया. १९६७ में जब सरकार में बीजेपी के पूर्व अवतार जनसंघ की भागीदारी हुई तो सबसे पहले योजनाबद्ध तरीके से राज्य के प्रैंरों स्कूलों को बेकार करने की रण नीति पर काम शुरू हुआ. इस योजना को १९७७ में आर एस एस वालों ने और आगे बढ़ाया . आर एस एस के एक विभाग का ज़िम्मा है कि वह दूर देहातों और क़स्बों में सरस्वती शिशु मंदिर नाम से प्राइमरी और मिडिल स्कूल खोलता है . ज्यों ज्यों प्राइमरी स्कूलों के दुर्दशा होती रही, उन इलाकों में सरस्वती शिशु मंदिर खुलते रहे. सरस्वती शिशु मंदिर वास्तव में निजी क्षेत्र के स्कूल होते हैं .इनमें सरकारी नियम कानून या पाठ्यक्रम नहीं चलते. इसलिए आर एस एस की शाखाओं में चलने वाली शिक्षा छोटे छोटे बच्चों को दी जाने लगी . छोटी उम्र में दी गयी शिक्षा कभी नहीं भूलती. जब कल्याण सिंह मुख्य मंत्री बने तो बहुत बड़े पैमाने पर सरस्वती शिशु मंदिर खोल दिए गए . आज उत्तर प्रदेश में जो चारों तरफ साम्प्रदायिक माहौल नज़र आता है उसके पीछे इन्हीं सरस्वती शिशु मंदिरों की शिक्षा का हाथ है . लगता है कि शिक्षा के साम्प्रदायीकरण के लिए कर्नाटक में गीता जैसे धर्मग्रन्थ चुना गया है . जो भी हो सभ्य समाज के लोगों को चाहिए कि करनाटक सरकार की इस कोशिश को बेनकाब करने का अभियान चलायें .