शेष नारायण सिंह
कनाडा ने भारत की सुरक्षा एजेंसियों के अवकाशप्राप्त अफसरों को वीजा देने से मना कर के अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है . नयी दिल्ली स्थित कनाडा के हाई कमीशन के अफसर अब तक यह खेल बेख़ौफ़ चलाते रहे हैं लेकिन जब बी एस एफ के एक पूर्व कर्मचारी का मामला टाइम्स नाउ , नाम के अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल की नज़र में आया तब से मामला तूल पकड़ गया है .यह कोई नयी बात नहीं है . पश्चिमी यूरोप के पूंजीवादी देश ऐसा बहुत दिनों से कर रहे हैं लेकिन बात आई गयी हो जाती थी . इस बार बात फंस गयी है .. शायद इसका कारण यह हो कि अब सूचना क्रान्ति की वजह से किसी भी घटना को खबर बनते देर नहीं लगती. जो भी हो पश्चिमी देशों की भारत के प्रति हठधर्मी ने एक नया रूप ले लिया है .मामला अब कूटनीतिक दांव पेंच में फंस गया है . और भारत जैसे ताक़तवर देश के सामने कनाडा के अड़े रहने की संभावना बहुत कम है . कनाडा को अपनी भूल सुधारनी होगी और अपनी सोच में बदलाव करना होगा. जहां तक माफी माँगने की बात है , वह तो उसे करना ही पडेगा. .लेकिन कनाडा के हाई कमीशन में तैनात वीजा देने वाले अफसरों की इस दम्भी प्रवृत्ति के मनोविज्ञान को समझना भी ज़रूरी है .. यह समझने की ज़रुरत है कि उन्हें यह क्यों लगता है कि भारत के नागरिकों को वे भेड़ बकरियों की तरह ट्रीट कर सकते हैं . और भारत सरकार की आदरणीय संस्थाओं के खिलाफ उल जलूल टिप्पणी कर सकते हैं . पहले सवाल का जवाब तो आसान है . जिस तरह से अपने मुल्क के कुछ हिस्सों के लोग अमरीका, कनाडा और ब्रिटेन जाने के लिए उमड़ पड़ते हैं , उस से इन पश्चिमी राजनयिकों को लग सकता है कि भारत से विदेश जाने की लालसा रखने वाले दीन-हीन लोग हैं और कनाडा जा कर दो जून की रोटी का इंतज़ाम करने के चक्कर में हैं . हालांकि यह सच नहीं है लेकिन जिस तरह से कनाडा जाने के लिए लोग उमड़ते हैं और वीजा देने वाले अधिकारियों और उनके दलालों को रिश्वत तक देने की पेशकश करते हैं , उस से अंदाज़ लग जाता है कि हाई कमीशन में तैनात अफसर इनके बारे में घटिया राय क्यों बनाते हैं .. आजकल कनाडा जाने वाले ज़्यादातर लोगों के रिश्तेदार वहीं रहते हैं और उनकी बड़ी संख्या अब कनाडा की नागरिक भी हो गयी है .इस लिए यह मसला भारत के लोगों के लिए जितनी चिंता का विषय है उतनी ही चिंता कनाडा के नागरिकों को भी होनी चाहिए .वैसे भी किसी को वीजा देना, न देना सम्बंधित देश का अपना मामला है . वह जिसको चाहे वीजा दे और जिसको न चाहे न दे. एक संप्रभु राष्ट्र का अफसर अपने देश के हित में जो भी ठीक समझे, फैसला लेने को स्वतंत्र है , उस पर किसी तरह का सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए और भारत सरकार की ओर से उनके उस अधिकार और दायित्व को चुनौती नहीं दी जा सकती. लेकिन जब कनाडा सरकार का कोई अफसर अपने काम के सिलसिले में भारत सरकार के सुरक्षा संगठनों के बारे में गैर ज़िम्मेदार टिप्पणी करेगा तो भारत सरकार को उस पर एक्शन लेना चाहिए . बी एस एफ और इंटेलीजेंस ब्यूरो के के अवकाश प्राप्त कर्मचारियों की वीजा के दरखास्त पर विचार करते समय भारत सरकार के संगठनों के लिए अपशब्द प्रयोग करने की छूट किसी भी विदेशी सरकार के कर्मचारी को नहीं दी जा सकती
भारत सरकार को एतराज़ इस बात पर है कि कनाडा के हाई कमीशन के अफसरों ने वीजा माँगने वाले लोगों को इसलिए मना कर दिया कि वे भारत सरकार की सुरक्षा एजेंसियों में काम कर रहे थे . यह गलत है और इसके लिए भारत सरकार ने कनाडा को चेतावनी दी है और अगर ज़रूरी हुआ तो उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर टाईट भी किया जाएगा . यह सही रुख है क्योंकि कनाडा के वीजा देने वाले अफसरों का आचरण बहुत ही गैरजिम्मेदाराना था . . उनका दिमाग इतना खराब हो गया था कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जो एडवांस टीम कनाडा जा रही है उसके एक सदस्य को भी वीजा देने से मना कर दिया. . सवाल पैदा होता है कि जब दोनों देशों के बेच राजनयिक सम्बन्ध हैं और प्रधान मंत्रियों की आवाजाही का सिलसिला भी है तो प्रधान मंत्री की सुरक्षा का जिम्मा रखने वाले विभाग के अफसर को वीजा न देना तो निहायत ही अहमकाना काम है . ज़ाहिर है कि भारत में तैनात किये जाने वाले अफसरों को थोड़ी बहुर कूटनीतिक नफासत की ट्रेनिंग देकर कनाडा के हुक्मरान बहुत अच्छा काम करेंगें क्योंकि भारत अब कोई मामूली देश नहीं है . वह एक बड़ा देश है और अगर राजनीतिक स्तर पर फैसला हो गया तो बाकी दुनिया में भारत, कनाडा को नुकसान पंहुचा सकता है . कनाडा को यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भारत और कनाडा पर राज करने वाले ब्रिटेन की सरकार भी अब भारत के नेताओं से अदब से बात करती है तो कनाडा की वैसे भी हैसियत अमरीका के चम्पू की ही है . जहां तक भारत का सवाल है वह अब अमरीका से बराबरी के स्तर पर बात करता है . इसलिए यह कनाडा के अपने हित में होगा कि वह भारत से फ़ौरन माफी मांगे और आगे से तमीज से आचरण करने का भरोसा दिलाये
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Saturday, May 29, 2010
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