शेष नारायण सिंह
एमनेस्टी इंटरनेशनल की नयी रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां पाकिस्तानी सरकार का कोई अधिकारी घुस नहीं सकता . यह इलाके वास्तव में तालिबानी कब्जे में हैं और वहां, मानवाधिकारों का दिन रात क़त्ल हो रहा है .इस इलाके के लोगों को किसी तरह की कानूनी सुरक्षा नहीं हासिल है और लोग तालिबानी आतंक के शिकार हो रहे हैं .पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के क्षेत्र में रहने वाले इन करीब चालीस लाख लोगों को पाकिस्तानी सरकार ने तालिबानियों के रहमो-करम पर छोड़ दिया है . इसके अलावा पाकिस्तान में करीब दस लाख ऐसे लोग हैं जो तालिबानी आतंक से तो आज़ाद हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई कोशिश नहीं कर रही है और लोग भूखों मरने के लिए छोड़ दिए गए हैं . उन्हें मदद की अर्जेंट ज़रुरत है लेकिन पाकिस्तानी सरकार किसी भी पहल का जवाब नहीं दे रही है .एमनेस्टी इंटरनेशनल के सेक्रेटरी का दावा है कि अगर फ़ौरन कुछ न किया गया तो पाकिस्तानी सरकार की उपेक्षा के शिकार इन इंसानों को बचाया नहीं जा सकेगा.एमनेस्टी ने पाकिस्तान सरकार और तालिबान के नेताओं से अपील की है कि अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करें और इन परेशान लोगों के मानवाधिकार से खिलवाड़ न करें.संगठन ने बताया है कि लड़ाकों और फौजियों के अलावा २००९ में इस क्षेत्र में करीब १३०० सिविलियन मारे गए थे. इस साल यह संख्या और भी बढ़ जाने की आशंका है .स्वात घाटी तालिबानी आतंक का सबसे मज़बूत ठिकाना है . वहां से भाग कर आये लोगों की शिकायत है कि पाकिस्तानी सरकार ने उनकी जिंदगियों को बेमतलब मान कर उन्हें पूरी तरह से भुला दिया है और अब तालिबानी चील कौवे उनको नोच रहे हैं .वहां स्कूलों में अब किताबें नहीं पढाई जातीं , तालिबान आतंकवादी उन स्कूलों में बाकायदा बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देता है . आतंक फैलाने के अन्य तरीकों की शिक्षा भी इन्हीं स्कूलों में दी जा रही है.
पाकिस्तान के पिछले साठ साल के इतिहास पर नज़र डालें तो अंदाज़ लग जायेगा कि गलत राजनीतिक फैसलों का क्या नतीजा होता है.पाकिस्तान की स्थापना के साथ ही यह पक्का पता लग गया था कि एक ऐतिहासिक और भौगोलिक अजूबा पैदा हो गया है .मौलाना आज़ाद ने विभाजन के वक़्त ही बता दिया था कि यह मुल्क जिन्नाह के जीवन काल तक ही चल पायेगा . उसके बाद इसके टुकड़े होने से कोई नहीं रोक सकता. इसीलिये जब जनरल अय्यूब ने पाकिस्तान को फौजी तानाशाही के बूटों तले रौंदने का फैसला किया तो तस्वीर साफ़ होने लगी थी. तानाशाही से अपने को अलग करने की कोशिश कर रहे पूर्वी बंगाल की जनता ने अपने आपको पाकिस्तान से अलग कर लिया . अब बाकी बचे पाकिस्तान में तबाही का माहौल है . १९७१ में अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और पाकिस्तानी हुक्मरान , याहया खां और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने भारत के खिलाफ एक हज़ार साल तक की लड़ाई की मंसूबाबंदी की थी. . वे दोनों तो ज़बानी जमा खर्च से आगे नहीं बढ़ सके लेकिन उनके उत्तराधिकारी जनरल जिया-उल-हक ने इस धमकी को अंजाम तक पंहुचाने की कोशिश की. उन्होंने अमरीकी पैसे की मदद से भारत में आतंकवाद के ज़रिये हमले करना शुरू कर दिया .इसके लिए उन्होंने पाकिस्तानी फौज का इस्तेमाल किया और तरह तरह के आतंकवादी संगठन खड़े कर दिए .पहले भारत के राज्य ,पंजाब में दहशतगर्दी का काम शुरू करवाया . उनके मरने के बाद वे ही दहशतगर्द कश्मीर में सक्रिय हो गए लेकिन भारत की ताक़त के सामने पाकिस्तान की सारी तरकीबें फेल हो गयीं और जो आतंकवादी संगठन भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने के लिए बनाये गए थे ,आज वही पाकिस्तानी राष्ट्र को तबाह करने पर आमादा हैं . यह तालिबान वगैरह उसी आतंकवादी फलसफे को लागू करने के लिए सक्रिय हैं . बस फर्क यह है कि अब निशाने पर पाकिस्तान है . और पाकिस्तान का एक बड़ा इलाका वहां के असली शासक , फौज से नाराज़ है . बलूचों के सरदार अकबर खां बुग्ती को जिस बेरहमी से जनरल मुशर्रफ ने मारा था उसकी वजह से बलूचिस्तान अब पाकिस्तान से अलग होना चाहता है . अलग सिंध की मांग पाकिस्तान से भी पुरानी है , वह भी बिलकुल आन्दोलन की शक्ल अख्तियार करने के लिए तैयार है . पख्तून पहले से ही अफगानिस्तान से ज्यादा बिरादराना महसूस करते हैं . हमारे खान अब्दुल गफ्फार खां ही काबुल में दफनाये गए थे . दर असल यह उनकी आख़िरी इच्छा थी. तो वह इलाका भी भावनात्मक रूप से कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बन सका . जो हमारे रिश्तेदार विभाजन के बाद वहां जाकर बसे हैं , उनको भी पंजाबी प्रभाव वाली फौज अभी मोहाजिर की कहती है . यानी वह भी अभी भारत के उन इलाकों को ही अपना घर मानते हैं जहां उनके पुरखों की हड्डियां दफन हैं . केवल पंजाब है जो अपने को पाकिस्तान कहलाने में गर्व महसूस करता है .
इस पृष्ठभूमि में यह बिलकुल साफ़ है कि पाकिस्तान के एकता का कोई केस नहीं है . लेकिन अजीब बात है कि सबसे पहले पाकिस्तानी राजनीतिक और फौजी हुक्मरान के हाथ से वे इलाके निकल रहे हैं जिनके बारे में आम तौर पर बात ही नहीं की जाती थी. अगर स्वात घाटी और उसके आस पास के इलाके में पाकिस्तान फ़ौरन अपना इकबाल बुलंद नहीं करता तो तालिबान के कब्जे में एक बड़ा भौगोलिक भूभाग आ जायेगा जिसके बाद पाकिस्तान को खंड खंड होने कोई नहीं बचा सकता .
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Saturday, June 12, 2010
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