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Thursday, July 14, 2011

ए राजा के खिलाफ कुछ भी नहीं सुनना चाहते थे प्रधानमंत्री ,गुरुदास कामत का संकेत

शेष नारायण सिंह

मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद नाराज़ मंत्रियों में वीरप्पा मोइली और श्रीकांत जेना को संभल गए लेकिन मुंबई के नेता गुरुदास कामत ने कांग्रेस आलाकमान को घेरने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है..वे खुद तो माफी मांग रहे हैं लेकिन उनके कुछ ख़ास अफसर एक अजीब मुहिम चला रहे हैं . दिल्ली के सरकारी गलियारों में आज एक चर्चा ज़ोरों पर है कि गुरुदास कामत को इसलिए डिमोट किया गया कि उन्होंने ए राजा के अधीन काम करते हुए तत्कालीन संचार मंत्री के काले कारनामों के बारे में एक चिठ्ठी प्रधान मंत्री को लिख कर भेज दी थी. जिसमें जो कुछ लिखा है बाद में वही सब कुछ सी ए जी की मार्फत पब्लिक डोमेन में आया था. उनके चेला टाइप अफसरों ने राजनीतिक हलकों में यह खबर कुछ पत्रकारों के ज़रिये चलाने की कोशिश की है. बताया जा रहा है कि ए राजा जब टू जी स्पेक्ट्रम में गड़बड़ी कर रहे थे तो गुरुदास कामत ने प्रधान मंत्री को सारी जानकारी एक पत्र लिख कर भेज दी थी. लेकिन उन्हें प्रधान मंत्री कार्यालय से यह सन्देश आया कि उस पत्र में लिखी गयी बातों को थोडा हल्का कर दें . खुसुर फुसुर अभियान में बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के दबाव में उन्होंने पत्र को बदल भी दिया था. अभियान में जुड़े अफसरों की टोन यह है कि गुरुदास कामत जैसा पवित्र आत्मा भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर पाया इसलिए उन्होंने उन्होंने पत्र लिख दिया था लेकिन प्रधान मंत्री कार्यालय और कांग्रेस की टाप लीडरशिप के पास फुर्सत ही नहीं थी कि वह ए राजा के खिलाफ कुछ सुन सके. . इस गंभीर बात के बारे में जब कुछ जानकारी हासिल करने की कोशिश की गयी तो अजीब बातें सामने आयीं. पता चला कि कि गुरुदास कामत ने ए राजा की शिकायत तो प्रधानमंत्री से की थी लेकिन उनका मकसद भ्रष्ट्राचार का खात्मा नहीं था. टू जी स्पेक्ट्रम में गले तक डूबे हुए विनोद गोयनका नाम के व्यक्ति ने शुरू में गुरुदास कामत से ही संपर्क साधा था. शायद ऐसा इसलिए था कि गुरुदास कामत उन दिनों संचार मंत्रालय में ए राजा के मातहत राज्य मंत्री थे . लेकिन बाद में विनोद गोयनका ने सीधे ए राजा से सम्बन्ध बना लिया. बताया जा रहा है कि जब गुरुदास कामत ने उससे अपनी बात की तो उसने टका सा जवाब दे दिया और कामत को कुछ भी देने से इनकार कर दिया . इसकी शिकायत लेकर गुरुदास कामत महाराष्ट्र के एक बहुत बड़े नेता के पास भी गए. उन नेता जी के हस्तक्षेप के बाद कुछ सुलह सफाई हो गयी लेकिन विनोद गोयनका ने जो कुछ देने का प्रस्ताव किया वह बहुत कम था . गुरुदास कामत अपने को ए राजा से बड़ा नेता मानते थे . ए राजा की तुलना में उनको मिलने वाली रक़म बहुत कम थी. बात बढ़ गयी और पिछली फेरबदल में कामत को संचार मंत्रालय से हटा दिया गया. लेकिन जब उन्होंने इस बार के फेरबदल के पहले अपने उस पुराने पत्र का ज़िक्र करके दबाव बनाने की कोशिश की तो कांग्रेस आलाकमान को उनका यह तरीका बहुत नागवार गुज़रा और उनको बहुत ही मामूली विभाग देने का फैसला कर लिया गया. देखना है कि इस जानकारी के सार्वजनिक डोमेन में आने के बाद कांग्रेस नेतृत्व उनको वास्तव में दण्डित करता है या उनके उस पत्र के डरकर उन्हें फिर से सम्मानित करता है .

गुरुदास कामत के इस प्रचार अभियान के जुटे साथी बताते हैं कि जिस तरह से वित्त मंत्री के रूप में मोरारजी देसाई ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की विदेश यात्रा के दौरान किये गए कुछ खर्चों पर आपत्ति दर्ज करवा कर ईमानदारी की एक मिसाल कायम की थी ,उसी तरह से गुरुदास कामत ने भी ईमानदारी की मिसाल कायम की है. लेकिन आर्थिक अपराध के जानकारों का कहना है कि अगर यह साबित हो गया कि ए राजा जब आपराध कर रहे थे ,उस वक़्त गुरुदास कामत को मालूम था कि अपराध हो रहा है और उन्होंने उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की तो उनको भी पकड़ा जा सकता है . वैसे भी राजा के खिलाफ जब से जांच शुरू हुई है उसके बाद भी गुरुदास कामत ने सी बी आई को इतनी अहम जानकारी नहीं दी तो उनकी नीयत पर सवाल उठेगें. सवाल उठता है कि राष्ट्रहित और जनहित की इतनी बड़ी जानकारी को उन्होंने सही एजेंसी के पास न पंहुचा कर अपनी पार्टी की टाप लीडरशिप पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करके अपना हित तो साधा है लेकिन क्या उन्होंने जनहित की अनदेखी नहीं की. यह देखना बभी दिलचस्प होगा कि क्या इस नई जानकारी के अफवाह के रूप में चलाये जाने के बाद सी बी आई इस सन्दर्भ में कोई कार्रवाई करेगी.

Wednesday, March 9, 2011

करूणानिधि को धमकाने के लिए कांग्रेस ने 2जी घोटाले की तलवार का इस्तेमाल किया

शेष नारायण सिंह

तमिलनाडु की पार्टी ,द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम से पिंड छुडाने की कांग्रेस पार्टी की कोशिश ने दिल्ली में राजनीतिक उथल पुथल पैदा कर दी है . शुरू में तो डी एम के वालों को लगा कि मामला आसानी से धमकी वगैरह देकर संभाला जा सकता है लेकिन बात गंभीर थी और कांग्रेस ने डी एम के को अपनी शतरें मानने के लिए मजबूर कर दिया . कांग्रेस को अब तमिलनाडु विधान सभा में ६३ सीटों पर लड़ने का मौक़ा मिलेगा लेकिन कांग्रेस का रुख देख कर लगता है कि वह आगे भी डी एम के को दौन्दियाती रहेगी. यू पी ए २ के गठन के साथ ही कांग्रेस ने डी एम के को औकात बताना शुरू कर दिया था लेकिन बात गठबंधन की थी इसलिए खींच खांच कर संभाला गया और किसी तरह सरकार चल निकली . लेकिन यू पी ए के बाकी घटकों और कांग्रेसी मंत्रियों की तरह ही डी एम के वालों ने भी लूट खसोट शुरू कर दिया बाकी लोग तो बच निकले लेकिन डी एम के के नेता और संचार मंत्री ,ए राजा पकडे गए . उनके चक्कर में बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने डॉ मनमोहन सिंह को ही घेरना शूरू कर दिया . कुल मिलाकर डी एम के ने ऐसी मुसीबत खडी कर दी कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की राजनीति की लड़ाई में हारती नज़र आने लगी. राजा को हटाया गया लेकिन राजा बेचारा तो एक मोहरा था. भ्रष्टाचार के असली इंचार्ज तो करुणानिधि ही थे. उनकी दूसरी पत्नी और बेटी भी सी बी आई की पूछ ताछ के घेरे में आने लगे. तमिलनाडु में डी एम के की हालत बहुत खराब है लेकिन करूणानिधि को मुगालता है कि वे अभी राजनीतिक रूप से कमज़ोर नहीं हैं . लिहाजा उन्होंने कांग्रेस को विधान सभा चुनावो के नाम पर धमकाने की राजनीति खेल दी .कांग्रेस ने मौक़ा लपक लिया . कांग्रेस को मालूम है कि डी एम के के साथ मिलकर इस बार तमिलनाडु में कोई चुनावी लाभ नहीं होने वाला है . इसलिए उसने सीट के बँटवारे को मुद्दा बना कर डी एम के को रास्ता दिखाने का फैसला कर लिया लेकिन डी एम के को गलती का अहसास हो गया और अब फिर से सुलह की बात शुरू हो गयी . डी एम के के नेता अभी सोच रहे है कि कुछ विधान सभा की अतिरिक्त सीटें देकर कांग्रेस से करूणानिधि के परिवार के लोगों के खिलाफ सी बी आई का शिकंजा ढीला करवाया जा सकता है . लेकिन खेल इतना आसान नहीं है . कांग्रेस ने बहुत ही प्रभावी तरीके से करूणानिधि एंड कंपनी को औकात बोध करा दिया है . उत्तर प्रदेश के २२ संसद सदस्यों वाले दल के नेता मुलायम सिंह यादव ने ऐलान कर दिया है कि वे कांग्रेस को अंदर से समर्थन करने को तैयार हैं . यह अलग बात है कि कांग्रेस को उनके समर्थन की न तो ज़रुरत है और न ही उसने मुलायम सिंह यादव से समर्थन माँगा है . लेकिन मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी एकजुट रखने के लिए कहीं भी सत्ता के करीब नज़र आना है . सो उन्होंने वक़्त का सही इस्तेमाल करने का फैसला किया . कांग्रेस की अगुवायी वाली सरकार को २१ सदस्यों वाली बहुजन समाज पार्टी का समर्थन भी बाहर से मिल रहा है जयललिता भी करूणानिधि को बेघर करने के लिए यू पी ए को समर्थन देने को तैयार है . ऐसी हालत में कांग्रेस और डी एम के सम्बन्ध निश्चित रूप से राजनीति की चर्चा की सीमा पर कर गए हैं और प्रहसन के मुकाम पर पंहुच गए हैं .

Tuesday, November 16, 2010

भ्रष्टाचार के राष्ट्रीय रिकार्ड होल्डर की विदाई

शेष नारायण सिंह

संचारमंत्री ए राजा ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया .सी ए जी की रिपोर्ट से पता चला था कि राजा ने देश के सरकारी खजाने को खूब तबियत से लूटा है .करीब पौने दो लाख करोड़ रूपये की हेराफेरी का मामला सामने आया था. हालांकि इसमें से एक मामूली हिस्सा ही बतौर रिश्वत मिला होगा लेकिन जनता का पैसा तो इस भ्रष्ट आदमी ने डुबा ही दिया . लेकिन गठबंधन की राजनीति और उस से जुड़े हुए ब्लैकमेल की ताक़त की वजह से पिछले कई दिनों से राजा और चेन्नई में बैठे उनके पालनहार अड़े हुए थे कि राजा को मंत्रिपद से हटाया नहीं जाएगा . सरकार को समर्थन देने की कीमत वसूल रहे चेन्नई के छत्रप ने अपनी ताक़त का एहसास क़दम क़दम पर करवाया .उनके रुख से समझ में आ गया कि जी २ स्पेक्ट्रम मामले में जो लूट हुई है ,उसमें ए राजा केवल शिखंडी की भूमिका में थे . असली खेल तो चेन्नई वाले उस्ताद ने लगा रखा था. इस इस्तीफे का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इसके बाद डी एम के की राजनीतिक ताक़त और उसकी घूस बटोर सकने की क्षमता में कोई कमी नहीं आयेगी और राजा को हटाकर जो दूसरा बंदा मंत्री बनाया जाएगा वह भी राजा की तरह से दिल्ली से चौथ वसूली करके चेन्नई भेजेगा . लेकिन राजा के इस्तीफे से संसद में विपक्ष का हमला झेल रही मनमोहन सिंह सरकार को थोडा सांस लेने का मौक़ा मिल जाएगा. यही देश का दुर्भाग्य है कि भ्रष्टाचार के मामले में लगभग पूरी तरह से डूबे हुए मंत्री को भी हटाने के लिए न तो कांग्रेस और न ही केंद्र सरकार तैयार हैं . हाँ संसद में होने वाली फजीहत से बचने के लिए उन्होंने मंत्री पद से राजा को हटा दिया . इस सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू को याद किया जाना स्वाभाविक है जिन्होंने केशव देव मालवीय जैसे मंत्री को दस हज़ार रूपये के रिश्वत के मामले में मंत्री पद से हटा दिया था . और एक आज का भारत है जहां सत्तर हज़ार करोड़ के घोटाले वाले मौज कर रहे हैं . सबसे तकलीफ की बात यह है कि आज की राजनीतिक बिरादरी में घूस को अपराध मानने का रिवाज़ की ख़त्म हो गया है . संचार मामले के घोटालों में सबसे प्रमुख नाम अब तक सुखराम का हुआ करता था . पी वी नरसिम्हा राव सरकार के संचार मंत्री के रूप में सुखराम ने भ्रष्टाचार की जो मंजिलें तय की थीं , उस से उस वक़्त की मुख्य विपक्षी पार्टी , बी जे पी को बहुत तकलीफ हुई थी और उसने संसद की कार्यवाही करीब सात हफ्ते तक नहीं चलने दिया था. विपक्ष में बी जे पी की इस भूमिका को देख कर लगा था कि बी जे पी वाले ईमानदार लोग हैं और आगे चल कर जब कभी सरकार में आयेगें तो सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार को हमेशा के लिए ख़त्म कर देगें. लेकिन इस सोच को तब भारी झटका लगा जब उन्हीं सुखराम को बी जे पी ने अपनी पार्टी में भर्ती कर लिया और एक नेता के रूप में सम्मान दिया . सुखराम के बी जे पी में भर्ती होने के बाद ही लग गया था भ्रष्टाचार के मामले में बी जे पी वाले भी कांग्रेस से कमज़ोर नहीं पड़ेगें. जब बी जे पी की अगुवायी में सरकार बनी तो इसका सबूत भी मिल गया . सरकारी कंपनी विदेश संचार निगम को बी जे पी के मंत्रियों ने कौड़ियों के मोल बेच दिया , सरकारी खजाने पर बोझ बनी एयर इंडिया के होटलों, सेंटोर को असली कीमत से नब्बे फीसदी कम दाम पर बेच दिया . और भी ऐसे बहुत सारे काम किये जिस में झूम कर भ्रष्टाचार किया गया . और हमेशा के लिए यह साबित हो गया कि जहां तक भ्रष्टाचार की बात है बी जे पी और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है . यह बार कामनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले की जांच से और भी साफ़ हो जाती है . करीब सत्तर हज़ार करोड़ के सरकारी धन के खर्च में हेराफेरी का पता चला तो सबसे पहले जो आर्थिक अपराधी पकड़ में आया वह बी जे पी का ही बड़ा नेता निकला . बताते हैं कि बी जे पी में भी वह पार्टी के अध्यक्ष के गुट का खास आदमी है . ऐसी हालत में जब दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियां घूस की संस्कृति में आकंठ डूबी हुई हैं तो राजनीतिक सिस्टम से किसी सुधार की उम्मीद करना ज्यादती होगी. बी जे पी के भ्रष्टाचार की बातें इस लिए भी चिंता में डालती हैं कि जिस सरकारी नीति का पालन करके ए राजा ने लूट मचाई थी उसको अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान ही बनाया गया था .यानी अगर दुबारा बी जे पी की सरकार में आती तो जो काम ए राजा ने किया वह एन डी ए के किसी घटक दल के मंत्री ने किया होता . ठीक उसी तरह जैसे इन लोगों ने विदेश संचार निगम को बेचा था या और भी बहुत सारे घपले किये थे . ऐसी हालत में शासक वर्गों की पार्टियों से घूस के खिलाफ आचरण की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . इनकी देशभक्ति की भावना भी आर्थिक लाभ के लिए होती है . घूसखोरी पर लगाम तभी लगेगा जब इस देश की जनता जागरूक होगी और नेताओं से सीधे जवाब मांगेगी