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Saturday, December 26, 2009

मीडिया ही बनेगा राजनीतिक अपराध के खिलाफ युद्ध का हरावल दस्ता

शेष नारायण सिंह


आजकल अपराध और दबदबे का अजीब मेल देखा जा रहा है. सत्तर के दशक में अपराधियों को नेता बनाने का जो पौधा,स्व. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे, स्व.संजय गाँधी ने रोपा था ,वह अब फल देने लगा है .. अपराधी नेताओं और उनकी दूसरी पीढी समाज को धकिया कर रसातल तक ले जाने की अपनी मुहिम पर पूरे ध्यान से लगी हुई है.. इस हफ्ते के अखबारों में दो ख़बरें ऐसी हैं जो सामाजिक पतन की इबारत की तरह खौफनाक हैं और दोनों ही सामाजिक जीवन में घुस चुके अपराध के समाजशास्त्र की कहानी को बहुत ही सफाई से बयान करती हैं ..पहली तो हरियाणा की खबर , जहां उन्नीस साल पहले बुढापे की दहलीज़ पर क़दम रख चुके एक अधेड़ पुलिस अफसर ने एक १४ साल की बच्ची के साथ ज़बरदस्ती की और जब लडकी ने आत्महत्या कर ली तो उसके परिवार वालों को परेशान करता रहा . १९ साल के अंतराल के बाद जब अदालत का फैसला आया तो उस अफसर को ६ महीने की सज़ा हुई. अब पता लग रहा है कि उस अफसर को अपनी हुकूमत के दौरान राजनेता ओम प्रकाश चौटाला मदद करते रहे, उसे तरक्की देते रहे और केस को कमज़ोर करके अदालत में पेश करवाया. . जानकार बताते हैं कि केस को इतना कमज़ोर कर दिया गया है कि हाई कोर्ट से वह अपराधी अफसर बरी हो जाएगा. राजनेता की मदद के बिना कानून का रखवाला यह अफसर अपराध करने के बाद बच नहीं सकता था.दूसरा मामला . उत्तर प्रदेश के एक छुटभैया विधायक के बेटे का है . यह बददिमाग लड़का दिल्ली के किसी शराबखाने में घुस कर गोलियां चला कर भाग खड़ा हुआ . उसी शराबखाने में बीती रात उसकी बहन गयी थी और अपना पर्स भूल कर चली आई थी.उसी पर्स को वापस लेने गयी अपनी बहन के साथ गया लड़का गोली चला कर रौब मारना चाहता था. उत्तर प्रदेश की सरकारी पार्टी के विधायक का यह लड़का दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़ गया और आजकल पुलिस की हिरासत में है .यह दो मामले तो ताज़े हैं . ऐसे बहुत सारे मामले पिछले कुछ वर्षों में देखने में आये हैं .जेसिका लाल और नीतीश कटारा हत्याकांड तो बहुत ही हाई प्रोफाइल मामले हैं जिसमें नेताओं के बच्चे अपराध में शामिल पाए गए हैं. ऐसे ही और भी बहुत सारे मामले हैं जिनमें नेताओं के साथ साथ अफसरों के बच्चे भी आपराधिक घटनाओं में शामिल पाए गए हैं ... अफ़सोस की बात यह है कि जब यह बच्चे अपराध करते हैं तो उनके ताक़तवर नेता और अफसर बाप उन्हें बचाने के लिए सारी ताक़त लगा देते हैं.और यही सारी मुसीबत की जड़ है ..
समाज को इन अपराधी नेताओं और अफसरों ने ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से वापसी की डगर बहुत ही मुश्किल है. यह मामला केवल उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब तक ही नहीं सीमित है . इस तरह की प्रवृत्ति पूरे देश में फ़ैल चुकी है . अगर इस प्रवृत्ति पर फ़ौरन काबू न कर लिया गया तो बहुत देर हो जायेगी और देश उसी रास्ते पर चल निकलेगा जिस पर पाकिस्तान चल रहा है या अफ्रीका के बहुत सारे देश उसी रास्ते पर चल कर अपनी तबाही मुकम्मल कर चुके हैं . लेकिन अपराधी तत्वों का दबदबा इतना बढ़ चुका है कि इन अपराधियों को काबू कर पाना आसान बिलकुल नहीं होगा. हालात असाधारण हो चुके हैं और उनको दुरुस्त करने के लिए असाधारण तरीकों का ही इस्तेमाल करना होगा. नेहरू के युग में यह संभव था कि अगर अपराधी का नाम ले लिया जाए तो वह दब जाता था , डर जाता था और सार्वजनिक जीवन को दूषित करना बंद कर देता था . जवाहर लाल नेहरू ने एक बार अपने मंत्री केशव देव मालवीय को सरकार से निकाल दिया था क्योंकि दस हज़ार रूपये के किसी घूस के मामले में वे शामिल पाए गए थे..उन्होंने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को गलती से टिकट दे दिया जिसके ऊपर आपराधिक मुक़दमे थे . जब मध्य भारत में चुनावी सभा के दौरान उनको पता चला कि यह तो वही व्यक्ति है जिसे उन्होंने गिरफ्तार करवाया था, नेहरू जी ने उसी चुनावी मंच से ऐलान किया कि इस आदमी को गलती से टिकट दे दिया गया है , उसे कृपया वोट मत दीजिये और उसे चुनाव में हरा दीजिये. वह आदमी कोई मामूली आदमी नहीं था, मंत्री रह चुका था , रजवाड़ा था और आज के एक बहुत बड़े नेता का पूज्य पिता था . आज जब हम देखते हैं कि कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट देना पसंद करती हैं जो अपनी दबंगई के बल पर चुनाव जीत सकें तो जवाहर लाल नेहरू के वक़्त की याद आना स्वाभाविक भी है और ज़रूरी भी.. ज़ाहिर है कि नेहरू ने राजनीतिक जीवन में जिस शुचिता की बुनियाद रखी थी उनके वंशज संजय गाँधी ने उसके पतन की शुरुआत का उदघाटन कर दिया था. बाद में तो सभी पार्टियों ने वही संजय गाँधी वाला तरीका अपनाया और राजनीतिक व्यवस्था आज गुंडों के हवाले हो चुकी है .. अगर यही व्यवस्था चलती रही तो मुल्क को तबाह होने का खतरा बढ़ जाएगा... इस हालत से बचने के लिए सबसे ज़रूरी तो यह है कि अपराधी नेताओं और अफसरों के दिमाग में यह बात बैठा दी जाए कि जेसिका लाल और नीतीश कटारा के हत्यारों की तरह ही हर बद दिमाग सिरफिरे को जेल में ठूंस देने की ताक़त कानून में है . लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कानून का इकबाल बुलंद करने वाले भी ज़्यादातर मामलों में शामिल पाए जाते हैं..ऐसी हालात में घूम फिर कर ध्यान मीडिया पर ही जाता है . पिछले दिनों जितने भी हाई प्रोफाइल मामलों में न्याय हुआ है उसमें मीडिया की भूमिका अहम् रही है . इस बार भी हरियाणा वाले अपराधी अफसर के मामले में मीडिया ने ही सच्चाई को सामने लाने का अभियान शुरू किया है और उम्मीद है कि रुचिका की मौत के लिए ज़िम्मेदार अपराधी को माकूल सज़ा मिलेगी. .इस लिए राजनीति में अपराधियों के दबदबे के बावजूद अभी उम्मीद बाकी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि अपराधियों को सज़ा मिलने की गति तेज़ होगी.. और मीडिया की मुहिम देश को और समाज को बचाने में कारगर साबित होगी.

Wednesday, September 30, 2009

भ्रष्ट अफ़सरों की बेनामी संपत्ति जब्त हो

केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर निर्णायक हमला करने की तैयारी में है। केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली का कहना है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए कानून में संशोधन करके और धारदार बनाने की योजना पर काम चल रहा है। अगर मोइली अपने मिशन में सफल होते हैं तो सरकारी अफसरों को रिश्वत लेने के पहले बार-बार सोचना पड़ेगा हालांकि रिश्वत लेना और देना जुर्म है लेकिन इसके लिए सजा का प्रावधान बहुत मामूली हैँ अभी तो पांच साल तक की कारावास की सजा की व्यवस्था है। घूसखोर सरकारी अफसर सोचता है कि अगर 100-200 करोड़ रुपये इकट्ठा कर लिए जाएं तो कुछ साल जेल में रहकर फिर वापसे आने पर बेइमानी से इकट्ठा किए गए धन का उपयोग बाकी जिंदगी आराम से किया जा सकता है।

लेकिन अगर जेल की सजा के साथ-साथ चोरी बेईमानी से उगाहा गया धन भी ज़ब्त होने लगे तो घुसखोर अधिकारी में कानून की दहशत पैदा होगी और भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकेगा। मामला अभी बहस के दौर में है। मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक एक्ट में अपराध साबित होने पर 5 से 7 साल तक की सजा तो हो सकती है लेकिन सरकार के पास अपराधी अफसर की संपत्ति जब्त करने का अधिकार नहीं है। मंत्री के अनुसार सरकार भ्रष्टाचार निरोधी कानून में संशोधन करने पर गंभीरता से विचार कर रही है भ्रष्टï साधनों से अर्जित संपत्ति को भी ज़ब्त किया जा सके।

सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार के मामले में बिहार का नाम अब तक सर्वोपरि रहा है। बिहार सरकार में पिछले कई दशकों से व्याप्त भ्रष्टाचार से परेशान राज्य के मुख्य मंत्री नीतिश कुमार पिछले दिनों कानून मंत्री वीरप्पा मोइली से मिले थे। उन्होंने सुझाव दिया कि एक ऐसा कानून बनना चाहिए जिससे भ्रष्टाचार के मामले में जब जांच अधिकारी चार्जशीट दाखिल कर दे, उसी वक्त अभियुक्त सरकारी अधिकारी की भ्रष्टï साधनों से अर्जित की गई संपत्ति जब्त कर ली जाय। दरअसल राज्य सरकार इस तरह के एक कानून के बारे में विचार कर रही है। अफसर बिरादरी इस तरह के कानून की चर्चा मात्र से सकते में हैं।

अगर कहीं यह कानून बन गया तो सरकारी नौकरी के रास्ते अरबपति बनने के सपनों की तो अकाल मृत्यु हो जायेगी। नीतीश कुमार के इस सुझाव के बाद केंद्र सरकार में तैनात सरकारी अफसरों ने प्रस्तावित कानून में अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि इस कानून के सहारे नेता लोग अफसरों से बदला लेंगे और ईमानदारी से काम करना मुश्किल हो जाएगा। सवाल यह है कि ईमानदारी से काम करते कितने लोग हैं। इस विषय पर सिविल सेवा के एक शीर्ष अधिकारी से बात करने पर तो तसवीर बिलकुल दूसरी नज़र आई। पिछले करीब 35 साल से सरकारी अधिकारियों के जीवन को बहुत करीब से देख रहे इस अधिकारी का जीवन बहुत ही पवित्र है।

राजनीतिक सत्ता के कई मठाधीशों ने इनको भ्रष्टाचार निरोधक कानून में फंसाने की कई बार कोशिश की लेकिन एक भी केस नहीं मिला। सरकारी तनख्वाह लेते हैं, सरकारी मान्यता प्राप्त सुविधाएं हैं और जीवन अपनी शर्तों पर जीते हैं। उनका कहना है कि वर्तमान भ्रष्टाचार निरोधी कानून में संपत्ति जब्ती की व्यवस्था करने से भ्रष्टाचार रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी लेकिन रिकार्ड के लिए तो इन अफसरों की संपत्ति उतनी ही होती है जितनी सिविल सर्विस रूल्स के तहत होनी चाहिए। इनकी घूसखोरी वाली सारी संपत्ति बेनामी होती है।

कानून ऐसा होना चाहिए कि उस बेनामी संपत्ति को सरकार जब्त कर सके। लेकिन बेनामी संपत्ति को जब्त करना आसान इसलिए नहीं होगा कि उसका पता कैसे चलेगा। इस ईमानदार अफसर का सुझाव है कि अभियुक्त अधिकारी का नार्को टेस्ट कराया जाय जिससे वह अपनी सारी बेनामी संपत्ति और जमीन का पता बता दे और उस संपत्ति के बारे में गहराई से जांच करवाकर उसको जब्त कर लिया जाय। बेनामी संपत्ति के मामलों में अकसर देखा गया है कि जिसके नाम पर संपत्ति खरीदी गई रहती है, वह व्यक्ति या संस्था कही होती ही नहीं और इस संपत्ति पर दावेदारी नहीं की जा सकती। ऐसी हालत में लावारिस संपत्ति को जब्त करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।

कई बार यह बेईमान अफसर संपत्ति की रजिस्ट्री नौकरों या रिश्तेदारों के नाम करवाते हैं। उनकी भी विधिवत जांच की जा सकती है और संपत्ति जब्त की जा सकती है। बेनामी संपत्ति का पता लगाने का दूसरा तरीका यह है कि सरकारी अधिकारियों की संपत्ति की घोषणा को सार्वजनिक डॉमेन में डाल दिया जाय, किसी लोकप्रिय वेबसाइट पर डाल दिया जाय और जनता से सुझाव मांगे जायें कि जो सूचना अफसर ने दी है क्या वह सच है। जानकार बताते हैं कि देश के कोने कोने से ख़बर आ जायेगी कि अमुक अफसर की जमीन कहां है और उसका शापिंग मॉल कहां है, या उसका कारखाना कहां है। इस सूचना के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया जा सकता है।

संपत्ति की जब्ती को राजनीतिक नेताओं की ओर से अफसरों पर नकेल कसने के औजार के रूप में इस्तेमाल होने की संभावना को ईमानदार अफसरों ने बिलकुल बोगस बताया। उनका कहना है कि राजनेताओं की घूसखोरी और बेईमानी की सारी व्यवस्था का जिम्मा भ्रष्ट अधिकारियों के मत्थे ही है। यही लोग नेताओं मंत्रियों के भ्रष्टाचार के कामिसार के रूप में काम करते हैं और राजनीतिक आकाओं के भ्रष्टाचार के जंगल मे अपनी बेईमानी की फुलवारी सजाते हैं।

अगर अफसरों में बेईमानी और घूसखोरी के प्रति खौफ पैदा हो गया तो राजनेताओं के भ्रष्टाचार पर अपने आप लगाम लग जाएगी क्योंकि भ्रष्टाचार में अफसर की रूचि कम हो जायेगी। सूचना की क्रांति और मीडिया के जनवादी करण के इस युग में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में इंटरनेट भी बड़ी भूमिका बना सकती है और उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।