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Friday, April 20, 2012

नैशनल म्यूज़ियम को धन्नासेठों को सौंपने के चक्कर में है सरकार

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,१८ अप्रैल. संस्कृति मंत्रालय के एक और संगठन का घपला संसद की नज़र में आया है . नैशनल म्यूज़ियम हमारे इतिहास का एक खजाना है लेकिन उसके रखरखाव और प्रबंधन के काम में सरकार ने बहुत ही गैरज़िम्मेदार तरीका अपना रखा है. संस्कृति मंत्रालय के काम पर नज़र रखने वाली संसद की स्थायी समिति ने अपने १६७वीं रिपोर्ट में लिखा है कि नैशनल म्यूज़ियम में बहुत सारे पद खाली पड़े हैं . सरकारी पदों पर भर्ती के नियम इतने टेढ़े हैं कि किसी को भर्ती कर पाना लगभग असंभव है. सरकारी नियम यह है कि अगर कोई पद एक साल तक खाली रह जाए तो वह खत्म हो जाता है और सरकार में नए पद का सृजन बहुत कठिन काम है संसद की स्थायी समिति को लगता है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो नैशनल म्यूज़ियम में कुछ समय बाद कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं रह जाएगा और सरकार को बहाना मिल जाएगा कि नैशनल म्यूज़ियम जैसी राष्ट्रीय महत्व की संस्था किसी प्राइवेट कंपनी को दे दी जाए. कमेटी ने सरकार को ताकीद की है कि इस तरह की साज़िशनुमा कार्रवाई को रोके और नैशनल म्यूज़ियम में खाली पड़े पदों पर फ़ौरन उपयुक्त लोगों की भर्ती करे. राज्यसभा के सदस्य सीताराम येचुरी इस कमेटी के अध्यक्ष हैं . इसके सदस्यों में दोनों ही सदनों के सांसद शामिल हैं .

परिवहन,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय पर नज़र रखने के लिए संसद की स्थायी समिति की नैशनल म्यूज़ियम के बारे में रिपोर्ट को पिछले साल मार्च में संसद के दोनों सदनों में पेश किया था . लेकिन अभी तक रिपोर्ट में दिए गए सुझावों पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है . कमेटी की रिपोर्ट में नैशनल म्यूज़ियम में चारों तरफ फैले अनर्थ का खुलासा है और इतने अहम संस्थान को सर्वनाश से बचाने के लिए बहुत से महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं लेकिन सरकार ने कोई क़दम नहीं उठाया है . रिपोर्ट पर नज़र डालने से समझ में आ जाता है कि नैशनल म्यूज़ियम भारी कुप्रबंध का शिकार है .यहाँ २६ गैलरियां हैं जिनमें से ७ गैलरियां पिछले कई साल से बंद हैं .नैशनल म्यूज़ियम के पास बड़ा सा भवन है लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण ज़्यादातर गैलरियां बंद कर दी गयी हैं .नैशनल म्यूज़ियम के भवन की देखभाल का काम सी पी डब्ल्यू डी वालों के पास है लेकिन उनका रवैया भी गैरजिम्मेदार है .कमेटी ने सुझाव दिया है कि सी पी डब्ल्यू डी में एक ऐसा सेक्शन बनाया जाना चाहिए जो शुद्ध रूप से देश भर के म्यूजियमों के निर्माण और देखभाल का काम करे.
नैशनल म्यूज़ियम की सिक्योरिटी का हालत तो बहुत ही चिंताजनक है . बहुत सारी चोरी की घटनाएं हुई हैं . बहुत सारे मामलों की जांच हो रही है . कुछ मामलों में नैशनल म्यूज़ियम के कर्मचारियों का हाथ भी पाया गया है .इसलिए कुछ मामले सरकार के सतर्कता विभाग के पास भी विचारधीन हैं . संस्कृति विभाग के सचिव ने बताया कि वे चोरी और सरकारी कर्मचारियों की हेराफेरी से परेशान हैं और उन्होंने इस सम्बन्ध में सी बी आई को चिट्ठी भी लिखी है .नैशनल म्यूज़ियम के पास २ लाख से भी ज्यादा कलाकृतियाँ हैं जिनमें से केवल १५, ६८१ को प्रदर्शित किया गया है यानी कुल कलाकृतियों का केवल करीब ७ प्रतिशत ही प्रदर्शित किया गया है .
नैशनल म्यूज़ियम में २००३ के बाद से कलाकृतियों का वेरीफिकेशन नहीं किया गया है. कमेटी को शक़ है कि इतने लम्बे अंतराल के बाद कुछ कलाकृतियाँ गायब हो गयी होगीं. नैशनल म्यूज़ियम के प्रबंधन की तरफ से इसका जो कारण बताया गया वह भी इस संस्था के निजीकरण की तरफ संकेत करता है . बताया गया कि स्टाफ नहीं है इसलिये कलाकृतियों का वेरीफिकेशन नहीं हो सका. नैशनल म्यूज़ियम के संकलन में ऐसी कलाकृतियाँ हैं जिनकी बड़ी संख्या बहुत ही दुर्लभ कलाकृति की श्रेणी में आती है . लेकिन कमेटी के लोग सन्न रह गए जब उन्हें पता चला कि कला के इस ज़खीरे को संभालने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. आई टी के क्षेत्र में इतनी तरक्की हो गयी है कि लेकिन नैशनल म्यूज़ियम में विज्ञान की प्रगति का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है . कमेटी ने सुझाव दिया है कि नैशनल म्यूज़ियम की कलाकृतियों को डिज़िटाइज किया जाए और उसे इंटरनेट पर उपलब्ध कारवाने की कोशिश की जाए. नैशनल म्यूज़ियम में भर्ती के सख्त नियमों के चलते वर्षों तक महानिदेशक का पद खाली पड़ा रहा . उसके पहले भी आई ए एस वालों ने अपने साथियों को वहां टाइम पास करने का बार बार मौक़ा दिया. कमेटी ने सख्ती से आदेश दिया है कि फ़ौरन से पेशतर नैशनल म्यूज़ियम में एक ऐसे व्यक्ति को महानिदेशक बनाया जाए जो संग्रहालयों के काम काज को जानता हो . यानी नौकरशाही के चंगुल से नैशनल म्यूज़ियम को मुक्त कराने की दिशा में भी संसद की स्थायी समिति ने पहल कर दी है .

अपनी पेशी के दौरान संस्कृति विभाग के सचिव् ने कहा था कि मंत्रालय ने गोस्वामी कमेटी की रिपोर्ट के लागू करने की दिशा में कुछ काम किया है लेकिन अभी बहुत काम होना बाकी है .कमेटी ने सुझाव दिया है कि गोस्वामी कमेटी की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया जाए और दिल्ली के नैशनल म्यूज़ियम के अलावा देश के बाकी महत्वपूर्ण संस्थाओं को भी वही महत्व दिया जाए जिस से देश के ऐतिहासिक गौरव की चीज़ों को संभाल कर रखा जा सके. कमेटी ने कहा है कि संस्कृति मंत्रालय इतना महत्वपूर्ण है कि कई बार इसे प्रधान मंत्री के अधीन ही रखा जाता रहा है .कमेटी को इस बात पर ताज्जुब है कि इस के बावजूद भी संस्कृति मंत्रालय की संस्थाओं को ज़रूरी इज्ज़त नहीं दी जा रही है कमेटी ने उम्मीद जताई है कि सरकार के उच्चतम स्तर पर फौरी कार्रवाई की जायेगी और नैशनल म्यूज़ियम जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान को स्वार्थी लोगों के हाथों जाने से बचा लिया जाएगा.

Friday, August 26, 2011

संसद की स्टैंडिंग कमेटी के पास अकूत पावर होता है


शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली, २५ अगस्त .लोकपाल बिल पर चर्चा के दौरान संसद की स्थायी समिति यानी स्टैंडिंग कमेटी का बार बार उल्लेख हुआ. किसी ने कहा कि स्थायी समिति के पास कोई पावर नहीं होता . इसलिए बिल पर चर्चा लोक सभा में ही होनी चाहिए. अजीब बात है कि सरकार की तरफ से भी इस बात को बहुत ही साफ़ तरीके से लोगों को नहीं बताया गया कि स्थायी समिति के पास किसी भी बिल के बारे में चर्चा करने के असीमित पावर होते हैं . यहाँ तक कि अगर स्थायी समिति चाहे तो सरकार की तरफ से भेजे गए बिल के हर शब्द को बदल सकती है और बिलकुल नया बिल सदन के विचार के लिए पेश कर सकती है . वह बिल को सम्बंधित मंत्रालय के पास यह कह कर लौटा भी सकती है कि बिल में कोई दम नहीं है इसलिए उसे संसद के विचार के लिए नहीं पेश किया जा सकता. सत्ताधारी पार्टी का एक बहुत ही प्रिय बिल सूचना के अधिकार के सम्बन्ध में था. नेशनल एडवाइज़री काउन्सिल वालों ने बहुत ही मेहनत करके बिल बनाया था . कांग्रेस उस बिल का श्रेय लेते नहीं अघाती लेकिन जो बात बहुत कम लोगों को मालूम है वह यह कि सरकार ने जिस बिल का मसौदा संसद की स्थायी समिति के पास भेजा था उसमें १५० संशोधन किये गए थे और जो बिल संसद में विचार के लिए स्थायी समिति ने भेजा वह मूल मौसदे से बहुत ही अलग और अच्छा था. इसी तरह के और भी बहुत सारे उदाहरण हैं . इसलिए अन्ना की टीम के सदस्यों ने कानून मंत्रालय की स्थायी समिति के बारे में जो पावर न होने की बात कही थी उस बात में कोई दम नहीं है . दुर्भाग्य की बात है कि सरकार और कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी सही बात जोर देकर नहीं कही गयी और जनता को इस बारे में कई भ्रांतियों के शिकार होने के लिए मजबूर होना पड़ा.

संसद की स्थायी समितियों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है . १९८० के दशक में यह अनुभव किया गया कि संसद के प्रति सरकार की जवाबदेही के बुनियादी सिद्धांत को मुकम्मल तरीके से नहीं लागू किया जा रहा था . संसद के प्रति सरकार की ज्यादा जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संसद में कमेटी सिस्टम की व्यवस्था लागू की गयी. १९८९ में पहली बार तीन कमेटियां बनायी गयीं. मकसद यह था कि किसी भी बिल के संसद में पेश होने से पहले उसकी विधिवत विवेचना की जाये और जब सभी पार्टियों की सदस्यता वाली समिति उसे मंजूरी दे तब संसद के सामने मामले को विचार के लिए प्रस्तुत किया जाए. १९८९ में केवल तीन कमेटियां बनायी गयी थी, एक कृषि के लिए, दूसरी `विज्ञान और टेक्नालोजी के लिए और तीसरी पर्यावरण और वन विभाग के लिए थी. इन कमेटियों की सफलता के बाद ही भारतीय संसद में कमेटी सिस्टम को विधायी कार्य के लिए एक प्रभावी संस्था के रूप में स्वीकार किया गया. १९९३ में १७ मंत्रालयों और विभागों की स्थायी समितियां बनायी गयीं . इन में ६ कमेटियां राज्यसभा के अध्यक्ष की निगरानी में थीं जबकि ११ कमेटियां लोकसभा के अध्यक्ष की निगरानी में काम कर रही थीं .२००४ में कमेटियों की संख्या बढ़ाकर २४ कर दी गयी.
इन कमेटियों का मुख्य काम सरकार के कामकाज की गंभीर विवेचना करना और संसद के प्रति सम्बंधित मंत्रालय कोपूरी तरह से जवाबदेह बनाना है . ,सम्बंधित मंत्रालय या विभाग की बजट मांगों पर पहले स्थायी समिति में चर्चा होती है और वहां पर जानकारों की राय तक ली जा सकती है .उस विभाग से सम्बंधित बिल भी सबसे पहले उस मंत्रालय की स्थायी समिति के पास जाता है . लोक पाल बिल कानून मंत्रालय की स्थायी समिति के पास भेजा गया है .इस कमेटियों में जब चर्चा के लिए को बिल लाया जाता है तो उसकी बाकायदा जांच करके उसे संसद में प्रस्तुत किया जाता hai. कमेटी का लाभ यह है कि सदन में पेश होने के पहले बिल का नीर क्षीर विवेक हो चुका होता है और हर पार्टी उसमें अपना राजनीतिक योगदान कर चुकी होती है . ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार वहां मनमानी कर ले क्योंकि कमेटी का गठन ही सरकार को ज्यादा ज़िम्मेदार ठहराने के लिए किया जाता है .सभी पार्टियों के सदस्य इन कमेटियों के सदस्य होते हैं इसलिए सरकार के काम काज की इनकी बैठकों में बाकायदा जांच की जाती है . आम तौर पर यहाँ पर फैसले आम सहमति से होते हैं लेकिन अगर कोई सदस्य चाहे तो नोट आफ डिसेंट लगा सकता है .
इन कमेटियों के गठन के भी संसद ने नियम बना रखे हैं. हर स्थायी समित के पास कई बार एक से ज्यादा मंत्रालय भी हो सकते हैं . हर स्थायी समिति में ३१ सदस्य होते हैं . २१ लोक सभा के सदस्य होते हैं जबकि १० राज्यसभा के . कोई भी मंत्री इन समितियों का सदस्य नहीं बन सकता.क्योंकि सरकार के काम काज की जांच के लिए ही तो कमेटी का गठन होता है . कमेटी की सदस्यता केवल एक साल के लिए होती है . अपने नियंत्रण वाली कमेटियों के अध्यक्षों की नियुक्ति राज्य सभा और लोक सभा के अध्यक्ष खुद करते हैं . जन लोक पाल बिल जिस कमेटी के हवाले किया गया है उसके अध्यक्ष कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी हैं . अलग अलग कमेटियों की अध्यक्षत अलग अलग पार्टी के सदस्यों के पास होती है . इसलिए संसद की स्थायी समिति को कम पावर वाली कहना बिलकुल भ्रामक है