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Tuesday, July 27, 2010
Saturday, July 10, 2010
आर एस एस के बड़े नेताओं के दरवाज़े पर सी बी आई की दस्तक
शेष नारायण सिंह
आर एस एस के नेता लोग घबडाए हुए हैं . अब उन्होंने अपने लोगों को सख्त हिदायत दे दी है कि आतंकवादी गतिविधियों से दूर रहें .यह सख्ती पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िम्मेदार संघ प्रचारकों से सी बी आई की पूछताछ के बाद अपनाई गयी है. अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय से पिछले दिनों सी बी आई ने कड़ाई से पूछ ताछ की थी. अशोक बेरी आर एस एस के क्षेत्रीय प्रचारक हैं और आधे उत्तर प्रदेश के इंचार्ज हैं . वे आर एस एस की केंदीय कमेटी के भी सदस्य हैं .अशोक वार्ष्णेय उनसे भी ऊंचे पद पर हैं . वे कानपुर में रहते हैं और प्रांत प्रचारक हैं .. उनके ठिकाने पर कुछ अरसा पहले एक भयानक धमाका हुआ था. बाद में पता चला कि उस धमाके में कुछ लोग घायल भी हुये थे. घायल होने वाले लोग बम बना रहे थे. सी बी आई के सूत्र बताते हैं कि उनके पास इन लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के पक्के सबूत हैं और हैदराबाद की मक्का मस्जिद , अजमेर और मालेगांव में आतंकवादी धमाके करने में जिस गिरोह का हाथ था, उस से उत्तर प्रदेश के इन दोनों ही प्रचारक के संबंधों की पुष्टि हो चुकी हैं . इसके पहले आर एस एस ने तय किया था कि अगर अपना कोई कार्यकर्ता आतंकवादी काम करते पकड़ा गया तो उस से पल्ला झाड़ लेगें . इसी योजना के तहत अजमेर में २००७ में हुए धमाके के लिए जब देवेन्द्र गुप्ता और लोकेश शर्मा पकडे गए थे तो संघ ने ऐलान कर दिया था कि उन लोगों की आतंकवादी गतिविधियों से आर एस एस को कोई लेना देना नहीं है . वह काम उन्होंने अपनी निजी हैसियत में किया था और नागपुर वालों ने उनके खिलाफ चल रही जांच में पुलिस को सहयोग देने का निर्णय ले लिया था. लेकिन अब वह संभव नहीं है . क्योंकि अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय कोई मामूली कार्यकर्ता नहीं है , वे संगठन के आलाकमान के सदस्य हैं . वे उस कमेटी की बैठकों में शामिल होते हैं जो संगठन की नीति निर्धारित करती है . उनसे पल्ला झाड़ना संभव नहीं है . इसके दो कारण हैं . एक तो यह कि इतने बड़े प्रचारक का कुछ भी निजी नहीं होता , वह संघ कार्य के लिए जीवनदान कर चुका होता है ,वह केवल संघ के लिए काम करता है . दूसरी बात ज्यादा खतरनाक है . वह यह कि अगर इनके साथ आर एस एस की लीडरशिप धोखा करेगी तो कहीं यह लोग बाकी पोल-पट्टी भी न खोल दें . हिन्दू अखबार की संवाददाता से बात करते हुए आर एस एस के एक वरिष्ट नेता ने बताया कि अगर एक दिन के लिए भी आर एस एस आतंकवाद से जुडा हुआ पकड़ लिया गया तो बहुत नुकसान होगा . उसका कहना था कि वह नुकसान महात्मा गाँधी की हत्या में संदिग्ध होने पर जो नुकसान हुआ था, उस से भी ज्यादा होगा. महात्मा गाँधी की ह्त्या वाले मामले में आर एस एस वालों को बेनिफिट ऑफ़ डाउट देकर छोड़ दिया गया था .
आर एस एस का यह डर वास्तविक है . इस संभावित तूफ़ान से बचने के लिए जगह जगह बैठकें हो रही हैं . अब मामला अखबारों में भी छप चुका है .देश के दो आदरणीय अखबार , द हिन्दू और इन्डियन एक्सप्रेस , अपने बहुत ही वरिष्ठ संवाददाताओं की लिखी हुई खबरें छाप चुके हैं .अब बी जे पी और आर एस एस के बड़े नेताओं की बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है . इस विषय पर बुधवार को बी जे पी अध्यक्ष , नितिन गडकरी के आवास पर एक बैठक हुई. बाद में एक अन्य बैठक आर एस एस के झंडेवालान दफ्तर में हुई जिसमें पार्टी के सबसे बड़े नेता लोग शामिल हुए. अरुण जेटली, राम लाल, राजनाथ सिंह , अनंत कुमार, मदन दास देवी जैसे दिगाज इस मामले में बी जे पी और आर एस एस की रणनीति बनाने के काम में जुट गए हैं . इसके अलावा आर एस एस के बड़े अधिकारियों की एक बैठक पिछले दिनों जोधपुर में भी हुई थी. वहां पर आतंकवाद की वारदातों में शामिल अपने कार्यकर्ताओं से जान छुडाने के लिए जो तरकीब बनायी जा रही है उसकी मामूली सी बानगी मिली. सोचा यह जा रहा है कि एक ऐसा मेकनिज्म तैयार करने की घोषणा की जाए जिसमें यह बताया गया हो कि आगे से आर एस एस ऐसे लोगों की पूरी जांच करके ही उन्हें संघ मेंआने देगा जिनके अन्दर किसी तरह की आतंकवादी गतिविधियों के निशान न हों . . इस योजना का खूब प्रचार किया जाये़या और जब कोई भी अपना बंदा पकड़ा जाएगा तो फ़ौरन कह देगें कि भाई जांच करने में गलती हो गयी . और उस आतंकवादी कनेक्शन वाले कार्यकर्ता को उसके हाल पर छोड़ दिया जाएगा. इस योजना के बारे में अभी बहुत ही शुरुआती चर्चा हुई है . इसको लागू करने में बहुत खतरे हैं . क्योंकि अगर अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय जैसे लोगों को सी बी आई के हवाले करने का फैसला कर लिया गया तो ख़तरा यह है कि वे अपने से ऊपर वालों का नाम भी न बता दें . क्योंकि लोकेश शर्मा और देवेन्द्र गुप्ता तो मामूली कार्यकर्ता थे, चुप बैठ गए और अब उम्र का बड़ा हिस्सा जेलों में काटेगें लेकिन दोनों अशोक शायद इस तरह से बाकी ज़िन्दगी न बिताना चाहें . और यही हिन्दुत्ववादी राजनीति के करता धर्ता नेताओं की दहशत का मूल कारण हैं .
एक दूसरी सोच भी चल रही है . बी जे पी के कई नेताओं ने इन्डियन एक्सप्रेस के संवाददाता को संकेत दिया है कि अभी घबडाने की कोई बात नहीं है क्योंकि इस बात की संभावना कम है कि सी बी आई के लोग आर एस एस से उस तरह का पंगा लेगी जैसा उसने गुजरात में लिया है . आर एस एस की पूरी ताक़त से लोहा लेना न तो कांग्रेस के वश की बात है और न ही सी बी आई के . इस भरोसे का कारण यह है कि आर एस एस के बहुत सारे लोग नौकरशाही में घुसे पड़े हैं. अगर आर एस एस को ज़रुरत पड़ी तो वह गृह मंत्रालय में मौजूद पुराने संघ कार्यकर्ताओं से ऐसी डिस-इन्फार्मेशन लीक करवा देगा, जिससे सारी जांच की हवा निकल जायेगी.अभी पिछले हफ्ते पूरी दुनिया ने देखा है कि इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटर के मामले में फंसे गुजरात पुलिस के आला अधिकारियों को बचाने के लिए किस तरह गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने अखबारों में ख़बरों की व्यवस्था की थी . हालांकि हेडली के हवाले से अपनी बात कहने की उनकी कोशिश को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया लेकिन कोशिश तो की ही गयी. इसी तरह से अगर आर एस एस पर हमला करने की कोशिश की गयी तो संघ भावना से ओतप्रोत अफसर अपनी पुरानी संस्था का नुकसान नहीं होने देगें . लेकिन वह तो बाद की बात है . गाँधी हत्या केस में भी आर एस एस के बड़े नेता बेनिफिट ऑफ़ डाउट देकर बरी तो कर दिये गए थे लेकिन कलंक तो बहुत दिनों बाद तक लगा रहा. आर एस एस और बी जे पी के शीर्ष नेतृत्व की मौजूदा डर का यही कारण है.
आर एस एस के नेता लोग घबडाए हुए हैं . अब उन्होंने अपने लोगों को सख्त हिदायत दे दी है कि आतंकवादी गतिविधियों से दूर रहें .यह सख्ती पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िम्मेदार संघ प्रचारकों से सी बी आई की पूछताछ के बाद अपनाई गयी है. अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय से पिछले दिनों सी बी आई ने कड़ाई से पूछ ताछ की थी. अशोक बेरी आर एस एस के क्षेत्रीय प्रचारक हैं और आधे उत्तर प्रदेश के इंचार्ज हैं . वे आर एस एस की केंदीय कमेटी के भी सदस्य हैं .अशोक वार्ष्णेय उनसे भी ऊंचे पद पर हैं . वे कानपुर में रहते हैं और प्रांत प्रचारक हैं .. उनके ठिकाने पर कुछ अरसा पहले एक भयानक धमाका हुआ था. बाद में पता चला कि उस धमाके में कुछ लोग घायल भी हुये थे. घायल होने वाले लोग बम बना रहे थे. सी बी आई के सूत्र बताते हैं कि उनके पास इन लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के पक्के सबूत हैं और हैदराबाद की मक्का मस्जिद , अजमेर और मालेगांव में आतंकवादी धमाके करने में जिस गिरोह का हाथ था, उस से उत्तर प्रदेश के इन दोनों ही प्रचारक के संबंधों की पुष्टि हो चुकी हैं . इसके पहले आर एस एस ने तय किया था कि अगर अपना कोई कार्यकर्ता आतंकवादी काम करते पकड़ा गया तो उस से पल्ला झाड़ लेगें . इसी योजना के तहत अजमेर में २००७ में हुए धमाके के लिए जब देवेन्द्र गुप्ता और लोकेश शर्मा पकडे गए थे तो संघ ने ऐलान कर दिया था कि उन लोगों की आतंकवादी गतिविधियों से आर एस एस को कोई लेना देना नहीं है . वह काम उन्होंने अपनी निजी हैसियत में किया था और नागपुर वालों ने उनके खिलाफ चल रही जांच में पुलिस को सहयोग देने का निर्णय ले लिया था. लेकिन अब वह संभव नहीं है . क्योंकि अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय कोई मामूली कार्यकर्ता नहीं है , वे संगठन के आलाकमान के सदस्य हैं . वे उस कमेटी की बैठकों में शामिल होते हैं जो संगठन की नीति निर्धारित करती है . उनसे पल्ला झाड़ना संभव नहीं है . इसके दो कारण हैं . एक तो यह कि इतने बड़े प्रचारक का कुछ भी निजी नहीं होता , वह संघ कार्य के लिए जीवनदान कर चुका होता है ,वह केवल संघ के लिए काम करता है . दूसरी बात ज्यादा खतरनाक है . वह यह कि अगर इनके साथ आर एस एस की लीडरशिप धोखा करेगी तो कहीं यह लोग बाकी पोल-पट्टी भी न खोल दें . हिन्दू अखबार की संवाददाता से बात करते हुए आर एस एस के एक वरिष्ट नेता ने बताया कि अगर एक दिन के लिए भी आर एस एस आतंकवाद से जुडा हुआ पकड़ लिया गया तो बहुत नुकसान होगा . उसका कहना था कि वह नुकसान महात्मा गाँधी की हत्या में संदिग्ध होने पर जो नुकसान हुआ था, उस से भी ज्यादा होगा. महात्मा गाँधी की ह्त्या वाले मामले में आर एस एस वालों को बेनिफिट ऑफ़ डाउट देकर छोड़ दिया गया था .
आर एस एस का यह डर वास्तविक है . इस संभावित तूफ़ान से बचने के लिए जगह जगह बैठकें हो रही हैं . अब मामला अखबारों में भी छप चुका है .देश के दो आदरणीय अखबार , द हिन्दू और इन्डियन एक्सप्रेस , अपने बहुत ही वरिष्ठ संवाददाताओं की लिखी हुई खबरें छाप चुके हैं .अब बी जे पी और आर एस एस के बड़े नेताओं की बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है . इस विषय पर बुधवार को बी जे पी अध्यक्ष , नितिन गडकरी के आवास पर एक बैठक हुई. बाद में एक अन्य बैठक आर एस एस के झंडेवालान दफ्तर में हुई जिसमें पार्टी के सबसे बड़े नेता लोग शामिल हुए. अरुण जेटली, राम लाल, राजनाथ सिंह , अनंत कुमार, मदन दास देवी जैसे दिगाज इस मामले में बी जे पी और आर एस एस की रणनीति बनाने के काम में जुट गए हैं . इसके अलावा आर एस एस के बड़े अधिकारियों की एक बैठक पिछले दिनों जोधपुर में भी हुई थी. वहां पर आतंकवाद की वारदातों में शामिल अपने कार्यकर्ताओं से जान छुडाने के लिए जो तरकीब बनायी जा रही है उसकी मामूली सी बानगी मिली. सोचा यह जा रहा है कि एक ऐसा मेकनिज्म तैयार करने की घोषणा की जाए जिसमें यह बताया गया हो कि आगे से आर एस एस ऐसे लोगों की पूरी जांच करके ही उन्हें संघ मेंआने देगा जिनके अन्दर किसी तरह की आतंकवादी गतिविधियों के निशान न हों . . इस योजना का खूब प्रचार किया जाये़या और जब कोई भी अपना बंदा पकड़ा जाएगा तो फ़ौरन कह देगें कि भाई जांच करने में गलती हो गयी . और उस आतंकवादी कनेक्शन वाले कार्यकर्ता को उसके हाल पर छोड़ दिया जाएगा. इस योजना के बारे में अभी बहुत ही शुरुआती चर्चा हुई है . इसको लागू करने में बहुत खतरे हैं . क्योंकि अगर अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय जैसे लोगों को सी बी आई के हवाले करने का फैसला कर लिया गया तो ख़तरा यह है कि वे अपने से ऊपर वालों का नाम भी न बता दें . क्योंकि लोकेश शर्मा और देवेन्द्र गुप्ता तो मामूली कार्यकर्ता थे, चुप बैठ गए और अब उम्र का बड़ा हिस्सा जेलों में काटेगें लेकिन दोनों अशोक शायद इस तरह से बाकी ज़िन्दगी न बिताना चाहें . और यही हिन्दुत्ववादी राजनीति के करता धर्ता नेताओं की दहशत का मूल कारण हैं .
एक दूसरी सोच भी चल रही है . बी जे पी के कई नेताओं ने इन्डियन एक्सप्रेस के संवाददाता को संकेत दिया है कि अभी घबडाने की कोई बात नहीं है क्योंकि इस बात की संभावना कम है कि सी बी आई के लोग आर एस एस से उस तरह का पंगा लेगी जैसा उसने गुजरात में लिया है . आर एस एस की पूरी ताक़त से लोहा लेना न तो कांग्रेस के वश की बात है और न ही सी बी आई के . इस भरोसे का कारण यह है कि आर एस एस के बहुत सारे लोग नौकरशाही में घुसे पड़े हैं. अगर आर एस एस को ज़रुरत पड़ी तो वह गृह मंत्रालय में मौजूद पुराने संघ कार्यकर्ताओं से ऐसी डिस-इन्फार्मेशन लीक करवा देगा, जिससे सारी जांच की हवा निकल जायेगी.अभी पिछले हफ्ते पूरी दुनिया ने देखा है कि इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटर के मामले में फंसे गुजरात पुलिस के आला अधिकारियों को बचाने के लिए किस तरह गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने अखबारों में ख़बरों की व्यवस्था की थी . हालांकि हेडली के हवाले से अपनी बात कहने की उनकी कोशिश को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया लेकिन कोशिश तो की ही गयी. इसी तरह से अगर आर एस एस पर हमला करने की कोशिश की गयी तो संघ भावना से ओतप्रोत अफसर अपनी पुरानी संस्था का नुकसान नहीं होने देगें . लेकिन वह तो बाद की बात है . गाँधी हत्या केस में भी आर एस एस के बड़े नेता बेनिफिट ऑफ़ डाउट देकर बरी तो कर दिये गए थे लेकिन कलंक तो बहुत दिनों बाद तक लगा रहा. आर एस एस और बी जे पी के शीर्ष नेतृत्व की मौजूदा डर का यही कारण है.
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