शेष नारायण सिंह
जब २००४ में मुंबई में जाकर काम करने का प्रस्ताव मिला तो मेरी माँ दिल्ली में ही थीं. घर आकार मैं बताया कि नयी नौकरी मुंबई में मिल रही है . माताजी बहुत खुश हो गयीं और कहा कि भइया चले जाओ, मुंबई लक्ष्मी का नइहर है . सारा दलेद्दर भाग जाएगा. मुंबई चला गया , करीब दो साल तक ठोकर खाने के बाद पता चला कि जिस प्रोजेक्ट के लिए हमें लाया गया था उसे टाल दिया गया है . बहुत बड़ी कंपनी थी लेकिन काम के बिना कोई पैसा नहीं देता. बहरहाल वहां से थके हारे लौट कर फिर दिल्ली आ गए और अपनी दिल्ली में ही रोजी रोटी की तलाश में लग गए. लेकिन अपनी माई की बात मुझे हमेशा झकझोरती रहती थी . अगर मुंबई लक्ष्मी का नइहर है तो मैं क्यों बैरंग लौटा . इस बीच मुंबई में बहुत कुछ हुआ. अपने मुंबई प्रवास के दौरान मुझे अपने बचपन के कई साथी भी मिले जो वहां रोज़गार की तलाश में सत्तर के दशक में गए थे ,अब आराम से हैं . अब साल में कई बार मुंबई जाना होता है . मेरे बेटे की नौकरी वहीं है . अपने बचपन के साथियों से अब भी मिलना जुलना होता है . उनमें से एक पहलवान ने तो इस साल नए सिरे से कारोबार शुरू किया . पिछली बार उसने कहा था कि अपनी भी अजीब ज़िन्दगी है, लोग ६० साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं और हम हैं कि अभी फिर से नौकरी तलाश रहे हैं . लेकिन इस बार उसका कारोबार देख कर मज़ा आ गया. मेरी ही पृष्ठभूमि के लोग अब मुंबई में अरब पति हैं . तुर्रा यह कि किसी ने कोई बेईमानी नहीं की , अपनी मेहनत के बल पर जमे हुए हैं . अभी मेरा एक दोस्त शिक्षा विभाग से रिटायर हुआ. बड़े पद पर था .कल्याण के पास उल्लास नगर में रहता था , रोज़ दक्षिण मुंबई काम करने आता था . नौकरी में बहुत मुश्किल से काम चलता रहा लेकिन अब रिटायर होने पर पैसे वाला बन गया. इस बार मुझे भी एक दोस्त ने समझाया कि दिल्ली की माया छोडो ,मुंबई आ जाओ . अपनी उम्र के बहुत सारे लोगों ने रिटायर होने के बड़ा काम शुरू किया है और अब ज्यादा आराम से हैं . फिर लगा कि माई ने सही कहा था , मुंबई वास्तव में लक्ष्मी का नइहर है . अगर थोड़े धीरज के साथ काम करने का मन कोई भी बना ले तो मुंबई में उसे निराश नहीं होना पड़ेगा .
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Thursday, November 11, 2010
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