शेष नारायण सिंह
आज अखबारों में एक दिलचस्प खबर छपी है कि केंद्रीय मंत्री मुरली देवड़ा ने प्रधान मंत्री से कहा है कि उन्हें मंत्री पद से मुक्त कर दिया जाए .इस खबर को पढ़ते ही तुरंत दिमाग में एक बात आई कि मुरली देवड़ा को मंत्री बनाया ही क्यों गया . उनको उस मंत्रिमंडल में जगह क्यों दी गयी जिसमें कभी सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद जैसे लोग हुआ करते थे . यह उम्मीद करना कि आज के ज़माने में उन महान नेताओं की तरह के लोग राजनीति में शामिल होंगें, बेमतलब है .लेकिन ऐसे लोगों का भी शामिल होना खलता है जिनको जनता के हित की बात सोचने का एक दिन का भी अनुभव न हो .राजनीति में पचास और साठ के दशक में ऐसे लोगों की भरमार थी जो आज़ादी की लड़ाई के सिपाही रह चुके थे लेकिन सत्तर का दशक आते आते सब गड़बड़ हो गया .दिल्ली में इंदिरा गाँधी के प्रधान मंत्री बनने के बाद उनके छोटे बेटे संजय गाँधी का राज आ गया था.देश की राजनीति में मनमानी का युग आ गया था . ज़मीन से जुड़े नेताओं को अपमानित किया जाने लगा था . संजय गाँधी के हुक्म से राज्यों के नेता तैनात होने लगे. जो भी संजय गाँधी या उनके चेलों की सेवा में हाज़िर हो गया उसको ही राजनीति में भर्ती कर लिया गया. इस चक्कर में बहुत सारे ऐसे लोग राजनीति में आ गए जिनको कायदे से जेलों में होना चाहिए था . वही लोग देश के भाग्यविधाता बन गए. उन लोगों ने ही देश में दलालों का एक वर्ग तैयार कर दिया . दलाली एक संस्कृति के रूप में पैदा हो चुकी थी . अस्सी के दशक की शुरुआत में अरुण नेहरू की सर परस्ती में इन्हीं दलालों ने मामूली लेकिन महत्वाकांक्षी व्यापारियों को बड़े उद्योगपति बनने के सपने दिखाए . मुरली देवड़ा और धीरूभाई अम्बानी उसी दौर में मुंबई में यार्न के मामूली व्यापारी के रूप में मुंबई में काम करते थे . दिल्ली का रास्ता इन्होने देख लिया था . दोनों साथ साथ रहते थे. अपने लिए भी बहुत सारे लाइसेंस लिए और बाकी लोगों को भी लाइसेंस दिलवाए . दोनों में दोस्ती खूब गाढ़ी थी. सुबह की जहाज से मुंबई से दिल्ली आते और शाम को वापस चले जाते . लाइसेंस का ज़माना था . डी जी टी डी के अफसरों को दे दिला कर काम करवाते और वापस चले जाते . अस्सी में जब इंदिरा गाँधी दुबारा सत्ता में आयीं तब तक यह टोली बहुत प्रभावी हो चुकी थी . धीरूभाई जो चाहते थे वही होता था.अगर किसी को शक़ हो तो बाम्बे डाइंग के नस्ली वाडिया या सिंथेटिक धागे के पुराने कारोबारी कपल मेहरा के वंशजों से पूछ ले. आज भी मुरली देवड़ा पूरी तरह से धीरूभाई के परिवार के प्रति प्रतिबद्ध हैं . जो सी ए जी की रिपोर्ट आई है वह पिछले ३० वर्षों के इस इतिहास की रोशनी में साफ़ हो जाती है .ज़ाहिर है कि जनता को लाभ पंहुचाने का मुरली देवड़ा को कोई तजुर्बा नहीं है , वे किसी औद्योगिक घराने को ही लाभ पंहुचा सकते हैं . इसलिए उन्हें किसी ऐसे मंत्रालय का चार्ज देने का औचित्य समझ में नहीं आया जो पेट्रोलियम जैसी अहम कमोडिटी का विभाग हो जिसकी वजह से महंगाई के बढ़ने पर सीधा असर पड़ता हो. उनके मित्र धीरूभाई अम्बानी का परिवार जिस विभाग की नीतियों से सीधे तौर पर लाभान्वित होता हो .सी ए जी की रिपोर्ट ने तो उनके कारनामों का पोस्ट मार्टम भर किया है . आज जनता त्राहि त्राहि कर रही है और कांग्रेस की सरकार महंगाई बढाने के लिए ज़िम्मेदार मंत्री और उनके साथियों पर कोई कार्रवाई करने की बात तक नहीं सोच रही है . अखबारों में वह बयान छपवा रहा है कि वह मंत्री पद छोड़ देना चाहता है . मुरली देवड़ा जैसे लोगों को मंत्री ही नहीं बनाया जाना चाहिए था .बहर हाल उम्मीद की जानी चाहिए कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद इस तरह के लोग फिर से मंत्रिपरिषद की शोभा न बनें .
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Wednesday, July 6, 2011
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